पृष्ठ

शुक्रवार, 31 मई 2013

आज का मौसम

                 आज का मौसम 
                  
आज ठंडी सी हवाएं चल रही है ,
                       ऐसा लगता है कहीं बरसात आई 
मेरे दिल को बड़ी ठडक मिल गयी है ,
                        देख मुख पर तुम्हारे मुस्कान छाई 
कल तलक तो थी तपिश,मौसम गरम था ,
                        और थपेड़े गरम लू के चल रहे थे 
आपकी नाराजगी से दिल दुखी था ,
                         और विरह की आग में हम जल रहे थे 
बहुत तडफा मन,तुम्हारी याद में था ,
                          आँख कितनी बार मेरी डबडबाई 
आज ठंडी सी हवाएं चल रही है,
                            एसा  लगता है कहीं बरसात आई 
आपका भी हाल होगा हमारे सा,
                            आपको भी याद मेरी आई होगी 
घिरे होंगे याद के बादल घनेरे ,
                             भावनाएं घुमड़ कर मंडराई होगी 
 चाह तुममे भी हमारी जगी होगी,
                              मिलन को बैचैन हो तुम कसमसाई 
आज ठंडी सी हवाएं चल रही है ,
                                   ऐसा लगता है कहीं बरसात आई 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

गुरुवार, 30 मई 2013

mazza

                  मज़ा 
घास हो जो हरी कोमल,घूमने में है मज़ा 
गुलाबी हो गाल या लब ,चूमने ने है मज़ा 
फलों वाली डाल हो तो , लूमने में है मज़ा 
और नशा हो प्यार का तो,झूमने में है मज़ा 

घोटू 

तुम्हे रात भर नींद न आती

    

        दिन में क्यों इतना सो जाती 
           तुम्हे रात भर नींद आती 
           बार बार करवट लेती हो,
           और जगा मुझको  देती हो  
         मै सारा  दिन मेहनत करता,
        आफिस  में हूँ ,खटपट करता 
        थका हुआ जब घर पर आता 
         खाना  खाता ,और सो जाता 
        तुम टी,वी,के सभी सीरियल 
        देखा करती ,देर रात तक 
         मै  गहरी निद्रा में सोता 
         लेकिन अक्सर ऐसा होता 
         मुझे नींद से उठा,जगा कर 
         तुम पूछा करती ,अलसाकर 
         अजी ,सो रहे हो क्या,जागो 
         क्या टाइम है,ये बतला दो 
          और मुझको लिपटा लेती हो 
          मेरी नींद उड़ा   देती  हो 
           कभी कभी ,दिन में ना सोती 
           तो भी मेरी मुश्किल होती 
           इतने भरती हो खर्राटे 
           कि हम मुश्किल से सो पाते 
           ये तुम्हारा खेल पुराना 
           जैसे भी हो ,मुझे जगाना 
           और सताती रहती ,जब तब 
           सीख कहाँ से आई ,ये सब 
            मुझ पर ढेरो प्यार लुटाती 
            जगा जगा कर हो तडफाती  
             दिन में क्यों इतना सो जाती 
             तुम्हे रात भर,नींद न आती 

      मदन मोहन बाहेती'घोटू' 
  

