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शुक्रवार, 31 जुलाई 2020

तुम भी रिटायर हम भी रिटायर
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हुये तुम रिटायर, है हम भी रिटायर
मगरअब भी जिन्दा,दिलों में है 'फायर '

हुए साठ के और ,रिटायर हुए हम
मगर फिटऔरफाइन,जवानी है कायम
उमर बढ़ गयी पर ,नहीं तन  ढला  है
है  चुस्ती  और फुर्ती ,बुलंद होंसला है
 अधिक काबलियत ,अनुभव बढ़ा है
मगर फिर भी जीवन ,गया गड़बड़ा है
नहीं कोई करता ,हमें 'एडमायर '
हए तुम रिटायर ,है हम भी रिटायर

निठल्ले से बैठे ,समय काटते अब
बेवक़्त ही ,फालतू  बन  गए सब
कोई पोते पोती को अपने घुमाता
कोई दूध सब्जी ,सवेरे जा लाता
 किसी  ने नयी नौकरी ढूंढ़ ली  है
कदर सबकी घर में ,कम हो चली है
डटे रहते फिर भी ,नहीं है हम कायर
हुए हम रिटायर ,हो तुम भी रिटायर

कोई वक़्त काटे ,करे बागवानी
सुबह शाम गमलों में ,देता है पानी
कोई टी वी देखे ,है चैनल बदलता
मोबाईल से अपने ,रहे कोई चिपका
कोई 'सोशल सर्विस ',लगा अब है करने
धरम की किताबें ,लगा कोई पढ़ने
कोई ब्लॉग लिखता ,बना कोई शायर
हुए तुम रिटायर ,है हम भी रिटायर

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
तुम भी रिटायर हम भी रिटाय
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हुये तुम रिटायर, है हम भी रिटायर
मगरअब भी जिन्दा,दिलों में है 'फायर '

हुए साठ के और ,रिटायर हुए हम
मगर फिटऔरफाइन,जवानी है कायम
उमर बढ़ गयी पर ,नहीं तन  ढला  है
है  चुस्ती  और फुर्ती ,बुलंद होंसला है
 अधिक काबलियत ,अनुभव बढ़ा है
मगर फिर भी जीवन ,गया गड़बड़ा है
नहीं कोई करता ,हमें 'एडमायर '
हए तुम रिटायर ,है हम भी रिटायर

निठल्ले से बैठे ,समय काटते अब
बेवक़्त ही ,फालतू  बन  गए सब
कोई पोते पोती को अपने घुमाता
कोई दूध सब्जी ,सवेरे जा लाता
 किसी  ने नयी नौकरी ढूंढ़ ली  है
कदर सबकी घर में ,कम हो चली है
डटे रहते फिर भी ,नहीं है हम कायर
हुए हम रिटायर ,हो तुम भी रिटायर

कोई वक़्त काटे ,करे बागवानी
सुबह शाम गमलों में ,देता है पानी
कोई टी वी देखे ,है चैनल बदलता
मोबाईल से अपने ,रहे कोई चिपका
कोई 'सोशल सर्विस ',लगा अब है करने
धरम की किताबें ,लगा कोई पढ़ने
कोई ब्लॉग लिखता ,बना कोई शायर
हुए तुम रिटायर ,है हम भी रिटायर

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
बहन से
(राखी के अवसर पर विशेष )

एक डाल के  फल हम बहना
संग संग सीखा,सुखदुख सहना

एक साथ थे ,जब कच्चे थे
मौज मनाते  ,सब बच्चे  थे
वो दिन भी कितने अच्छे थे
एक दूजे पर ,प्यार लूटना ,
याद आता वो मिलजुल रहना
एक डाली के  फल हम बहना

ना कोई  चिन्ता , जिम्मेदारी
बचपन की  सब  बातें न्यारी
कितनी सुखकर,कितनी प्यारी
तितली सा उन्मुक्त उछलना ,
शीतल मंद पवन सा बहना
एक डाल के फल हम बहना

पके समय संग ,टूटे,बिछड़े
पाया स्वाद ,मधुर हो निखरे  
अलग अलग होकर सब बिखरे
हमने अपना काम संभाला ,
और तुम बनी ,किसी का गहना
एक डाल  के फल हम बहना

एक डोर बांधे जो माँ थी
दूजी डोर बांधती राखी
प्रेम का बंधन ,अब भी बाकी
मिलकर,सुख दुःख बांटा करना  ,
दिल की अपने , बातें कहना
एक डाल के फल हम बहना

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

गुरुवार, 30 जुलाई 2020

बुढ़ापा
एक पैराडी
गीत -बहारों ने मेरा चमन लूट कर---
फिल्म -देवर

समय ने जवानी मेरी लूट कर ,
बुढ़ापे को अंजाम क्यों दे दिया
रिटायर मुझे काम से कर दिया ,
बिठा करके आराम क्यों दे दिया

पूरी उमर मैंने मेहनत करी ,
तब जाके आयी है ये बेहतरी
मुझे काम से कर दिया है बरी ,
और वृद्ध का नाम क्यों दे दिया
समय ने जवानी मेरी लूट कर ,
बुढ़ापे को अंजाम क्यों दे दिया

अभी भी जवानी सलामत मेरी
भली चंगी रहती है सेहत मेरी
बूढा बना, कर दी फजीयत मेरी ,
मुझे ऐसा  इनाम क्यों दे दिया
समय ने जवानी मेरी लूट कर ,
बुढ़ापे का अंजाम क्यों दे दिया

अभी ज्ञान पहुंचा है मेरा चरम
समझदारी वाला हुआ आचरण
अभी दूर जीवन का अंतिम चरण
तड़फना सुबह शाम क्यों दे दिया
समय ने जवानी मेरी लूट कर ,
बुढ़ापे को अंजाम क्यों दे दिया

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
एक पाती -पोते के नाम

तरक्की करो खूब पोते मेरे ,
तुम्हे अपने दादा की आशीष है
सफलताएं चूमे तुम्हारे चरण ,
हमे तुमसे कितनी ही उम्मीद है

तुम्हारे पिताजी ने मेहनत करी ,
और पायी कितनी ही ऊंचाइयां
लहू में तुम्हारे  समाई  हुई ,
है व्यापार करने की गहराइयाँ
बढे काम इतना कि सब ये कहे ,
कि बेटा पिता से भी इक्कीस है
तरक्की करो खूब पोते मेरे ,
तुम्हे अपने दादा की आशीष है

विदेशों में तुमने पढाई करी ,
बहुत कुछ करूं मन में सपना पला
बहुत ही लगन  और उत्साह है ,
और है बुलंदी लिए हौंसला
भरपूर उपयोग हो ज्ञान का ,
हमारी तुम्हे ये ही ताकीद है
तरक्की करो खूब पोते मेरे ,
तुम्हे अपने दादा की आशीष है

आगे भले कितने बढ़ जाओ तुम ,
कभी गर्व से पर नहीं फूलना
सहकर्मियों से रहो मित्र बन
बुजुर्गों को अपने नहीं भूलना
सबसे मिलो ,प्यार करते रहो ,
परिवार की अपने तहजीब है
तरक्की करो खूब पोते मेरे ,
तुम्हे अपने दादा की आशीष है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 

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पति -परमेश्वर ?

पति है पति ,देवता मत कहो
सर पर चढ़ाते उसे मत रहो
वो अर्धांग है ,तुम हो अर्धांगिनी
जीवन में उसकी हो तुम संगिनी
वो माटी का पुतला ,तुम्हारी तरह
महत्ता नहीं दो ,उसे बे वजह
तुम्हारी तरह उसमे कमियां कई
कभी कोई सम्पूर्ण होता नहीं
करता है वो भी कई गलतियां
नहीं तुमसे बढ़ कर तुम्हारा पिया
फरक ये तुम औरत ,वो मर्द है
तुम्हारा सखा और हमदर्द है
मजबूत काठी है  ताकत अधिक
तुम्हारी बनिस्बत है हिम्मत अधिक
ईश्वर ने कोमल बनाया तुम्हे
नहीं किन्तु निर्बल ,बनाया तुम्हे
किसी क्षेत्र में उससे कम तुम नहीं
अक्सर ही उससे तुम आगे रही
जगतजननी तुम ,बात ये खास है
ममता की पूँजी है ,विश्वास है
तुम्ही लक्ष्मी ,लाती सुख ,सम्पदा
विद्या की देवी हो, तुम शारदा  
शक्ति स्वरूपा हो  दुर्गा हो तुम  
माता हो तुम ,अन्नपूर्णा हो तुम
लिये नम्रता का मगर आचरण
तुम्ही पूजती हो पति के चरण
दुआ मांगती वो सलामत रहे
जन्मो तलक उसकी संगत रहे
उसी के लिए ,मांग सिन्दूर है
माता पिता  सब  हुये  दूर है
व्रत भूखी रह करती उसके लिए
तपस्या ,समर्पण ,उसीके  लिए
बना कर रखा है उसे देवता
तुम्हे जबकि मतलब पे वो पूछता  
तुम्हारे मुताबिक जिया क्या कभी
तुम्हारे लिए व्रत ,किया  क्या कभी
तुम्हे उसकी जरूरत है जितनी रही
तुम्हारी जरूरत ,उसे कम नहीं
घरबार उसका चलाती हो तुम
पकाकर के खाना,खिलाती हो तुम
तुम्हारे ही कारण ,बना स्वर्ग घर
श्रेय हर ख़ुशी का ,तुम्हारे ही सर
तुम्ही श्रेष्ठ हो और सर्वोपरी
दिखने में सुन्दर ,लगती परी
वो ईश्वर नहीं बल्कि ईश्वर हो तुम
बराबर नहीं उससे बढ़ कर हो तुम
जिससे तुम्हारा ,जन्मभर का रिश्ता
वो इंसान ही है ,न कोई  फरिश्ता
परमेश्वर उसे तुम  बनाओ नहीं
उसे पूज कर ,सर चढ़ाओ नहीं
सुख दुःख का साथी बराबर का वो
नहीं रूप कोई है ईश्वर का वो

