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शनिवार, 30 अगस्त 2014

अच्छे दिन जब आयेंगे महंगा मोदक लायेंगे....


अभी यही प्रभु सस्ता मोदक
महंगाई मुंह बाये जब तक
अच्छे दिन जब आयेंगे
महंगा मोदक लायेंगे
करो कृपा कुछ तुम्हीं गजानन
विघ्न दूर हो आनन फानन
लाखों के कुछ काम बनें तो
थोड़ा हम भी नाम करें तो
दरियादिल हम दिखला देंगे
भारी मोदक भी ला देंगे
नेताओं से झूठे वादे
नहीं हमें हैं करने आते
सीधा सुनना - सीधा कहना
हर हालत में सीधे रहना
फिर भी कछुआ चाल जिन्दगी
ज्यादा आगे नहीं बढ़ सकी
तुम चाहो तो क्या मुश्किल है
चलकर आती खुद मंजिल है
'चर्चित' की चर्चा करवा दो
धन की भी वर्षा करवा दो
अच्छाई की जीत सदा है
ये सच फिर साबित करवा दो

- विशाल चर्चित

अंदर बाहर

            अंदर बाहर

जो बाहर से कुछ दिखते है,
                अंदर कुछ और हो सकते है
नहीं जरूरी वैसे ही हों,
                 जैसे   बाहर  से  लगते  है
बाहर है तरबूज हरा पर ,
                   लाल लाल होता है अंदर
होता श्वेत सेव फल अंदर,
                   लेकिन लाल लाल है बाहर
बाहर कुछ है,अंदर कुछ है ,
                    खरबूजा भी कुछ ऐसा है
लेकिन पीला पका आम फल ,
                     बाहर भीतर एक जैसा है
कच्चे फल कुछ और दिखते है ,
                    बदला करते जब पकते है
जो बाहर से कुछ दिखते है,
                    अंदर कुछ और हो सकते है
केला हो या लीची हो पर ,
                       सबकी ऐसी ही हालत है
वैसे ही कुछ इंसानों की,
                       कुछ है सूरत,कुछ सीरत है
कोई  में  रस होता है तो ,
                          कोई  में  गूदा  है  होता 
कोई में गुठली होती है,
                        सब कुछ जुदा जुदा है होता
   पोले ढोल हुआ करते जो ,
                        वो थोड़े  ज्यादा  बजते है
जो बाहर से कुछ दिखते है,
                       अंदर कुछ और हो सकते है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'  

आंसू

                    आंसू

आंसू सच्चे मित्र और हमदर्द दोस्त है ,
           जब भी होता दर्द ,आँख में आ जाते है
देकर चुम्बन गालों को पुचकारा करते ,
            धीरे धीरे बह  गालों  को  सहलाते   है
जब खुशियों के पल आते मन विव्हल होता ,
 तो ये आँखों से मोती बन, बिखरा करते ,
औरजब दुख के बादल छाते,घुमड़ाते है ,
          नयन नीर बन,तब ये बरस बरस जाते है
जब पसीजता है अंतरतर सुख या दुःख से,
तो यह निर्मल जल नयनों से टपका करता ,
और इनकी बूंदों में इतनी ऊष्मा होती ,
            पत्थर से पत्थर दिल को भी पिघलाते है
अधिक परिश्रम करने पर या अति ग्रीष्म में,
तन के  रोम  रोम से  स्वेद  बहा  करता  है ,
किन्तु भाव जो मन को पिघलाया करते है ,
             आँखों के रस्ते आंसू  बन कर   के आते है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'        

यक्ष प्रश्न

          यक्ष प्रश्न

हे भगवान !मुझे ये बतला दे कि ,
मर्दों के साथ ही ,क्यों होता ये अन्याय है
बैल हमेशा हल जोतता रहता है,
और माँ कह कर पूजी जाती गाय  है
विवाह उत्सव में,सजी धजी घोड़ी पर,
दूल्हे राजा को बिठाया जाता है
और बेचारे घोड़े से  हमेशा ही ,
तांगे  या इक्के को खिंचवाया जाता है
मुर्गी अंडा देती है ,इसलिए ,
उसकी होती अच्छी देखभाल है
और बेचारा मुर्गा ही क्यों ,
हमेशा होता हलाल है
भैस दूध देती है तो उसे,
खिलाया पिलाया जाता है
और भेसे से ,भैंसागाडी को,
हमेशा खिंचवाया जाता है
मर्द ,दिन भर काम में पिसता रहता ,
करता कमाई है
और घर पर चैन से ऐश करती ,
उसकी लुगाई है
और जब सब मादाओं को ,
आदमी बहुत करता है प्यार
तो क्यों फिर बेटियां ,
जन्म लेने के पहले ही ,
कोख में दी जाती है मार ? 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बुधवार, 27 अगस्त 2014

हम बूढ़े है

      हम बूढ़े है

हम बूढ़े है,उमर हो गयी ,
      लेकिन नहीं किसी से कम है
स्वाभिमान के साथ जियेंगे ,
      नहीं झुकेंगे,जब तक दम  है
साथ उमर के ,शिथिल हुआ तन,
     किन्तु हमारा मन है चंगा
जो भी चाहे,लगाले डुबकी ,
    भरी प्यार की,हम है गंगा
सबको पुण्य प्रदान करेंगे,
    जब तक जल है,बहते हम है
स्वाभिमान से जिएंगे हम ,
   नहीं झुकेंगे,जब तक दम है
चाह रहे तुमसे अपनापन ,
     शायद हमसे हुई भूल है
पान झड़ गए सब पतझड़ में,
    हम फुनगी पर खिले फूल है
हमने आते जाते देखे,
   कितने ही ऐसे  मौसम है
स्वाभिमान से जिएंगे हम,
    नहीं झुकेंगे ,जब तक दम है 
अनुभव की चांदी बिखरी है ,
    काले केश हो रहे  उज्जवल
सूरज जब ढलने लगता है,
         किरणे होजाती है शीतल
जहाँ प्यार की धूप पसरती ,
        हम वो खुला हुआ  आँगन है
स्वाभिमान से जिएंगे हम,
    नहीं झुकेंगे,जब तक दम है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मारामारी

