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शुक्रवार, 23 अगस्त 2013

बरसात और शादी

                बरसात और शादी

तपिश से गर्मियों की तंग आ हम प्रार्थना करते ,
कि जल्दी आये मौसम बारिशों का और जल बरसे
अकेलेपन से आकर तंग ज्यों क्वांरा करे विनती ,
जल्द से जल्द बीबी जाए मिल,वो शादी को तरसे
शुरू में बारिशें जब आती है ,मन को सुहाती है,
बाद शादी के जैसे कुछ दिनों आनंद  आता है
मगर जब रोज बारिश की झड़ी लगती ,नहीं रुकती ,
पति भी रोज की फरमाइशों से  तंग आता है
कहीं गड्ढे ,कहीं कीचड,कहीं  पानी,कहीं सीलन ,
न जाने कब बरस जाए ,संग छाता रखो हरदम
मारे खर्चों के होता गीला आटा ,मुफलिसी में भी ,
बाद शादी के ,घर के बजट का ,होता यही आलम
बाद  बारिश के जैसे होती है पैदा नयी  फसलें,
बाद शादी के ऐसे अधिकतर ,परिवार बढ़ता है
बारिशें और शादी ,एक सी,खुशियाँ कभी आफत ,
बचो तुम लाख लेकिन भीगना सबको ही पड़ता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

गुरुवार, 22 अगस्त 2013

हुस्न का जादू

         हुस्न का जादू

तुम्हारे हुस्न का जादू ,चला है मेरे सर चढ़ कर
नहीं दुनिया में कोई भी,हसीं है तेरे से बढ़ कर
दिखा कर नाज़ और नखरे,हमारा दिल जलाती हो
कभी जाती लिपट और फिर छिटक के भाग जाती हो
बड़ी मादक  सी अंगडाई ,सवेरे उठ के जब लेती
कई छुरियां चलाती हो ,कलेजा चीर तुम देती
हमें बाहों में भर कर के ,नशा ,उन्माद भरती हो
और फिर छोडिये जी की,खुद  फ़रियाद करती हो
 बड़ी ही स्वाद ,प्यारी और मीठी ,चाकलेटी  हो
लगी हो जबसे होठों से,उतर की दिल में बैठी हो
अदाएं और जलवों से ,हमें बेबस भी करती हो
मज़ा भी पूरा लेती हो,और बस बस भी करती हो
ये सब अंदाज़ तुम्हारे,गजब के है,अजब से है
तुम्हारे इश्क में  पागल,दीवाने हम तो कब से है

मदन मोहन बाहेती'घोटू;

जन्म दिवस पर

  जन्म दिवस पर

उम्र सारी बेखुदी में कट गयी
उस सदी से इस सदी में कट गयी
जमाने ने ,ढाये कितने ही सितम ,
छाई गम की बदलियाँ और छट गयी
कौन अपना और पराया कौन है,
गलतफहमी थी,बहुत,अब हट गयी
मुस्करा कर सभी से ऐसे मिले ,
दूरियां और खाइयाँ सब पट गयी
बचपने में ,जवानी में और कुछ ,
उम्र अपनी बुढ़ापे में बंट  गयी
लोग कहते एक बरस हम बढ़ गए ,
जिन्दगी पर एक बरस है घट गयी

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

ना है या हाँ है

        ना है या हाँ है

मै तुमसे चाहता  जब कुछ,तुम टालमटोल करती हो,
समझ में ये नहीं आता ,तुम्हारे मन का सच क्या है
कभी गर्दन हिलाती हो,कभी नज़रें झुकाती हो,
पता ही लग नहीं पाता ,तुम्हारी हाँ है या ना है
मैंने ये देखा है अक्सर,इस तरह ना नुकुर कर कर ,
मज़ा लेती हो तुम जी भर,हमेशा का ये किस्सा है
हुआ करता सदा ये है,हसीनो की अदा ये है ,
कि उनकी ना ना का मतलब ,अधिकतर होता ही हाँ है

घोटू 

उल्फत का भूत

          उल्फत का भूत

गया था पूछने इतना ,की मुझको तुझसे उल्फत है,
वो इक तरफ़ा या दो तरफ़ा ,बतादे अपने उत्तर से
न तूने घास कुछ डाली,न पूछा तेरी  अम्मा ने ,
बड़ा बेरंग लिफ़ाफ़े सा ,मै लौटा हूँ ,तेरे घर से
रहा अच्छा ये कि तेरे ,नहीं अब्बा जी थे घर पर ,
नहीं बच नहीं पाते कोई भी बाल ,इस सर पे
कहा कुछ भी किसी ने ना ,मुझे पर मिल गया उत्तर ,
चढ़ा था भूत उल्फत का ,उतर अब है गया सर से
घोटू

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