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सोमवार, 10 जून 2013

पथ्य

      
          पथ्य 
लूखी रोटी,सब्जी पतली 
चांवल लाल,दाल भी पतली 
और सलाद,मूली का गट्टा 
और साथ में फीका  मट्ठा 
डाक्टर ने जो बतलाया था 
कल मैंने वो ही खाया  था 
या बस अपना पेट भरा था 
सच मुझको कितना अखरा था 
एक तरफ पकवान,मिठाई 
देख देख नज़रें ललचाई 
मगर बनायी इनसे दूरी 
बीमारी की थी मजबूरी 
कई बार ये आता  जी में 
इतना सब कुछ दिया विधी ने 
सब इन्जोय करो,कहता  मन 
तो फिर क्यों है इतना बंधन 
खाना  चाहें,खा न सके हम 
कब तक खुद को रोकेंगा मन 
हम सब है खाने को जीते 
या जीने को खाते,पीते 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 

एक ही थैली के चट्टे बट्टे

           एक ही थैली के चट्टे  बट्टे 
        
खुद है गंदे ,और हमको   साफ़ करने आ गये 
देखो बगुले,भक्त बन कर,जाप करने आ गये 
कोर्ट में लंबित है जिनके ,गुनाहों का मामला ,
अब तो मुजरिम भी यहाँ,इन्साफ करने आ गये 
भले मंहगाई बढे और सारी जनता हो दुखी ,
भाड़ में सब जाये ,खुद का लाभ करने आ गये 
यूं ही सब बदहाल है ,टेक्सों के बढ़ते  बोझ से,
हमको फिर से नंगा ये चुपचाप करने  आ गये 
रोज बढ़ती कीमतों से,फट गया जो दूध  है,
उसके रसगुल्ले बना ये  साफ़ करने  आ गये 
एक ही थैली के चट्टे बट्टे,मतलब साधने ,
कौरवों से पांडव ,मिलाप करने  आ गये 
पाँव लटके कब्र में है,मगर सत्ता पर नज़र,
बरसों से  देखा ,वो पूरा ख्वाब करने आ गये 
बहुत हमको रुलाया,अब तो बकश दो तुम हमें,
सता करके फिर हमें ,क्यों पाप करने आ गये 
बहुत झेला हमने 'घोटू',वोट हमसे मांग कर ,
फिर से शर्मिन्दा हमें ,क्यों आप करने आ गये 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

रविवार, 9 जून 2013

प्रणय निवेदन-एक डाक्टरनी से


        प्रणय निवेदन-एक डाक्टरनी से 
    
     
दर पे तेरे आये है हम ,तुझसे कहने के लिये 
क्या तेरे दिल में जगह है ,मेरे रहने के लिये 
महबूबा डाक्टर थी,हंस के ये बोली डीयर 
मेरा दिल तो छोटा सा है,एक मुट्ठी बराबर 
और तुम तो छह फुटे हो,समा कैसे पाओगे 
तोड़ दोगे ,दिल मेरा, यदि उसमे बसने आओगे 
हमने बोल ठीक है,एहसान इतना कीजिये 
दिल नहीं तो कम से कम ,दिमाग में रख लीजिये 
'क्या मेरा दिमाग खाली'खफा हो उसने कहा 
डाक्टरी पढ़ ली तो फिर दिमाग क्या खाली रहा 
कहा हमने चाहते हम ,कहना दिल की बात है 
तुम मेरी  लख्ते -जिगर,ये प्यार के जज्बात है  
कहा उसने जिगर फिर तो तुम्हारा बेकार है 
टेस्ट लीवर का कराने की तुम्हे  दरकार है 
हमने बोल प्यार जतलाने का ये अंदाज है 
मेरी हर धड़कन में डीयर ,बस तुम्हारा वास है 
धडकता दिल,सांस से जब ,आती जाती है हवा 
मै हवा ना ,हकीकत हूँ,पलट कर उसने  कहा 
हमने बोला ,ये हमारे इश्क का  पैगाम  है 
मेरे खूं के हरेक कतरे में तुम्हारा  नाम है 
कहा उसने ,सीरियस ये बात है,कहते हो क्या 
टेस्ट ब्लड का कराना ,अब तो जरूरी हो गया 
हमने बोला  ,बस करो,मत झाड़ो अपनी डाक्टरी 
प्यार का इकरार करदो,झुका नज़रे मदभरी 
हंस वो बोली,बात दिल की,मेरे पापा से कहो 
हमारी शादी करादे ,साथ फिर मेरे   रहो 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

 

शनिवार, 8 जून 2013

इस हाथ देना -उस हाथ लेना

     
          इस हाथ देना -उस हाथ लेना 

हम गाय को घास डालते है ,
ये सोच कर कि  दूध मिलेगा 
शादी में बहू को गहने चढाते है,
इस उम्मीद से कि वंश बढेगा 
बीबी की हर बात मानते है ,
क्योंकि उससे प्यार है पाना 
कुछ पाने की आशा में ,कुछ चढ़ाना ,
ये तो है चलन पुराना 
अब आप इसे रिश्वत कह दो ,
या दे दो कोई भी नाम 
पर ये तो इन्वेस्मेंट है ,
जिससे हो जाते है बड़े बड़े काम 
जब हम मंदिर में चढ़ावा चढाते है ,
या कोई दान करते है 
भगवान् हमें कई गुना देगा,
ये अरमान रखते है 
और काम हो जाने पर,
भगवान को परसाद चढाते है 
भगवान को दो प़ेडे,
और बाकी प्रशाद खुद खाते है 
जिस मंदिर में मनोकामना पूर्ण होती है ,
वहीँ पर लोग उमड़ते है 
सब इन्वेस्टर है,जहाँ अच्छा रिटर्न है,
वहीँ  इन्वेस्ट करते है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 
 

अन्दर की बात

              अन्दर की बात 
               
समुन्दर  का हुआ मंथन ,निकले थे चौदह रतन ,
उनमे से एक चाँद भी था ,वो कहानी याद  है 
छोड़ कर निज पिता  का घर,आसमां में जा बसा ,
समुन्दर तो है पिताजी ,और बेटा चाँद है 
पूर्णिमा को पास दिखता ,तो हिलोरें मारता ,
बाप का दिल करता है की जाकर बेटे से मिले 
और अमावस्या के दिन  जब वो नज़र आता नहीं,
परेशां होता समुन्दर ,बढती दिल की हलचलें 
चाँद के संग ,समुन्दर से ही थी प्रकटी  लक्ष्मी ,
वारुणी ,अमृत,हलाहल,भाई और बहना हुये 
पत्नी जी गृहलक्ष्मी है ,चाँद उनका भाई है ,
इसी  कारण चंद्रमाजी ,बच्चों के  मामा हुये 
वारूणी ,साली हमारी ,है बड़ी ही नशीली ,
पत्नीजी ने भाई बहनों से है उनका  गुण लिया 
होती है नाराज तो लगती हलाहल की तरह,
प्यार करती,ऐसा लगता ,जैसे अमृत घट पिया 
ससुरजी ,खारे समुन्दर ,रत्नाकर कहते है सब,
पर बड़े कंजूस है ,देते न कुछ  भी  माल है 
बात ये अन्दर की है पर आप खुद ही समझ लो,
जिसके तेरह साले ,साली,कैसा उसका  हाल है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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