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सोमवार, 11 फ़रवरी 2013

कुम्भ स्नान और हादसा

कुम्भ स्नान और हादसा

हरेक बारह वर्षों के बाद में
हरद्वार,उज्जैन,नासिक और प्रयाग में
आता है कुम्भ का पर्व महान
 और खुल जाती है धर्म की दुकान 
साधू,सन्यासी,संत और महंत
साधारण आदमी और श्रीमंत
सभी का रेला  लगता है 
बहुत बड़ा मेला लगता है
सर पर पोटली,मन में आस्था
बस से,रेल से,या चल पैदल रास्ता
भीड़ ल गा करती,पुण्य  कमाने वालों की
एक डुबकी  लगा कर के,मोक्ष पानेवालों की 
धर्म के ठेकेदार बतलाते है
यहाँ एक खास दिन नहाने से ,पाप धुल जाते है
और मोक्ष के द्वार खुल जाते है
आज के जमाने में ,मोक्ष इतनी सस्ती मिल जाती है
पुण्य की लोभी ,जनता खिंची चली आती है
ग्रहों का एसा  मिलन,बर्षों बाद होता है
ऐसे में स्नान और दान से ,पुण्य लाभ होता है
करोडो की भीड़
न ठिकाना न  नीड़
डुबकी लगा कर,
पुण्य कमा कर ,
जब वापस जाती है
स्टेशनों पर भगदड़ मच जाती है
सेंकडो लोग इस भगदड़ में दब जाते है
कितनो के ही प्राण पंखेरू उड़ जाते है
कोई सरकार को दोषी ठहराता है
कोई इंतजाम की कमी बतलाता है
कोई कहता जिनने सच्ची श्रद्धा से डुबकी  लगाई  
उसे पुण्य लाभ मिल गया और मोक्ष पायी
हादसे होते ही रहते है ,पर लोग जाते है
सस्ते में पाप धोते है,डुबकी लगाते है
धर्म के नाम पर,गजब है इनका हौंसला
राम जाने,कब मिटेगा ये ढकोसला

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

रविवार, 10 फ़रवरी 2013

नाक

                नाक 

जब तक    साँसों  का  स्पंदन  है, धड़कन है 
जब तक दिल में धड़कन है ,तब तक जीवन है
 द्वार सांस का ,जिससे साँसे , आती जाती 
सबसे उठा अंग चेहरे का, नाक कहाती 
दो सुरंग ये,राजमार्ग है ,ओक्सिजन  की 
सबसे अद्भुत उपलब्धि,मानव के तन की 
चेहरे बीच ,सुशोभित होती,शीश  उठाके 
नीचे मधुर अधर ,ऊपर कजरारी आँखें 
लाल लाल कोमल कपोल के बीच सुहाती 
खुशबू,बदबू,का मानव को भान  कराती 
सुन्दर तीखी नाक,रूप लगता है प्यारा 
कभी लोंग हीरे की मारे है लश्कारा 
सजती कभी पहन कर नथनी मोती वाली 
है प्रतीक यह मान,शान की बड़ी निराली 
चश्मे को आँखों पर ठीक,टिका रखती है 
प्यार और चुम्बन कुछ बाधा करती है 
कभी छींकती है जुकाम में,कभी टपकती 
कभी नींद में होती तो खर्राटे   भरती
होती ऊंचीं नाक कभी है ये कट जाती 
कहलाते है बाल नाक के,सच्चे साथी 
मन की प्रतिक्रियाओं से इसका नाता है 
नथुने फूला करते ,जब गुस्सा  आता है 
अगर किसी से नफरत तो भौं नाक सिकुड़ती 
इज्जत जाती चली,नाक कोई की कटती 
कोई नाक रगड़ता ,कोई नाक   चडाता 
परेशान  कर कोई नाकों चने चबाता 
कोई नाक पर मख्खी तक न बैठने देता 
तंग करता है कोई, नाक में दम कर देता 
किन्तु समझ में ,मेरे ,बात नहीं ये आती 
खतरनाक और शर्मनाक में ये क्यों आती 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

