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शुक्रवार, 30 मार्च 2012

सपने क्या हैं?

                सपने क्या हैं?
सपने खिलोने  होते है,
थोड़ी सी देर खेल लो,
फिर टूट जाते हैं,आँखों के खुलने पर
सपने पीडायें है,
दबी घुटन है मन की,
प्रस्फुटित होती है,नींद के आने पर
सपने आशायें है ,
जो चित्रित  होती है,
जब निश्छल और शांत,होते है तन और मन
सपने कुंठायें है,
जो पलती है मन में,
जब होती प्रतिस्पर्धा,या झगडा और जलन
सपने तो सेतु है,
बिछड़े हुए प्रेमियों का,
विरह की रातों में,मिलन का सहारा  है
सपने,पुनर्वालोकन,
बिसरी हुई यादों का,
फिर से दोहराने का,चित्रपट निराला  है
सपन तो मुसाफिर है,
आँखों की सराय में ,
केवल रात भर ही तो ,रुकने को आते है
सपने है बंजारे,
घुमक्कड़ है यायावर,
पल भर में दुनिया की,सैर करा लातें है
सपने तो दर्पण है,
जिसमे दिखलाता है,
अपना ही तो चेहरा,कल,आज और कल का
सपन संभावनायें है,
पूर्ण होगी निश्चित ही,
लगन और मेहनत से ,मूर्त रूप है कल का
सपने बेगाने है,
तब तक ही अपने है,
जब तक है बंद आँख,इन पर विश्वास करो
सपने अफ़साने है ,
अफ़साने ही रहते,
पर पूरे भी होते,सच्चा प्रयास  करो
सपन कल्पनायें है,
उड़ा तुम्हे ले जाती,
सात आसमानों पर,बिना पंख लगवाये
यदि आगे बढ़ना है ,
तो सपने देखो तुम,
सपनो से मिलती है,जीवन में उर्जायें
यह न कहो की सपने,
तो केवल सपने है,
कब होते अपने है,यूं ही टूट जाते है
श्रोत प्रेरणाओं का,
सपने ही होते है,
प्रगति के सब रस्ते,सपने दिखलाते है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

 

गुरुवार, 29 मार्च 2012

हम बूढ़े हो गये हैं


हम बूढ़े हो गये हैं
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हम बूढ़े हो गये हैं,
अपना बुढ़ापा इस तरह काटते हैं
अब हम सभी को अपना प्यार बांटते है
राग,द्वेष सबसे पीड़ित थे,जब जवान थे
गर्व से तने रहते थे ,पर नादान थे
काम में व्यस्त रहते थे हरदम
बस एक ही धुन थी,खूब पैसा कमायें हम
भागते रहे, दोड़ते रहे
कितने ही अपनों का दिल तोड़ते रहे
न आगे देखा,न देखा पीछे
बस भागते रहे दौलत के पीछे
न दीन की खबर थी,न ईमान की
बस  कमाई में ही अटकी जान थी
और मंजिल मिलती थी जब तलक
बढ़ जाती थी,अगली मंजिल पाने की ललक
फंस गये थे मृगतृष्णा में ऐसे
कि नज़र आते थे बस पैसे ही पैसे
बहुत क्लेश किये,बहुत एश किये
दौलत के लिए दिन रात एक किये
पर शरीर की उर्जा जब ठंडी पड़ने लगी
और जिंदगी,अंतिम पढाव की ओर बढ़ने लगी
जब सारा जोश गया,तब हमें होंश आया
माया के चक्कर में हमने क्या क्या गमाया
दोस्त छोटे,परिवार छूटा
अपनों का प्यार छूटा
और अब जब आने लगी है जीवन की शाम
ख़तम हो गया है सारा अभिमान
और हमें अब आया है ज्ञान
कि इतनी सब भागदौड़,
क्यों और किसके लिये करता है इंसान?
और अब हो गया है इच्छाओं का  अंत
तन और मन ,दोनों हो गये हैं संत
सच्चाई पर चलने लग गये है
बुराइयों से डरने लग गये है
अब हम,दिमाग की नहीं,दिल की बात मानते है
हम बूढ़े हो गये है,अपना बुढ़ापा इस तरह काटते है
अब हम सभी को अपना प्यार बांटते है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'



 
 

बुधवार, 28 मार्च 2012

JAGO HINDU JAGO: आओ शहीद जवानों को श्रधांजली अर्पित करते हुए प्रण ...