थका हुआ घोड़ा

          
            थका  हुआ घोड़ा 

जीवन के कितने ही दुर्गम ,पथ पर सरपट ,भागा दोड़ा 
                                          मै  तो थका हुआ हूँ घोड़ा 
मै हूँ अश्व रवि के रथ का ,करता हूँ ,दिन रात नियंत्रित 
सेवा और परोपकार में, मेरा सारा    जीवन  अर्पित 
कभी ,किसी तांगे  में जुत कर ,लोगों को मंजिल दिलवाई 
कभी किसी दूल्हे को अपनी ,पीठ बिठा ,शादी करवाई 
कितने वीर सैनिको ने थी ,करी सवारी,मुझ पर ,रण  में
' पोलो'और खेल कितने ही ,खेले मैंने  ,क्रीडांगन    में 
राजा और शूरवीरों का ,रहा हमेशा ,प्रिय साथी बन 
उनके रथ को दौडाता था,मै  ही था द्रुतगामी  वाहन 
झाँसीवाली  रानी के संग ,अंग्रेजों  से युद्ध किया था 
अमर सिंह राठौर सरीखे,वीरों के संग ,मरा,जिया था  
महाराणा प्रताप से योद्धा ,बैठे थे मेरी काठी   में 
मेरी टापों के स्वर  अब भी ,गूँज रहे हल्दी घाटी में 
दिया कृष्ण ने अर्जुन को जब,गीता ज्ञान,महाभारत में 
ज्ञान सुधा मैंने भी पी थी ,मै  था   जुता  हुआ उस रथ में 
प्रकटा  था समुद्र मंथन में ,लक्ष्मीजी का मै भाई  हूँ 
मै शक्ती का मापदंड हूँ , अश्व -शक्ती की मै  इकाई  हूँ  
हुआ अशक्त मशीनी युग में ,लोगों ने मेरा संग छोड़ा 
                                       मै  तो थका हुआ हूँ घोडा 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

बुधवार, 29 मई 2013

क्या वजह क्या वजह कहर बरपा रहे....


क्या वजह क्या वजह कहर बरपा रहे
मेहरबां - मेहरबां से नजर आ रहे

ये दुपट्टा कभी यूं सरकता न था
आज हो क्या गया यूं ही सरका रहे

चूडियां यूं तो बरसों से खामोश थी
बात क्या है हुजूर आज खनका रहे

यूं तो चेहरे पे दिखती थीं वीरानियां
औ अचानक बिना बात मुस्का रहे

दिल ये 'चर्चित' का यूं ही बडा शोख है
देख लो आप ही इसको भडका रहे

- विशाल चर्चित

मंगलवार, 28 मई 2013

दान की महिमा

  

दान की महिमा बड़ी महान 
रतन जवाहर उगले धरती ,खोदो अगर खदान 
और  खेत का सीना चीरो, तो उपजे  धन धान 
सच्चे मन से प्रभु को सुमरो ,मिलता है वरदान 
जीवन सारा है साँसों का बस  आदान  ,प्रदान 
मेरे सास ससुर ने मुझको ,दे निज कन्या दान 
बिन घर, बना दिया घरवाला ,किया बहुत अहसान 
पांच   साल में नेता चुनती  जनता,  कर  मतदान 
जीत चुनाव,करे जनता पर ,ढेरों टेक्स  लदान 
बेईमानी,लूटमार का ,है क्या कोई  निदान 
बड़े गर्व  से पर हम कहते ,मेरा देश   महान 

मदन मोहन  बाहेती 'घोटू'

अपच

       

गेंहू ,चना ,चावल या और भी कोई अन्न,
ऐसे ही नहीं खाया जाता ,
पहले उसको दला ,पीसा,
भूना या उबाला जाता है 
तब कहीं खाने के योग्य,
और सुपाच्य बनता है  
हमारे समझदार नेता ,
खाने पीने वाले   होते है ,
और अन्न  ,भोलीभाली जनता है 
वो पहले जनता को दुखों से दलते है,
परेशानियों से पीसते है,
मंहगाई  से भूनते है  
गुस्से से उबालते है 
और उसकी मेहनत का करोड़ों रुपिया ,
बड़े प्रेम से डकारते है  
कुछ जो ज्यादा जल्दी में होते है ,
कभी कभी कच्चा अन्न ही खा जाते है 
और उनकी समझ में ये बात नहीं आती है 
कि  ज्यादा और जल्दी जल्दी खाने से,
अपच  हो जाती है 

मदन मोहन बाहेती' घोटू'

क्यों?