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

मंगलवार, 28 जुलाई 2020

फटाफट

धीरज  हमारा ,बहुत  ही गया  घट
हमें चाहिए सब ,फटाफट फटाफट

इस जेट युग ने ,सोच ही बदल दी
सभी काम हम ,चाहते जल्दी जल्दी
जल्दी मिले ,नौकरी और प्रमोशन
जल्दी से लें हम ,कमा ढेर सा धन
जरा सी भी देरी ,करे कुलबुलाहट
हमें चाहिए सब ,फटाफट फटाफट

किसी का किसी पर,अगरआया मन है
तो फिर ' ऑन  लाइन 'होता मिलन है  
चलती है हफ़्तों , तलक उनकी 'चेटिंग '
अगर सोच मिलती  ,तो होती है 'सेटिंग '
नहीं होती बरदाश्त ,कोई रुकावट  
हमें चाहिए सब ,फटाफट फटाफट

करे नौकरी वो ,कमाती हो पैसा
नहीं देखते हम ,है परिवार कैसा
करी  बात पक्की ,नहीं बेंड बाजा
न घोड़ी ,बाराती ,न दावत ,तमाशा
चटपट हो मंगनी ,शादी हो झटपट
हमें चाहिए सब ,फटाफट फटाफट

मियांऔर बीबी,जो 'वर्किंग कपल 'हो
रहे व्यस्त दोनों , तो ऐसे  गुजर  हो
थके घर पे लौटो ,तो मैग्गी बनालो
करो फोन स्विग्गी से खाना मँगालो
नहीं कोई चाहे ,पकाने का झंझट
हमे चाहिए सब ,फटाफट फटाफट

समय के मुताबिक ,जो होता सही है
कुदरत के नियम ,बदलते नहीं है
समय बीज को वृक्ष ,बनने में लगता
नियम के मुताबिक ,है मौसम बदलता
बदल तुम न सकते ,करो कितनी खटपट
हमें चाहिए सब ,फटाफट फटाफट

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

सोमवार, 27 जुलाई 2020

बदले बदले पिया

नाटक किये मैं ,पड़ी नींद में थी ,
जगायेंगे मुझको ,इस उम्मीद में थी
मगर उनने छेड़ा न मुझको जगाया
न आवाज ही दी न मुझको उठाया
गये लेट चुपके ,दिखाकर नाराजी
बदल से गये है ,हमारे पियाजी

गया वो जमाना ,जब हम रूठ जाते
वो करते थे मन्नत ,हमें थे  मनाते
करते थे ना ना ,उन्हें हम सताते
बड़ी मौज मस्ती से कटती थी रातें
मगर अब न चलता वो नाटक पुराना
गया रूठना और गया वो मनाना
ऐसी गयी है पलट सारी  बाजी
बदल से गए है हमारे पियाजी

भले ही हमारा बदन ढल गया है
पहले सा जलवा ,नहीं अब रहा है
तो वो भी तो अब ना उतने जवां है
मगर ना रहे अब ,वो मेहरबां  है
रहते हमेशा ,थके सुस्त से वो
है तंदरुस्त लेकिन नहीं चुस्त से वो
भले उन पे मरता ,हमारा जिया जी
बदल अब गए है ,हमारे पियाजी

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
अदिति अविनाश विवाह

है कोमल कमल सा अविनाश दूल्हा ,
दुल्हन अदिति है नाजुक सी प्यारी
बड़े भोले भाले है समधी हमारे ,
बड़ी प्यारी प्यारी है समधन हमारी
खुशकिस्मती से ही मिलती है ऐसी ,
मुबारक हो सबको ,नयी रिश्तेदारी
बन्ना और बनी की ,बनी दोस्ती ये
रहे बन हमेशा ,दुआ है हमारी

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
पेरोडी -
(बहारों ने मेरा चमन लूट कर ---)
फिल्म -देवर

कोरोना ने मेरा अमन लूट कर,
मुसीबत को अंजाम क्यों दे दिया
मेहरी की छुट्टी करा कर मुझे ,
घरभर का सब काम क्यों दे दिया
कोरोना ने मेरा अमन  लूट कर ---

सुबह नाश्ता ,लंच और फिर डिनर ,
पकाओ और  बरतन भी मांजो खुदी
पकाओ और बरतन  भी मांजो खुदी
झाड़ू  लगाओ और पोंछा करो ,
सफाई सुबह शाम क्यों दे दिया
कोरोना ने मेरा अमन  लूट कर ----

इतना बिजी काम में हो गयी ,
मुझे सजने धजने की फुरसत नहीं
मुझे सजने धजने की फुरसत नहीं ,
दिन भर पतिदेव घर पर रहें ,
मोहब्बत का ईनाम क्यों दे दिया
कोरोना ने मेरा अमन लूट कर ----

बना कर रखो सबसे तुम दूरियां
हुई बन्द किट्टी और गपशप गयी
हुई बन्द किट्टी और गपशप गयी ,
परेशानियां ही परेशानियां ,
जीवन में तूफ़ान क्यों दे दिया
कोरोना ने मेरा अमन  लूट कर ---

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
लड़ाई और मोहब्बत

जहाँ प्यार होता ,है झगड़ा जरूरी
लड़ाई बिना है , मोहब्बत  अधूरी
तुमने न झेली  , अगर दूरियां तो ,
नजदीकियों  का ,मज़ा ही न आता
ये शिकवा शिकायत,ये मान और मनोवल ,
ये लड़ना लड़ाना ,मोहब्बत बढ़ाता

किसी से किसी की ,नज़र जब है लड़ती
तभी तो मोहब्बत , है परवान चढ़ती
लड़ाई मोहब्बत का रिश्ता  निराला ,
हमें भी सुहाता ,उन्हें भी सुहाता
ये शिकवा शिकायत ,ये मान और मनोवल ,
ये लड़ना लड़ाना ,मोहब्बत बढ़ाता

किसी से अगर हम ,मोहब्बत दिखाते
तो ये कहते  है हम ,  लाड है  लड़ाते
बड़ी ही सुहानी ,ये होती लड़ाई ,
दूना मिलन का ,मज़ा  फिर है आता
ये शिकवा शिकायत ,ये मान और मनोवल ,
ये लड़ना लड़ाना ,मोहब्बत बढ़ाता

नहीं रूठना हो ,नहीं हो मनाना
सफर जिंदगी का लगे ना सुहाना
ये कुट्टी और बट्टी ,बड़ी मीठी खट्टी ,
कोई भाव देता ,कोई भाव खाता
ये शिकवा शिकायत ,ये मान और मनोवल ,
ये लड़ना लड़ाना ,मोहब्बत बढ़ाता

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

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शनिवार, 25 जुलाई 2020

पुरानी  बातें

क्या आपने ऐसा मस्ती भरा बचपन जिया है
नमक मिर्च लगा कर ठंडी रोटी खायी है
और हाथों की ओक से पानी पिया है
बरसात में ,कागज की नाव को ,
पानी में तेरा कर,उसके पीछे दौड़े है
पेड़ों पर चढ़ कर ,कच्ची इमलियाँ ,
या पके हुए जामुन तोड़े है
क्या आपने कच्चे आम या शरीफे ,
तोड़ कर पाल में पकाये है
खेतों से चुरा कर ,गन्ने चूस कर खाये है
कंचे खेले है ,लट्टू घुमाये है
 गिल्ली डंडे खेल के मजे उठाये है  
मैदानों में या छत पर ,
पतंगों के पेंच लड़ाने का मज़ा लिया है
क्या आपने कभी ऐसा मस्ती भरा जीवन जिया है

क्या आपने एक या दो  पैसे में ,
पानी की रंगीन कुल्फी खायी है
क्या चूरनवाले ने ,आपकी चूर्ण की पुड़िया पर ,
एक तीली से छूकर ,आग लगाई है
क्या आपने सिनेमा देखने के बाद ,
बाहर निकलते समय ,एक आने में ,
फिल्म के गानों  की किताब खरीदी है
क्या कभी अपने किसी रिश्तेदार से ,
जाते समय एक रूपये का नोट पाने पर ,
आपने गर्व से महसूस की रईसी है
क्या आपको पता है कि केरोसिन को ,
मिट्टी का तेल क्यों कहते है जब कि ,
मिट्टी से कभी भी तेल निकल नहीं पाता
क्या आप जानते है कि माचिस को दियासलाई
और उससे पहले 'आगपेटी 'था कहा जाता
क्या आप उँगलियों के बीच पेन्सिल दबा कर ,
मास्टरजी के हाथों मार खाये है
या शैतानी करने पर ,क्लास में मुर्गे बन कर ,
या पिछली बेंच पर खड़े हो ,ढीठ से मुस्काये है
क्या आपने गाय के थनो से,
 निकलती हुई धार का उष्म दूध पिया है
क्या कभी आपने ,ऐसा मस्ती भरा बचपन जिया है

मदन मोहन बाहेती'घोटू '
वो भी क्या जमाना था

जब तुम्हारे लाल लाल होठों की तरह
लगे रहते थे लाल पोस्ट बॉक्स हर जगह
जो लोगों को प्रेम के संदेशे पहुंचाते थे
और तुम्हारी काली काली जुल्फों की तरह ,
कालेचोगे वाले टेलीफोन,घरों की शोभा बढ़ाते थे
अब तुम्हारे होठों की लाली की तरह ,
वो लाल पोस्टबॉक्स ,भी लुप्त हो गए है
और जैसे तुम्हारी जुल्फें भी काली न रही ,
वैसे ही वो काले टेलीफोन ,सुप्त हो गए है

वो भी क्या जमाना था
जब आदमी की जेब में अगर
ख़जूर छाप, सौ का एक नोट आजाता था
तो आदमी गर्व से ऐंठ जाता था
और ख़जूर छाप ,डालडा वनस्पति से ,
बने हुए खाने को खाकर ,
आदमी का गला बैठ जाता था
 ३  
वो भी क्या जमाना था ,
जब बिटको या बंदर छाप काले दन्त मंजन से ,
घिस कर लोग दांत सफ़ेद करते थे
और मिट्टी से ,हाथ मैले नहीं होते ,धुला करते थे