        मारामारी

अगर साथ देती जो किस्मत हमारी
 नहीं करनी पड़ती हमें मारा मारी
 कभी हमने भी खूब मारी थी मस्ती ,
बड़ी बेफिकर ,जिंदगी थी हमारी
बहुत गप्प मारी,बहुत झक्क  मारी ,
करते रहे हम, यूं ही चाँद मारी
कभी आँख मारी,कभी मारे चक्कर ,
लगी इश्क़ करने की हमको बिमारी
लगे लोग कहने ,हमें मजनू मियां ,
हुई आशिकों में ,हमारी शुमारी
बड़ी मुश्किलों से पटाई थी लड़की,
मगर बन गयी है वो बीबी हमारी
रही थोड़े दिन तक  तो छाई खुमारी,
गृहस्थी की हम पर,पड़ी जिम्मेदारी
फंसा इस तरह दाल आटे का चक्कर ,
यूं ही मरते मरते कटी   उम्र   सारी

घोटू  

बदला हुआ माहौल

        बदला  हुआ माहौल

आजकल कुछ इस तरह,बदला हुआ माहौल है,
          बदतमीजी,बददिमागी,बदमिज़ाजी  आम है
प्रेम के बंधन में कोई,बंधता है ना बांधता ,
          हो गया है इस कदर ,खुदगर्ज हर इंसान है
सिखाया करते थे हमको पाठ अमन-ओ-चैन का,
       अदावत और झगडे ही बन गया उनका काम है      
था जो गुलशन ,गुलों से गुलजार हरदम महकता ,
                कांटे वाले केक्टस अब बने उसकी शान है 
ठंडी ठंडी हवाएँ जो सहलाती थी जिस्म को,
               आजकल झझकोरती  है ,बन गयी तूफ़ान है
इस तरह के हाल से हैं हम गुजरने लग गए,
              ये हमारी अपनी ही करतूत का  अंजाम है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मंगलवार, 26 अगस्त 2014

बनो ऐसे कि....


बनो ऐसे कि 
मंजिल को हो इन्तजार
तुम्हारे पहुंचने का,
और अगर ऐसा न हो तो
रह जाए एक मलाल उसे
तुम्हारे न पहुंचने का...

बनो ऐसे कि
हर महफिल में छाए रौनक
एक तुम्हारे आने से,
छा जाये हर तरफ मातम
एक तुम्हारे जाने से...

बनो ऐसे कि
बहुत बड़ी हो जाएं
तुम्हारे आस पास की 
छोटी - छोटी खुशियां भी,
सिमट कर न के बराबर 
रह जाये अपनी ही नहीं
दूसरों के गमों की दुनिया भी...

बनो ऐसे कि
हर रिश्ता तुमसे
जगमगाता सा नजर आये,
दिलो जान से निभाने पर भी
अगर कोई जाए तो पछताये कि
यार बहुत बड़ी गलती कर आये...

बनो ऐसे कि
हर हुनर - हर फन में
एक मिसाल हो जाओ,
तो देर किस बात की है
जो बीता सो बीता
अब तो होश में 'विशाल' हो जाओ...

- विशाल चर्चित

सोमवार, 25 अगस्त 2014

औरत के आंसू

              औरत के आंसू

औरत के आंसू से,हर कोई डरता है
धनीभूत गुस्सा जब ,आँखों से झरता है
चंद्रमुखी की आँखें,ज्वालामुखी बन जाती ,
लावा से बहते है ,आंसू जब गालों पर
तो उसकी गर्मी से ,पिघल पिघल जाते है,
कितने ही योद्धा भी,जिनका दिल है पत्थर
घातक है नयन नीर,अबला  का ये बल है
जब टपका करता है,आँखों से बन मोती
एक जलजला जैसे ,घरभर में आ जाता,
गुस्से में विव्हल हो,घरवाली जब रोती
बड़े धाँसू होते है,औरत के ये आंसूं ,
चार पांच ही बहते ,प्रलय मचा देते है
वैसे तो जल की ही ,होती है कुछ बूँदें,
मगर जला देते है ,आग लगा देते है
अपनी जिद मनवाने का अमोघ आयुध ये,
वार कभी भी जिसका ,नहीं चूक पाता है
चाहे झल्ला कर के ,चाहे घबराकर के ,
पतिजी से जो सारी ,बातें मनवाता  है
बड़े बड़े शूरवीर ,ध्वस्त हुआ करते है ,
औरत का ब्रह्म अस्त्र ,जब भी ये चलता है
मृगनयनी आँखों से ,छलक छलक बहा नीर ,
देता है ह्रदय चीर ,आदमी पिघलता है
बस उसका ना चलता ,बस बेबस हो जाता ,
बात  मान लेता बस ,मरता क्या करता है
 घनीभूत गुस्सा जब आाँखो से झरता है
औरत के आंसूं से ,हर कोई डरता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

गुरुवार, 21 अगस्त 2014

कान्हा -बुढ़ापे में

         कान्हा -बुढ़ापे में

कान्हा बूढ़े,राधा बूढी ,कैसी गुजर रही है उन पर
बीते बचपन के गोकुल में,दिन याद आते है रहरह कर 
माखनचोर,आजकल बिलकुल ,नहीं चुरा,खा पाते मख्खन
क्लोस्ट्राल बढ़ा,चिकनाई पर है लगा हुआ प्रतिबंधन
धर ,सर मटकी,नहीं गोपियाँ,दूध बेचने जाती है अब
कैसे मटकी फोड़ें,ग्वाले,बेचे दूध,टिनों में भर  सब 
उनकी सांस फूल जाती है ,नहीं बांसुरी बजती ढंग से
सर्दी कहीं नहीं लग जाए ,नहीं भीगते ,होली  रंग से
यूं ही दब कर ,रह जाते है,सारे अरमां ,उनके मन के
चीर हरण क्या करें,गोपियां ,नहा रही 'टू पीस 'पहन के
करना रास ,रास ना आता ,अब वो जल्दी थक जाते है
'अंकल'जब कहती है गोपी,तो वे बहुत भड़क जाते है
फिर भी बूढ़े ,प्रेमीद्वय को,काटे कभी प्रेम का कीड़ा
यमुना मैली, स्विंमिंगपूल में ,करने जाते है जलक्रीड़ा

मदनमोहन बाहेती'घोटू'

