एक सन्देश-

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गुरुवार, 30 अक्टूबर 2025

आओ फिर लड़ लें,झगड़ लें 

बहुत दिन से तुम न रूठी ,
और ना मैंने मनाया 
फेर कर मुंह नहीं सोये,
एक दूजे को रुलाया 
देर तक भूखी रही तुम,
और मैं भी न खाया 
फिर सुलह के बाद वाला ,
नहीं सुख हमने उठाया 
रूठने का, मनाने का ,
बहाना हम कोई गढ़ ले 
आओ फिर लड़ लें,झगड़ ले 

चलो फिर से याद कर ले ,
उम्र वह जब थी जवानी 
दिन सुनहरे हुआ करते, 
और रातें थी सुहानी 
पागलों सा प्यार था पर ,
एक दूजे की न मानी 
चाहते ना चाहते भी ,
हुआ करती खींचातानी 
हुई अनबन रहे कुछ क्षण,
राह कुछ ऐसी पकड़ ले 
आओ फिर लड़लें ,झगड़लें 

सिर्फ मीठा और मीठा ,
खाने से मन है उचटता 
बीच में नमकीन कोई ,
चटपटा है स्वाद लगता 
इस तरह ही प्यार में जो ,
झगड़े का तड़का न लगता 
तो मनाने बाद फिर से ,
मिलन का सुख ना निखरता 
रुखे सूखे होठों पर वह ,
मिलन चुंबन पुनः जड़ लें 
आओ फिर लड़लें, झगड़लें 

मदन मोहन बाहेती घोटू 

रविवार, 26 अक्टूबर 2025

खींच सकता हूं जितना 

झेलता सब परेशानी,
बुढ़ापे की बीमारी की, 
अभी तक काटा ये जीवन,
हमेशा गाते ,मुस्काते

जिऊंगा यूं ही हंस हंस कर 
जब तलक मेरे दम में दम 
मौत भी डगमगाएगी,
मेरे नजदीक को आते 

क्योंकि हथियार मेरे संग,
दुआएं दोस्तों की है,
 है रक्षा सूत्र बहनों का ,
भाइयों का है अपनापन 

असर पत्नी के सब व्रत का, 
है करवा चौथ, तीजों का 
मिलेगा फल उसे निश्चित,
रहेगी वह सुहागन बन

प्यार में मेरा भी सबसे 
बन गया इस तरह बंधन 
मोह में और माया में ,
उलझ कर रह गया है मन 

मज़ा जीने में आता है 
चाहता दिल, जियूँ लंबा
जब तक खींच सकता हूं 
मैं खींचूंगा मेरा जीवन

मदन मोहन बाहेती घोटू 
गुनगुनाते रहो 

भुनभुनाओ नहीं, गुनगुनाते रहो 
पंछियों की तरह चहचहाते रहो 

रोने धोने को ना,है ये जीवन मिला 
ना किसी से रखो कोई शिकवा गिला 
प्रेम का रस सभी को पिलाते रहो
भुनभुनाओ नहीं ,गुनगुनाते रहो 

आएंगे सुख कभी, छाएंगे दुख कभी 
तुम रखो हौसला, जाएंगे मिट सभी 
तुम कदम अपने आगे बढाते रहो 
भुनभुनाओ नहीं, गुनगुनाते रहो 

देख औरों की प्रगति, न मन में जलो
जीत जाओगे तुम, दो कदम तो चलो 
जश्न खुशियों का अपनी मनाते रहो भुनभुनाओ नहीं, गुनगुनाते रहो 

मुश्किलें सब तुम्हारी,सुलझ जाएगी 
जिंदगी हंसते गाते,गुजर जाएगी 
तुम त्यौहार हर दिन मनाते रहो 
भुनभुनाओ नहीं, गुनगुनाते रहो

मदन मोहन बाहेती घोटू 

मंगलवार, 21 अक्टूबर 2025

श्री गणेश लक्ष्मी पूजन दीवाली पर एक साथ क्यों?