वो भी क्या जमाना था
जब वास्तव में पैसा चलता था
गोल गोल ताम्बे का एक पैसे का सिक्का ,
लुढ़काने पर ,आगे बढ़ता था

वो भी क्या जमाना था
जब न फ्रिज होते थे न वाटरकूलर
पतली सी गरदन मटकाती,मीठी की सुराही ,
पिलाती थी शीतल जल

वो भी क्या जमाना था
जब न ऐ,सी,थे न डेजर्ट कूलर होते थे
खस की टट्टी पर पानी छिड़क ,
गर्मी की दोपहरी में घर ठन्डे होते थे    
और रात को सब लोग ,
खुली हवा में छत पर सोते थे

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

शुक्रवार, 24 जुलाई 2020

प्यार का कबूलनामा

तुम्हे प्यार करते है ,करते रहेंगे ,बुढ़ापे में हम
हमारी मोहब्बत न कम कर सकेगा ,उम्र का सितम

जवानी का जज्बा ,अभी भी है जिन्दा
उड़ाने है भरता ,ये दिल का परिंदा
चुहलबाजियां वो ,वही चुलबुलापन
उमर बढ़ गयी पर ,अभी भी है कायम
तुम्हे अपने दिल में,बसा कर रखेंगे जब तक है दम
तुम्हे प्यार करते हैं ,करते रहेंगे ,बुढ़ापे में हम

हुए बाल उजले ,दिल भी है उजला
था पहले भी पगला ये अब भी है पगला
तुम्हारी भी आँखों में ,उल्फत वही है
हमारे दिलों में मोहब्बत वही है
दिलोजान में तुम ,समाये हुए हो ,हमारे सनम
तुम्हे प्यार करते है ,करते रहेंगे ,बुढ़ापे में हम

वही हुस्न तुममे ,नज़र देखती है
मोहब्बत कभी ना ,उमर देखती है
तुम्हे छू के अब भी ,सिहरता बदन है
धधकती हृदय में ,मोहब्बत अगन है
हम मरते दम तक ,निभाएंगे उल्फत ,तुम्हारी कसम
तुम्हे प्यार करते है ,करते रहेंगे , बुढ़ापे में हम

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
छेड़खानी

जवानी में मुझको ,बहुत तुमने छेड़ा ,
बुढ़ापे में छोड़ी  ना  आदत पुरानी
अब भी तुम्हे जब भी मिलता है मौका ,
नहीं बाज आते ,किये छेड़खानी

न अब तुम जवां हो ,न अब हम जवां है
शरारत का अब वो ,मज़ा ही कहाँ है
तुम्हारा सताना ,वो मेरा लजाना
मगर अब भी पहले सा कायम रहा है
हमारी उमर में ,नहीं शोभा देता ,
वही चुलबुलापन और हरकत पुरानी
जवानी में मुझको ,बहुत तुमने छेड़ा ,
बुढ़ापे में छोड़ी ना आदत पुरानी

ये सच है कि ज्यों ज्यों ,बढ़ी ये उमर है
त्यों त्यों मोहब्बत ,गयी उतनी बढ़ है
जवां अब भी दिल ,प्यार से है लबालब ,
भले ही बदन पर ,उमर का असर है
तुम्हारे लिए दिल ,अब भी है पागल ,
दीवाने हो तुम ,प्यार की मैं  दिवानी
जवानी में मुझको ,बहुत छेड़ते थे ,
बुढ़ापे  छोड़ी ना ,वो आदत पुरानी

जबसे मिले हो ,ये हमने है जाना
तुम्हारा मिज़ाज है ,बड़ा आशिकाना
दिनोदिन मोहब्बत की दौलत बढ़ी है ,
भले घट गया रूप का ये खजाना
पर अंदाज शाही ,वही प्यार का है ,
मोहब्बत की दुनिया के हम राजा रानी
जवानी में हमको ,बहुत तुमने छेड़ा ,
बुढ़ापे में छोड़ी ना आदत पुरानी

शरारत में अब भी ,बड़े हो धुरंधर
गुलाटी न भूला ,भले बूढा बंदर
ये छेड़खानी ,सुहाती है ,होती ,
एक गुदगुदी सी ,मेरे दिल के अंदर
तुम्हारी हंसी और ठिठौली के कारण ,
अभी तक सलामत ,हमारी जवानी
जवानी में हमको ,बहुत छेड़ते थे ,
बुढ़ापे में छोड़ी  ना ,आदत पुरानी

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
बुढ़ापे में बदलाव की जरूरत

अब तो तुम हो गए रिटायर ,उमर साठ के पार हो गयी
जीवन की पद्धिति बदलने की तुमको दरकार हो गयी

अब तक बहुत निभाए तुमने ,वो रिश्ते अब तोड़ न पाते
परिस्तिथि ,माहौल देख कर ,जीवन का रुख मोड़ न पाते
वानप्रस्थ की उमर आ गयी ,मगर गृहस्थी में उलझे हो ,
छोड़ दिया तुमको कंबल ने ,तुम कंबल को छोड़ न पाते

ये तुमने खुद देखा होगा ,कि ज्यों ज्यों बढ़ रही उमर है
नहीं पूछता तुमको कोई ,तुम्हारी घट रही कदर  है
अब तुम चरण छुवाने की बस ,मूरत मात्र रह गए बन कर ,
त्योहारों और उत्सव में ही ,होता तुम्हारा आदर है

त्याग तपस्या तुमने इतनी ,की थी सब बेकार हो गयी
जीवन की पद्धिति बदलने ,की तुमको दरकार हो गयी

शुरू शुरू में निश्चित बच्चों का बदला व्यवहार खलेगा
अपनों से दुःख पीड़ा पाकर ,हृदय तुम्हारा बहुत जलेगा
ये मत भूलो ,उनमे ,तुममे ,एक पीढ़ी वाला अंतर है ,
तुमको सोच बदलना होगा सोच पुराना नहीं चलेगा

इसीलिये उनके कामों में ,नहीं करो तुम दखलंदाजी
बात बात पर नहीं दिखाओ ,अपना गुस्सा और नाराजी
वो जैसे जियें जीने दो ,और तुम अपने ढंग से जियो ,
सबसे अच्छा यही तरीका ,तुम भी राजी ,वो भी राजी

खुल कर जीने की जरूरत अब,खुद अपने अनुसार होगयी
जीवन की पद्धिति बदलने ,की तुमको दरकार हो गयी

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

गुरुवार, 23 जुलाई 2020

Fwd:



---------- Forwarded message ---------
From: madan mohan Baheti <baheti.mm@gmail.com>
Date: Thu, Jul 23, 2020 at 7:33 AM
Subject:
To: <bahetitarabaheti@gmail.com>


किस्सा एक कविता का जो
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 एक मधुर पेरोडी में बदल गयी
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मैंने एक व्यंग कविता लिखी 'बड़े आदमी '
ये कविता जब मैंने अपने मित्र प्रसिद्ध
गायक श्री अनिल जाजू को सुनाई तो
उन्होंने कहा कि यह एक प्रसिद्ध फिल्म
'पूरब और  पश्चिम ' 'के लोकप्रिय गीत की पेरोडी
बन सकता है ,तो फिर उनके साथ बैठ कर
काट छांट और जोड़तोड़ कर उसे एक मधुर
गीत का रूप दिया गया जो श्री अनिल जाजू के
मधुर स्वरों में रिकॉर्ड हुआ ,आपके मनोरंजन
के लिए कविता अपने मूल रूप में प्रस्तुत है
और वह मधुर  गीत भी प्रस्तुत है कृपया अपनी
प्रतिक्रिया अवश्य दें धन्यवाद
कविता -बड़े आदमी
बड़ा आदमी

अगर ठीक से भूख लगती नहीं
लूखी सी रोटी भी पचती  नहीं
समोसे,पकोडे ,अगर तुमने छोड़े ,
तली चीज से हो गयी दुश्मनी हो
न दावत कोई ना मिठाई कोई
जलेबी भी तुमने न खाई कोई
कोई कुछ परोसे, तो मन को मसोसे ,
खाने में करते तुम आनाकनी हो
तो लगता है ऐसा कमा कर के पैसा ,
अब बन गए तुम बड़े आदमी हो

अगर चाय काली ,सुहाने लगे
नमक भी अगर कम हो खाने लगे
जो चाहता दिल ,त्यों जीने के खातिर ,
अगर वक़्त की आपको जो कमी हो
नहीं ठीक से तुम अगर सो सको
जरासी भी मेहनत करो तो थको
लिए बोझ दिल पर ,चलो ट्रेडमिल पर
दवाओं के संग दोस्ती जो जमी हो
तो लगता है ऐसा ,कमा कर के पैसा ,
अब बन गए तुम ,बड़े आदमी हो

रहो काम में जो फंसे इस कदर
घरवालों खातिर समय ना अगर ,
जाते हो हंसने,जो लाफिंग क्लब में
मुस्कान संग हो गयी अनबनी हो
मोबाईल हाथों से छूटे नहीं
मज़ा जिंदगी का जो लुटे नहीं
सपने तुम्हारे ,हुए पूर्ण सारे ,
मगरऔर की भूख अब भी बनी हो
तो लगता है ऐसा ,कमा कर के पैसा ,
अब बन गए तुम बड़े आदमी हो

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

अब सुनिये इस कविता से जन्मा वह
मधुर गीत श्री अनिल जाजू के स्वरों में 

सोमवार, 20 जुलाई 2020

पिटना और पटना

मैं कोरी बात नहीं करता ,ते बात है पूरे अनुभव की
पिटते रहना ,पट के रहना ,बस यही प्रकृति है मानव की