मंगलवार, 19 अगस्त 2014

पति पत्नी बुढ़ापे में-दो अनुभूतियाँ

         पति पत्नी बुढ़ापे में-दो अनुभूतियाँ
                             १
हुई शादी ,मैं रहता था ,पत्नी  के प्यार में डूबा ,
       चली जाती कभी मैके ,बड़ा मैं  छटपटाता था
इशारों पर मैं उनके नाचा करता था सुखी होकर,
        कभी नाराज होती तो,मन्नतें कर मनाता था
फँसी फिर वो गृहस्थी में,और मैं काम धंधे में,
        बुढ़ापे तक दीवानापन ,सभी है फुर्र हो   जाता
बहानेबाजी करते रहते  है हम एक दूजे से,
       कभी  बी पी मेरा बढ़ता ,उन्हें सर दर्द हो जाता
                          २
जवानी में  बहुत  कोसा ,और डाटा उसे मैंने,
               बुढ़ापे में मेरी बीबी ,बहुत  है  डांटती  यारों
रौब मेरा, सहन उसने कर लिया था जवानी में,
               आजकल रौब दूना ,रोज मुझ पर गांठती यारों
जवानी में बहुत उसको ,चिढाया ,चाटा था मैंने ,
                आजकल जम के वो दिमाग मेरा ,चाटती यारों
बराबर कर रही हिसाब वो सारा पुराना है ,
                 मैंने काटी थी उसकी बातें अब वो काटती  यारों

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

 
               
       


        

कोयला

                     कोयला
सलाह दी कोई ने ये  कोयले से प्यार मत करना ,
             हुआ पैदा जो जल जल कर ,कहाँ ठंडक दिलाएगा
छुओगे जो गरम को तो,जला फिर  हाथ वो देगा ,
            अगर छुओगे ठन्डे को ,तुम्हे कालिख लगायेगा
हम बोले, चीज कैसी हो ,मगर तुम पे ये निर्भर है ,
            फायदा उसके गुण का ,किस तरह तुम उठा सकते
प्रेस धोबी गरम करता ,छानता कोई पानी है,
           जला कर सिगड़ी रोटी भी ,करारी सेक  खा  सकते

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 
 

हम भी कैसे है?

           हम भी कैसे है?

प्रार्थना करते ईश्वर से ,घिरे बादल ,गिरे पानी,
          मगर बरसात  होती है तो छतरी तान लेते है
बहुत हम चाहते  है कि चले झोंके हवाओं के ,
           हवा पर चलती जब ठंडी ,बंद कर द्वार लेते है
हमारी होती है इच्छा ,सुहानी धूप खिल जाये ,
            मगर जब धूप खिलती है,छाँव में  भाग जाते है
 देख कर के हसीना को,आरजू करते पाने की,
           जो मिल जाती वो बीबी बन,गृहस्थी में जुटाते है
हमेशा हमने देखा है,अजब फितरत है इन्सां की  ,
           न होता पास जो उसके  ,उसी की चाह करता  है
मगर किस्मत से वो सब कुछ ,उसे हासिल जो हो जाता ,
          नहीं उसकी जरा भी  फिर,कभी परवाह करता है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

सोमवार, 18 अगस्त 2014

ब्लड रिपोर्ट

           ब्लड रिपोर्ट
                  १
           आइरन टेस्ट
हरदिन बढ़ती हुई कीमते  ,भ्रष्टाचार  और  मंहगाई
जीवन मे आगे बढ़ने पर,पग पग पर मिलती कठिनाई
नयी नयी फ़रमाईश होती ,बीबी  बच्चों  की हरदम है
सबसे लोहा लेता हरदिन ,फिर भी  ब्लड में ,लोहा कम है
                             २
                 शुगर  टेस्ट
सबसे मीठी मीठी बातें ,करता रहता हूँ मैं दिन भर
मीठी चीजें ना खाऊं मैं ,लगी हुई ,पाबंदी  मुझ पर
लोगों में मिठास बांटूं परचीनी कोई न खाने देता 
चीनी तो क्या,बनी चीन की ,चीजें भी मैं ना हूँ लेता
ना रसगुल्ले ,नहीं जलेबी ,तरसा करता हूँ  अक्सर 
फिर भी डॉक्टर ,कहते खूं में,मेरे बढ़ी हुई है शक्कर

मदन मोहन बाहेती'घोटू'


खानपान

       खानपान

अलग अलग कितनी ही चीजें,है जो  लोगबाग खाते है
नहीं समझ में खुद के आता ,औरों का दिमाग खाते है
कोई रिश्वत खाता है तो कोई कमीशन खाया करता
कोई धीरे धीरे घुन सा , चिता बन ,तन खाया करता
कोई लम्बे चौड़े वादे कर क़समें खाया करता  है
कोई बड़े भाव खाता जब ,ऊपर चढ़ जाया करता है
कोई हिल स्टेशन जाकर के,ठंडी ठंडी हवा  खा रहा
कोई कहीं पर ठोकर खाता ,कोई धोखा ,दगा खारहा
कोई किसी को पटा रहा है,उसके घर के चक्कर खा के
होता हुआ प्यार देखा है, कभी किसी से टक्कर खा क़े
कोई जूते भी  खाता है, कोई  चप्पल, कोई  सेंडल
कोई फेरे सात अगन के,खाकर फंस जाता जीवन भर 
कोई खाता हवालात की हवा ,कोई बीबी से बेलन
कोई खाता रहम किसी पर,कोई गुस्सा खाता हरदम
कोई मार किसी से खाता ,डाट किसी से खाई जाती
बिना मुंह के ,इस दुनिया में,कितनी चीजें ,खाई जाती
लोग नौकरी के चक्कर में ,खाते धक्के ,इधर उधर के
फिर वो बड़े गर्व से कहते ,हम है खाते पीते घर  के

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 

कृष्णलीला

           कृष्णलीला

कन्हैया छोटे थे एक दिन,उन्होंने खाई  थी माटी
बड़ी नाराज होकर के ,  यशोदा मैया थी   डाटी
'दिखा मुंह अपना',कान्हा ने ,खोल मुंह जब दिखाया था
तो उस मुंह में यशोदा को ,नज़र ब्रह्माण्ड   आया था
मेरी बीबी को भी शक था ,   मिट्टी बेटे ने है खाई
खुला के मुंह जो देखा तो,उसे   दुनिया  नज़र आयी
कहीं 'चाइनीज ' नूडल थी,कहीं 'पॉपकॉर्न 'अमरीकी'
कहीं थे 'मेक्सिकन' माचो,कहीं चॉकलेट थी 'स्विस 'की
कहीं 'इटली'का पीज़ा था,कहीं पर चीज 'डेनिश'  थी
कहीं पर 'फ्रेंच फ्राइज 'थे,कहीं कुकीज़ 'इंग्लिश 'थी
गर्ज ये कि  मेरे बेटे के ,मुंह  में दुनिया   थी  सारी
यशोदा सी मेरी बीबी , बड़ी अचरज की थी मारी
वो बोली लाडला अपना ,बहुत  ही गुल खिलायेगा
बड़ा हो ,गोपियों के संग ,रास निश्चित ,रचायेगा

