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रविवार, 20 मई 2012

देश की कुंडली

       देश की कुंडली
एक तरफ तो भ्रष्ट सारी मंडली है
और दूजी तरफ भज भज मंडली है
क्या नहीं विकल्प कोई तीसरा है,
किस तरह की  देश की ये  कुंडली है
यहाँ पर सियार  है,सारे  रंगे है
लूटने में , देश को, मिल कर लगे है
कोई भी एसा  नज़र आता नहीं है
लुटेरों से जिसका कुछ नाता नहीं है
किस तरह से पेट भर पाएगी जनता,
जो भी रोटी उठाते है,वो जली है
किस तरह की देश की ये कुंडली  है
हर तरफ है,भ्रष्टता का बोलबाला
लक्ष्मी ,स्विस बेंक में ,मुंह करे काला
बढ़ रही मंहगाई अब सुरसा मुखी है
परेशां ,लाचार सी जनता दुखी  है
कहाँ जाए,रास्ता दिखता नहीं है,
आज  काँटों से भरी ,हर एक गली है
किस तरह की ,देश की ये कुंडली है
सह रहे क्यों,इस तरह,ये मार है हम
पंगु क्यों है,हुए क्यों लाचार  है हम
क्यों हमारा खून ठंडा  पड़ गया  है
आत्म का सन्मान क्यों कर मर गया है
फूटना ज्वालामुखी का है सुनिश्चित,
लगी होने धरा में कुछ खलबली  है
किस तरह की देश की ये कुंडली है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शनिवार, 19 मई 2012

सबसे बड़ा अजूबा

     सबसे बड़ा अजूबा
खुदा की खुदाई से,
खुदा के बन्दों ने,कुछ पत्थर खोद निकाले
और अपनी मृत काया को सुरक्षित रखने को,
विशालकाय पिरेमिड बना  डाले
और ये पिरेमिड आज एक अजूबा है
अपनी संगेमरमर सी सुन्दर बेगम की याद में,
एक बादशाह ने,धरती की कोख से,निकले संगेमरमर
और लगा दिए कब्रगाह में,बना दिया ताजमहल
और ये ताजमहल आज एक अजूबा है
और चीन के शासकों ने,
सुरक्षित रखने को अपनी सीमायें
धरती के सीने से,कितने ही पत्थर खुदवाये
और बना डाली एक लम्बी चौड़ी दीवार
जिसे कोई भी न कर सके पार
ये चीन  की दीवार भी आज एक अजूबा है
इसी तरह ब्राजील में,पहाड़ की चोंटी पर,
हाथ फैलाए क्राइस्ट का पुतला,
या जोर्डन में पेट्रा का महल,
रोम का कोलोसियम
या पेरू का माचु पिचु
ये सारे अजूबे बनाए है ,
भगवान के गढ़े एक अजूबे ने,
जिसे कहते है इंसान
और बनाए गए है,चीर कर सीना,
उस धरती माता का,
जो अपने आप में अजूबा है महान
जिसकी कोख में एक बीज डाला जाता है
तो हज़ारों दानो में बदल जाता है
जिसके सीने पर कई उत्तंग शिखर है
और तन पर लहराते कई समंदर  है
तो आओ,पहले हम इन अजूबों को सराहें
पर उस सृष्टि कर्ता को नहीं भुलायें
जिसके इशारों पर रोज सूरज निकलता है
चाँद घटता और बढ़ता है
हवायें लहलहाती है 
पुष्पों से खुशबू आती है
क्योंकि ये सृष्टि और वो सृष्टि कर्ता ,
जो सृष्टि का संचालन करता है ,
अपने आप में संसार का सबसे बड़ा अजूबा है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