बचपन की बात याद हमको ,जब हम करते थे शैतानी
पापाजी  बहुत पीटते थे ,थी पड़ती मार हमें  खानी
स्कूल में यार दोस्तों संग , चलती रहती थी मार पीट
जब होम वर्क ना कर लाते ,मास्टर जी देते हमे पीट
बस चलता रहा सिलसिला ये ,पिटते पिटते हो गए ढीठ
गिरते पिटते कॉलेज पहुंचे ,हमने न दिखाई मगर पीठ
अच्छे नंबर से पास हुए ,ये बात बहुत थी गौरव की
पिटते रहना ,पट के रहना बस यही प्रकृति है मानव की

फिर बीते दिन पिटने वाले,हम पर चढ़ रही जवानी थी
एक दौर सुहाना जीवन का ,ये उमर बड़ी मस्तानी थी
कैसे भी उठापटक कर के ,एक लड़की हमे पटानी थी
और सामदंड से झपट लपट ,पटरी उस संग बैठानी थी
ये काम कठिन,झटपट न हुआ ,पर धीरे धीरे निपट गया
जब पट के कोई हृदयपट को, मेरे  दिल सेआ लिपट गया
मन की वीणा ने झंकृत हो ,एक नयी रागिनी ,अनुभव की
पिटते रहना ,पट के रहना ,बस यही प्रकृति है मानव की

फिर कर्मक्षेत्र में जब उतरे ,मुश्किल से माथा पीट लिया
पाने को अच्छा जॉब कोई ,कितनो से ही कॉम्पीट किया
 फिट होना है जो सही जगह,आवश्यक है तुम रहो फिट
खुद पिटो या पीटो औरों को ,सिलसिला यही होता रिपीट
 घर में बीबी से रहो पटे ,साहब ऑफिस में रखो पटा
तो कभी न तुम पिट पाओगे ,मन में रट लो ये बात सदा
इस राह शीध्र सम्भव होगा ,सीढ़ी पर चढ़ना वैभव की
पिटते रहना पट के रहना ,बस यही प्रकृति है मानव की

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

शनिवार, 18 जुलाई 2020

उल्लू का पट्ठा

जब खरी खरी बातें करता ,लोगों को लगता खट्टा हूँ
इस मिक्सी वाले युग में भी ,मैं पत्थर का सिलबट्टा हूँ
दुनिया ये मुझको कहती है ,मैं तो उल्लू का पट्ठा हूँ

इस ऐसी कूलर के युग में ,हाथों वाला पंखा झलता
लोगो के हाथों लेपटॉप ,मैं तख्ती ,स्लेट लिए चलता
बीएमडब्लू में चले लोग ,मैं हूँ घसीटता बाइसिकल
साथ समय के चलने की ,मुझमे रत्तीभर नहीं अकल
सिद्धांतों की रक्षा खातिर ,मैं करता लट्ठमलट्ठा  हूँ
दुनिया ये मुझको कहती है ,मैं तो उल्लू का पट्ठा हूँ

ना फ्रिज में रखी हुई बोतल,मैं मटकी का ठंडा पानी
बस लीक पुरानी पीट रहा ,मैं हूँ इस युग में बेमानी
मेरा एकल परिवार नहीं संयुक्त परिवार चलाता हूँ
मैं गैस न, मिट्टी के चूल्हे पर भोजन नित्य बनाता हूँ
स्वादिष्ट ,फ़ायदेबंद ,गुणी ,मैं ताज़ा ताज़ा मठ्ठा हूँ
दुनिया ये मुझको कहती है ,मैं तो उल्लू का पट्ठा हूँ

देखो दुनिया कितनी बदली ,इंसान चाँद तक पहुँच गया
मैं साथ वक़्त के नहीं चला ,और दकियानूसी वही रहा
ग्रह शांति हेतु पहना करता ,दो चार अंगूठी, रत्न जड़ा
बिल्ली यदि काट जाय रास्ता ,मैं हो जाता हूँ वहीँ खड़ा
नीबू मिरची लटका कर घर ,मैं बुरी नज़र से बचता हूँ
दुनिया ये मुझको कहती है ,मैं तो उल्लू का पट्ठा हूँ

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
बड़ा आदमी

अगर ठीक से भूख लगती नहीं
लूखी सी रोटी भी पचती  नहीं
समोसे,पकोडे ,अगर तुमने छोड़े ,
तली चीज से हो गयी दुश्मनी हो
न दावत कोई ना मिठाई कोई
जलेबी भी तुमने न खाई कोई
कोई कुछ परोसे, तो मन को मसोसे ,
खाने में करते तुम आनाकनी हो
तो लगता है ऐसा कमा कर के पैसा ,
अब बन गए तुम बड़े आदमी हो

अगर चाय काली ,सुहाने लगे
नमक भी अगर कम हो खाने लगे
जो चाहता दिल ,त्यों जीने के खातिर ,
अगर वक़्त की आपको जो कमी हो
नहीं ठीक से तुम अगर सो सको
जरासी भी मेहनत करो तो थको
लिए बोझ दिल पर ,चलो ट्रेडमिल पर
दवाओं के संग दोस्ती जो जमी हो
तो लगता है ऐसा ,कमा कर के पैसा ,
अब बन गए तुम ,बड़े आदमी हो

रहो काम में जो फंसे इस कदर
घरवालों खातिर समय ना अगर ,
जाते हो हंसने,जो लाफिंग क्लब में
मुस्कान संग हो गयी अनबनी हो
मोबाईल हाथों से छूटे नहीं
मज़ा जिंदगी का जो लुटे नहीं
सपने तुम्हारे ,हुए पूर्ण सारे ,
मगरऔर की भूख अब भी बनी हो
तो लगता है ऐसा ,कमा कर के पैसा ,
अब बन गए तुम बड़े आदमी हो

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 

शुक्रवार, 17 जुलाई 2020

मैं सीनियर सिटिज़न हूँ

अनुभव से भरा मैं ,समृद्ध जन हूँ
लोग कहते सीनियर मैं सिटिज़न हूँ

नौकरी से हो गया हूँ अब रिटायर
इसलिये रहता हूँ बैठा आजकल घर
बुढ़ापे का हुआ ये अंजाम अब है
निकम्मा हूँ ,काम ना आराम अब है
कभी जिनके काम आता रोज था मैं
बन गया हूँ ,अब उन्ही पर बोझ सा मैं
सभी का व्यवहार बदला इस तरह है
नहीं मेरे वास्ते दिल में जगह है
समझ कर मुझको पुराना और कबाड़ा
सभी मुझ पर रौब अब करते है झाड़ा
और करते रहते है 'निगलेक्ट 'मुझको
बुढ़ापे ने कर दिया 'रिजेक्ट' मुझको
काम का अब ना रहा हो गया कूड़ा
हंसी मेरी उड़ाते सब ,समझ बूढा
था कभी बढ़िया अब हो घटिया गया हूँ
लोग कहते है कि मैं सठिया गया हूँ
रोग की प्रतिरोध क्षमता घट गयी है
बिमारी जल्दी पकड़ने लग गयी है
हो गया कमजोर सा है हाल मेरा
कर लिया बीमारियों ने है बसेरा
मगर उनसे लड़ रहा करके जतन हूँ
लोग कहते ,सीनियर मैं सिटिज़न हूँ

बीते दिन की याद कर होता प्रफुल्लित
भूल ना पाता सुनहरे दिन वो किंचित
उन दिनों जब कॅरियर की 'पीक' पर था
कद्र थी ,सबके लिए मैं ठीक पर था
मेहनत ,मैंने बहुत जी तोड़ की थी
सम्पदा ,बच्चों के खातिर जोड़ ली थी
 ऐश जिस पर कर रहे सब ,मज़ा लेते
मगर तनहाई  की मुझको सज़ा देते
हो गए नाजुक बहुत जज्बात है अब
लगी चुभने ,छोटी छोटी बात है अब
किन्तु अब भी लोग कुछ सन्मान करते
पैर छूते ,अनुभव का मान करते
आज भी दिल में है मेरे प्रति इज्जत  
ख्याल रखते ,पूर्ण कर मेरी जरूरत
समझते परिवार का है मुझे नेता
प्यार से मैं  उन्हें आशीर्वाद देता
वृद्ध हूँ ,समृद्ध हूँ और शिष्ट हूँ मैं
देश का एक नागरिक वरिष्ठ हूँ मैं
भले ही ये तन पुराना ,ढल चला है
मगर कायम ,अब भी मुझमे हौंसला है
सत्य है ये उमर का  अंतिम चरण हूँ
 लोग कहते सीनियर मैं सिटिज़न हूँ

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
बुढ़ापे का रेस्टरां

रेस्ट करने की जगह ये ,बुढ़ापे का रेस्टरां है
ट्राय करके देखिएगा ,बहुत कुछ मिलता यहाँ है

है बड़ा एन्टिक सा लुक ,पुरानी कुर्सी और मेजें
पुरानी यादों के जैसी ,भव्यता अपनी सहेजे
हल्की हल्की रौशनी का ,है बड़ा आलम निराला
पुरानी कुछ लालटेनों, से यहाँ होता उजाला
आप मीनू कार्ड पर भी ,नज़र डालें ,अगर थोड़ी
बुढ़ापे के हाल खस्ता सी यहाँ खस्ता कचौड़ी
चटपटा यदि चाहते कुछ ,मान करके राय देखो
खट्टे मीठे ,अनुभवों की ,चाट करके ट्राय  देखो
बुढ़ापे की जिंदगी सी ,खोखली पानीपुरी  है
अच्छे दिन की आस के स्वादिष्ट पानी से भरी है
दाल से पिस ,तेल में तल ,हुये मुश्किल से बड़े है
मोह माया के दही में ,ठीक से लिपटे पड़े है
दही के ये बड़े काफी स्वाद ,चटनी बहुत प्यारी
जलेबी भी है ,जरा ठंडी ,मगर अब तक करारी
न तो खुशबू गुलाबों की ,स्वाद भी ना जामुनों का
नाम पर गुलाबजामुन ,आप खा जाएंगे धोखा
देखा ये  अक्सर नहीं गुण ,नाम के अनुसार होता
वरिष्ठों से शिष्टता का ,ज्यों नहीं व्यवहार होता
चाय स्पेशल हमारी ,गरम ,कुल्हड़ में मिलेगी
सौंधा सौंधा स्वाद देगी ,ताजगी तुममें भरेगी
देर तक बैठे रहो और मज़ा लो हर आइटम का
वक़्त भी कट जाएगा और बोझ घट जाएगा मन का
जवानी में यहाँ मिलता ,उम्र भर का तजुर्बा है
रेस्ट करने की जगह यह ,बुढ़ापे का रेस्टरां है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
शरारत