निष्ठा

               निष्ठा 

जो अपने घर में श्वानो को पाला करते 
भली तरह से वो ये बातें,जाना करते 
हरदम चौकन्ने से रहते श्वान बहुत है 
स्वामिभक्त कहाते,निष्ठावान  बहुत है 
सुबह शाम पर उनको टहलना पड़ता है 
उनको सहलाना और बहलाना  पड़ता है 
अगर चाहिये  तुम्हे किसी की सच्ची निष्ठां 
कभी उठानी भी पड़  सकती ,उसकी विष्ठा 

घोटू 

प्रेम दिवस

          वेलेंटाइन  सप्ताह
           (दूसरा नजराना)         
           प्रेम दिवस 
प्रेम का कोई दिवस होता नहीं,
                        प्रेम का हर एक दिन ही ख़ास है 
प्रेम हर वातावरण में महकता ,
                         प्रेम की हर ह्रदय में उच्छ्वास  है 
प्रेम पूजन,प्रेम ही आराधना ,
                          प्रेम में परमात्मा का वास  है 
प्रेम तो है कृष्ण राधा का मिलन,
                             राम का चौदह बरस  बनवास है 
प्रेम मीरा के भजन में गूंजता ,
                              सूर के पद में इसी का वास है 
सोहनी -महिवाल,रांझा -हीर  और,
                               लैला-मजनू  प्रेम का इतिहास है 
प्रेम बंधन भावनाओं से भरा ,
                                 प्रेम जीवन का मधुर अहसास है 
प्रेम में ही समर्पण है,त्याग है,
                                   एक दूजे का अटल विश्वास है 
प्रेम गुड का स्वाद गूंगा जानता ,
                                पर न कह पाता ,वही आभास है 
जो समझ ले ढाई आखर प्रेम का,
                                  तो समझ लो,प्रभु उसके पास है 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'     

मेरा घर

शाहजहानाबाद के दिल में बसा
सुकून-ओ-अमन-चैन से परे 
शोरगुल के दरमियाँ
एक दिलकश इलाके में
एक उजडती बेनूर पुरानी हवेली
दीवारों पर बारिश के बनाये नक़्शे 
इधर उधर पान की पीकों की सजावट
और मेरे माज़ी की यादें इधर उधर
काई बनकर हरी हो रही हैं रोज़
एक जानी पहचानी सी ख़ामोशी
वो अंधेरों में भी गुज़रते सायों का एहसास
गमलों के पौधों के पत्तों के बीच
चहल कदमी करते चूहे
जगह जगह फर्श पर जंगली कबूतरों की बीट की सजावट
इन सबके बीच 
छोटा सा टुकड़ा आसमान का
और उस आसमान में
पिघलते काजल सी सियाह रात का कोना पकडे 
बादलों के बीच से गुज़रता चाँद
पहले भी ऐसे ही आता था मेरे घर
बारिश के बाद की मंद गर्मी में
छज्जे पर खड़े 
मैं 
यूँ ही ख्वाब बुना करता था
दीवारों से लिपटे पीपल के
दरीचों के साए में
तुम्हे भी याद किया करता था
सर्दियों की सीप सी सर्द रातों में
नर्म दूब के बिछोने पर
अक्सर मेरा जिस्म तपा करता था
तेरे जाने से भी कुछ नहीं बदला था
तेरे आने से भी कुछ नहीं बदला है
आज फिर रात भी वही है
और चाँद भी वही आया है
और आज भी वही तपिश 
सीने में जल रही है
मैं वीरान घर के बरामदे में
खामोश खड़ा
महसूस करता हूँ
वोह तेरे आगोश की तपिश
सहर होने तक
और बस यूँ ही
बन जाते हैं यह आसमानी सितारे 
सियाह रात की कालिख में जड़े सितारे
लफ्ज़ बन उठते हैं अपने आप
लिख जाते हैं हर रात एक कविता
मेरे दिल का हाल 
यही है मेरे दिल की दास्तान 
यही है मेरे दिल की दास्तान

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