गुरुवार, 17 मई 2012

रिश्ते-मधुर और चटपटे

रिश्ते-मधुर और चटपटे

रिश्तों का दूध,थोड़े से खटास  से,
जब जाता है फट
तो बस छेना बन कर जाता है सिमट
जो प्यार की चाशनी में उबाले जाने पर
बन जाता है रसगुल्ला,
स्वादिष्ट,रसीला  और मनहर
सूजी की छोटी छोटी पूड़ियाँ,
प्यार की स्निघ्ता  में धीरे धीरे तली जाए,
तो बन जाती है फुलकियाँ
जिनको अगर खाया जाए,
आपसी रिश्तों का,चटपटा पानी भर
तो वो गोलगप्पे,स्वाद की घूंटो से,
देते है  खुशियाँ  भर
धनिया और पुदीने के,
पत्तों सा सादा जीवन,
प्यार के मसालों के साथ पिस कर ,
बन जाता है चटपटी चटनी
जीवन की राहें ,जलेबी की तरह,
कितनी ही टेडी हो,
प्यार  के रस में डूब कर,
बन जाती है स्वादिष्ट और रस भीनी
सिर्फ प्यार की शर्करा में ही एसा मिठास है,
जो बिना डायबिटीज के दर से,
जीवन में मधुरता भरता है
रिश्तों में अपनापन,
चाट का वो मसाला है,
जो जीवन को चटपटा और  स्वादिष्ट करता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'


मंगलवार, 15 मई 2012

"बच्चा बिकाऊ है"


पिछले दिनों अचानक
एक खबर है आई,
सरकारी अस्पताल  को
किसी ने मंडी है बनाई |

चर्चा थी वहां तो
सब कुछ ही कमाऊ है,
गुपचुप तरीके से वहां
"एक बच्चा बिकाऊ है" |

सुनकर ये खबर
मैं सन्न-सा हुआ,
पर तह तक जाके
मन खिन्न-सा हुआ |

दो दिन का बच्चा एक
बिकने है वाला,
पुलिस-प्रशासन कहाँ कोई
रोकने है वाला !

अस्पताल वालों ने ही
ये बाजार है सजाई,
बीस हजार की बस
कीमत है लगाई |

बहुतों ने अपना दावा
बस ठोक दिया है,
कईयों ने अग्रिम राशी तक
बस फेंक दिया है |

पता किया तो जाना खबर
नकली नहीं असली है,
बच्चे को जानने वाली माँ
"घुमने वाली एक पगली" है |

इस एक समस्या ने मन में
सवाल कई खड़े किये,
मन में दबे कई बातों को
अचानक इसने बड़े किये |

लावारिश पगली का माँ बनना
मन कहाँ हर्षाता है,
हमारे ही "भद्र समाज" का
एक कुरूप चेहरा दर्शाता है |

बच्चे पर बोली लगना
भी तो एक बवाल है,
पेशेवर लोगों के धंधे पर
ज्वलंत एक सवाल है |

सभ्य कहलाते मनुष्यों का
ये भी एक रूप है,
अच्छा दिखावा करने वालों का,
भीतरी कितना कुरूप है |

सरकार से लेके आम जन तक का
इस घटना में साझेदारी है,
किसी न किसी रूप में सही
हम सबकी इसमें हिस्सेदारी है |

समस्या का नहीं हल होगा
कभी हड़ताल या अनशन से,
हर मर्ज़ से हम निजात पाएंगे
बस सिर्फ आत्म-जागरण से |

रविवार, 13 मई 2012

माँ


जीवन की रेखा की भांति जिसकी महत्ता होती है,
दुनिया के इस दरश कराती, वह तो माँ ही होती है |

खुद ही सारे कष्ट सहकर भी, संतान को खुशियाँ देती है,
गुरु से गुरुकुल सब वह बनती, वह तो माँ ही होती है |

जननी और यह जन्भूमि तो स्वर्ग से बढ़कर होती है,
पर थोडा अभिमान न करती, वह तो माँ ही होती है |

"माँ" छोटा सा शब्द है लेकिन, व्याख्या विस्तृत होती है,
ममता के चादर में सुलाती, वह तो माँ ही होती है |

संतान के सुख से खुश होती, संतान के गम में रोती है,
निज जीवन निछावर करती, वह तो माँ ही होती है |

शत-शत नमन है उस  जीवट को, जो हमको जीवन देती है,
इतना देकर कुछ न चाहती, वह तो माँ ही होती है |

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