समय था वह ,सबको थी सबके सुखो की कामना
भाग्य को दुर्भाग्य से तब दुःख पड़ा था झेलना
स्वदेश में विदेश के गुलाम बनके हम रहे
भूल कर निज एकता को दासता के दुःख सहे
महान बलि तप त्याग से स्वतंत्रता हमें मिली
मिटा के दासता तिमिर प्रभात की कली खिली
था हमसे कुछ डरा हुआ गुलाम देश में भी वह
प्रयत्न खूब करके भी सता हमे सका न वह
वरन दुखी किया है अब हमे स्वतंत्र देश में
सता रहा है रात दिन पनपके भ्रष्ट वेश में
दीन का तो शत्रु है ऊंचे जनों का यार है
थे जो मिटा सकते इसे उनको इसी से प्यार है
फैलता बढ़ता गया यों एक दिन वह आयेगा
हम न रह पाएंगे भ्रष्टाचार ही रह जायेगा
आनंद बल्लभ पपनै
(अवकाश प्राप्त अध्यापक)
रानीखेत