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शुक्रवार, 7 जून 2013

जिन्दगी -चार मुक्तक

         जिन्दगी-चार मुक्तक 
         
                        १ 
 जिन्दगी थी ,खूबसूरत ,जिन पलों में 
  रहे उलझे,सांसारिक , सिलसिलों में 
   फेर में नन्यान्वे के रहे फंस  कर ,
  फायदे  ,नुक्सान की ही अटकलों में 
                         २ 
   हमें अच्छा या बुरा कुछ  दिख न पाया 
  भटकता  ही रहा ये मन, टिक न पाया 
  अभी तक  हिसाब ये हम कर न पाये ,
  हमने क्या क्या खोया और क्या क्या कमाया 
                          ३    
   जिन्दगी का मुल्य हम ना जान पाये 
    आपाधापी में यूं ही बस दिन बिताये 
    व्यर्थ की ही उलझनों में रहे उलझे ,
    अधूरी रह गयी मन की कामनायें 
                           ४ 
    सांझ आयी ,सूर्य ढलने लग गया है 
    उम्र का ये दौर  ,खलने  लग गया है 
    जितना भी हो सके,जीवन का मज़ा लें,
    ख्याल मन में ये  मचलने लग गया है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बुढापे की खुराक

          बुढापे की खुराक 
          
खा लिया करते थे 'घोटू',पाच छह गुलाब जामुन ,
                उम्र का एसा असर है ,सिर्फ  जामुन खा रहे है 
दिल जलाया ,जलेबी ने,और रसगुल्ला हुआ गुल,
                  खीर खाना अब मना है,सिर्फ खीरा   खा रहे है 
भूल करके गर्म हलवा ,करेले का ज्यूस कड़वा ,
                    लूखी रोटी ,फीकी सब्जी, कैसे भी गटका रहे है  
तली चीजों पर है ताला ,चाय ,काफी पड़ी फीकी ,
                      शुगर  ना बढ़ जाए तन में,इसलिये घबरा रहे है 

  'घोटू'

बुजुर्गों का आशीर्वाद

                  
                       बुजुर्गों का आशीर्वाद 

प्रगति पथ पर जब भी बढ़ता आदमी ,
                        चढ़ने लगता तरक्की की सीढियां 
एक उसके कर्म से या भाग्य से ,
                         जाती है तर ,कई उसकी  पीड़ियाँ 
बनाता पगडंडियो को है सड़क ,
                         साफ़ होती राह जिसके काम से 
उसकी मेहनत का ही ये होता असर ,
                          सबकी गाडी  चलती  है आराम से 
बीज बोता ,उगाता है सींचता ,
                            वृक्ष होता तब कहीं फलदार  है 
खा रहे हम आज फल ,मीठे सरस ,
                             ये बुजुर्गों का दिया  उपहार  है 
आओ श्रद्धा से नमाये सर उन्हें ,
                               आज जो कुछ भी है,उनकी देन है 
उनके आशीर्वाद से ही हमारी ,
                                जिन्दगी में अमन है और चैन  है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'     

गुरुवार, 6 जून 2013

प्यार की बरसात करदे

      
        प्यार की बरसात करदे 

छा रहे बादल घनेरे 
पास आकर मीत मेरे 
घन भले ,बरसे न बरसे ,प्यार की बरसात कर दे 
चाँद बादल में छुपा है 
मुख तुम्हारा चंद्रमा है 
चांदनी में नहा कर हम,सुहानी ये रात  कर दें 
उष्म मौसम है ,उमस है 
बड़ी मन में कशमकश है 
पास आओ,साथ मिल कर,पंख फैला कर उड़े हम 
मै हूँ पानी ,तुम हो चन्दन 
बाँध कर बाहों का बंधन 
एक दूजे में समायें, एक दूजे संग  जुड़े  हम 
हर तरफ बस प्यार बरसे 
प्रीत की मधु धार बरसे 
हवाएं शीतल बहे और हो हरेक मौसम सुहाना 
पुष्प विकसे,मुस्कराये 
बहारे हर तरफ  छाये 
और भवरे गुनगुनाये ,प्यार का मादक खजाना 
मिलन रस में माधुरी है 
जिन्दगी खुशियाँ भरी है 
जिन्दगी महके सभी की ,कोई ऐसी बात कर दें 
छा रहे बादल घनेरे 
पास आकर मीत मेरे 
घन भले बरसे न बरसे ,प्यार की बरसात कर दें 

 मदन मोहन बाहेती 'घोटू'     

आज तुम जब नहाई होगी

       आज तुम  जब नहाई होगी 
       
                          आज तुम जब नहाई  होगी 
देख खुद को आईने में ,मुदित हो मुस्काई होगी 
                           आज तुम जब नहाई होगी 
विधी ने  तुम पर् लुटाया ,रूप का अनुपम खजाना 
किया घायल सैकड़ों को ,बनाया पागल दीवाना 
गुलाबों की मधुर आभा ,गाल पर तेरे बिखेरी 
बादलों की कालिमा सी ,सजाई जुल्फें घनेरी 
और अधरों में भरी है,सुधा संचित  प्रेम रस की,
आईने में स्वयं का चुम्बन किया ,शरमाई होगी 
                             आज तुम जब नहाई होगी 
कदली के स्तंभ ऊपर ,देख निज चंचल जवानी 
डाल चितवन,स्वयं पर तुम हो गयी होगी दीवानी 
देख  अमृत कलश उन्नत,बदन की  शोभा  बढाते 
झुका करके नज़र देखा उन्हें होगा ,पर लजाते 
भिन्न कोणों से निहारा होगा निज तन के गठन को ,
संगेमरमर सा सुहाना ,बदन लख, इतराई  होगी 
                             आज तुम जब नहाई होगी 
पडी ठंडी जल फुहारें ,मगर ये तन जला होगा 
स्वयं अपने हाथ से जब बदन अपना मला होगा 
स्निग्ध कोमल कमल तन से बहा होगा जल फिसल कर 
चाहता था संग रहना  ,मगर टिक पाया न पल भर 
रहा सूखा तौलिया ,तन रस न पी पाया अभागा ,
किन्तु खुश स्पर्श से था ,तुमने ली  अंगडाई होगी 
                                आज तुम जब नहाई होगी 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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