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शुक्रवार, 6 सितंबर 2013

आज की वर्ण व्यवस्था

       आज की वर्ण व्यवस्था

ब्राह्मण ,क्षत्रिय ,वैश्य ,शुद्र ये,चारों वर्ण हुआ करते थे
अलग अलग सारे वर्णों के ,अपने कर्म  हुआ करते  थे
ब्राह्मण ,पूजा ,शिक्षण करते ,क्षत्रिय वीर लड़ाई लड़ते
वैश्य ,वणिक व्यापारी होते,बाकी काम शुद्र थे  करते
आज शुद्र सब शुद्ध हो गए ,बचा न  कोई शुद्र वर्ण है
सभी मिल गए अन्य वर्ण में,अब बस केवल तीन वर्ण है
तन मन और जमीर बेचते ,वैश्य न,वैश्या बने कमाते
अलग क्षेत्र हित लड़ते रहते ,क्षत्रिय ना,क्षेत्रीय  कहाते
धर्म कर्म को छोड़ आजकल ,ब्राह्मण ना ,हो गए भ्रष्ट मन
पर सत्ता के गलियारे में ,अब भी होता इनका पूजन

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

जी हाँ भ्रष्टाचार हूँ मै

        जी हाँ  भ्रष्टाचार हूँ मै

भले कानूनी किताबों में  बड़ा अपराध हूँ
हर जगह मौजूद हूँ मै ,हर जगह आबाद हूँ
रोजमर्रा जिन्दगी का ,एक हिस्सा बन गया ,
हो रहा खुल्लम खुला ,स्वच्छंद हूँ,आज़ाद हूँ
कोई भी सरकारी दफ्तर में मुझे तुम पाओगे ,
चपरासी से साहब तक के ,लगा  मुंह का स्वाद हूँ
घूमता मंत्रालयों में ,सर उठाये शान से ,
मंत्री से संतरी तक के लिए आल्हाद  हूँ
फाइलों को मै चलाता ,गति देता काम को ,
गांधीजी के चित्र वाला ,पत्र ,पुष्प,प्रसाद हूँ
अमर बेलों की तरह,हर वृक्ष पर फैला हुआ ,
खुद पनपता ,वृक्ष को ,करता रहा बर्बाद हूँ 
प्रवचनों में ज्ञान देते ,जो चरित्र निर्माण का ,
ध्यान की उनकी कुटी में ,वासना उन्माद हूँ
मिटाने जो मुझे आये वो स्वयं ही मिट गए ,
होलिका जल गयी मै जीवित बचा प्रहलाद हूँ
जी हाँ,भ्रष्टाचार हूँ मै ,खा रहा हूँ देश को ,
व्यवस्था में लगा घुन सा ,कर रहा बरबाद हूँ

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

गुरुवार, 5 सितंबर 2013

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जब भी मै विज्ञापन देखता हूँ,सोचता हूँ,
जब सफोला नहीं होता था ,
लोग अपने दिल का ख्याल कैसे रखते थे
जब हिट नहीं होता था,
मलेरिया के मच्छर से कैसे बचते थे
जब होर्लिक्स या बोर्नविटा नहीं होता था ,
बिना विटामिन डी के ,
दूध का केल्शियम कैसे मिलता होगा
बिना लक्स या ब्यूटी क्रीमों  के,
औरतों का रूप कैसे खिलता होगा
बिना शेम्पू के ,बाल कैसे धोये जाते होंगे
बिना टी वी के लोग वक़्त कैसे बिताते होंगे
बिना मोबाईल के ,बात कैसे होती होगी
बिना बिजली की रोशनी के,रात कैसी होती होगी
घर में ढेर सारे बच्चे और संयुक्त परिवार सारा
इतनी भीड़ में कैसे करते होंगे गुजारा
पर ये सच है ,बिना इन सुविधाओं के भी,
खुशी खुशी जीते थे  ,लोग सारे
हाँ,वो थे ,पुरखे हमारे
घोटू 


हमारा धर्म-हमारे संस्कार

            हमारा धर्म-हमारे संस्कार

हम जब भी गुजरते है ,किसी मंदिर,मस्जिद ,
या  किसी अन्य  धार्मिक स्थल के आगे से ,
सर नमाते  है 
क्योंकि हमारे संस्कार ,हमें ,
सभी धर्मो का आदर करना सिखलाते है
बचपन से ही हमारे मन में भर दी जाती,
यह आस्था और विश्वास है
कि हर चर अचर में,इश्वर का वास है
भगवान ने भी जब अवतार लिया
तो सबसे पहले जलचर मत्स्य याने मछली ,
और फिर  कश्यप याने कछुवे का रूप लिया
फिर वराह बन प्रकटे ,पशु रूप धर
फिर नरसिंह बने,याने आधे पशु ,आधे नर
गणेश जी ,जिनकी हर शुभ  कार्य में,
पहले पूजा की जाती है
नीचे से नर है,ऊपर से हाथी है
हम आज भी गाय को गौ माता कहते है
और वानर रुपी हनुमानजी का
 पूजन करते रहते है
अरे पशु क्या ,हम तो वृक्ष और पौधों में भी ,
करते है भगवान का दर्शन
इसीलिए करते है ,वट,पीपल,
आंवला और तुलसी का पूजन 
हम पर्वतों को भी देवता स्वरूप मानते है ,
कैलाश पर्वत हो या गोवर्धन
पत्थर की पिंडी या मूर्ती को भी ,
देव स्वरूप मान कर करते है आराधन
पूजते है सरोवर
अमृतसर हो या पुष्कर
नदियों को  देवी का रूप मान कर ,
स्नान, पूजा, ध्यान करते रहते है
गंगा को गंगा मैया और,
 यमुना को यमुना मैया कहते है 
नाग को भी देवता मान कर दूध पिलाते है
कितने ही पशु पक्षियों को ,
देवी देवता का वाहन बतला कर ,
उनकी महिमा बढाते है
प्रकृति की हर कृति का करते सत्कार है
ये हमारा धर्म है,हमारे संस्कार है

मदन मोहन बाहेती'घोटू '

मंगलवार, 3 सितंबर 2013

आँख का क्या ,लड़ गयी सो लड़ गयी

      आँख का क्या ,लड़  गयी सो लड़ गयी

इधर दिल धड़का ,उधर धड़कन बढ़ी ,
हुआ कुछ कुछ,बात आगे  बढ़ गयी
नहीं इस पर बस कभी भी ,किसीका ,
आँख का क्या,लड़ गयी सो लड़ गयी
बहुत हसरत थी कि उनसे हम मिलें
बढ़ें आगे,प्यार के फिर सिलसिले
ललक उनसे मिलने की मन में लगी ,
चाह का क्या, जग गयी सो जग गयी
लालसा थी लबों की मदिरा  पियें
जिन्दगी भर झूम मस्ती से जियें
इस तरह आगोश में उनके बंधे,
प्यास का क्या ,बढ़ गयी सो बढ़ गयी
भावनाएं,आई,ठहरी ,बह गयी,
चाह मन की ,कुछ अधूरी रह गयी
सुहानी  यादें मधुर के भरोसे,
उम्र का क्या ,कट गयी सो कट गयी

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

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