इस तरह क्यों देखती हो ,शरारत से नज़र गाड़े
बड़ी लापरवाही से ,थोड़ा बदन ,अपना उघाड़े
ये तुम्हारी मुस्कराहट ,प्यार की दे रही आहट
हो रही मेरे हृदय में ,एक अजब सी सुगबुगाहट
समझ में आता नहीं ये ,क्या इशारा कह रहा है
क्या तुम्हारी बंदिशों का ,किला थोड़ा ढह रहा है
क्या ये कहना चाहती हो ,तुम्हे मुझसे महोब्बत है
या कि फिर ये कोई सोची और समझी शरारत है
छेड़ना मासूम भोले नवेलों को और सताना
क्या तुम्हारा शगल है ये ,मज़ा तंग करके उठाना
क्या यूं ही बस मन किया है ,करने हरकत चुलबुली कुछ
या की फिर मन में तुम्हारे ,हो रही है  खलबली कुछ
या गुलाबी देख मौसम ,ना रहा मन पर नियंत्रण
इसलिए तुम देख ऐसे , दे रही मुझको  निमंत्रण
ऐसा लगता है तुम्हारे ,इरादे कुछ नेक ना है
कितना और आगे  बढ़ोगी ,अब यही बस देखना है
सच बताओ बात क्या है ,चल रहा है क्या हृदय में
क्योंकि नन्हा दिल हमारा ,बड़ा आशंकित है भय में
लगा उठने ,प्यार का है ज्वार मन के समंदर में
हक़ीक़त क्या ,जानने को ,हो रहा हूँ ,बेसबर मैं
अगर ये सब शरारत है ,प्रीत यदि सच्ची नहीं है
ऐसे तड़फाना किसी को ,बात ये  अच्छी नहीं है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
तरसाते बादल

अम्बर में छाये है ,बादल के दल के दल
पता नहीं क्या कारण ,बरस नहीं पाते पर
चुगलखोर हवाओं से ,क्या लगता इनको डर
मज़ा ले रहे है या  बस तरसा  तरसा कर
तड़ित सी आँख मार ,घुमड़ करे छेड़छाड़ ,
लगता ये आवारा , निकले  है  तफरी पर
या पृथ्वी हलचल पर ,रखने को खास नज़र ,
अम्बर ने भेजा है ,अपना ये गश्ती दल
या कि थक गया सूरज ,ग्रीष्म में तप तप कर
 ओढ़ कर सोया है ,बादल की यह चादर
या फिर ये वृद्ध हुए ,घुमड़ते तो रहते है ,
क्षीण हुये है  जल से ,बरस नहीं  पाते पर
या कि परीक्षा लेते ,धरती के धीरज की ,
विरह पीड़ में तड़फा ,उसे कर रहे पागल
अम्बर में छाये है ,बादल के दल के दल

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

गुरुवार, 16 जुलाई 2020

【SEAnews】 Review:The baptism of the Holy Spirit (Aramaic roots VII) -e

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Review:The baptism of the Holy Spirit (Aramaic roots VII)

 Jesus said, "Perhaps people think that I have come to impose peace upon the world. They donot know that I have come to impose conflicts upon the earth: fire, sword, war. For there will be five in a house: There will be three against two and two against three, father against son and son against father and they will stand alone." (Thomas 16)
According to Mr. Sasagu Arai, author of the Japanese version of The Gospel of Thomas, the verse sixteen of the Gospel of Thomas is almost in line with parallel articles in the Gospel of Matthew (10: 34-36) and the Gospel of Luke (12: 51-53), except for the last phrase. But the verse sixteen of the Gospel of Thomas does not describe the split between women (daughter and mother, wife and mother-in-law). Because the whole theme of the Gospel of Thomas is the independence of child (son = male) from father on earth (Thomas 23/49), and a woman must become a man to enter heaven. And the last sentence of the verse is certainly an addition by Thomas. Q source describes the split that takes place in a family by believing in Jesus and following Him, while, in the Gospel of Thomas, beyond that, the split, as the process in which "a child" becomes "One" especially from "father" together with Jesus, is emphasized. As confirming in the verse 4, becoming 'One' or 'Single one,' for Thomas, means 'recovering the original integration in himself.'
'Three-One mysterious substance' and the statue of Maitreya

By the way, in the sphere of influence of the Eastern Church, there are many portraits of Jesus in a pose in which a ring is made with the ring finger and the thumb of his right hand, and the remaining three fingers are raised. This kind of portrait cannot be found in the sphere of influence of the Western Christian Church. These portraits are probably icons that symbolizes the doctrine of the Eastern Church's 'Three-One mysterious substance (三一妙身).'
The words, "For there will be five in a house: There will be three against two and two against three, father against son and son against father," in the verse sixteen of 'The Gospel of Thomas' may also have something to do with these icons.
Regarding 'Three-One mysterious substance,' at the beginning of its inscription, Daqin Jingjiao Popular Chinese Monument (大秦景教流行中国碑: Nestorian Stele) says, "Lo the unchangeably true and invisible, who existed through all eternity without origin; the far-seeing perfect intelligence, whose mysterious existence is everlasting; operating on primordial substance he created the universe, being more excellent than all holy intelligences, inasmuch as he is the source of all that is honorable. This is our eternal true lord Allah (阿羅訶歟), Three-One mysterious substance. He appointed the cross as the means for determining the four cardinal points, he moved the original spirit, and produced the two principles of nature;" and describes 'Three-One mysterious substance (三一妙身)' as the substance of Allah (Yahweh). In other words, the guardian deity of Jingjiaotu (景教徒: Believers of Luminous Religion) was Allah, and the Muslims are also considered to have followed it.
Then what is 'three'? In light of the 'Trinity' doctrine in the Western Church, the general interpretation is to say "God" as Father, "Jesus" as the Son, and "the Holy Spirit." While, Laozi (老子), a Chinese thinker in Spring and Autumn period (BC770-BC500), wrote in his book, 'Tao Te Ching (道徳経)' that "everything consists of 'yin (陰)' and 'yang (陽),' but 'the way of humanity' is neither 'yin' nor 'yang.' It is 'qi ([?]),' and 'qi' is the chaos, which is not yet divided into 'yin' and 'yang' like the primordial universe." It is reminiscent of 'recovering the original integration in oneself' taught by 'Gospel of Thomas' and the doctrine of 'Three-One mysterious substance' described on the Nestoriam Stele. By the way, the pronunciations of "[?]" and "気" in Chinese are the same, and they have almost the same meanings, but the former is used as a philosophical term. In English, they correspond to 'Holy Spirit' and 'spirit.'
Regarding 'One', 'Daodejing' says, "All things are produced because they have "One" and kings have sovereignty because they have "One". "One" gives them their essence.(Ch 39)" And it also says, "'The way' produces One. One produces Two. Two produces Three. Three produces all things. All things are carrying 'yin (陰)' and holding 'yang (陽).' These two are harmonized by the mediating breath (沖気). (Ch 42)" Wang Bi(王弼 226-249), a great thinker of the Xuanxue (玄学: Dark Learning, Mysterious Learning or Profound Learning) during the Wei, Jin, and Southern and Northern Dynasties (魏晋南北朝) era, said, "'One (一)' is the beginning of the number, and this is the extreme of things, so called 'Miaoyou (妙有mysterious-being),' he who wants to be called 'You (有being),' doesn't see its shape, so it is not being, therefore, it's called 'miao (妙mysterious).' Though someone wants to call it 'Wu (無nothing),' but things are born because of this, so it is not 'Wu,' that is why it is 'You (有).' This is 'You (有)' existed in 'Wu (無),' thus it is called 'Miaoyou (妙有mysterious existence).' As it means that 'Miaoyou (妙有) is 'One (一)' that is the beginning of the number and is the extreme of things, and it is neither 'You (有)' nor 'Wu (無)' but exists both in 'You (有)' and 'Wu (無).' By the way, Xuanxue (玄学) is a scholarship that interpreted Yijing (易経), Laozi (荘子) and Zuangzi (荘子), which were called the 'sanxuan (三玄three mysteries),' and was popular during the Wei, Jin, and Southern and Northern Dynasties era of China.
Sengzhao (僧肇), who was known as one of the four Sages among Kumaarajiiva (鳩摩羅什350-409)'s three thousand students and the best 'emptiness' theoretician, said in his book 'Zhaolun Niepanwuminglun (肇論:涅槃無名論),' Chapter 4, "The true way is in the complete enlightenment, and the complete enlightenment is in the bare truth. If you have got the bare truth, you would see both presence and absence. If you see both presence and absence, there is no difference between the other and you. Therefore heaven, earth, and I have the same root and myriad things and I are one body."
The doctrine of 'Three-One mysterious substance' reflects the experiences that Thomas gained in his trip of preaching India and China, and the influences of Buddhism and Taoism are strongly felt. Moreover, this kind of influence is bidirectional, and it is considered that the Mahayana Buddhist schools that were prosperous in India at that time and the philosophies of Tiantai (天台) and Hua-yan (華厳) that emerged in China after that were also greatly stimulated by the Gnostic Christianity taught by Thomas. It can be said that the Buddha's three-body theory (仏陀三身説), that is, 'Dharmakaya (法身) which symbolizes the absolute truth or Li (理: universality), Nirmanakaya (応身) which symbolizes actual Buddha appeared in this historical world under spatial and temporal limitations or Shi (事: particularity) and Sambhogakaya (報身) which symbolizes interfusion between Li (理: universality) and Shi (事: particularity)' is a typical example. It may be mentioned that just around that time Fazang (法蔵643–712). who became a priest in obedience to the Imperial order and succeeded to the third patriarch of the Huayan school of Buddhism (華厳宗) and lectured to Empress Wu ZeTian (則天武后) and other high ranked officials on Huayan philosophy (華厳哲学) in the court, was from Sogdiana, one of Aramaic countries in western region of China.
The statue of Maitreya Bodhisattva (弥勒菩薩像), which is said to have been given to Japan by Silla in 603 AD, in Koryuji Temple (広隆寺), makes that shape of fingers of its right hand. At that time, Koguryo, Silla, and Baekje stood on the Korean Peninsula, each striving to strengthen their relationship with Japan. Though the tribe in Kitakyushu, led by Emperor Jimmu (神武天皇)'s older brother Inainomikoto (稲飯命), seems to have had a blood relation with Kingdom of Silla (新羅), Yamato Kingdom (大和王権) had taken a diplomatic stance supporting Baekje (百済) since the Emperor Ojin (応神天皇)'s reign. When Baekje, which had invaded by Silla, asked Japan to rescue. Emperor Keitai (継体天皇) tried to send an expeditionary force to Korean Peninsula, but Iwai (磐井), a clan of Tsukushi in Kitakyushu, revolted joining hands with Silla. Even in the days of Prince Shotoku (聖徳太子), Soga (蘇我) and other clans linked Baekje were preparing to dispatch troops to Korea. Therefore, Silla sent to Japan the statue of Maitreya Bodhisattva, which symbolizes the doctrine of 'Three-One mysterious substance,' perhaps in order to restore old relations with the Yamato Imperial Court returning to the Emperor Jimmu's era. At that time in Silla there were several groups of knights called Hwa-rang (花郎) composed of children of the noble families who worshiped Mireuk-posal(弥勒菩薩) and played an active role in the Kingdom. The Maitreya Faith of Silla seems to have incorporated the doctrine of 'Three-One mysterious substance' of the primitive Christianity which had been believed by Yamato Imperial family and Hata clan (秦氏).Click here to read more.