अभी कुछ दिन पहले ही तो,
 बड़े भक्ति भाव से हमने ,
गणेश जी को विदा देकर किया था रवाना  
यह कह कर कि है गणपति बप्पा अगले बरस तुम जल्दी आना 
और बरस भर की जरूरत ही नहीं पड़ी बहुत जल्दी हमें पड़ गया उनको फिर से बुलाना 
क्योंकि दिवाली आ गई है 
घर-घर में लक्ष्मी जी छा गई है 
उल्लू पर सवार लक्ष्मी माता अपनी महिमा दिखने लगी है 
पति विष्णु तो सोए हुए हैं लंबी नींद 
और यह अपने दोनों हाथों से सिक्के बरसाने लगी है 
लक्ष्मी माता चंचल है और धन समृद्धि के साथ खो न दे अपने बुद्धि और विवेक इसलिए उन पर संतुलन बनाने के लिए निमंत्रित किया जाते हैं श्री गणेश 
लक्ष्मी माता एक स्थान पर स्थिर नहीं होती है 
श्री गणेश बुद्धि के स्वामी है लक्ष्मी को स्थिर करने के लिए बुद्धि की आवश्यकता होती है 
श्री गणेश जी लक्ष्मी जी को स्थिर रखकर लंबे समय तक रखते हैं टिकाए इसलिए दीपावली पूजन में लक्ष्मी जी के साथ बिठाकर गणेश जी भी जाते हैं पूजाएं 
आपने देखा होगा लक्ष्मी की तस्वीरों में जब वो अकेली होती है ,
दोनों हाथों से धन बरसाती है 
और जब गणेश जी साथ होती हैं 
तो शांति मुद्रा में पूजी जाती है
गणेश जी की सलाह से धन बरसाते हुए अच्छे बुरे का करती संतुलन है
दीपावली पर गणेश पूजन का यही तो कारण है 

मदन मोहन बाहेती घोटू 

सोमवार, 20 अक्टूबर 2025

शादी 

जैसे ,पतझड़ के बाद हो बसंत ऋतु में फूलों का महकना 
जैसे ,प्रात की बेला में पक्षियों का मधुर करलव , चहकना 
 जैसे ,सर्दी की गुनगुनी धूप में छत पर बैठ मुंगफलियां खाना 
जैसे ,गर्मी में लोकल ट्रेन में आकर ठंडे पानी से नहाना 
जैसे ,तपती हुई धरती पर बारिश की पहली फुहार का गिरना 
जैसे ,उपवन के पेड़ पर चढ़कर पके फलों को चखना 
जैसे, पूनम के चांद का थाली भरे जल में उतरना 
जैसे , बौराई अमराई में कोकिल का पीयू पीयू चहकना 
जैसे ,सवेरे उठकर गरम-गरम गुलाबी चाय की चुस्कियां लेना 
जैसे ,दीपावली की रात में दीपक की लौ से बिखरता हुआ प्रकाश 
जैसे ,चटपटा खाने के बाद मुंह में घुल जाए गुलाब जामुन की मिठास 
जैसे ,होली के रंगों में जीवन के बिखरे हो अबीर गुलाल 
जैसे ,वीणा और तबले की आपस में मिल जाए ताल से ताल 
जैसे ,जीवन के कोरे कागज पर लिख दे प्रणय गीत 
जैसे , वीराने में बहार बनकर आ जाए कोई मनमीत 
जैसे ,सोलह संस्कारों में सबसे प्यारा मनभावन संस्कार 
जैसे ,ईश्वर द्वारा मानव को दी गई सबसे अच्छी सौगात

मदन मोहन बाहेती घोटू 

शुक्रवार, 10 अक्टूबर 2025

चौरासी पार 

हो गए हम चौरासी पार 
देश विदेश घूम कर देखा, देख लिया संसार 
हो गए हम चौरासी पार 

बचपन में गोदी में खेले ,निश्चल और 
अबोध 
हंसते कभी,कभी रोते थे ,नहीं काम और क्रोध 
फिर जब दुनियादारी सीखी ,पड़ी वक्त की मार
हो गए हम चौरासी पार 

उड़ते रहते थे पतंग से ,जब थी उम्र जवान 
कटी डोर तो गिरे धरा पर रही आन ना शान 
वक्त संग लोगों ने लूटा ,हमको सरे बाजार 
हो गए हम चौरासी पार 

जैसे जैसे उम्र बढी ,आई जीवन की शाम
तो संभाल और देखभाल में, मुश्किल आई तमाम
धीरे धीरे लगा बदलने, लोगों का व्यवहार 
हो गए हम चौरासी पार
 