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 

रविवार, 17 अगस्त 2014

मान मनुहार

            मान  मनुहार

रूठने और मनाने का ,होता है अपना मज़ा ,
             लोग कहते है कि ये भी,प्यार की पहचान है
दो मिनिट भी हो जाते  है जब नज़र से जो दूर वो ,
              आँखें  उनको  ढूंढने को ,मचाती  तूफ़ान  है 
  बड़ी प्यारी होती घड़ियाँ ,मान और मनुहार की
   बाद झगडे के सुलह में ,कशिश दूनी प्यार की
गिले शिकवे उससे ही होते है जिसमे अपनापन ,
            नहीं झगड़ा जाता गैरों से कि जो अनजान है

घोटू

दौलत और हुस्न

           दौलत और हुस्न

ये धन,दौलत ,रुपैया भी,बड़ी ही प्यारी सी शै है,
जरा जब पास आता है,बड़ा हमको लुभाता है
पड़े जो इसके लालच में ,मज़ा आता है सोहबत में,
अधिक पाने के चक्कर में,बड़े चक्कर कटाता है
हुस्नवाले भी ऐसे ही,हुआ करते है दौलत से ,
पास आ तुमको सहलाते ,बड़ा मन को सुहाते है
दिलाते दिल को राहत है,थकावट दूर कर देते ,
हुए जो लिप्त तुम उनमे ,तुम्हे दूना  थकाते  है

घोटू 
 

नोट का हुस्न

               नोट का हुस्न

कहा इक नाज़नीं ने 'कैसी लगती हूँ'तो हम बोले ,
नोट हज्जार सी रंगत,बड़ी सुन्दर और प्यारी है
देख कर तुमको आ जाती,चमक है मेरी आँखों में ,
तुम्हे पाने की बढ़ जाती ,हमारी  बेकरारी  है
पता लगता है सहला कर,कि असली है या नकली है
सजाती जिस्म तुम्हारा ,एक गोटा किनारी है
मेरा दिल करता है तुमको ,रखूँ मैं पर्स में दिल के,
मगर तुम टिक नहीं पाते  ,बुरी आदत तुम्हारी है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

पड़ोसी

              पड़ोसी 

 मेरे घर मेंखुशी होती तो उसको  मिर्च लगती है,
उसे तकलीफ़ होती है,मेरी क्यों अच्छी सेहत है
तरक्की देख कर औरों की,जल के खाक हो जाना ,
हमारे इस पड़ोसी की ,शुरू से ही ये आदत है
भले ही  उसके घर में हरतरफ बद इंतजामी है ,
मेरे घर का अमनऔरचैन उसके दिल को खलता है
मेरे घर की दर -ओ- दीवार पर, वो ठोकता कीलें ,
बड़ा बेचैन हो जाता है ,हमेशा मुझसे   जलता है 
 देखता है सुधरती जब ,व्यवस्थाएं मेरे घर की,
चैन से रह नहीं सकता,वो इतना कुलबुलाता है
भेज देता है चूहों को,  कतरने  को मेरा   कूचा,
दुहाई देके मजहब की ,बड़ी गड़बड़  मचाता  है
मेरा ही भाई है,निकला है करके घर का बंटवारा,
बड़ी ही पर घिनौनी हरकतें,दिनरात करता है
खुदा ही जानता है हश्र उसका कैसा, क्या, होगा ,
खुदा का नाम ले लेकर ,रोज उत्पात करता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

शनिवार, 16 अगस्त 2014

समझ मोबाइल मुझे

      समझ मोबाइल मुझे

हाथ में लेकर के मुझको ,फेरते थे उँगलियाँ,
साथ में रखते थे हरदम  ,समझ मोबाइल मुझे
दबा कर के बटन ,मेरी खींचते  तस्वीर थे ,
खुश थी मैं कि कम से कम समझा है इस काबिल मुझे
यूं तो अक्सर फेस बुक पर ,तुमसे मिल लेती थी मैं ,
फ्रेंडलिस्ट से कर दिया ,डिलीट क्यों,संगदिल मुझे 
आजकल  मेसेज भी 'वर्डस एप' पर आते नहीं ,
क्यों जलाते रहते हो तुम ,इस तरह तिल तिल मुझे
फोन करती ,मिलता उत्तर,'सारी लाइन व्यस्त है ',
भुलाने भी नहीं देता ,तुम्हे, मेरा दिल मुझे
या तो लगता है तुम्हारी ,बैटरी डिस्चार्ज  है,
या तुम्हारी 'सिम'में ही,लगती कोई मुश्किल मुझे

 घोटू

शुक्रवार, 15 अगस्त 2014

नहीं तो तुम कहाँ रहते ?

       नहीं तो तुम कहाँ रहते ?

हुई शादी हमारी थी ,बड़े ही दिन थे वो प्यारे
न रहते तुम बिना मेरे ,न रहती बिन मैं  तुम्हारे
बदन था छरहरा मेरा,बड़ी पतली  कमरिया थी
तुम्हारे प्यार में पागल ,मेरी बाली उमरिया थी
बसाया मैंने तुमको था ,अपने उस नन्हे से दिल में
तुम ही तुम छाये रहते थे ,मेरे सपनो की महफ़िल में
हुए बच्चे हमारे जब , लगे  रहने   मेरे  दिल  में
जगह पड़ने लगी तब कम,पड़े हम कितनी मुश्किल में
मेरे दिल में कहीं पर तुम,कहीं बच्चे बसा करते
बड़ी होती गृहस्थी में ,गुजारा बस ,यूं ही  करते
मगर कुदरत ने मुश्किल का ,निकाला हल बड़ा न्यारा
कमर पतली थी जो मेरी,उसे चौड़ा  बना डाला
उमर इतनी शरारत से ,नहीं तुम बाज आते हो
बहुत मैं हो गयी मोटी  ,मुझे कह कर चिढ़ाते हो
 कमर मेरी बनी कमरा ,मुझे तुम कोसते  रहते
खुदा का शुक्र समझो ये,नहीं तो तुम कहाँ रहते ?