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बुधवार, 15 जुलाई 2020

मिट्टी का गीत

गाँव में एक कच्चा घर था ,
मिटटी में ही बीता बचपन
मिट्टी का घर और दीवारें ,
मिट्टी से लिपा पुता आंगन

मिट्टी चूल्हे बनती रोटी ,
मिट्टी के मटके का पानी
मिट्टी के खेल खिलोने सब ,
गुड्डे गुड़िया ,राजा रानी

मिट्टी से बर्तन मँजते थे ,
मिट्टी से हाथ धुला करते
काली मिट्टी में दही मिला ,
मिट्टी से बाल धुला करते

मिट्टी की काली स्लेटों पर ,
खड़िया और पेमो से लिख कर
हमने गिनती लिखना सीखा ,
सीखे अ ,आ, इ ,ई  अक्षर

मिट्टी में गिरते पड़ते थे ,
मिट्टी में खेला करते थे
हम धूलधूसरित हो जाते ,
कपड़ों को मैला करते थे

लगती जब चोंट ,लगा मिट्टी ,
जो काम दवाई का करती
और बचत हमारी चुपके से ,
मिट्टी की गुल्लक में भरती

मिट्टी की सिगड़ी में दादी ,
सर्दी में तापा करती थी
गर्मी में मिट्टी की सुराही ,
ठंडे पानी से भरती  थी

दीवाली पर  लक्ष्मी गणेश ,
मिट्टी के  पूजे जाते थे
हम अपना घर करने रोशन ,
मिट्टी के  दीप  जलाते थे

हम कलश पूजते मिट्टी का ,
मिट्टी में लगते थे ज्वारे
मिट्टी हंडिया भर रसगुल्ले ,
पापा लाते ,लगते प्यारे

मिट्टी कुल्हड़ में गरम चाय ,
क्या स्वाद और क्या लज्जत थी
माँ कहती मिट्टी खाने की ,
हमको बचपन में आदत थी

मिट्टी का तन ,मिट्टी का मन ,
सारा बचपन मिट्टी मिट्टी
एक दिन मिट्टी में मिलकर हम ,
हो जायेंगे  मिट्टी मिट्टी  

अब कॉन्क्रीट के फ्लैटों में ,
मिट्टी को तरस तरस जाते
वो गाँव ,गाँव की वो मिट्टी ,
सच याद बहुत हमको आते

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
टाइमपास

बचपने में गुजरती थी छुट्टियां ,
खेल करके ताश ,लूडो या केरम
बुढ़ापे में वक़्त अपना काटते ,
मोबाईल पर खेल करके गेम हम

घोटू 
प्रणय निवेदन

पाने  को प्यार तुम्हारा
मैंने डाली है  अरजी
अपनाओ या ठुकराओ  
आगे तुम्हारी  मरजी

मैं सीधा ,सादा भोला ,
हूँ एक गाँव का छोरा
सात्विक विचार है मेरे ,
छल और प्रपंच में कोरा

मैं मेहनतकश  बन्दा हूँ ,
और पढ़ालिखा हूँ प्राणी
अच्छे संस्कार भरे है ,
हूँ खालिस हिन्दुस्तानी

जो कहता ,सच कहता हूँ ,
ना बात बनाता फरजी
अपनाओ या ठुकराओ ,
आगे तुम्हारी मरजी

स्पष्ट  सोच है मेरी ,
और सादा रहन सहन है
बरसाता प्यार सभी पर ,,
मेरा निर्मल सा मन है  
 
अब समझो बुरा या अच्छा
दुनियादारी में कच्चा
मैं करता नहीं दिखावा ,
हूँ एक आदमी सच्चा

जैसा दिखता हूँ बाहर ,
वैसा ही हूँ  अंदर जी
अपनाओ या ठुकराओ ,
आगे तुम्हारी मरजी

ऐसे जीवन साथी की ,
है मुझको बहुत जरूरत
जिसकी अच्छी हो सीरत ,
और बुरी नहीं हो सूरत

जो सीमित साधन में भी
मेरा घरबार चला ले
हो सीधी और घरेलू ,
बस रोटी दाल बनाले

इक दूजे की इच्छा का ,
जो करती हो आदर जी
अपनाओ या ठुकराओ
आगे तुम्हारी मरजी

कंधे से मिला कर कंधा ,
जो मेरा साथ निभाये
मैं उस पर प्रेम लुटाऊं ,
वो मुझ पर प्रेम  लुटाये

हो मिलन प्रवृत्ति वाली ,
घर में सब संग जुड़े वो
हो उच्च विचारों वाली ,
तितली सी नहीं उड़े वो

जिसका तन भी हो सुन्दर ,
और मन भी हो सुन्दर जी
अपनाओ या ठुकराओ ,
आगे तुम्हारी  मरजी

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
गयी भैंस पानी में

हम कितना कुछ खो देते है ,देखो अपनी नादानी में
जब वक़्त दूहने का आता  ,तब भैंस खिसकती पानी में

हम सही समय पर सही जगह पर करते अपना वार नहीं
रह जाता इसीलिये उजड़ा ,बस पाता  है  संसार नहीं
अपनी संकोची आदत से ,हम बात न दिल की कह पाते
हो जाती बिदा किसी संग वो ,हम यूं ही तड़फते रह जाते
फिर दुःख के गाने गाते है ,हम इस दुनिया बेगानी में
जब वक्त दूहने का आता ,तब भैंस खिसकती पानी में

हम कद्र समय की ना करते ,देता है समय हमें धोखा
जाता है कितनी बार फिसल ,हाथों में आया जो मौका
सीटी दे ट्रैन निकल जाती ,हम उसे पकड़ ना  पाते है  
जब खेत को चिड़िया चुग जाती ,हम सर पकड़े पछताते है
हो जाता बंटाधार सदा  थोड़ी सी आना कानी  में
जब वक़्त दूहने का आता ,तब भैस खिसकती पानी में

करने की टालमटोल सदा ,आदत पीड़ा ही देती है
सींचो ना सही समय पर जो ,तो सूखा करती खेती है
हम बंधना चाहते है उनसे ,पर रिश्ता कोई जोड़ लेता
हम देखरेख तरु की करते ,फल आते कोई तोड़ लेता
हो पाता है वो काम नहीं ,जो हो सकता आसानी में
जब वक़्त दूहने का आता ,तब भैंस खिसकती पानी में

हम दर कर रहते दूर दूर ,देखा करते होकर अधीर
लेकिन जब सांप निकल जाता ,हम पीटा करते है लकीर  
ये हिचक हमारी दुश्मन है ,कमजोरी है ,कायरता है
मन के सब भाव प्रकट कर दो ,वरना सब काम बिगड़ता है
मुंहफट ,स्पष्ट करो बातें ,यदि पाना कुछ जिंदगानी में
जब वक़्त दूहने का आता ,तब भैंस खिसकती पानी में

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

मैं पुराना हो गया हूँ

गया यौवन बीत अब ,गुजरा जमाना हो गया हूँ
मैं पुराना हो गया हूँ
कहते है कि नया नौ दिन ,पुराना टिकता है सौ दिन
इसलिए मैं भी टिकाऊ ,होता जाता हूँ दिनो दिन
इन दीवारों पर अनुभव का पलस्तर  चढ़  गया है
इसलिए मंहगा हुआ घर  ,मूल्य मेरा बढ़ गया है
पहले अधकचरा ,नया था ,अब सयाना हो गया हूँ
मैं पुराना हो गया हूँ
उम्र  ज्यों ज्यों  बढ़ रही है ,आ रही  परिपक़्वता  है
 पुराना जितना हो चावल,अधिक उतना महकता है
शहद ज्यों ज्यों हो पुरानी ,गुणों का उत्थान होता
दवाई का काम  करता ,पका यदि जो पान होता
अस्त होता सूर्य ,सुनहरी सुहाना हो गया हूँ
मैं  पुराना हो गया हूँ
कई घाटों का पिया जल ,आ गयी मुझमे  चतुरता
अब पका सा आम हूँ मैं , आ गयी मुझमे मधुरता
वृद्धि होती ज्ञान की जब ,वृद्ध है हम तब कहाते
पुरानी 'एंटीक ' चीजे ,कीमती  होती  बताते
देखली दुनिया ,तजुर्बों का खजाना हो गया हूँ
मैं पुराना हो गया हूँ

