एक सन्देश-

यह ब्लॉग समर्पित है साहित्य की अनुपम विधा "पद्य" को |
पद्य रस की रचनाओ का इस ब्लॉग में स्वागत है | साथ ही इस ब्लॉग में दुसरे रचनाकारों के ब्लॉग से भी रचनाएँ उनकी अनुमति से लेकर यहाँ प्रकाशित की जाएँगी |

सदस्यता को इच्छुक मित्र यहाँ संपर्क करें या फिर इस ब्लॉग में प्रकाशित करवाने हेतु मेल करें:-
kavyasansaar@gmail.com
pradip_kumar110@yahoo.com

इस ब्लॉग से जुड़े

गुरुवार, 10 अप्रैल 2025

शादी 

 बंधे प्रेम के बंधन में हम,
हो गई दिल की हेरा फेरी 
मैंने तुमसे शादी कर ली ,
मेरी *मैं* अब हो गई तेरी 
साथ रहेंगे अब हम दोनों ,
बन करके *हम* जब तक दम है ,
चांदी से उजले दिन होंगे ,
और सोने सी रात सुनहरी

मदन मोहन बाहेती घोटू 

मुक्तक 


जो दे एहसास माता का, उसे हम सास कहते हैं 


पराई आस,पर खुद का ,जो हो विश्वास कहते हैं


बिना मतलब जरूरत के, बिना रोके बिना टोके,


लोग बकबक जो करते हैं ,उसे बकवास कहते हैं


मदन मोहन बाहेती घोटू

हृदय की बात 

हृदय हमारा कब अपना है 
यह औरों के लिए बना है 

इसको खुद पर मोह नहीं है,
 सदा दूसरों संग खुश रहता 
कभी ना एक जगह पर टिकता 
धक धक धक-धक करता रहता 

कल कल बहता नदियों जैसा,
 लहरों सा होता है प्यारा
मात-पिता के दिल में बसता,
 बन उनकी आंखों का तारा 

कभी धड़कता पत्नी के हित 
कभी धड़कता बच्चों के हित 
यह वह गुल्लक है शरीर का, 
प्यार जहां होता है संचित 

कोई हृदय मोम होता है 
झट से पिघल पिघल है जाता
 तो कोई पाषाण हृदय है ,
निर्दय कभी पसीज पाता 

हृदय हृदय से जब मिल जाते 
एक गृहस्थी बन जाती है 
होते इसके टुकड़े-टुकड़े 
जब आपस में ठन जाती है 

युवा हृदय आंखों से तकता,
रूप देखता लुट जाता है 
नींद ,चैन, सब खो जाते हैं ,
जब भी किसी पर यह आता है 

कभी प्रफुल्लित हो जाता है
 कभी द्रवित यह हो जाता है 
रोता कभी बिरह के आंसू ,
कभी प्यार में खो जाता है 

इसके एक-एक स्पंदन 
में बसता है प्यार किसी का 
इसकी एक-एक धड़कन में 
समा रहा संसार किसी का 

अगर किसी से मिल जाता है 
जीवन स्वर्ग बना देता है 
चलते-चलते अगर रुक गया 
तुमको स्वर्ग दिखा देता है 

इसके अंदर प्यार घना है 
हृदय तुम्हारा कब अपना है

मदन मोहन बाहेती घोटू 

सोमवार, 7 अप्रैल 2025

 दो मुक्तक 
1
यह जीवन कर्ज तेरा था, दिया तूने लिया मैंने

 दिए निर्देश जो जैसे ,उस तरह ही जिया मैंने

मैं मरते वक्त तक बाकी कोई उधार ना रखता ,

दिया था तूने जो जीवन, तुझे वापस किया मैंने 
2
हम अपने ढंग से जी लें,बुढ़ापा इसलिए उनने

अकेला छोड़कर हमको ,बसाया घर अलग उनने 

 हमारी धन और दौलत का,ध्यान पर रखते हैं बच्चे ,
कर लिया फोन करते हैं, हमारी खैरियत सुनने

मदन मोहन बाहेती घोटू 

हलचल अन्य ब्लोगों से 1-