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शुक्रवार, 14 अक्तूबर 2011

अग़ज़ल - दिलबाग विर्क

साहित्य सुरभि: अग़ज़ल - 26: कोई भी तो नहीं होता इतना करीब दोस्तो खुद ही उठानी पडती है अपनी सलीब दोस्तो. दोस्त बनाओ मगर दोस्ती पे न छोडो सब कुछ क्य...

घाट-घाट पर घूम, आज घाटी को-

घाट-घाट पर घूम, आज घाटी को माँगें ||



टांगें  टूटी  गधे  की ,  धोबी   देता   छोड़ |
बच्चे   पत्थर  मारके,   देते  माथा  फोड़ |


 


 देते माथा  फोड़,   रेंकता  खा  के  चाटा |
 मांगे जनमत आज, गधों हित धोबी-घाटा |


घाट-घाट पर घूम,  मुआँ  घाटी को माँगें |
चले चाल अब टेढ़ ,  तोड़  दे  चारों  टांगें ||

ड़ी दलीलें  तुम रखो,  उधर है  डंडा  फ़क्त ||

वाणी पुन्नू  की  प्रबल,  अन्नू  का  उपवास | 
चित्तू  का  डंडा  सबल,  दिग्गू  का  उपहास |

लोकपाल  मुद्दा  बड़ा,  जनता  तेरे  साथ |
काश्मीर का मामला, जला रहा क्यूँ  हाथ ?

कालेधन  से  है  बड़ा, माता  का  सम्मान |
वैसी भाषा  बोल मत,  जैसी  पाकिस्तान ||

झन्नाया था गाल  जब,  तू   तेरा  स्टाफ |
उस बन्दे को कूटते,  हमें  दिखे  थे साफ़ ||

सड़को पर जब आ गया, सेना का सैलाब |
तेरे  बन्दे  पिट गए,  कल  से  थे  बेताब  |

करना यह दावा नहीं,  हो  गांधी  के भक्त |
बड़ी दलीलें  तुम रखो,  उधर है  डंडा  फ़क्त ||

वैसे  दूजे  पक्ष  को,  मत  कर  नजरन्दाज |
त्रस्त बड़ी सरकार थी,  मस्त  हो रही आज ||

पहले  पीटा  फिर  पिटा,  चले   कैमरे  ठीक  |
होती  शूटिंग सड़क  पे, नियत लगे  ना  नीक ||

घूँस - युद्ध  की  नायकी,  घाटी  में  यूँ  डूब |
घूँसा जबड़े  पर  पड़ा,   देत   दलीलें   खूब ||

रही व्यक्तिगत सोच, चला कश्मीर छेंकने |

लगा रेकने जब कभी, गधा बेसुरा राग |
बहुतों ने बम-बम करी, बैसाखी में फाग |

बैसाखी में फाग, घास समझा सब खाया |
गलत सोच से खूब, सकल परिवार मुटाया |

रही व्यक्तिगत सोच, चला कश्मीर छेंकने |
ढेंचू - ढेंचू  रोज, लगा  बे-वक्त  रेंकने ||

एक चिठ्ठी -मनमोहन सिंह जी के नाम

एक चिठ्ठी -मनमोहन सिंह जी के नाम
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आदरणीय मनमोहन सिंह जी,
सादर प्रणाम
(राम राम नहीं करूँगा ,
वर्ना आप मुझे बी जे पी का समझ लेंगे
और ये चिठ्ठी दिग्विजय सिंह को दे देंगे)
दशहरे के दिन आपको टी वी पर देखा,
रामलीला मैदान में
हाँ,उसी राम लीला मैदान में,
जहाँ आपकी सेना ने,
युद्ध के सारे नियमो का अवलंघन कर,
रात के दो बजे,
लाठी चार्ज किया था,
सोती हुई महिलाओं और साधू संतो पर
आपने मंचासीन होकर,
सोनिया जी के साथ में
धनुष बाण लेकर हाथ में
कागज के पुतले रावण पर तीर चलाया
हर साल की प्रक्रिया को दोहराया
जैसे हर साल आप पंद्रह अगस्त पर,
लाल किले पर भाषण देते हुए,
अपनी मृदुल वाणी में बतलाते है
की मंहगाई घटा देंगे
भ्रष्टाचार मिटा देंगे
पर ये दोनों बढ़ते ही जाते है
आप कुछ नहीं कर पाते है
और इसे गठबंधन की मजबूरी बताते है
वैसे ही दशहरे के दिन तीर चलाने से,
भ्रष्टाचार का रावण नहीं मर पायेगा
आपका तीर खाने को बार बार,
हर साल दशहरे को आएगा
क्योंकि उसकी महिमा प्रचंड है
आप लोगों की कृपा से,
उसकी नाभि में ,अमृत कुंड है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

रोटी मिलेगी

रोटी मिलेगी
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राहुल गांधीजी ,
आप किसी गरीब के घर जाते हो
दरवाजा खटखटाते हो
और मांगते हो ,रोटी मिलेगी
और वो गरीब परिवार
खुश होकर अपार
आपको  आलू की सब्जी पूरी खिलाता है
और धन्य हो जाता है
अगर वो ही गरीब परिवार
भूख से बेहाल
आपके घर आये
और गुहार लगाये
रोटी मिलेगी
तो सबसे पहले,
उसे आपकी सिक्युरिटी मिलेगी
फिर पोलिस वालों के  डंडे, तलाशी
थाने में इन्क्वायरी अच्छी खासी
 सुनने को बहुत खरी खोटी मिलेगी
हाँ,लोकअप में शायद,
खाने को जेल की रोटी मिलेगी

मदन मोहन  बाहेती 'घोटू'

गुरुवार, 13 अक्तूबर 2011

महारास

आज छिटकी चांदनी है
मिलन की मधु यामिनी है
पूर्ण विकसा चन्द्रमा है
यह शरद की पूर्णिमा है
आओ आकर  पास हम तुम
रचायें महारास ,हम तुम
राधिका सी सजो सुन्दर
मै तुम्हारा कृष्ण बन कर
बांसुरी पर तान छेड़ूं
मिलन का मधुगान छेड़ूं
रूपसी तुम मदभरी सी
व्योम से उतरी परी सी
थिरकती सी पास आओ
बांह में मेरी समाओ
प्यार में खुद को भिगो कर
दीवाने मदहोश होकर
रात भर हों साथ हम तुम
रचायें महारास  हम तुम
चाँद सा आनन तुम्हारा
और नभ में चाँद प्यारा
मंद शीतल सा पवन हो
चमकता नीला गगन हो
हम दीवाने मस्त नाचें
लगे चलने गर्म साँसें
भले सब श्रिंगार बिखरे
मोतियों का  हार बिखरे
जाय कुम्हला ,फूल ,गजरा
आँख से बह चले  कजरा
तन भरे उन्माद हम तुम
रचायें महारास हम तुम

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

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