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

सोमवार, 13 जुलाई 2020

अदिति और अविनाश के रोके पर

आज हृदय है प्रफुल्लित ,मन में है आनंद
अदिति और अविनाश का ,बंधता है संबंध
बंधता है संबंध  ख़ुशी  का  है  ये मौका
प्रथम चरण परिणय का,आज हो रहा रोका
कह घोटू कविराय प्रार्थना  यह इश्वर  से
सावन की रिमझिम सा प्यार हमेशा बरसे

आनंदित अरविन्द जी ,और आलोक मुस्काय
अति हुलसित है वंदना ,बहू अदिति सी पाय
बहू अदिति सी पाय ,बहुत ही खुश है श्वेता
पाकर के अविनाश ,प्रिय दामाद चहेता
कह घोटू कविराय ,बहुत खुश नाना नानी
टावर टू को छोड़ अदिति टावर वन आनी

नाजुक सी है आदिति ,कोमल सा अविनाश
इसीलिये है जुड़ गयी ,इनकी जोड़ी ख़ास
इनकी जोड़ी खास ,बना कर भेजी रब ने
जुग जुग  जियें  साथ ,दुआ ये दी है सबने
कह घोटू खुश रहें सदा ,दोनों जीवन भर
इन दोनों में बना रहे   अति  प्रेम परस्पर

मदन मोहन बाहेती  'घोटू '
खुशामद

चला कर के तीर तीखे नज़र के ,थक गए होंगे तुम्हारे नयन भी ,
बड़ी ठंडक और राहत मिलेगी ,बूँद दो उनमे दवा की डाल  दूँ
बड़ी नाजुक है कलाई तुम्हारी ,दुखती होगी चूड़ियों के बोझ से ,
आओ उनको सहला के थोड़ा मलूँ और उनकी थकावट निकाल दूँ  
इशारों पर जिनके मुझको नचाती ,थक गयी होगी तुम्हारी उँगलियाँ ,
इनको थोड़ा चटका के मालिश करूं,बनी ताकि रहे उनकी नरमियाँ
करके मीठी मीठी बातें प्यार की ,थक गए होंगे तुम्हारे होंठ भी ,
इनको भी सहला के अपने होंठ से ,सेक दूँ ,साँसों की देकर गरमियाँ

घोटू 
छतरी

दे के अपना साया तुमको बचाया ,
जिसने हरदम बारिशों की मार से
बंद बारिश क्या हुई ,छतरी वही ,
मुसीबत लगती तुम्हे निज भार से
वैसे जिनने ख्याल था पल पल रखा ,
और तुमको पाला पोसा प्यार से
बूढ़े होने पर वही माता पिता ,
तुमको लगने लगते है  बेकार से

घोटू 
खटास

रिश्तों में आने लगे ,थोड़ी अगर खटास
दूध प्रेम का लाइए ,जरा निवाया ,खास
ज़रा निवाया ख़ास , खटाई उसमें डालो
नया मिलेगा स्वाद ,दही तुम अगर जमालो
मिले हृदय से हृदय ,स्निघ्ता हो मख्खन की
बनी रहे आपस में प्रेम भावना  मन की

घोटू 
लोग कहते मैं गधा हूँ  

प्यार करता हूँ सभी से ,भावनाओं से बंधा हूँ
लोग कहते मैं गधा हूँ
इस जमाने में किसी को ,किसी की भी ना पड़ी है
हो गए सब  बेमुरव्वत  ,आई  अब  ऐसी  घडी है
जब तलक है कोई मतलब,अपनापन रहता तभी तक
सिद्ध होता स्वार्थ है जब ,छोड़ जाते साथ है सब
मूर्ख मैं ,सुख दुःख में सबके हाथ हूँ अपना बटाता
मुसीबत में किसी की मैं ,मदद करता ,काम आता
इस लिये ही व्यस्त रहता ,फ़िक्र से रहता लदा हूँ
लोग कहते मैं गधा हूँ
रह गया है ,मैं और मेरी मुनिया का ही अब जमाना
बेवकूफी कहते ,मुश्किल में किसी के काम आना
आत्म केंद्रित होगये सब ,कौन किसको पूछता है
जिससे है मतलब निकलता ,जग उसी को पूजता है
मगर  जो  संस्कार मुझमे है   शुरु से  ये  सिखाया
सहायता सबकी  करो ,देखो न ,अपना या पराया
चलन उल्टा जमाने का ,मैं नहीं  फिट  बैठता हूँ
लोग कहते मैं गधा हूँ
अगर दी क्षमता प्रभु ने ,और मुझको बल दिया है
जिससे मैंने ,बोझ कोई का अगर हल्का किया है
इससे मुझको ख़ुशी मिलती ,और दुआऐं है बरसती
किन्तु मुझको समझ पागल,दुनिया सारी ,यूं ही हंसती
सोचते सब ,अपनी अपनी ,और की ना सोचते  है
काम मुश्किल में न कोई ,आता, सबको कोसते है
हुआ क्या इंसानियत को ,सोचता रहता सदा हूँ
लोग कहते मैं गधा हूँ
आज के युग में भला रखता कोई सद्भावना है
किसी के प्रति सहानुभूति की नहीं सम्भावना है
सोच सीमित हो गयी है ,भाईचारा लुप्त सा  है
अब परस्पर प्रेम करना ,हो गया कुछ गुप्त सा है
और इस माहौल में ,मैं  बात करता प्यार की  हूँ
एक कुटुंब सा रहे हिलमिल,सोचता  संसार की हूँ
शांति हो हर ओर कायम ,चाह करता  सर्वदा हूँ
लोग कहते मैं गधा हूँ

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 

शनिवार, 11 जुलाई 2020

कौन कहता तुम पुरानी

नहा धो श्रृंगार करके
और थोड़ा सजसंवर के
भरी लगती ताजगी से
एक नूतन जिंदगी से
प्यार खुशबू से महकती
पंछियों जैसा चहकती
वही प्यारी सी सुहानी
कौन कहता तुम पुरानी

वो ही सुंदरता ,सुगढ़ता
प्यार आँखों से उमड़ता
प्रेम वो ही ,वो ही चाहत
वो ही पहली मुस्कराहट
राग वो ही साज वो  ही
प्यार का अंदाज वो ही
हो गयी थोड़ी सयानी
कौन कहता तुम पुरानी

नाज वो ही वो ही नखरे
और कातिल वो ही नज़रें
वो ही चंचलता ,चपलता
सादगी वो ही सरलता
वो ही मस्तानी अदायें
आज भी मुझको रिझायें
प्रेम करती हो दीवानी
कौन कहता तुम पुरानी

वो ही शरमाना ,सताना
रूठ जाना और मनाना
वो ही पहले सी नज़ाकत
शोखियाँ वो ही शरारत
हंसी वो ही खिलखिलाती
आज भी बिजली गिराती
तुम हो मेरी राज रानी
कौन कहता तुम पुरानी

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
जिंदगी

उमर बढ़ती है
जिंदगी घटती है
चाहत बढ़ती है
संतुष्टि घटती है
दौलत बढ़ती है
शांति घटती है
हवस बढ़ती है
हंसी घटती है
और की चाह
करती है तबाह
मौत का दिन तय है
तो काहे का भय है
जब तक जियो
हंस कर जियो

घोटू 
आज मन बदमाश सा है

आज मन बदमाश सा है  
करेगा हरकत ये कोई ,हो रहा अहसास सा है
आज मन बदमाश सा है

न जाने क्यों ,आज अंदर ,सुगबुगाहट हो रही है
कुछ न कुछ करने की मन में ,कुलबुलाहट हो रही है
जागृत  सी हो रही है  ,वही फिर  आदत  पुरानी
कोई आ जाये  नज़र में ,करें  उससे  छेड़खानी
उठ रहा  शैतानियों का ,ज्वार मन में ख़ास सा है
आज मन बदमाश सा है

बहुत विचलित हो रहा,उतावला   और  बेसबर है
आज  मौसम है रूमानी ,क्या उसी का ये असर है
चाहता मिल जाये कोई , बना  कर कोई बहाना
शरारत  करने को आतुर ,हो रहा है ये दीवाना
डोलता ,कर मटरगश्ती ,कर रहा तलाश सा है
आज मन बदमाश सा है

देख सब दुनिया रही है ,डर इसे पर नहीं किंचित
लाख कोशिश कर रहा मैं ,पर न हो पाता नियंत्रित
गुल खिलायेगा कोई  ये ,ढूंढ बस मौका रहा है
आज यह व्यवहार उसका ,खुद मुझे चौंका रहा है
शराफत पर लग रहा ,जैसे ग्रहण  खग्रास सा है
आज मन बदमाश सा है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

बुधवार, 8 जुलाई 2020

ज़ूम पर

ऐसी कोविद ने करी पाबंदियां ,
बच्चों की शादी करादी ज़ूम पर
न तो मैरिज हॉल ना इवेंट  था ,
एकदम सिम्पल और सादी ज़ूम पर
बेंड ना था,म्यूजिक का सिस्टम बजा,
और थे सारे बाराती ज़ूम पर
पंडितजी ने मंत्र अपने घर पढ़े ,
हमने सब रस्मे निभादी,ज़ूम पर
वर वधू ने सात फेरे ले लिए ,
और वरमाला पहनादी ज़ूम पर
ख़ास थाली ,सबको हल्दीराम की ,
स्विगी ने घर घर भिजादी घूम कर
आइफ़िल टावर के संग फोटो खिंचा ,
हनीमून सबको दिखादी  ज़ूम पर
दिखावे की होड़ सारी थम गयी ,
बात ये अच्छी  बना दी ,ज़ूम पर
बजट लाखों का था पर ऐसा हुआ ,
सब फिजूल खर्ची बचा दी ज़ूम पर
काम बच्चों के उमर भर आएगी ,
एफ डी  हमने बना दी झूम कर