अब तन जर्जर,अस्थि पंजर, हुआ समय का फेर 
आया बुढ़ापा ,कई व्याधियां, हमको बैठी घेर 
अब तक जीवन की उपलब्धि ,
पाया सबका प्यार 
हो गए हम चौरासी पार

मदन मोहन बाहेती घोटू 

गुरुवार, 9 अक्टूबर 2025

टेंशन 


मेरे घर में टेंशन का कुछ काम नहीं

क्योंकि टेंशन है तो फिर आराम नहीं

इसके लिए अटेंशन देना पड़ता है

बात-बात पर ब्लड प्रेशर ना बढ़ता है

छोटी बातें सहज सुलझ जो सकती है

इस जीवन में बड़ी अहमियत रखती है

उनका करो निदान इसलिए जल्दी से 

हट जाएगी परेशानियां सब जी से 

अगर सवेरे आए नहीं काम वाली 

परेशान हो मत दो उसको तुम गाली

परेशानियों को तुम दोगे यूं ही भगा 

क्या होगा जो एक दिन पोंछा नहीं लगा

फोन करो स्वीगी को खाना मंगवा लो

मनपसंद खाना होटल का तुम खा लो

पढ़ने में यदि लगता ना मन बच्चों का

तुम टेंशन जो लोगे इससे क्या होगा 

उनको इंसेंटिव दो आगे बढ़ने का 

शौक उन्हें लग जाए जिससे पढ़ने का

दोस्त तुम्हारे होंगे और कुछ दुश्मन भी

कभी किसी से होगी थोड़ी अनबन भी 

कोई हो नाराज खफा तुमसे काफी

होकर निसंकोच मांग लो तुम माफी 

एक तुम्हारा शब्द सिर्फ सॉरी कहना 

दूर तुम्हें कर देगा टेंशन से रहना

परेशानियां सुख-दुख आते जाते हैं 

लोग व्यर्थ ही टेंशन से घबराते हैं 

लेते यूं ही बहाना टेंशन करने का 

जैसे पत्नी को टेंशन है मरने का 

अगर मैं गई पहले टेंशन यह भारी

देखभाल फिर कौन करेगा तुम्हारी 

 तुम जो पहले गए टेंशन यह होगा

 मैं पड़ जाऊं अकेली मेरा क्या होगा 

जो भी होनी है तो होगी निश्चय है 

तो फिर व्यर्थ तुम्हारे मन में क्यों भय है

चार दिनों का पाया हमने यह जीवन

उसमें भी यदि रहे पालते हम टेंशन 

नहीं काटना यह जीवन है रो रो कर

इसीलिए बस हंसो जियो तुम खुश होकर

अगर नहीं जो सर पर पालोगे टेंशन 

नहीं मिलेगा तुम्हें उम्र का एक्सटेंशन

मानो मेरी बात, नजरिया तुम बदलो 

जीना है जो लंबा ,तो टेंशन मत लो


मदन मोहन बाहेती घोटू 

मंगलवार, 7 अक्टूबर 2025

प्रार्थना 

हे प्रभु दीन बंधु हो तुम तो 
और दीनों के नाथ हो 
अपने भक्तों के सुख-दुख में 
सदा निभाते साथ हो
 जय जय जय जय जय गिरधारी 
हर लो मेरी विपदा सारी 

परमात्मा हो तुम परमेश्वर 
और तुम ही अखिलेश हो 
आदिकाल से पूजे जाते
 ब्रह्मा विष्णु महेश हो 
भाग्यवान है वे सब जिनके 
सर पर तुम्हारा हाथ हो 
 हे प्रभु दीन बंधु हो तुम तो  
और दीनों के नाथ हो 
जय जय जय जय जय त्रिपुरारी 
 हर लो मेरी विपदा सारी 

जबभी जिसने सच्चे दिल से 
दुख में तुम्हें पुकारा है 
उसकी सारी विपदा हर कर 
तुमने दिया सहारा है 
उसके कष्ट निवारण करके 
करी प्रेम बरसात हो 
हे प्रभु दीन बंधु हो तुम तो 
और दीनों के नाथ हो 
जय जय चक्र सुदर्शन धारी
हर लो मेरी विपदा सारी 

