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गुरुवार, 7 अगस्त 2014

बीबीजी की चेतावनी

         बीबीजी की चेतावनी

मुझे तुम कहते हो बुढ़िया ,जवां तुम कौन से लगते
  तुम्हारी फूलती साँसे ,चला  जाता  नहीं    ढंग से
मैं तो अब भी ,अकेले ही ,संभाला करती सारा घर
नहीं तुम  टस से मस होते ,काम करते न  रत्ती भर
नयी हर रोज फरमाइश ,बनाओ ये , खिलाओ ये
रहूँ दिन भर मैं ही पिसती ,भला क्यों कर,बताओ ये
तुम्हारी पूरी इच्छाये ,सभी दिन रात ,मैं करती
और उस पर ये मजबूरी ,रहूँ तुमसे ,सदा डरती
तुम्हारे सब इशारों पर ,नाचने वाली , अब मैं  ना
बहुत शौक़ीन खाने के ,हो तुम पर ये ,समझ लेना
सजी पकवान की थाली ,तुम्हे चखने भी  ना  दूंगी
कहा फिर से अगर बुढ़िया ,हाथ रखने भी ना दूंगी

घोटू
 
 

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