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बुधवार, 15 अगस्त 2012

सवेरे सवेरे नींद बड़ी जोर से आती है

सवेरे सवेरे नींद बड़ी जोर से आती है

बेटियां,

यूं तो माइके में,नोर्मल सी ,
हंसी ख़ुशी रहती है,
पर गले मिल मिल कर रोती है,
जब ससुराल जाती है
राजनेतिक पार्टियाँ,
यूं तो दुनिया भर के टेक्स लगाती है,
पर चुनाव के पहले,
राहत का अम्बार लुटाती,
सुनहरे सपने दिखाती है
दीपक की लौ ,
यूं तो नोर्मल सी जलती रहती,
पर जब बुझने को होती,
बहुत चमक देती है,
फडफडाती है
वैसे ही नींद सारी रात ,
यूं ही आती जाती रहती है ,
पर  सुबह जब,
 उठने का समय होता है
सवेरे नींद बड़ी जोर से ही आती है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

फिर भी हम कहते,हम इंडीपेंडेंट है

फिर भी हम कहते,हम इंडीपेंडेंट है

आम आदमी की तरह,जमीन से जुड़े है

हाथ हमारे हमेशा,आपस में  जुड़े है
सब अपने अपने काम धाम से जुड़े है
कई दलों ने आपस में जुड़ कर,
बनायी भारत की गवेर्नमेंट  है
फिर भी हम कहते ,हम इंडीपेंडेंट है
फसल के लिये हम मानसून पर निर्भर है
पेट्रोलियम के लिये,हम खाड़ी देशों पर निर्भर है
विकास के लिये ,विदेशी सहायता पर निर्भर है
 हर जरूरत की चीज के लिये,
हम किसी ना किसी पर डिपेंडेंट है  
फिर भी हम कहते ,हम इंडीपेंडेंट है
हम सब आस्था और संस्कार से बंधे है
हम परंपरा और  व्यवहार से बंधे है
हम शादी और  परिवार से  बंधे  है
कितने ही देशों से हमने कर रखे ,
संधि,ट्रीटी और कई एग्रीमेंट  है
फिर भी हम कहते,हम इंडीपेंडेंट है
 बॉस  के इशारों पर,नाचते है हम
बच्चों की जिदों पर,नाचते है हम
बीबी के इशारों पर ,नाचतें है हम
पत्नी के आज्ञा मानने वाले ,
सबसे ओबीडियन्ट सर्वेन्ट है
फिर भी हम कहते,हम इंडीपेंडेंट  है

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

मंगलवार, 14 अगस्त 2012

एक कतरा लहू का मेरे बस देश के काम आये


नहीं चाहता मखमल के गद्दे में मुझको आराम आये,
नहीं चाहता व्यापार में मेरा कोई बड़ा दाम आये,
चाहत मेरी बड़ी नहीं बस छोटी सी ही है,
एक कतरा लहू का मेरे बस देश के काम आये |
                                          
नहीं चाहता लाखों की लौटरी कोई मेरे नाम आये,
नहीं चाहता खुशियों भरा बहुत बड़ा कोई पैगाम आये,
ख्वाहिश मेरी ज्यादा नहीं बस थोड़ी सी ही है,
एक कतरा लहू का मेरे बस देश के काम आये |

नहीं चाहता मधुशाला में मेरे लिए अच्छा जाम आये,
नहीं चाहता फायदा भरा बहुत बड़ा कोई काम आये,
सपने  मेरे अनेक नहीं बस एक ही तो है,
एक कतरा लहू का मेरे बस देश के काम आये |

नहीं चाहता प्रसिद्धि हो, नाम मेरा हर जुबान आये,
नहीं चाहता जीवन में कोई अच्छा बड़ा उफान आये,
इश्वर से दुआ मेरी बस इतनी सी ही है,
एक कतरा लहू का मेरे बस देश के काम आये |

नहीं कोई देशभक्त बड़ा मैं, नहीं देश का लाल बड़ा,
पर दिल में एक ज्वाला सी है, देश हित करूँ कुछ  काम बड़ा,
भारत माँ के चरणों में नत एक बात मन में आये,
एक कतरा लहू का मेरे बस देश के काम आये |

एक प्रश्न


खुशियाँ आज़ादी की हर वर्ष मानते हैं,
पर हजारों गुलामी ने अब भी है घेरा;
फूल कई रंगों के हम अक्सर हैं  लगाते,
पर मन में फूलों का कहाँ है डेरा ?

नाच-गा लेते हैं, झंडे पहरा लेते हैं,
अन्दर तो रहता है मजबूरियों का बसेरा,
लोगों को देखकर मुस्कुराते हैं हरदम,
मन में होती है कटुता और दिल में अँधेरा |

सोच और मानसिकता आज़ाद नहीं जब तक,
तो क्या मतलब ऐसे आज़ादी के जश्न का,
एक दिन का उत्सव, अगले दिन फिर शुरु,
गुलामी की वही जिंदगी, बिना जवाब दिए प्रश्न का |

पत्नियों की स्मार्टनेस

    पत्नियों की स्मार्टनेस

ये बात है जग जाहिर
पति को पटाने में,
पत्निया होती है बड़ी माहिर
पत्नियाँ होती है बड़ी स्मार्ट,
और उनके लिए ,उनके पति,
होते है क्रेडिट कार्ड
और उन्हें आता है ,
क्रेडिट कार्ड को एन्केश करने का आर्ट
अगर आपको पत्नी से मोहब्बत है
तो आपकी क्या जुर्रत है
जो कहे ,उसे न दिलवाओ,
वर्ना हो जाती फजीहत  है
जरुरत की हो या बिना जरुरत की,
वो जो भी खरीदें ये उनकी मर्जी है
आप जो भी खरीद करते है,
ये उनके हिसाब से फिजूल खर्ची  है
अपने पति के पर्स पर,
 उनका पूरा अधिकार है
पर्स का मुंह खुला रखो,
ये ही सच्चा प्यार है
आपके पास जितना भी पैसा या द्रव्य है
ये सब उनका ही तो है,
और उनकी फरमाइशें पूरी करना,
आपका परम कर्तव्य है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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