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मंगलवार, 13 नवंबर 2012


संरक्षक (रेफ्रिजेटर)

     संरक्षक (रेफ्रिजेटर)

कई रसीली ,मधुर रूपसी,
मेरे उर में  आती जाती
उनकी  सुरभि,मुझे लुभाती
निश्चित ही स्वादिष्ट बहुत वो होगी,
मेरा मन ललचाता
लेकिन मै कुछ कर ना पाता
क्योंकि मुझे गढ़ने वाले ने ,
मेरे मुख दांत  ना दिये
सिर्फ सूँघना ही नसीब में लिखा इसलिये
मै तो उनके रूप ,स्वाद को कर संरक्षित
उनकी जीवन अवधि बढाता रहता,परहित
यूं ही तरस तरस कर करना जीवन व्यापन
बिना किये रस का आस्वादन ,
कट जाता है ,मेरा जीवन
कई मिठाई,कितने ही फल
कितने ही पकवान,पेय जल
आकर्षित करते रहते है मुझको हर पल 
मेरा मन कितना ही चाहे
मै बेबस ,भरता ही रहता,ठंडी आहें
मन मसोस मै रहता हरदम
तुम चाहो तो इसको कह सकते  हो संयम
बचा खुचा ,घर का सब खाना
है मेरे ही हिस्से आना
मुझे चाहता दिल से गोरस
मै ना अगर मिलूँ,
तो उसका दिल जाता फट
मै संरक्षक ,
जो भी मेरे उर में बसता,
उसका यौवन,संरक्षित रहता है,
एक लम्बी अवधी तक
मै तो हूँ घर घर का वासी ,
सभी गृहणियों का मै प्यारा
मै  रेफ्रिजेटर  तुम्हारा

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

सोमवार, 12 नवंबर 2012

आज दीवाली आई भाई


जहाँ को जगमग करते जाओ,
खुशियों की सौगात है आई;
दीपों की आवली सजाओ,
आज दीवाली आई भाई ।

श्री कृष्ण ने सत्यभामा संग नरकासुर संहार किया,
सोलह हज़ार स्त्रियों के संग इस धरा का भी उद्धार किया ।

असुर प्रवृति के दमन का
उत्सव आज मनाओ भाई;
दीपों की आवली सजाओ,
आज दीवाली आई भाई ।

रक्तबीज के कृत्य से जब तीनो लोकों में त्रास हुआ,
माँ काली तब हुई अवतरित, दुष्ट का फिर  तब नाश हुआ ।

शक्ति स्वरुपा माँ काली व,
माँ लक्ष्मी को पूजो भाई;
दीपों की आवली सजाओ,
आज दीवाली आई भाई ।

लंका विजय, रावण मर्दन कर लखन, सिया संग राम जी आये,
अवध का घर-घर हुआ तब रोशन, सबके मन आनंद थे छाये ।

उस त्योहार में हो सम्मिलित,
बांटों, खाओ खूब मिठाई;
दीपों की आवली सजाओ,
आज दीवाली आई भाई ।

पवन तनय का आज जनम दिन, कष्ट हरने धरा पर आये,
सेवक हैं वो राम के लेकिन, सबका कष्ट वो दूर भगाए ।

नरक चतुर्दशी, यम पूजा भी,
सब त्यौहार मनाओ भाई,
दीपों की आवली सजाओ,
आज दीवाली आई भाई ।

मर्यादित हो और सुरक्षित, दीवाली खुशियों का बहाना,
दूर पटाखों से रहना है, बस प्रकाश से पर्व मनाना ।

अपने साथ धरती भी बचाओ,
प्रदुषण को रोको भाई;
दीपों की आवली सजाओ,
आज दीवाली आई भाई ।

शनिवार, 10 नवंबर 2012

रेपिंग पेपर

        रेपिंग पेपर

          मै तो रेपिंग का पेपर हूँ
        चमक दमक वाला सुन्दर सा,
        मै तो एक आवरण भर हूँ
        मै तो रेपिंग का पेपर हूँ
छोटी,बड़ी सभी सौगातें
मुझ में लोग छुपा कर लाते
मेरा आकर्षण है बस तब तक
मुझ में गिफ्ट छुपी है जब तक
जब भी मै हाथों में आता
जो भी पाता,वो मुस्काता
सभी देखते रूप चमकता
अन्दर क्या है की उत्सुकता
जैसे कभी सुहाग रात में
पहली पहली मुलाक़ात में
        आकुल पति उठाता  जिसको,
        मै दुल्हन का, घूंघट भर हूँ
         मै तो रेपिंग का पेपर हूँ
कितनी गिफ्टें,नयी,पुरानी
अगर आपको है निपटानी
मेरे बिना काम ना चलता
मै हूँ उनका ,रूप बदलता
एक गिफ्ट,कितने ही रेपर
बदल,बदल,बदला करते घर
लेकिन गिफ्ट कोई जो पाता
उसे आवरण नहीं सुहाता
अन्दर क्या है,यही चाव है
उत्सुकता ,मानव स्वभाव है
        तिरस्कार है मेरी नियति,
         मै गूदा ना,छिलका भर हूँ
         मै तो रेपिंग का पेपर हूँ
लिपट  गिफ्ट के प्यारे तन से
मै आनंदित होता ,मन से
जन्मदिवस,शादी,दीवाली
रहती मेरी शान निराली
हाथों हाथ ,लिया मै जाता
बड़े गर्व से हूँ इठलाता
देने वाला जब जाता है
मुझ को फाड़ दिया जाता है
मेरी तरफ नहीं देखेंगे 
टुकड़े टुकड़े कर फेंकेगे
           पहुंचूंगा कूड़ेदानी में,
           अल्प उम्र है,मै नश्वर हूँ
            मै तो रेपिंग का पेपर हूँ 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

गुरुवार, 8 नवंबर 2012

अभी तो मै जवान हूँ?

 


          अभी तो मै जवान हूँ?

इस मकां के लगे हिलने ईंट ,पत्थर

लगा गिरने ,दीवारों से भी पलस्तर
पुताई पर पपड़ियाँ पड़ने लगी है
धूल,मिटटी भी जरा झड़ने   लगी है
कई कोनो में लटकने लगे   जाले
चरमराने लग गये है ,द्वार सारे
बड़ा जर्जर और पुराना पड़ गया जो ,
कभी भी गिर जाय ,वो मकान  हूँ
और मै दिल को तस्सली दे रहा,
यही कहता ,अभी तो मै जवान हूँ
थी कभी दूकान,सुन्दर और सजीली
ग्राहकों की भीड़ रहती थी रंगीली
सब तरह का माल मिलता था जहाँ पर
खरीदी सब खूब  करते थे  यहाँ पर
लगे जबसे पर नए ये  माल खुलने
लगी  ग्राहक की पसंद भी ,अब बदलने
धीरे धीरे अब जो खाली हो रही है,
बंद  होने जा रही दूकान  हूँ
और मै दिल को तस्सली दे रहा,
यही कहता,अभी तो मै जवान हूँ
जवानी कुछ इस तरह मैंने गुजारी
दूध देती गाय को है घांस  डाली
अगर उसने लात मारी,लात खायी
बंदरों सी गुलाटी जी भर   लगाई
रहूँ करता ,मौज मस्ती,मन यही है
मगर ये तन,साथ अब देता नहीं है
गुलाटी को मचलता है,बेसबर मन,
आदतों से अपनी खुद  हैरान हूँ
और मै मन को तस्सली दे रहा हूँ,
यही कहता,अभी तो मैं  जवान हूँ

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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