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बुधवार, 1 मई 2013

टी की वेरायटी

          टी की वेरायटी

चाय की होती है अलग अलग वेरायटी
जैसे आसाम की टी
गोल गोल बारीक दाने ,जब लेते है उबाल 
तो चाय बनती है कड़क और रंगत दार
और दार्जिलिग टी की
होती है बड़ी नाजुक,लम्बी ,छारहरी  पत्ती
उबलते पानी को जरा देर ही छूती
आ जाती है हलकी सी रंगत ,पर खुशबू अनूठी
और फिर ग्रीन चाय ,न फ्लेवर ,न रंगत
मगर एन्टी ओक्सिडेंट से भरी है,
देती है अच्छी सेहत
कहने को तो सब चाय होती है
पर सब का स्वाद,रंगत और तासीर ,
अलग अलग होती है
और जिसको ,जिसकी आदत पड़ जाती है
वो ही उसके मन भाती  है
बीबियाँ भी  होती है,चाय की तरह,
कोई कड़क,कोई रंगीली
कोई छरहरी ,खुशबू से भरी
कोई बेरंग,पर गुणों की खान
आपको कौनसी वाली पसंद है श्रीमान ?
पीछे से किसी की आवाज आई,
भैया ,हमको तो बुरके  वाली है पसंद
'टी बेग 'लेते है और गरम पानी में ,
डुबा डुबा कर लेते है स्वाद का आनंद

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 

सुरक्षा

                सुरक्षा 
आपने पढ़ा क्या आज का अखबार
कुछ दरिंदों ने ,एक पांच वर्ष की ,
अबोध बालिका के साथ,किया बलात्कार
हाँ,हाँ,पढ़ा तो है ,पर ये खबर पुरानी लगती है
आजकल तो  रोज अखबारों में ,
ऐसी  खबर छपती है
चलती बस या सड़कों पर दौड़ती कार
महिलाएं हो रही है बलात्कार की शिकार
और सत्ताधारी,जो भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे हुए है
अपनी कुर्सी बचाने में जुटे हुए है
कहते है हम कर रहे है घटना की छानबीन
और इस दरमियान फिर  हो जाती है,
ऐसी ही घटनाएं दो तीन
ऐसी दरिंदगी के समाचारों से ,
हमारा तो कलेजा हिल जाता है
और टी .वी .चेनलो को दो दिन का मसाला,
और विपक्ष को सरकार को घेरने का ,
मुद्दा मिल जाता है 
सब अपनी अपनी राजनेतिक रोटियां सेकते है
और हम मूक दर्शक से देखते है 
अब तो इस माहोल से घृणा होने लगी है
इंसानियत चिन्दा चिन्दा होने लगी है
देश की महिलायें भले ही हो कितनी ही असुरक्षित 
उन्हें  इसकी कोई परवाह नहीं ,
चिंता  तो ये है कि उनकी कुर्सी रहे सुरक्षित

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मंगलवार, 30 अप्रैल 2013

अब बुढ़ापा आ गया है

        अब बुढ़ापा आ गया है

फुदकती थी,चहकती थी ,गौरैया सी जो जवानी ,
                       आजकल वो धीरे धीरे ,लुप्त सी  होने लगी है
प्रभाकर से, प्रखर होकर,चमकते थे ,तेजमय थे ,
                        आई संध्या ,इस तरह से ,चमक अब खोने लगी है
'पियू '  पियू'कह मचलता था पपीहा देख पावस ,
                          इस तरह हो गया बेबस ,उड़ भी अब पाता नहीं है
भ्रमर मन,रस का पिपासु ,इस तरह बन गया साधु ,
                           देखता खिलती कली  को,मगर मंडराता  नहीं है
इस तरह हालात क्यों है ,शिथिल सा ये गात क्यों है ,
                            चाहता मन ,कर न पाता ,हुई इसी बात क्या है
देख कर यह परिवर्तन,बड़ा ही बेचैन  था मन,
                             समय ने हँस कर बताया ,अब बुढ़ापा आ गया है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

निद्रा के पंचांग

                 निद्रा के पंचांग
                            १
                         तन्द्रा
     एक तरफ दिल ये कहता है,सोना बहुत जरूरी
     लेकिन एक तरफ होती है ,जगने की मजबूरी
     जागे भी हम,ऊंघें भी हम,झपकी भी है आती
     ऐसी हालत जब होती है ,तन्द्रा है कहलाती
                              २
                          करवट  
       कभी सोचते है ,इधर आयेगी   वो 
        कभी सोचते है ,उधर   आयेगी  वो
        इधर ढूंढते है,उधर  ढूंढते  है
         हम नींद को हर तरफ ढूंढते है
        इन्ही उलझनों में पड़े जब भटकना
       इसको ही कहते है ,करवट बदलना
                               ३ 
                          खर्राटे
        मन में जो भी  दबी हुई , रहती  है  बातें
        कुछ मजबूरी वश जिनको हम कह ना पाते 
        जल्दी जल्दी  बाहर निकले ,जब सो जाते
         समझ में नहीं आते ,बन  जाते है खर्राटे
                               ४
                         सपने
         मन के अन्दर  की दबी हुई भावनायें
        या किस्से ,अनसुने ,अनकहे ,अनचाहे
         छिपा हुआ डर  और अनसुलझी समस्यायें
        अधूरे अरमान  ,सब,सपने बन कर आये
                               ५
                         नींद
          न इधर की खबर है
          न उधर की खबर है
          पड़ी शांत    काया ,
          बड़ी  बेखबर    है
          दबी बंद आँखों में ,
          सपने है रहते 
           रहे शांत तन मन ,
           उसे  नींद  कहते

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 
           


रविवार, 28 अप्रैल 2013

मिठाई और घी -खूब खा और खुश होकर जी

        मिठाई और घी -खूब खा और खुश होकर  जी

हमारे डाक्टर साहब ने हमें चेक किया ,
और सलाह दी
खाना बंद करो मख्खन,शक्कर और घी
और मिठाइयाँ ,जैसे गुलाबजामुन और जलेबी
वर्ना हो जायेगी 'ओबेसिटी'
बदन हो जाएगा भारी
और लग जायेगी 'डाइबिटीज 'की बिमारी
हमने कहा'डाक्टर साहब ,
हमें बतलाइये एक बात
हमारे श्री कृष्ण भगवन
बचपन से ही खूब खाते थे ,
दूध,दही,मिश्री और मख्खन
तभी इतनी ताकत आई थी कि ,
उंगली पर उठालिया था गोवर्धन
और किया था कंस का हनन
इतनी गोपियों के संग रचाते थे रास
आठ पटरानियो के ह्रदय में करते थे वास
सोलह हज़ार रानियों के थे पति
अच्छे खासे 'स्लिम' थे,
उन्हें तो कोई बिमारी नहीं लगी
हमारे  गणेशजी भगवान,गजानन कहलाते
जम  कर के खूब मिठाई है  खाते
लड्डू और मोदक का भोग है लगाते
और हर कार्य में पहले है पूजे जाते
तो मख्खन मिश्री खानेवाले कृष्ण भगवान कहाते है
और मोदक प्रेमी गजानन ,अग्र देव बन पूजे जाते है
ये सब मख्खन और मिठाई की महिमा है
और हमें आप कहते है ,ये खाना मना है
हमारा मन तो ये कहता है ,
मख्खन,मिठाई और घी
जी भर के खा ,और खुश होकर जी

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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