एक सन्देश-

यह ब्लॉग समर्पित है साहित्य की अनुपम विधा "पद्य" को |
पद्य रस की रचनाओ का इस ब्लॉग में स्वागत है | साथ ही इस ब्लॉग में दुसरे रचनाकारों के ब्लॉग से भी रचनाएँ उनकी अनुमति से लेकर यहाँ प्रकाशित की जाएँगी |

सदस्यता को इच्छुक मित्र यहाँ संपर्क करें या फिर इस ब्लॉग में प्रकाशित करवाने हेतु मेल करें:-
kavyasansaar@gmail.com
pradip_kumar110@yahoo.com

इस ब्लॉग से जुड़े

मंगलवार, 21 मई 2013

सीटियाँ

    
जवानी में खूब हमने बजाई थी सीटियाँ,
                     लड़कियों को छेड़ने या फिर  पटाने  वास्ते 
और चौकीदार भी सीटी बजाता रात भर,
                     चौकसी रखने को  और सबको जगाने वास्ते 
स्कूलों के दिनों में ,करने किसी को हूट हम,
                      जीभ उंगली से दबाते ,निकलती थी सीटियाँ 
और पिक्चर हॉल में,हेलन का आता डांस जब ,
                      याद है हमको बहुत थी बजा करती  सीटियाँ 
सनसनाती जब  हवाएं,बजाती है सीटियाँ,
                        करके विसलिंग ,कई आशिक ,बात दिल की सुनाते 
डरते है सुनसान रस्ते पर अकेले लोग जब,
                          पढ़ते है हनुमान चालीसा या सीटी   बजाते 
होठ करके गोल हम सीटी बजा कर बोलते ,
                          यारों 'आल इज वेल'है ,ये सीटियों का खेल है 
चलने से पहले या रस्ता साफ़ करने के लिए,
                            हमने देखा,हमेशा सीटी बजाती रेल है 
बस में कंडक्टर बजाता ,सड़क पर ट्राफिक पुलिस ,
                              ड्रिल कराता 'पी .टी .'टीचर और बजाता सीटियाँ 
और प्रेशर कुकर में जब ,जाते सब्जी ,दाल पक,
                               ध्यान तुम्हारा दिलाने  ,वो बजाता सीटियाँ  
जब किसी को देख कर के,मन में सीटी सी बजे ,
                                तो समझ लो इश्क का है पहला सिग्नल मिल गया 
उस हसीना स्वीटी से ,शादी करी,सीटी बजी ,
                                तो गए तुम काम से और तुम्हारा दिल भी गया 
फाउल हो तो छोटी बजती ,गोल तो लम्बी बजे,
                                 बजाता रहता है सीटी ,रेफरी फूटबाल  में 
इश्क की या चौकसी की,मस्ती की या खुशी की ,
                                  सीटियाँ तो बजती ही रहती ,सदा ,हर हाल में 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'   
 

रविवार, 19 मई 2013

श्री और संत का खेल

    

फंसा बुकी जाल में हूँ,खिलाड़ी कमाल मै हूँ,
        पिच पे की घिचपिच ,घोटाला  विराट है 
हरे हरे फील्ड पर ,कमाने को हरे नोट ,
       हारने को किये फिक्स ,थोड़े स्पॉट   है 
फेंक कर के नो बाल ,रन दो तो मिले माल,
       एक ही पारी में ऐसे , रन दिए  आठ है 
धन का अनंत खेल ,श्री और संत मेल,
          अंत में मिले है जेल, खोये ठाठबाट  है 

घोटू 

मिर्च मसाले

      

मसाला ,
ये शब्द होता है बड़ा प्यारा 
क्योंकि इसमें आता है साला 
हर एक की अलग अलग खुशबू ,
अलग अलग स्वाद 
जीवन और खाने को बनाते है लाजबाब 
सबका अपना अपना रूप रंग होता है 
जैसे हल्दी पीली और धनिया गोल होता है 
जीरा ,जीर्ण शीर्ण ,राइ गोल नन्ही सी ,
और लोंग  माथे पर ,मुकुट सा पहने सी 
सिर्फ एक मिर्ची है जो कई रंगों वाली है 
हरी,लाल,पीली है और कभी काली है 
मोटी  है ,पतली है, लम्बी है, छोटी है
और गोलमोल कालीमिर्च होती है 
तुंदियल सी शिमलामिर्च  
लाल,हरी और पीली होती है 
और छोटी सी लोंगा मिर्च ,
ज़रा सी खा लो तो मुंह में आग लगा दे,
इतनी चरपरी होती है 
भोजन में चटकारे,सारे के सारे,
मिर्ची से ही आते है 
लोग सी सी कर ,सिसकारियां  भरते है  ,
पर चाव से खाते है 
बिना मिर्ची के,चाट का ठाठ,
एकदम फीका पड़ जाता है 
जितनी झन्नाट  होती है,उतना मज़ा आता है 
आज खालो,तो दुसरे दिन सुबह तक,
अपना असर दिखाती है 
पर खाने की रंगत ,मिर्ची से ही आती  है 
इस जीवन में रंगत और स्वाद ,
साले और बीबी से ही आता है 
लोग भले ही सी सी करते है,पर सुहाता है 
इसीलिये साले ,मसाले की तरह होते है ,
और औरत को मिर्ची भी कहा जाता है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शनिवार, 18 मई 2013

जन्मदिवस की बधाई

   

आपका आया जन्मदिन ,आपको कोटिश बधाई 
आपकी इस जिन्दगी में ,रहे सब खुशियाँ समाई 
           कोई चिंता ना सताये   
            खूब मीठी नींद आये 
           आप हरदम मुस्कराये     
          गम नहीं नजदीक आये  
          स्वास्थ्य सुन्दर,भली सेहत 
              आये ना कोई मुसीबत 
               स्वजनों का प्यार पायें
              हमेशा खुशियाँ मनाये 
आपके इस मृदुल मुख पर ,रहे रौनक सदा छाई 
आपका आया जन्मदिन ,आपको कोटिश बधाई 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मै तुम्हे सम्भालूँ,तुम मुझे संभालो

    

दुःख पीड़ा में ,इक दूजे का हाथ बटा लो
मै तुम्हे सम्भालूँ ,तुम मुझे संभालो 
जब भी आती याद जवानी की वो बातें
 दिन मस्ती के होते थे और मादक रातें  
बीत गया वो दौर खुशी का ,हँसते ,गाते 
अब तो बस यादें है जिनसे मन बहलाते 
आपा  धापी में जीवन की ,बस मशीन बन 
चलते ,रुकते ,यूं ही बीत गया सब जीवन 
भूली बिसरी उन यादों को  आओ खंगालो 
मै तुम्हे सम्भालूँ,तुम मुझे  संभालो ,,
तुम संग बंधन बाँध ,बंधे दुनियादारी में 
फंसे गृहस्थी के चक्कर,जिम्मेदारी में 
बच्चों का पालन पोषण और बीमारी में 
जीवन बीत गया यूं ही मारामारी में 
उमर काट दी ,यूं ही घुट घुट ,रह कर चिंतित 
पर हम दोनों,इक दूजे पर ,अब अवलंबित 
एक दूसरे को सुख दुःख में,देखो भालो 
मै तुम्हे सम्भालूँ, तुम मुझे संभालो 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

हलचल अन्य ब्लोगों से 1-