             
              क्यों?
तुम भगवान् को मानते हो,
जो एक अनुपम अगोचर शक्ती है ,
जिसने इस संसार का निर्माण किया है 
तुम साधू,संत और गुरुओं को पूजते हो,
क्योंकि उन्होंने तुम्हे ज्ञान का प्रकाश दिया है   
तुम  अपनी पत्नी के गुण गाते हो,
क्योंकि उसने तुम्हारी जिन्दगी को,
प्यार के रंगों से सजाया है 
तो फिर तुम अपने उन माँ बाप का,
तिरस्कार क्यों करते हो ,
जिन्होने तुम्हारा निर्माण किया,
तुम्हे ज्ञान दिया,और तुम पर,
जी भर भर के प्यार लुटाया  है?

मदन मोहन  बाहेती'घोटू'


सोमवार, 27 मई 2013

मन की खिड़कियाँ

    

जरा देखो,खोल मन की खिड़कियाँ ,
                 ठंडी और ताज़ी हवाएं आयेगी 
जायेंगे अवसाद सारे दूर हट,
                 और मन की घुटन सब घट जायेगी 
आयेगी बौछार खुशियों की मधुर,
                   और सुख से जिन्दगी सरसायेगी 
निकल कर तो देखो अपने कूप से,
                    जगत की जगमग नज़र आ जायेगी 
दिन में सूरज राह रोशन करेगा ,
                     रात में भी चांदनी  छिटकायेगी 
मार कर बैठे रहोगे कुण्डली ,
                      मोह माया  उम्र भर  तडफायेगी
और जब जाओगे दुनिया छोड़ कर ,
                       धन और दौलत ,काम ना कुछ आयेगी 
  आज का पूरा मज़ा लो आज तुम,
                       कल की चिंता ,कल ही देखी  जायेगी  

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बुढापा -सबको आता

   

राम और कृष्ण का अवतार लेकर ,
  आये भगवान थे
पर मानव शरीर लिए हुए ,
वो भी तो  इंसान थे 
उनने भी मानव शरीर के ,
सारे दुःख उठाये होंगे  
बुढापे की तकलीफ़ भी पाये  होंगे 
रामजी ने चौदह बरस वनवास काटा,
सीताजी का हरण हुआ ,
लंका पर चढ़ाई कर ,
रावण का संहार किया  
अयोध्या आये पर धोबी के कहने पर,
गर्भवती सीता को ,घर से निकाल दिया 
बिना पत्नी के ,उनके जीवन में,
अन्धकार छा गया 
पर अपनी उस गलती के पश्चाताप में ,
बुढ़ापे में,उन्हें भी डिप्रेशन आ गया 
बड़े परेशान और डिस्टर्ब थे रहते 
और इसी घुटन में,
उन्होंने सरयू में डूब कर
 आत्महत्या की,ऐसा लोग है कहते 
कृष्ण जी ने भी किया था ,द्वारका पर शासन 
पर बुढापे में नहीं चला ,उनका अनुशासन 
उनके सब यदुवंशी ,
आपस में ही लड़ने लग गये  
तो शांति की तलाश में,
वो द्वारका छोड़ कर,
दूर प्रभाष क्षेत्र की तरफ चले गये  
अकेले,तनहा,एक वृक्ष के नीचे ,
शांति से कर रहे थे   विश्राम 
और वहीँ पर लगा उन्हें बाण 
और वो कर गए महाप्रयाण 
अंतिम समय में ,उनके परिवार का,
कोई भी सदस्य ,नहीं आया काम 
तो भगवान भी ,जब इंसान का रूप लेते है, 
बढती उम्र में ,उनके साथ भी  ऐसा होता है
 सब साथ छोड़ते , कोई साथ नहीं होता है 
ओ अगर तुझे ,तेरे अपनों ने छोड़ दिया है ,
और बुढापे में  परेशानी होती है,
तो काहे को रोता है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