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 

मंगलवार, 7 जुलाई 2020

बीबी और ख़ुशी

कहने को तो कितना भला बुरा कहते है
इधर उधर भी नज़र मारते ही रहते है
लेकिन एक वो ही जो घास डालती तुमको ,
अपनी अपनी बीबी से सब खुश रहते है

जैसी भी ,साथ तुम्हारा निभा रही है
तुम्हारा घर बार ,गृहस्थी चला रही है
बड़े प्यार से खाना तुमको पका खिलाती
तुम्हारे सुख दुःख की जो है सच्ची साथी
देती दूध ,गाय की लात ,सभी सहते है
अपनी अपनी बीबी से सब खुश रहते है

एक वो ही जो वाकिफ तुम्हारी रग रग से
तुम्हारे खातिर  लड़ सकती, सारे जग से
जिसने माँ और बाप छोड़ कर तुमको पाया
तुमको परमेश्वर माना और प्यार लुटाया
वो ही पोंछती ,दुःख के आंसूं ,जब बहते है
अपनी अपनी बीबी से सब खुश रहते है

साथ समय के जब ऐसे भी दिन आते है
 अपने वाले  ,सभी पराये हो जाते  है
रूप जवानी ,साथ उमर के ढल जाती है
काम बुढ़ापे में केवल बीबी आती है
सुख दुःख की बातें जिससे ,सुनते कहते है
अपनी अपनी बीबी से सब खुश रहते है

मदन मोहन बाहेती'घोटू '
जाने कहाँ गए वो दिन

याद आते है हमें वो दिन
जब जवानी के चमन में ,
मुस्कराती थी कलियाँ हसीन
हमेशा रहता था मौसम बहार का
हमारी भवरें सी नज़रें ,
टॉनिक पियां करती थी उनके दीदार का
लहराती जुल्फें ,हिरणी सी  नज़र
गुलाबी गाल,रसीले अधर
मोती सी दन्त लड़ी,कातिल मुस्कान
मीठी सी बोली जैसे कोयल का गान
याने पूरा का पूरा चन्द्रमुख दिखता था
प्यार जल्दी हो जाता देर तक टिकता था
पर अब इस कोरोना के खौफ ने ,
ऐसा सितम ढाया है    
हर हसीन चेहरे को मास्क में छुपाया है
किसी भी लड़की को देखो ,
बस दिखती है दो चमकती आँखें
और अपना बाकी चेहरा ,
रखती है वो मास्क में छुपाके
अब हम उन्हें कितना भी देखे घूर के
नजदीक से या दूर से
पता ही नहीं लगता उनका मुख कैसा है
उनके रुखसारों का रुख कैसा है
गुलाबी है या पीले है
कसे हुए है या ढीले है
 चिकने है या उनपर पिम्पल है
हँसते तो क्या गालों पर पड़ते डिम्पल है
सुंदरता के सब पैमाने
उनने छुपा रखें है अनजाने
पूरी की पूरी नाक ढकी रहती है
पता नहीं साफ़ है या बहती है
पतली है या मोटी  है
तिकोनी है या बोठी है
तोते सी है या समोसे सी है
पता ही नहीं लग पाता ,कैसी है
उनके 'अपर लिप्स 'पर बाल तो नहीं है
मर्दों जैसा हाल तो नहीं है
और चेहरे के सबसे मतवाले
सब से ज्यादा काम में आनेवाले
याने की उनके होठों का क्या हाल है
डार्क है या लाल है
मोटे  है या पतले है
सूखे है या रस से भरे है
चिकने है या उजाड़ है
छोटी है या लम्बी ,उनकी मुंहफाड़ है
और उनकी दंत लड़ी
मोती सी सफ़ेद है या पीली पड़ी
टेढ़े मेढे है या सीधे दिखलाते है
होठों के बाहर तो नहीं नज़र आते है
सबकुछ ढका रहने से खुल न पाता राज़
कैसा है उनकी मुस्कराहट का अंदाज
उनकी हंसी कातिल है कि नहीं
उनके होठों या गालों पर,तिल है कि नहीं
और उनकी ठोड़ी
तीखी है या  बैठी हुई है निगोड़ी  
गोया उनका पूरा मुखड़ा
लम्बा पतला है या गोल चाँद का टुकड़ा
और उनकी बोली मधुर है या भर्राई
मास्क के कारण ये बात समझ ना आई
बस फुसफुसाहट ही देती है सुनाई
समझ ही नहीं पाता ये दिमाग है
कोकिला सी मधुर है या काग है
तो जब चेहरे की सुंदरता का सब सामान
जब पूरा ही ढका रहता है श्रीमान
तो ये अंदाज लगाना भी मुश्किल हो जाता ,
कि सामनेवाली बूढी है या जवान
बस दो घूरती हुई आँखें
और हम क्या ताकें
हम देख ही नहीं पाते
उनके चेहरे का नूर
परी है या हूर
बदसूरत है या हसीन
प्रोढ़ा है या कमसिन
ऐसे में तो बस नैन लड़ सकते है
पर इश्क़ में कैसे आगे बढ़ सकते है
क्योकि जब तक ना हो पूरा दीदार
कैसे हो सकता है प्यार
फिर मॉल ,सिनेमा ,गार्डन और रेस्त्रारंट
सब पड़े है बंद
डेटिंग पर जाने का स्कोप नहीं है
दोनों के मुंह पर मास्क है ,
चुंबन की भी होप नहीं है
ऐसे हालातों में कैसे प्यार हो मुमकिन
और याद आते है वो पुराने दिन
जाने कहाँ गये वो दिन

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
 

रविवार, 5 जुलाई 2020

मौसम और स्वाद

सुबह सुबह क्यों तलब चाय पीने की मन में उठती है ,
ब्रेकफास्ट के समय जलेबी पोहे हमे सुहाते है
खाने बाद याद पापड़ की ,क्यों हमको आती अक्सर ,
सर्दी में ही गजक रेवड़ी ,मुंह का स्वाद बढ़ाते है
गर्मी के पड़ते ही कुल्फी ,आइसक्रीम लुभाते मन ,
बारिश पड़ते गरम पकोड़े ,याद हमें क्यों आते है
सर्दी में गाजर हलवे का स्वाद सुहाता है सबको ,
और सावन के महीने में ही ,घेवर मन को भाते है

बूंदी लड्डू ,बेसन चक्की ,सदाबहार मिठाई है ,
श्राद्ध पक्ष में सबसे ज्यादा खीर बनाई जाती है
सदाबहार समोसे होते ,गर्म गर्म और मनभावन,
खुशबू आलू की टिक्की की ,मुंह में पानी लाती है
दही बड़े और चाट पापड़ी ,हर मौसम में चलते है ,
पानी पूरी हमेशा ही सबके मन को ललचाती  है
ये जिव्हा है रस की लोभी ,बड़ी स्वाद की मारी है ,
मौसम के संग संग उसकी भी ,चाह बदलती जाती है

मदन मोहन बाहेती ;घोटू ' 

गुरुवार, 2 जुलाई 2020

छेड़छाड़  

छेड़ने में लड़कियों को ,मज़ा जो  तुमको  है  आये
अगर तुम्हे वो डाट लगाए ,रहो ढीठ से तुम मुस्काये
इस चक्कर में अगर कभी जो ,तुमको पड़े मार भी खानी ,
तो उनके पापा के बदले ,उनके हाथों की ही खायें

घोटू 
शंशोपज

एक तरफ तुम ये कहते हो ,
प्रगति के पथ पर बढ़ना है
इसीलिये कंधे से कंधा
मिला काम हमको करना है
और दूसरी और कह रहे ,
हमें करोना से लड़ना है
इसके लिये हमें आपस में ,
दो गज की दूरी रखना है
शंशोपज में है इनमे से,
बात कौनसी को हम माने
दूरी रखें ,मिले ना कंधे ,
देश प्रेम के हम दीवाने

घोटू 
कभी तुम भी ----

                           कभी तुम भी छरहरी थी    
स्वर्ग से जैसे उतर कर ,आई हो ,ऐसी परी थी
                           कभी तुम भी छरहरी थी
बड़ा ही कमनीय ,कोमल और कंचन सा बदन था
मदमदाता ,मुस्कराता और महकता मृदुल मन था
बोलती थी मधुर स्वर में ,जैसे कोकिल गा  रही हो
चलती लगता ,सरसों की फूली फ़सल लहरा रही हो
हंसती थी तो फूलों का जैसे  कि  झरना झर रहा हो
गोरा आनन ,चाँद नभ में ,ज्यों किलोलें कर रहा हो
थे कटीले नयन ,हिरणी की तरह ,मन को लुभाते
बादलों की तरह कुंतल ,हवा में थे ,लहलहाते
थी लबालब प्यार से तुम ,भावनाओं से भरी थी
                            कभी तुम भी छरहरी थी
वक़्त के संग,आगया यदि थोड़ा सा बदलाव तुममे
ना रही ,पहले सी चंचल ,आ गया  ठहराव  तुममे
प्यार के आहार से यदि ,गयी कुछ काया विकस है
तोअसर ये है उमर का,बाकी तो सब ,जस का तस है
अभी भी तिरछी नज़र से जब ,देखती ,मन डोलता  है
अभी भी मन का पपीहा ,पीयू  पीयू  बोलता  है  
अभी भी छुवन तुम्हारी ,मन में है सिहरन जगाती
तब कली थी,फूल बनकर,और भी ज्यादा सुहाती
हो मधुर मिष्ठान सी अब ,पहले थोड़ी चरपरी थी
                               कभी तुम भी छरहरी थी

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '