जब से तुम बीमार पड़े हो
प्रिय, जब से तुम बीमार पड़े हो
बदल ही गई है मेरी जिंदगानी
मेरी दिनचर्या, मेरे जीवन का क्रम,
सब बदल गया है, मेरे चेहरे पर,
मुस्कान के बदले छाई रहती है परेशानी
एक जमाना था जब मुझे देखकर
तेज हो जाती थी तुम्हारी दिल की धड़कन , अब जब तुम्हारी धड़कन में तेज होती है तो डर लगता है कि कहीं तुम्हारा ब्लड प्रेशर तो नहीं बढ़ गया है
पहले रातों को तुम्हारा स्पर्श
मुझे रोमांचित करता था
परअब रात को जब तुम्हारा बदन
छूती हूं तो टटोल कर देखती हूं
कि कहीं बुखार तो नहीं चढ़ गया है
तुम्हारी चाल ढाल व्यवहार की थोड़ी सी भी हरकत मुझे परेशानी की आहट देती है
तुम्हारी हल्की सी भी खांसी
तुम्हे सर्दी जुकाम न हो गया हो घबराहट देती है
तुम जब भी इधर-उधर घूमने जाते हो तो मैं तुम्हारे साथ जाती हूं कि कहीं तुम
डगमगा कर गिर ना जाओ सड़क के बीच
तुम जब प्रसाद के डब्बे से मोतीचूर का लड्डू खाने लगते हो तो मैं तुम्हारा हाथ पकड़ लेती हूं क्योंकि कहीं बढ़ न जाए तुम्हारी डायबिटीज
तुम्हारी बीमारी के कारण
डॉक्टर ने तुम्हारे खानपान पर
लगा दिए है इतने रिस्ट्रिक्शन
कि मैं चाहते हुए भी तुम्हे खिला नहीं पाती
तुम्हारा मनचाहा भोजन
मेरी याददाश्त बुढ़ापे के कारण कमजोर हो गई है और कई चीज रख कर भूल जाती हूं
पर तुम्हें समय पर दवा की गोलियां
देना कभी नहीं भूल पाती हूं
तुम्हें संभालते संभालते मैं
अपने को संभालना भूल गई हूं
मुझ में सजने संवरने की अब नहीं रही चाह
अब नहीं रहा वो पहले जैसा
घूमने फिरने का उत्साह
तुम्हारे शरीर की थोड़ी भी हलचल
मेरे शरीर में हलचल भर देती है
मुझे बेचैन और बेकल कर देती है
क्योंकि तुम हो तो मेरी मांग में सिंदूर है
तुम हो तो मेरी करवा चौथ है
तुम हो तो मेरी पहचान है
तुम हो तो मेरा अस्तित्व है
मैं सावित्री की तरह तुम्हें यमराज से बचा तो नहीं सकतीहूँ
पर जब तक तुम जिंदा हो
तुम्हारी जिंदगी में खुशियां तो भर सकती हूँ
अब मेरा संकल्प यही है
और यही कामना है मेरी
जब तक जिंदा रहूं,
तुम्हारी सेवा करती रहूं
मदन मोहन बाहेती घोटू