रविवार, 26 मई 2013

घोटाला ही घोटाला

      घोटाला ही घोटाला 
   

जिधर भी हाथ  डाला 
घोटाला ही घोटाला 
किसी के हाथ काले,
किसी का मुंह  काला 
बड़ा बिगड़ा है मंजर 
घोटाला हर कहीं पर 
घोटाला थोक में है 
ये तीनो लोक में है 
बड़ा  आकाश प्यारा 
वहाँ 'टू जी ' घोटाला 
ख़रीदे  हेलिकोफ्टर 
घोटाला था वहां पर 
जमीं पर रेल में है 
प्रमोशन  खेल में है 
घोटाला भर्तियों  में 
जनाजे अर्थियों   में 
था कामनवेल्थ खेला 
सभी ने कर झमेला 
खेल कुछ खेला ऐसा 
कमाया खूब पैसा 
कोयला ब्लोक बांटे 
अपने ही लोग छांटे 
कर रहे लोग चीटिंग 
किया स्पॉट फिक्सिंग 
एक तो करते चोरी 
उसपे भी सीनाजोरी 
हुई मैली है गंगा 
हरेक नेता है नंगा 
जहाँ भी मिला मौक़ा 
देश को दिया धोका 
भतीजा और चाचा 
ससुर,दामाद राजा 
भांजा और मामा 
भरें अपना खजाना  
इस तरह चला फेशन 
विदेशी देश में धन 
भेजते  कर हवाला 
घोटाला ही घोटाला 
किसी के हाथ काले,
किसी का मुंह काला 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

 

मेरी माँ सचमुच कमाल है

      मेरी माँ सचमुच कमाल है 
  

बात बात में हर दिन ,हर पल,
                            रखती  जो मेरा ख़याल है 
छोटा बच्चा मुझे समझ कर,
                            करती मेरी  देखभाल  है 
ममता की जीवित मूरत है,
                             प्यार भरी  वो बेमिसाल है 
सब पर अपना प्यार लुटाती ,
                              मेरी माँ सचमुच  कमाल है 
जब तक मै  ना बैठूं,संग में,
                               वो खाना ना खाया करती 
निज थाली से पहले मेरी ,
                               थाली वो पुरसाया  करती
मैंने क्या क्या लिया और क्या ,
                               खाया रखती ,तीक्ष्ण नज़र है 
वो मूरत    साक्षात प्रेम की ,
                               वो तो ममता  की निर्झर  है  
बूढी है पर अगर सहारा  ,
                                दो तो मना किया करती  है 
जीवन की बीती यादों में ,
                                डूबी हुई ,जिया करती  है 
कोई बेटी बेटे का जब ,
                              फोन उसे  आ जाया  करता 
मैंने देखा ,बातें करते  ,
                             उन आँखों में प्यार उमड़ता 
पोते,पोती,नाती,नातिन,
                             सब की लिए फिकर है मन में 
पूजा पाठ,सुमरनी ,माला ,
                               डूबी रहती  रामायण में 
कोई जब आता है मिलने ,
                                 बड़ी मुदित खुश हो जाती है 
अपने स्वर्ण दन्त चमका कर ,
                                    हो प्रसन्न वो मुस्काती है  
बाते करने और सुनने का ,
                                   उसके मन में बड़ा  चाव है 
अपनापन, वात्सल्य भरा है ,
                                   और सबके प्रति प्रेम भाव है 
याददाश्त कमजोर हो गयी ,
                                    बिसरा देती है सब बातें 
है कमजोर ,मगर घबराती ,
                                  है दवाई की गोली  खाते 
उसके बच्चे ,स्वस्थ ,खुशी हो ,
                                  देती आशीर्वाद  हमेशा 
अपने   गाँव ,पुराने घर को ,
                                   करती रहती याद हमेशा 
बड़ा धरा सा ,विस्तृत नभ सा ,
                                 उसका मन इतना विशाल है  
सब पर अपना प्यार लुटाती,
                                  मेरी माँ  सचमुच  कमाल है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

हाले चमन

    

था खूबसूरत ,खुशनुमा,खुशहाल जो चमन ,
            भंवरों ने रस चुरा चुरा ,बदनाम  कर दिया 
कुछ उल्लुओं ने  डालों पे डेरे बसा लिए,
             कुछ चील कव्वों ने भी परेशान कर दिया 
था  खूबसूरत,मखमली जो लॉन हरा सा ,
             पीला सा पड  गया है खर पतवार उग गये ,
माली यहाँ के बेखबर ,खटिया पे सो रहे ,
              गुलजार गुलिस्ताँ को बियाबान  कर दिया 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'  