घोटू
 

तीर या तुक्का

      तीर या तुक्का

जहाँ पर तीर ना चलते ,वहां पर तुक्का चलता है 
हाथ जब मिल नहीं पाते , वहां पर मुक्का चलता है
लग गयी बीड़ी और सिगरेट पर है जब से पाबंदी,
प्रेम से गुड़गुड़ाते  सब  ,आजकल हुक्का चलता  है
हो गयी भीड़ है इतनी ,यहाँ देखो,वहां देखो,
जगह अपनी बनाने को,बस धक्कमधुक्का चलता है
गए वो दिन जब लोगो में ,मोहब्बत ,दोस्ताना था ,
बचा अब रस न रिश्तो में,बड़ा ही सूख्खा चलता है
हो गयी लुप्त सी है  प्यार की स्निघ्ता 'घोटू',
इसलिए लोगों का व्यवहार, काफी लुख्खा चलता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 
  

बदलते नाम-पुराना स्वाद

      बदलते नाम-पुराना स्वाद

सिवइयां बन गयी' नूडल ',परांठे बन गए 'पीज़ा',
       समोसे आज 'पेटिस'है,और बड़ापाव 'बर्गर'है
पराठों में भरो सब्जी तो  'काठी रोल'कहलाते ,
       पकोड़े और कटलेटों में थोड़ा सा ही अंतर है
भुनाते जब थे मक्का को ,भाड़ में कहते थे धानी ,
     उसे 'पोपकोर्न'कह कर के ,प्यार से लोग खाते है
पिताजी 'डेड'है ,माता ,आजकल हो गयी 'मम्मी '
     बहन 'सिस 'और दादी को ,'ग्रांड माँ 'कह बुलाते है
बहुत सी खाने की चीजें ,जिन्हे हम खाते सदियों से,
      स्वाद से खाते है अब भी ,मगर फ्लेवर विदेशी है
किन्तु कुछ चीज ऐसी है,अभी तक भी जो देशी है,
      बदल पाये न रसगुल्ले ,जलेबी भी ,जलेबी है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'  
       

गुरुवार, 14 अगस्त 2014

आदतें

             आदतें

भले ही कितनी भी बढ़ जाये औरत की उमर लेकिन,
          शौक सजने सँवरने का ,कभी भी छूट ना पाता
भले कितना  भी बूढा ,कोई भी हो जाए बन्दर पर,
       गुलाटी मारने में उसको है हरदम  मज़ा आता
चोर चोरी से शायद बाज भी आ सकता है थोड़ा ,
        मगर वो हेराफेरी से ,कभी भी बाज ना आता ,
भले ही लाख धोवो ,रंग लेकिन काला  काजल का ,
            हमेशा  रहता काला है, कभी  उजला नहीं पाता

घोटू

स्वाद

                स्वाद

जो लज्जत ,दाल रोटी में,माँ के हाथों की होती है ,
         किसी मंहगे से मंहगे रेस्तरां में ,मिल नहीं सकती
जो ठंडक ,कुदरती ठंडी हवा के झोंकों में होती,
        लगा लो ऐ सी या कूलरवो राहत मिल नहीं सकती
भले ही लन्दन हो पेरिस हो या न्यूयार्क ही हो पर,
       सिर्फ दो चार दिन तक घूमना ही अच्छा लगता है,
शांति  आपको  जो अपने घर में आ के मिलती है ,
      फाइवस्टार होटल में ठहर कर मिल नहीं सकती

घोटू

 

बुधवार, 13 अगस्त 2014

स्वतंत्रता दिवस बनाम परतंत्रता दिवस

     स्वतंत्रता दिवस  बनाम परतंत्रता दिवस

एक स्वतंत्रता का दिन था, जब हमें मिली थी आजादी 
और एक परतंत्र दिवस था, हुई  हमारी जब   शादी
एक वो दिन था ,हम छूटे थे , अंग्रेजों के चंगुल से
एक ये दिन था ,जब कि फंसे थे,हम बीबी के चंगुल में 
एक वो दिन था ,जब अंग्रेजों ने भारत को छोड़ा था
एक ये दिन था बीबीजी ने ,जब माँ का घर छोड़ा था
एक वो दिन था ,जबकि देश को ,थी अपनी सरकार मिली
एक ये दिन जब शासन करने ,बीबी की सरकार मिली
एक आजादी को पाने को ,कितने लोग शहीद  हुए
एक ये दिन था,शौहर बन कर ,हम कुर्बान,शहीद हुए
एक दिन लालकिले पर झंडा ,फहराता ,लड्डू  बंटते
पार्टी देकर,केक काट कर ,एक दिन हम खुद है कटते

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

 

लाल किले से चाय पिलाता

             लाल किले से चाय पिलाता

भारत की अनमोल धरोहर ,चमक रहा है लाल किला ये ,
कड़क, गुलाबी ,गरम चाय सा ,आज दिखाता  है हमको
दौड़ दौड़ ,बचपन में  जिसने ,चाय पिलाई थी सब  को,
लाल किले से वो ही मोदी ,आस दिलाता है हमको
भ्रष्टाचार विहीन व्यवस्था ,के उज्जवल ,धोये कप में,
प्रगतिशील,सुखमय जीवन की ,चाय पिलाता है हमको
 स्वप्न गुलाबी ,चाय सरीखे ,अच्छे दिन की आशा में,
घूँट  घूँट  चुस्की  ले  पीना  ,सदा सुहाता है हमको  

घोटू   

मंगलवार, 12 अगस्त 2014

पति की 'वेल्यू '

         पति की 'वेल्यू '

पत्नी जब माँ बन जाती है,  पति की वेल्यू घट जाती है
कुछ पति में और कुछ बच्चों में,वो बेचारी बंट जाती है 
जब शादी होती है उसकी ,एक अधिकार पति का होता
पंख लगा कर उड़ती रहती ,इतना प्यार पति का होता
धीरे धीरे ,उसके सर पर,जब पड़ती  है  जिम्मेदारी,
तो फिर वह बंटने लगती है ,करना पड़ता है समझौता
समय न मिलता कामधाम में वो फिर इतना खट जातीहै
 पत्नी जब माँ बन जाती है ,  पति की वेल्यू  घट जाती है
 एक तरफ तो माँ की ममता ,और बच्चों का लालन पालन
और दूसरी तरफ पति का ,भी उसको रखना पड़ता   मन
बच्चों को स्कूल भेजना ,उनका होम वर्क करवाना ,
कामकाज कितने ही सारे,परिवार की सारी  उलझन
कब ,किसको,कितना टाइम दे,वो मुश्किल में पड़ जाती है
पत्नी जब माँ बन जाती है,पति की वेल्यू घट  जाती है 
पति और पत्नी के रिश्तों में ,कुछ खटास है आने लगता
जब दोनों के प्रीत प्यार पर ,हावी होने लगती  ममता
पति को मिलता प्यार अधूरा,जिस पर होता है पूरा हक़ ,
बहुत खिजाने लगती पति को,पत्नी का व्यवहार,विषमता
तो फिर छोटी छोटी बातों  ,में भी  खटपट  हो जाती  है
पत्नी बी माँ बन जाती  है, पति की  वेल्यू  घट  जाती है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

