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सोमवार, 19 मार्च 2012

अनुभूतियाँ

            अनुभूतियाँ
रोज सुबह सुबह,जब मै घूमने जाता हूँ,
कितने ही दृश्य देख कर,
तरह तरह की अनुभूतियाँ पाता हूँ
जब देखता हूँ कुछ मेहतर,
हाथों में झाड़ू लेकर,
सड़क को बुहारते हुए,सफाई करते है
तो मुझे याद आ जाते है वो नेता,
जिनका हम चुनाव करते है
स्वच्छ और साफ़ ,प्रशासन के लिए
मंहगाई और गरीबी को बुहारने के लिए
लेकिन वो देश की सम्पदा को बुहारकर
भर रहें है ,अपनी स्विस बेंक का लॉकर
मै देखता हूँ छोटे छोटे बच्चे,
अपने नाज़ुक से कन्धों पर,
ढेर  सारा बोझा लटकाए
उनींदीं पलकें,अलसाये
तेजी से भागते है,
जब स्कूल की बस आती है
और साथ में उनकी माँ,
उनके मुंह में सेंडविच ठूंसती हुई,
उनके साथ साथ जाती है
मुझे इस दृश्य में,माँ की ममता,
और देश के भविष्य की ,
एक जिम्मेदार पीढ़ी पलती नज़र आती है
मुझे दिखती है एक महिला,
तीन तीन श्वानो को
एक साथ साधती हुई,घुमाती है
मुझे महाभारत कालीन,
एक साथ पांच पतियों को निभाती हुई,
द्रोपदी की याद आती है
मुझे नज़र आते है,
लाफिंग क्लब में,
ठहाका मार कर हँसते हुए कुछ लोग
मै सोचता हूँ,
इस कमरतोड़ मंहगाई ने,
जब सब के चेहरे से छीन ली है मुस्कान
हर आदमी है दुखी और परेशान
तो ये चंद लोग
क्यों करते है हंसने का ढोंग
फिर सोचता हूँ कि आज कि जिंदगी में,
जब सब कुछ ही फीका है
मन  को बहलाने का ये अच्छा तरीका है
मै भी यही सोच कर मुस्कराता हूँ
जब मै रोज,सुबह सुबह घूमने जाता हूँ

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 


 

अखबार पढने का मज़ा ही कुछ और है

     अखबार पढने का मज़ा ही कुछ और है

मैंने अपने मित्र से बोला यार

टी वी की कितनी ही चेनले,
चैन नहीं लेने देती,
दिन रात,बार बार,
सुनाती रहती है सारे समाचार
ख़बरें तो वो की वो ही होती है,
फिर तुम फ़ालतू में,
क्यों खरीदते हो अखबार
मित्र ने मुस्का कर
दिया ये उत्तर,
आप अपनी पत्नी को,
आते,जाते,पकाते,खिलाते,
दिन में देखते हो कितनी ही बार
मगर मेरे यार,
जिस तरह बीबी को बाँहों में लेकर,
नज़रे मिला कर ,
और उसकी खुशबू पाकर,
प्यार करने का मज़ा ही कुछ और है
वैसे ही सुबह सुबह,
सौंधी सौंधी खुशबू वाले अखबार को,
हाथों में लेकर और उस पर नज़रें गढ़ा कर,
उसके पन्ने पलटने,
और ध्यान से पढने का मज़ा ही कुछ और है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

खामोश चाहत

मैं छूना चाहता हूँ ,
तुम्हें ,
कुछ इस तरह कि,
छूने का अहसास ,
भी होने पायें तुम्हें ,
क्योंकि , तुम मेरी खामोश चाहत का ,
मंदिर हो ,
मेरी चाहत का भूले से भी ,
अहसास ना करना ,
क्योंकि ये अहसास ,
तुम्हें चुभन और तड़पन देगा ,
और मैं तुम्हें तडपाना तो नहीं चाहता ,
मैं तो बस चाहते ही रहना ,
चाहता हूँ तुम्हें ,
तुम्हें अपनी चाहत का अहसास ,
दिलाये बिना ,
और मैंने अपनी इसी चाहत को ,
खामोश चाहत ,
का नाम दिया है .

विनोद भगत

रविवार, 18 मार्च 2012

जियो जील के जाल, टिप्पणी फिर से खोलो

हुवे समर्थक पाँच सौ, दिव्या दिव्य कमाल ।

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हुवे समर्थक पाँच सौ, दिव्या दिव्य कमाल । 
बढे चढ़े उत्साह नित, जियो जील के जाल ।

जियो जील के जाल, टिप्पणी फिर से खोलो ।
रहा सभी को साल, साल में सम्मुख बोलो ।

होय ईर्ष्या मोय, बताओ औषधि डाक्टर ।
शतक समर्थक पूर,  करे कैसे यह रविकर ।।

शनिवार, 17 मार्च 2012

जीते जो तेदुलकर, जो मारे सो मीर -

मेरे भारत रत्न, नई खुशियाँ नित पाओ --

जीते जो तेदुलकर, जो मारे सो मीर ।
शतक मीरपुर में लगा, कब से सभी अधीर ।
 
Sachin Tendulkar celebrates after he scored his 100th international century during their Asia Cup one- day international.
कब से सभी अधीर, बजट ने बहुत रुलाया ।
सही समय पर शतक, सचिन ने धैर्य बंधाया ।
 
मेरे भारत रत्न, नई खुशियाँ नित पाओ ।
रहो हमेशा स्वस्थ, सदा भारत हरसाओ ।। 

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