शनिवार, 25 मई 2013

आमो का मज़ा

       
                  १ 
हम उनके चूसे आम को ,फिर से है चूसते ,
देखो हमारे  इश्क की ,कैसी है इन्तहा 
आता है स्वाद आम का पर संग में हमें ,
उनके लबों के स्वाद का भी मिलता है मज़ा 
                  २ 
उनके गुलाबी रसभरे ,होठों से था लगा ,
कितने नसीबोंवाला था,'घोटू'वो  आम था 
उनने जो छोड़ा ,हमने था ,छिलका उठा लिया ,
उनके लबों का उसपे लिपस्टिक निशान था 
                   ३ 
था खुशनसीब आम वो ,उनने ले हाथ में,
होठों से अपने लगा के रस उसका पी लिया
गुठली भी चूसी प्रेम से ,ले ले के जब मज़े  ,
इठला के बड़े गर्व से ,गुठली ने ये कहा 
दिखने  में तो लगती हूँ बड़ी सख्त जान मै ,
मुझको दिया मिठास  है अल्लाह का शुक्रिया 
उनने लगा के होठों से रस मेरा ले  लिया  ,
 मैंने भी  उनके रस भरे ,होठों का रस पिया 
                       ४ 
वो चूसते थे आम ,हमने छीन ले लिया ,
उसकी मिठास ,स्वाद हमें आज भी है याद 
हमने जो चूसा आया हमको स्वाद दोगुना ,
थी आम की भी लज्जत ,तेरे होंठ का भी स्वाद 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

निराला अंदाज

  

उनकी हया और शर्म का ,अंदाज निराला 
आये है स्विमिंग पूल में और बुर्का है डाला 
कहने को  तो आये है हनीमून    मनाने 
अपने पति को देते ना घूंघट  वो उठाने 
चाहे है आम चूसना ,ले ले के वो मजे 
बिगड़े न लिपस्टिक कहीं और लब रहे सजे 
गीले भी नही  हो और  नहाने  की तलब है 
'घोटू'इन हुस्नवालों का ,अंदाज गजब है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

अंजुली भर जल और शपथ



मंदिर में, आरती के बाद ,
शंख में पानी भर छिडके हुए छींटे ,
या आचमनी से दिया गया ,
चरणामृत और तुलसी दल ,
भगवान का  ये ही असली प्रसाद होता है
आप लेकर तो देखिये,
कितना स्वाद होता है 
क्योंकि इसमें आपके इष्ट का,
आशीर्वाद  होता है 
मंदिर में छिडके गए पानी के चंद  छींटे,
आपको पवित्र बना देते है 
पूजन के समय ,पानी के कलश  में ,
पान के पत्ते को डुबा ,चंद छींटों से ,
'स्नानम समर्पयामी 'कह कर हम,
भगवान् को स्नान करा देते है 
अंजुलीभर जल की महिमा महान बताते है  
अंजुली भर जल हाथ में लेकर,
बड़े बड़े संकल्प किये जाते है 
राजा बली ने संकल्प कर,
वामन अवतार को दे दिया ,
तीनो लोकों का दान 
और राजा  हरिश्चन्द्र ने कितने कष्ट उठाये,
रखने अपने संकल्प का मान 
मेरे सास ससुर ने भी अंजुली में जल भर कर 
एक महान काम किया था 
अपनी बेटी को मुझे दान दिया था 
बड़े बड़े ऋषि ,जब कुपित होते थे,
अंजुली में जल भर कर शाप दिया करते थे 
जिससे दुष्यंत जैसे राजा,
शकुन्तला को भुला दिया करते थे
अगस्त्य मुनी को तो,
समुद्र ने इतना कुपित किया था 
कि उन्होंने ,तीन अंजुली में ,समुद्र पी लिया था 
जब कोई भ्रष्टाचार उजागर होता है ,
या कोई शर्मनाक बात होती है 
तो ये चुल्लू भर पानी में ,डूबने वाली बात होती है 
हम रोज रोज,समाचार पढ़ते है ,
कि हमारे नेता ,अगस्त्य मुनी की तरह,
देश की दौलत के अथाह समुद्र को ,
अंजुली में भर भर कर पिए जा रहे है 
और हम प्यासे छटपटा  रहे है  
 अंजुली भर पानी की महत्ता देख कर ,
मेरे मन में आया है एक विचार 
कि जब भी सरकार में,
किसी बड़े अधिकारी का अपोइन्टमेंट  हो,
या मंत्री को शपथ दिलाई जाए अबकी बार 
तो उनके हाथ में अंजुली भर जल भर कर  ,
उनसे लिया जाए ये वचन ,
कि जनता की सच्चे दिल से सेवा करेंगे हम 
और बेईमानी ,भ्रष्टाचार या घोटालों से ,
मीलों दूर  रहेंगे  हम 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
    