धन्यवाद

                धन्यवाद

आज अपने बुजुर्गों का ,किया है सन्मान तुमने ,
               ये तुम्हारे विचारों की,सोच की, उत्कृष्टता है
लोग करते है तिरस्कृत ,जिन्हे बीता हुआ कल, कह,
             कर रहे उनको नमन तुम,ये तुम्हारी शिष्टता है
अनुभवों का मान करके,उम्र का सन्मान करके,
              सभी अपने वरिष्ठों को ,दिया है आल्हाद तुमने    
हमेशा सब खुश रहें ,फूलें ,फलें ,हो सुखी जीवन ,
             पा लिया अपने बड़ों का ,आज आशीर्वाद तुमने
 जिस तरह ऑरेन्ज में फांकें कई,पर सब बंधी है ,
              वैसे ही बंध  प्रेम डोरी से रहें,परिवार बन हम
हमारे इस परिसर में ,सदा फैले भाईचारा,
             एकता और संगठन हो ,रहें मिलजुल,प्यार बन हम

घोटू

रविवार, 10 अगस्त 2014

इसीलिये मां लाती है हमारे लिये बहन....


मां हमसे बच्चों की तरह
लड़ - झगड़ नहीं सकती न,
गुस्सा होने पर हमारे
बाल नहीं नोच सकती न,
मस्तियां और शरारतें भी
नहीं कर सकती न,
उल्टे - पुल्टे सपने और
ऊल जुलूल बातें भी
नहीं कर सकती न,
इसीलिये लाती है
हमारे लिये बहन,
जो होती तो है 
स्नेह और ममता में
मां का ही प्रतिरूप,
पर उसका बचपना
उसकी शरारते - उसकी मस्तियां
उसका लड़ना - झगडना
उसका रूठना - उसका गुस्सा
उसकी बेसिर - पैर की बातें
बनाती हैं उसे खास,
और यही चीज देती है
भाई - बहन के रिश्ते को
एक खास एहसास,
और इस एहसास को ही
तरोताजा करने के लिये
आता है रक्षाबंधन,
जो लाता है ये संदेश कि -
रिश्ते बदलें - मौसम बदले
या बदले संसार
पर एक चीज कभी ना बदले
भाई - बहन का प्यार....

रक्षाबंधन की स्नेहिल बधाई सहित...

कितना सुख होता बंधन में

      कितना सुख होता बंधन में

 लौट नीड़ में पंछी आते ,दिन भर उड़, उन्मुक्त गगन में
                                     कितना  सुख होता बंधन में
दो तट बीच ,बंधी जब रहती ,नदिया बहती है कल कल कर
तोड़ किनारा ,जब बहती है , बन  जाती है , बाढ़   भयंकर
मर्यादा के  तटबन्धन में,  बंधा उदधि ,सीमा में रहता
भले उछल ,ऊंची लहरों में , तट की ओर भागता रहता 
रोज उगा करता पूरब में ,और पश्चिम मे ,ढल जाता है
रहता बंधा,प्रकृति नियम में,सूरज की भी मर्यादा   है
अपने अपने ,नियम बने है,हर क्रीड़ा के,क्रीडांगन  में
                                       कितना सुख होता बंधन में  
इस दुनिया में,भाई बहन का ,रिश्ता होता, कितना पावन
बहना, भाई  की  कलाई पर  ,बाँधा करती , रक्षा बंधन
कुछ बंधन ,ऐसे होते है ,सुख मिलता है ,जिनमे बंध कर
पिया प्रेम बंधन में बंधना ,सब को ही ,लगता है सुखकर
नर नारी ,गठबंधन में बंध ,जब पति पत्नी,बन जाते है
ये वो बंधन है जिसमे बंध  ,सारे  बंधन  हट  जाते  है
घिस घिस ,प्रभु मस्तक पर चढ़ती,बंधी हुई ,खुशबू चन्दन में
                                              कितना सुख होता बंधन में

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

गुरुवार, 7 अगस्त 2014

ये राजनीति है

 
            ये राजनीति है

थे दुश्मन दांतकाटे ,कोसते थे ,एक दूजे को,
वो लालू और नितीश भी बन गए है दोस्त अब फिर से,
स्वार्थ में ना किसी को, किसी से परहेज होता है ,
               गधों को और घोड़ों को,मिलाती राजनीति है
चुने जाते है करने देश की सेवा ,मगर नेता ,
 है करने लगते , सबसे पहले अपने आप की सेवा
लूट कर देश को ,अपनी तिजोरी भरते दौलत से,
                बहुत ही भ्रष्ट इंसां को ,बनाती  राजनीति है
नशा ये एक ऐसा है ,जो जब एक बार लगता है,
छुटाओ लाख पर ये छूटना ,मुश्किल बहुत होता ,
गलत और सही में अंतर,नज़र आता नहीं उनको,
               नशे में सत्ता के अँधा ,बनाती   राजनीति है
यहाँ पर रहके भी चुप ,दस बरस ,सदरे रियासत बन,
 चला सकता है कोई  देश को  ,बन कर के कठपुतली ,
  यहाँ चमचे चमकते है ,चाटुकारों की चांदी है,
                बड़े ही अच्छे अच्छों को,नचाती राजनीति है
पड़ गयी सत्ता की आदत,तो कुर्सी छूटती कब है,
रिटायर हो गए तो गवर्नर बन कर के  बैठे है,
किसी की पूछ जब घटती ,बने रहने को चर्चा में,
                  किताबें लिख के,राज़ों को,खुलाती राजनीति है  
कई उद्योगपति भी ,घुस रहे ,इस नए धंधे में ,
क्योंकि इससे न केवल ,नाम ही होता नहीं रोशन,
नए कांट्रॅक्ट मिलते,लीज पर मिलती खदाने है ,
                 कमाई के नए साधन ,दिलाती राजनीति है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

पत्थर दिल

       पत्थर दिल

कहा उनने  हमें एक दिन ,आपका दिल तो है पत्थर
कहा हमने ,ये तारीफ़ या कोई इल्जाम है हम पर
कोई पत्थर है नग  होता ,अंगूठी में जड़ा  जाता
चमकता कोई हीरे सा ,सभी के मन को है भाता
कोई पत्थर ,पुजाता है ,देवता बन  के मंदिर  में
कोई पत्थर है संगमरमर ,लगाया जाता घर घर में
कोई पत्थर है रोड़ी का,बने  कंक्रीट जो ढल कर
कोई  पत्थर ,जो फेंको तो,फोड़ देता ,किसी का सर
कोई को वृक्ष पर फेंको ,तो मीठे फल है खिलवाता 
ज़रा सी किरकिरी बन कोई , आँखों में  चुभा जाता
कोई  रस्ते में टकराता  ,लगाता  पाँव में  ठोकर
कोई मंजिल बताता है ,जब बनता मील का पत्थर
मैं पत्त्थर दिल,मगर ये तो बताओ कोन सा पत्थर
कहा उनने  'तुम हीरे हो' ,मुझे बाहों में अपनी भर

