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सोमवार, 17 जून 2013

बुढ़ापा

  

     बुढ़ापा- जीवन का संडे 
जीवन भर संधर्ष किया है ,गुजरें है तूफानो से ,
हम मे ऊर्जा भरी हुई है,ये न समझना  ठंडे  है 
दिखने मे बेजान काठ से,दुबले पतले लगते है,
अगर पड़े तो खाल उधेड़े ,हम तो एसे  डंडे  है 
हमको मत कमजोर समझना,देख हमारी काया को,
हमने दुनिया देखी,आते ,हमको सब हथकंडे  है 
ये जीवन,सप्ताह एक है,हमने छह दिन काम किया,
अब आराम बुढ़ापे मे है,ये  जीवन का संडे  है 
'घोटू '
 

फादर'स डे

            फादर'स  डे 
विदेशों का चलन आजकल ,
भारत मे भी बढ़ता जाता है 
एक साल मे एक बार ,
पिताजी का दिन भी आता है 
जिसे लोग फादर'स डे कह कर बुलाते है 
और अपने पिता को,हेप्पी फादर'स डे के,
कार्ड,तोहफे और शुभकामना संदेश भिजवाते है 
बहुत व्यस्त रहते हुये भी कुछ 
समय निकाल कर याद कर लेते है 
शुभकामना संदेश एस एम एस कर देते है 
कोई फोन पर बात करते   है,
कोई  उपहार या कोई फूल भिजवाता है 
और इस तरह बाप का कर्ज चुकाता है  
हमने जब ये बात अपने बेटे से बोली 
तो उसने बड़े गर्व से अपनी जुबान खोली 
कहा बच्चे साल मे कम से कम एक दिन तो,
फादर'स डे मना कर के,
अपने पिता का एहसान चुकाते है 
पर क्या आप कभी,
'सन'स डे' या'डाटर'स डे 'मनाते है ?
हमने कहा हमारा तो हर दिन ही ,
बच्चों का दिन हुआ करता है 
अब तुम्हें क्या बताएं ,
माँ बाप का दिल तो हमेशा,
अपने बच्चों की खुशी की दुआ करता है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

रविवार, 16 जून 2013

गुजरा हुआ जमाना

           गुजरा हुआ जमाना 
सूरज रोशन करता है दिन,चाँद चाँदनी बिखराता 
बहती सुंदर हवा सुहानी ,बादल  पानी  बरसाता 
ये सारे उपहार प्रकृति के ,देता है ऊपर वाला 
सब उपकार मुफ्त ,पैसे ना लेता है ऊपर वाला 
लेकिन हम सब दुनिया वाले जब थोड़ा कुछ करते है 
नहीं मुफ्त मे कुछ भी मिलता ,पैसे देना पड़ते है 
करे रात को घर रोशन तो बिजली का बिल है बढ़ता 
पानी की बोतल पीने को ,दस रुपया देना पड़ता 
और हवा के झोंके  ए सी ,कूलर ,पंखों से  आते 
एक तो मंहगे दाम और फिर है दूनी बिजली खाते 
जब ये सब उपकरण नहीं थे ,रात छतों पर  सोते थे 
ठंडी मस्त हवा के झोके ,बड़े सुहाने  होते थे 
मटकी और सुराही मे भर,पीते थे ठंडा पानी 
रोटी ,चटनी सब्जी खाते ,और मीठी सी गुडधानी
बड़ा मस्तमौला जीवन था ,ना थी चिंता कोई फिकर 
न थी आज सी भागदौड़ी और काम करना दिन भर 
बहुत तरक्की की पर खोया ,मन का चैन पुराना वो 
हमे याद आता है अक्सर ,गुजरा हुआ  जमाना  वो 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'   

चढ़ावा

           चढ़ावा 
दुनिया भर को रोशन करता ,बिना कुछ पैसे लिये
ताल,कुवे,नदियां सब भरता ,बिना कुछ पैसे लिये 
मस्त हवा के झोंके लाता , बिना कुछ पैसे लिये 
धूप,चाँदनी से नहलाता  ,बिना कुछ  पैसे  लिये 
खेतों मे है अन्न उगाता ,बिना कुछ  पैसे  लिये
एक बीज से वृक्ष बनाता , बिना  कुछ,,पैसे  लिये 
 मन था उपकृत,एहसानों से,और मैंने  इसलिये
गया मंदिर ,उसके दर पर,  चढ़ा  कुछ  रुपए दिये

था बड़ा एहसानमंद  मै,उसे कहने शुक्रिया
एक डब्बा मिठाई का, चढ़ा  मंदिर मे दिया
कहा उसने खुश  रहो तुम,मेरा आशीर्वाद है
ये मिठाई तू ही खाले, ये मेरा  परशाद  है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बिजली

           
  कभी जाती हो चली और कभी आ जाती हो तुम 
 मुझसे आँख मिचौली करती ,बहुत तड़फाती हो तुम  
जब भी मै छूता तुझे ,तो झटका देती हो मुझे , 
दिलरुबा बोलूँ की या फिर ,कहूँ मै  बिजली तुझे 
'घोटू '

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