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शनिवार, 18 मई 2013

और अभी तक ,मै क्वांरा बैठा हुआ हूँ



मुझको जीवनसाथी के लिए ,
तलाश थी एक एसी लड़की की 
जो दिखने में सुन्दर हो,
और हो पढीलिखी 
मेरी माँ चाहती थी सजातीय हो ,
घर के कामकाज में निपुण हो 
संस्कारी और सर्वगुण संपन्न हो 
और पिताजी चाहते थे ,उसके माँ बाप ,
ढेर सा दहेज़ दे सकें,इतने संपन्न हो 
दादी जी चाहती थी ,जन्मपत्री का सही  मिलान
बत्तीस गुण मिल जाये 
बहू हो ऐसी जो काम करे दिन भर और,
रात को उनके पैर भी दबाये 
कभी कोई मुझे पसंद आती ,
तो वो मुझे कर देती रिजेक्ट 
कभी कोई मुझे पसंद करती ,
तो मै कर देता उसे रिजेक्ट 
कभी कोई लड़की मुझे और मै उसे  ,
कर लेता पसंद 
तो या तो मेरे मम्मी पापा को 
 पसंद नहीं आता ये सम्बन्ध 
या उसके मम्मी पापा ,नहीं होते रजामंद 
लगता है ऐसी सर्वगुण संपन्न लडकियां 
भगवान् ने बनाना करदी बंद 
फिर भी ,अगली दूकान पर शायद ,
सबकी पसंद का सामान मिल जाए 
यही आस मन में समेटा हुआ हूँ 
और अभी तक मै क्वांरा बैठा हुआ हूँ 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

प्रेम की साप्ताहिकी

 

गुरु को शुरू हुआ ,
नज़र मिली पहली बार 
शुक्रवार को डेटिंग ,
शनिवार ,हुआ प्यार 
रविवार ,शादी की ,
सोमवार ,मधुर मिलन 
मंगल को मनमुटाव,
और बुध को 'सेपरेशन'
गुरुवार ,प्रेम गुरु,
ढूंढ रहे नयी फ्रेंड 
प्रेम एक हफ्ते का,
कैसा ये नया ट्रेंड 
घोटू 

तुम रिश्तों को क्या समझोगे ?

 तुम  रिश्तों को को क्या  समझोगे ?

 जब   बासंती ऋतू आती है ,
                         कलियों  की गलियाँ जाते हो
देखा फूल ,आयी जो खुशबू ,
                          गुंजन करते , मंडराते     हो
करके फूलों का  अवगुंठन ,
                           करते  हो रसपान मधुर तुम
डाल डाल पर ,पुष्प पुष्प पर ,
                            इधर  उधर भटका करते तुम
      तुम रस के लोभी भँवरे हो,
        तन भी काला ,मन भी काला
                        तुम रिश्तों को क्या समझोगे ?
जब चुनाव का मौसम आता ,
                           तुम गलियाँ गलियाँ जाते हो
देते आश्वासन और भाषण ,
                            जनता को तुम  बहकाते  हो
करते लम्बे लम्बे वादे ,
                             जो न कभी पूरे  हो पाते
तुमको केवल वोट चाहिये ,
                              जन सेवा की चाह बताके
            तुम सत्ता के लोभी नेता ,
            उजले कपडे पर मन काला
                               तुम रिश्तों को क्या समझोगे ?   
हर मौसम में,हर दिन ,हर पल ,
                                 जोड़ तोड़ कर ,जैसे ,तैसे
तुम पैसे के पीछे  पागल ,
                                  तुम्हे कमाने है बस पैसे
परिवार को किया विस्मरित
                                  कर बूढ़े माँ बाप ,तिरस्कृत
इतनी दौलत ,इतना पैसा ,
                                  किसके  लिये कर  रहे संचित
               फिरते भागे ,मगर अभागे
                मन भी काला ,धन भी काला
                                 
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
      
             


गुरुवार, 16 मई 2013

ग्रीष्म

       ग्रीष्म

ये धरती जल रही है
गरम लू  चल रही है
सूर्य भी जोश में है
बड़े आक्रोश में है
गयी तज शीत रानी 
उषा ,ना  हाथ आनी
और है दूर   संध्या
बिचारा करे भी क्या
उसे ये खल रहा है
इसलिए  जल रहा है
धूप  में तुम न जाना
तुम्हारा तन सुहाना
देख सूरज जलेगा
मुंह  काला  करेगा
बचाना धूप से तन
ग्रीष्म का गर्म मौसम
भूख भी है रही घट 
मोटापा भी रहा छट
न सोना बाथ  जाना 
न जिम में तन खपाना
पसीना यूं ही बहता
निखरता रूप रहता
प्राकृतिक ये चिकित्सा
निखारे रूप सबका
ये सोना तप रहा है 
क्षार सब हट रहा है
निखर कर पूर्ण कुंदन
चमकता तुम्हारा तन
लगो तुम बड़ी सुन्दर
बदन करती  उजागर
तुम्हे  सुन्दर बनाती
ग्रीष्म हमको सुहाती

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

जीवन चक्र

                जीवन चक्र

बचपन
निश्छल मन
सबका दुलार, अपनापन
जवानी
 बड़ी दीवानी
कभी आग कभी पानी
रूप
अनूप
जवानी की खिली धूप 
चाह
अथाह
प्यार ,फिर विवाह
मस्ती
दिन दस की
और फिर गृहस्थी
बच्चे
लगे अच्छे
पर बढ़ने लगे खर्चे
काम
बिना आराम
घर चलाना नहीं आसान
जीवन
भटकते रहे हम
कभी खशी कभी गम
बुढापा
स्यापा
हानि हुई या मुनाफ़ा

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

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