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

बीबीजी की चेतावनी

         बीबीजी की चेतावनी

मुझे तुम कहते हो बुढ़िया ,जवां तुम कौन से लगते
  तुम्हारी फूलती साँसे ,चला  जाता  नहीं    ढंग से
मैं तो अब भी ,अकेले ही ,संभाला करती सारा घर
नहीं तुम  टस से मस होते ,काम करते न  रत्ती भर
नयी हर रोज फरमाइश ,बनाओ ये , खिलाओ ये
रहूँ दिन भर मैं ही पिसती ,भला क्यों कर,बताओ ये
तुम्हारी पूरी इच्छाये ,सभी दिन रात ,मैं करती
और उस पर ये मजबूरी ,रहूँ तुमसे ,सदा डरती
तुम्हारे सब इशारों पर ,नाचने वाली , अब मैं  ना
बहुत शौक़ीन खाने के ,हो तुम पर ये ,समझ लेना
सजी पकवान की थाली ,तुम्हे चखने भी  ना  दूंगी
कहा फिर से अगर बुढ़िया ,हाथ रखने भी ना दूंगी

घोटू
 
 

एक दूजे के लिये

            एक  दूजे  के लिये

हाथ पे रख  के सर सोते,चैन की नींद आती है
दबाते  हाथ जब सर को,तो पीड़ा भाग जाती है
कभी है नाव पर गाडी ,कभी गाडी है  नाव पर ,
सहारे एक दूजे के, जिंदगी कट ही  जाती   है
जहाँ पर धूप है प्रातः ,वहीँ पर छाँव संध्या को,
धूप और छाँव का ये खेल ,सारी उम्र चलता है,
कभी चलता है बच्चा ,बाप की उंगली पकड़ कर के ,
जब होता बाप बूढा,बच्चे की ऊँगली पकड़ता है
रहो तुम मेरे दिल में और रहूँ मै दिल में तुम्हारे ,
मगर हम संग रहते ये ,मोहब्बत की निशानी है
गिरूँ मै ,तुम मुझे थामो,गिरो तुम ,मै तुम्हे थामू,
भरोसे एक दूजे के ,  उमर हमको बितानी   है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मंगलवार, 5 अगस्त 2014

आम और आम आदमी

         आम और आम आदमी

जो कच्ची केरियां होती,तो खट्टी,चटपटी होती,
उनका अचार या बनता मुरब्बा, जाम , खाते  है
और जब पकने लगती है ,तो खिलने लगती है रंगत ,
महक,मिठास आता है ,मज़ा सब ही उठाते है
सही जब तक पकी हो तो ,तभी तक स्वाद देती है,
अधिक पकने पे सड़ जाती ,लोग खा भी न पाते  है
ये किस्सा केरियों का ही नहीं,सबका ही होता है ,
आम के गुण ,हरेक आम आदमी मे पाये जाते है

घोटू 

बादल और धरती

            बादल और धरती

बड़े सांवले से ,बड़े प्यारे प्यारे
ये बादल नहीं ,ये सजन है हमारे
कराते प्रतीक्षा ,बहुत, फिर ये आते
मगर प्रेम का नीर इतना  बहाते
मेरे दग्ध दिल को ,ये देतें है ठंडक
बरसते है तब तक ,नहीं जाती मैं थक
ये  रहते है जब तक,सताते है अक्सर
कभी सिलसिला ये ,नहीं थमता दिनभर
मेरी गोद भरते ,चले जातें है फिर
भूले ही भटके,नज़र आते है फिर
शुरू होती नौ माह की इंतजारी
पिया मेरे बादल,धरा हूँ मैं प्यारी

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मैया,चल अब अपने देश

      घोटू के पद

मैया,चल अब अपने देश
रोज रोज की माथाफोड़ी ,रोज रोज का क्लेश
कल के चमचे,आज कोसते,हँसता सारा देश
बहुत हो गयी छीछालेदर ,बदल गया परिवेश
बहुत जमा अपना पैसा है, वहां  करेंगे  ऐश
माँ बोली सुन मेरे बेटे,मत खा ज्यादा तेश
मुझे पता है तेरे दिल को ,लगी बहुत है ठेस
अगर गए तो ,गलत जाएगा,लोगों में सन्देश
नहीं हाथ से जाने देंगे, पर हम  ये  कांग्रेस 
सही समय है ,शादी करले,कर थोड़े दिन ऐश
दिन बदलेंगे ,बुरे आज के,दिन न रहेंगे शेष

घोटू

रविवार, 3 अगस्त 2014

आज तुमने कुछ लिखा क्या ?

आज तुमने कुछ लिखा क्या ?

आपको हम क्या बताएं
देश को आजादी पाये
हो गए सड़सठ  बरस है
हाल पर जस के ही तस है
कुछ कमाया ,कुछ गमाया
सुधर कुछ भी नहीं पाया
मिल गया स्वराज भी है
लोग भूखे आज भी है
गाँव में या फिर गली में
देश भर की खलबली में
तुम्हे कुछ अच्छा  दिखा क्या?
आज तुमने कुछ लिखा  क्या  ?
बाढ़ है तो कहीं सूखा
अन्न सड़ता,देश भूखा
बेईमानी और करप्शन
विदेशों में देश  का  धन
कहीं रेली, कहीं धरना
रोज का लड़ना झगड़ना
बात हर एक में सियासत
साधते सब अपना मतलब
कई अरबों के घोटाले
लीडरों के काम काले
और इस सब खेल में है
कई नेता जेल में है
लुट रहा है देश का धन
हर एक सौदे में कमीशन
फिर कोई नेता बिका क्या ?
आज तुमने कुछ लिखा क्या ?
चरमराती व्यवस्थाएं
डगमगाती आस्थाए
कीमतें आसमान चढ़ती
भाव और मंहगाई  बढती
लूट और काला बाजारी
मौज करते बलात्कारी
अस्मते लुटती सड़क पर
और सोती है पुलिस पर
हर तरफ है भागादौड़ी
पिस रही जनता निगोड़ी
प्रतिस्पर्धा लिए मन में
जी रहे सब टेंशन में
लड़ रहे नेता सदन में
बदलते निज रूप क्षण में
बात पर कोई टिका क्या ?
आज तुमने कुछ लिखा क्या ?
संत योगी,योग करते
चेलियों संग भोग करते
धर्म अब बन गया धंधा
स्वार्थ में है मनुज अँधा
छा रहा आतंक सा है
आदमी हर तंग सा है
पडोसी ले रहे  पंगे
कर रहे ,घुसपेठ,दंगे
बड़ी नाजुक है अवस्था
हुई चौपट सब व्यवस्था
घट रही है  प्रगति की दर
है सभी की नज़रें हमी पर
आगे ,पीछे,दायें,बायें
आँख है सारे  गढ़ाये
चाईना क्या,अमरिका क्या ?
आज तुमने कुछ लिखा  क्या ?