जब-जब पाप बढ़ा धरती पर 
फैला अत्याचार हुआ 
तब तब दुष्ट हनन करने को 
तुम्हारा अवतार हुआ 
तुमने शांति, धर्म फैलाया 
दूर किया उत्पात हो 
हे प्रभु दीन बंधु हो तुम तो 
और दीनों के नाथ हो 
जय जय रामचंद्र अवतारी 
हर लो मेरी विपदा सारी 

कभी राम बनकर तुम जन्में 
रावण का संहार किया 
कभी कृष्ण बन लीलाधारी 
दुष्ट कंस का को मार दिया 
कभी प्रकट नरसिंह रूप में
 बचा लिया प्रहलाद हो 
हे प्रभु तुम तो दीनबंधु हो 
और दीनों के नाथ हो 
जय जय जय जय कृष्ण मुरारी 
हर लो मेरी विपदा सारी 

कभी मोहनी रूप लिया 
और देवों में अमृत बांटा 
धोखे से जो आए पीने 
राहु केतु का सिर काटा 
भस्मासुर को भस्म कराया 
रख सर खुद का हाथ हो 
हे प्रभु दीन बंधु हो तुम तो
और दीनों के नाथ हो 
जय जय जय भोले भंडारी
हर लो मेरी विपदा सारी 

विपुल संपदा के दाता तुम 
सबके भाग्य विधाता हो 
उसे कमी क्या,जिसकी पत्नी 
स्वयं लक्ष्मी माता हो 
मुझको दो धन-धान्य 
तुम्हारा भजन करूं दिन रात हो
 हे प्रभु दिन बंधु हो तुम तो 
और दीनों के नाथ हो
मैं हूं आया शरण तिहारी 
हर लो मेरी विपदा सारी 

मदन मोहन बाहेती घोटू 

शुक्रवार, 3 अक्टूबर 2025

रावण की पीड़ा 


कल रावण मेरे सपने में आया 

परेशान था और झल्लाया 

बोले में रावण हूं 

दुनिया में नंबर वन हूं 

मेरे पास अतुलित दौलत है 

बाहुबली हूं ,मुझ में ताकत है 

कोई मुझसे मेरे हथियारों के कारण डरता है 

कोई मुझसे मेरे स्वर्ण भंडारों के कारण डरता है 

मेरे वर्चस्व को सब मानते हैं 

और जो नहीं मानते मेरी, वे बैर ठानते हैं मैं उन्हें तरह-तरह से करता हूं प्रताड़ित 

अपनी पूरी शक्ति से करता हूं दंडित 

फिर भी कुछ राम और हनुमान 

मेरी धमकियों पर नहीं देते हैं ध्यान 

मेरी बातों को करते हैं अनसुना 

मैं उन पर टैरिफ लगा देता हूं चौगुना लोग कहते हैं अपने अहम के बहम में पगला गया हूं 

पर कुछ दोस्त मेरी बात नहीं सुनते,

 मैं उनसे तंग आ गया हूं 

उनके देश में गांव-गांव और शहरों में हर साल 

मेरे पुतले जलाकर मनाया जाता है दशहरे का त्यौहार 

देखो कैसा अमानवीय है उनका व्यवहार पिछले कई सालों से नहीं है यातना भुगतता चला आ रहा हूं 

प्रतिशोध की आग में जला जा रहा हूं फिर भी मौन और शांत हूं ,

ना कोई बदला है ना प्रतिकार 

अब आप ही बतलाइए ,क्या मैं नहीं हूं शांति के नोबेल प्राइज का हकदार 

कई देशों के बीच हो रही थी लड़ाई 

मैंने  अपने रुदबे से रुकवाई 

तो क्या यह नहीं है जाईज 

कि मुझे दिया जाए शांति का नोबेल प्राइज 

अगर लोग मेरी बात नहीं मानेंगे

 मेरे वर्चस्व को नहीं जानेंगे 

मैं दुनिया में उथल-पुथल मचा दूंगा

जब तक मुझे शांति का नोबेल पुरस्कार नहीं मिल जाएगा मैं किसी को शांति से जीने नहीं दूंगा 

और शांत नहीं बैठूंगा


मदन मोहन बाहेती घोटू

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