राम और कृष्ण का अवतार लेकर ,
आये भगवान थे
पर मानव शरीर लिए हुए ,
वो भी तो इंसान थे
उनने भी मानव शरीर के ,
सारे दुःख उठाये होंगे
बुढापे की तकलीफ़ भी पाये होंगे
रामजी ने चौदह बरस वनवास काटा,
सीताजी का हरण हुआ ,
लंका पर चढ़ाई कर ,
रावण का संहार किया
अयोध्या आये पर धोबी के कहने पर,
गर्भवती सीता को ,घर से निकाल दिया
बिना पत्नी के ,उनके जीवन में,
अन्धकार छा गया
पर अपनी उस गलती के पश्चाताप में ,
बुढ़ापे में,उन्हें भी डिप्रेशन आ गया
बड़े परेशान और डिस्टर्ब थे रहते
और इसी घुटन में,
उन्होंने सरयू में डूब कर
आत्महत्या की,ऐसा लोग है कहते
कृष्ण जी ने भी किया था ,द्वारका पर शासन
पर बुढापे में नहीं चला ,उनका अनुशासन
उनके सब यदुवंशी ,
आपस में ही लड़ने लग गये
तो शांति की तलाश में,
वो द्वारका छोड़ कर,
दूर प्रभाष क्षेत्र की तरफ चले गये
अकेले,तनहा,एक वृक्ष के नीचे ,
शांति से कर रहे थे विश्राम
और वहीँ पर लगा उन्हें बाण
और वो कर गए महाप्रयाण
अंतिम समय में ,उनके परिवार का,
कोई भी सदस्य ,नहीं आया काम
तो भगवान भी ,जब इंसान का रूप लेते है,
बढती उम्र में ,उनके साथ भी ऐसा होता है
सब साथ छोड़ते , कोई साथ नहीं होता है
ओ अगर तुझे ,तेरे अपनों ने छोड़ दिया है ,
और बुढापे में परेशानी होती है,
तो काहे को रोता है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'