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

तुम्हारी मोहब्बत

                  तुम्हारी मोहब्बत

मेरी जिंदगी की,बड़ी सबसे दौलत
तुम्हारी मोहब्बत ,तुम्हारी मोहब्बत
बिखरी है जीवन में,इतनी जो खुशियां,
तुम्हारी बदौलत ,तुम्हारी बदौलत
चहकते है पंछी,जब तुम हो चहकती  
बदलते है मौसम ,जब तुम मुस्कराती
 संगीत के स्वर,सभी  है   बिखरते ,
जब चूड़ियाँ है ,तेरी  खनखनाती
मन  डोलता जब ,छनकती है पायल,
लुभाती मेरा मन,तुम्हारी नफासत
मेरी जिंदगी की ,बड़ी सबसे दौलत ,
तुम्हारी मोहब्बत,तुम्हारी मोहब्बत
चमकती है प्यारी सी ,बिल्लोरी आँखें,
चंदा सा  चेहरा , बड़ा खूबसूरत 
 गठीला,तराशा बदन ऐसा  लगता ,
जीवित खड़ी ,संगेमरमर की मूरत
और संगेमरमर भी ,कोमल,लचीला ,
उसमे भी ,फूलों की,खूशबू,नजाकत
मेरी जिंदगी की,बड़ी सबसे दौलत ,
तुम्हारी मोहब्बत,तुम्हारी मोहब्बत
लबों में लबालब ,भरी प्रेम मदिरा ,
दहकता है यौवन,महकता बदन है 
लेती हो अंगड़ाई ,इठला के जब तुम,
नहीं होश रहते ,बहक जाता मन है
मुझे मोहती है,मुझे लूटती है ,
तुम्हारी शराफत,तुम्हारी शरारत
मेरी जिंदगी की बड़ी सबसे दौलत ,
तुम्हारी मोहब्बत,तुम्हारी मोहब्बत 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शनिवार, 2 अगस्त 2014

पत्नी-कुछ परिभाषाएं

    पत्नी-कुछ परिभाषाएं
                १
पत्नी कभी 'परफेक्ट'नहीं होती ,
उसकी रेटिंग कभी भी 'A AA 'ट्रिपल A नहीं होती
उसे हमेशा 'BB 'डबल B की  रेटिंग दी जाती है
इसीलिये वो 'बीबी 'कहलाती है
                 २
बीबी को लोग प्यार से' बेगम 'भी कहते है
क्योंकि वह जीवन को बे गम करती है
याने सारे गम हरती है ,
और जीवन में खुशियां भरती  है
                ३
जो हमेशा तनी रह कर ,
ताने सुनाती है
पतनी  कहांती है
                 ४
पत्थर पर सिन्दूर लगाने से ,
वो देवता सा पूजा जाता है
हनुमानजी को भी,सिन्दूर का ,
चोला चढ़ाया जाता है
और शादी में ,पत्नी की मांग में ,
जब सिन्दूर भरा जाता है
तबसे ही उसे पूजने का,
सिलसिला शुरू हो जाता  है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बताओ,मैं कौन हूँ?

    बताओ,मैं कौन हूँ?

गुलाबी सी रंगत और गोटा किनारी
मेरी शक्ल सबको ही लगती है प्यारी
किसी के भी हाथों में ,जब हूँ मै आता
मुझे देखता ,मुझपे ,नज़रें   गड़ाता
बड़े प्यार से मुझको सहला के ,छू कर
आगोश में अपने ,लेता  मुझे  भर
हसीं हो,जवां हो या बूढा या बच्चा
सभी को सुहाता मै लगता हूँ अच्छा
भले ही जवां हूँ,कड़क  मै करारा
नरम,लुगलुगा ,ढीला पर लगता प्यारा
कैसी भी  चाहे ,रहे  मेरी   सेहत
मगर कम न होती,कभी मेरी कीमत
गरीबों की रोजी,अमीरों की दौलत
सभी काम  होते  है  मेरी  बदौलत
कितने ही हाथों से मैं हूँ  गुजरता
और कितनो का ही हूँ मैं पेट भरता
रुकी फाइलों को ,चलाता हूँ मै  ही
दुनिया को सारी ,नचाता हूँ मै   ही
लुभाता हूँ सबको ,गुलाबी,करारा
मै  कौन हूँ, नाम क्या है हमारा ?

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शुक्रवार, 1 अगस्त 2014

Asalam Alakum

Hello Sir,
I am sorry to bother you, I am urgently in need of a trusted partner for a very confidential and vital engagement. I am in Libya and need to move out and trust a huge amount of Funds in a trusted hands for any profitable and lucrative Business. please do get back to me for proceedings if you can be of help.

I am a very closed and trusted collaborator to my Boss, Son Of Late HIS EXCELLENCY MOAMAN GADAFFI'S, Presently, my Boss is dead and before he was killed,he left with me his vital and confidential rooms .
I just break into one of the lockers and discovered a large sum of money lying in it. Thus, i wish to find a way to move out these funds and also move out of the country before it could be discovered, Now I have all the logistics well planned and mapped out to fly out the funds, I was going through visibility search of emerging nations and found out that, India is a fast growing Economy with abound business opportunities thus,

I would want you to be a partner and a representative to assist me move these funds so that you can help me invest this fund in real estates and any lucrative businesses in India. Sir, I wish to do this as fast as possible so that I can save the value of the funds because, this funds lying in black money, is more or less a dead investment. The total amount in place is about FIVE MILLION DOLLARS.sir, bear with me that it's a very confidential information i am revealing to you and this is because i want you to know the source of the money and also to understand that the money is all the product of the nation which was been embezzled as a result of the corrupt government practices.please contact me at mohammed.mustafa7@yahoo.com.

Thanks & Regards'
Mohammed Mustafa