JAGO HINDU JAGO: आओ शहीद जवानों को श्रधांजली अर्पित करते हुए प्रण ...: देखो ये प्रश्न भारत के अस्सतित्व का है इसलिए इस प्रश्न का जबाब भी हम सब भारतवासियों को मिलकर ही निकालना है। भारतविरोधी आतंकवादियों के हाथों ...

रविवार, 25 मार्च 2012

करवटों का मज़ा

      करवटों का मज़ा
नींद ना आती किसी को ,ये सजा है
करवटों का,मगर अपना ही मज़ा  है
एक तरफ करवट करो तो दिखे पत्नी,
                    पड़ी है चुपचाप कुछ बोले  नहीं है
एक ये समय है वो मौन रहती,
                     शांत,शीतल,कोई फरमाईश नहीं है
इस तरह के क्षण बड़े ही प्रिय लगें है,
                     शांत रहती जब कतरनी सी जुबां है
अगर खर्राटे नहीं यदि भरे बीबी,
                      भला इतनी शांति मिलती ही कहाँ  है
और दूजी ओर जो करवट करो तुम,
                      छोर दूजा खुला है,आजाद हो तुम
इस तरफ तुम पर नहीं प्रतिबन्ध कोई,
                        तुम्हारा जो मन करे,वैसा  करो तुम
कभी सीधे लेट ,छत के गिनो मच्छर,
                       बांह में तकिया भरो,जी भर  मज़ा लो
करवटों का फायदा एक और भी है,
                      करवटें ले,पीठ तुम अपनी खुजा लो
करवटें कुछ है विरह की,कुछ मिलन की,
                      है निराला स्वाद लेकिन करवटों में
करवटों का असर दिखता है सवेरे,
                      बिस्तरों की चादरों की,सलवटों में
करवटें तुम भी भरो और  भरे पत्नी,
                      नींद दोनों को न आये,एक बिस्तर
जाएँ टकरा ,यूं ही दोनों,करवटों में,
                   मिलन की यह विधा होती,बड़ी सुख कर
अगर मच्छर कभी काटे,करवटें लो,
                      जायेंगे दो,चार ,मर,कमबख्त,दब कर
भार सारा इक तरफ ही क्यों सहे तन,
                       बोझ तन का,हर तरफ बांटो बराबर
  नींद के आगोश में चुपचाप जाना,
                        भला इसमें भी कहीं आता मज़ा है
करवटों से पेट का भोजन पचेगा,
                        करवटों के लिए ही बिस्तर  सजा है
    नींद ना आती  किसी को ये सजा है
     करवटों का मगर अपना ही मजा है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'             

'स्माईल प्लीज'

         स्माईल  प्लीज

आपकी एक मुस्कान
जीत सकती है सारा जहान
बस,थोड़ी सी बांछें फैलाइये
और मुस्कराइये
आपकी स्माईल
जीत लेगी लोगों के दिल
गिले शिकवे सब मिट जायेंगे
दुश्मन भी दोस्त बन जायेंगे
क्योंकि मुस्कान
नहीं जानती रंग का भेद,
ना भाषा का ज्ञान
फिर भी दोस्ती करा देती है,
अंजानो को अपना बना देती है
बच्चों की मुस्कान निश्छल होती है,
सब का मन जीत लेती है
मासूम  सी किलकारियां,
सभी का ध्यान अपनी और खींच लेती है
जवानी की मुस्कान चंचल  होती है,
बिजलियाँ गिराती है
सभी के मन भाती है
कई बार इसे मुस्कराते मुस्कराते ही,
प्रीत हो जाती है
 बुढ़ापे की मुस्कान,
पर अगर दो ध्यान,
तो थोड़ी सी बेबस और लाचार होती है
पर ढलती उमर में,
वक़्त गुजारने का,
सबसे बड़ा आधार होती है
इसीलिए जब भी हो कोई आसपास,
जिसको आप,नहीं जानते हो खास,
लिफ्ट में मिले या घूमने में,
उसे देख  कर,हल्का सा मुस्कराइये
और अपना दोस्त बनाइये
क्योंकि मुस्कान है ही इसी चीज
इसलिये '
स्माईल प्लीज'
  
मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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