शुक्रवार, 24 मई 2013

गैया के सींगों से डरिये

       

गैया जैसी भोली जनता ,तुम माँ कह कर जिसे बुलाते 
मीठी मीठी बातें करके ,आश्वासन की घास चराते 
बछड़े के मुख,छुआ स्तन, सारा दूध दुहे तुम जाते 
पगहा बंधन बाँध रखा है ,जिससे वो ना मारे लातें 
उसका बछड़ा भूखा पर तुम,मुटिया रहे दूध  पी पीकर 
बचे दूध की बना मिठाई ,या मख्खन खाते हो जी भर 
बूढी होती,काटपीट कर ,मांस भेज देते विदेश में 
तुम कितने अत्याचारी हो ,हो कसाई तुम श्वेत वेश में 
गाय दुधारू ,पर मत भूलो ,उसके सींग ,बड़े है पैने 
जिस दिन वो विद्रोह करेगी ,पड  जाये लेने के देने 
तो समझो,चेतो नेताजी ,बहुत खा लिया,अब मत खाओ 
भूखी गैया तड़फ रही है, उसे पेट भर घास खिलाओ 
उसको गुड दो और बंटा दो,माँ कहते हो ,ख्याल रखो तुम 
उसके बछड़े के हिस्से का,दूध उसी को पीने दो तुम 
अगर किसी दिन आक्रोशित हो,सींग उठा यदि दौड़ी गायें 
और पडी तुम्हारे पीछे , दौडोगे  तुम दायें ,बायें 
गैया के सींगों से डरिये ,जिस दिन ये तुमपर भड़केगी 
अपना हक पाने के खातिर , तुम्हे हटा कर ही दम लेगी 

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 



बूढ़े नेता

          बूढ़े नेता 
        
अक्सर ये देखा है ,
फूल जो गंधहीन होते है ,
ज्यादा समय तक ,
खिले रहते ,टिकते है 
कई तो बारह माह ही विकसते है 
और खुशबू वाले फूल ,जो अपनी सुगंध से ,
वातावरण को महकाते है 
जल्दी से मुरझाते है ,
या तोड़ लिए जाते है 
तो श्रीमान  ,
अब तक तो आप गए होंगे जान 
कि मानवता और संवेदनशीलता की,
खुशबू से विहीन ,हमारे नेता ,
बूढ़े होने पर भी ,सत्ता की टहनी पर ,
क्यों रहते है विराजमान 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू' 

गुरुवार, 23 मई 2013

सुरक्षा

                

तपती धूप  और गर्मी में,
गली गली और सड़कों पर ,
घूम घूम वोट मांगने वाले नेताजी ,
जब मंत्री बन गए चुनाव जीत कर 
तो उन्हें अपनी सुरक्षा का ख्याल आया 
और उनकी सुरक्षा के लिए ,
'ब्लेक केट'का एक दस्ता आया 
गली गली जब वोट मांगते  थे तो,
सुरक्षा की उन्हें नहीं थी परवाह 
पर मंत्री  पद पाते ही,
हो गयी है सुरक्षा की चाह 
क्योंकि ,अब वो डरते है बेचारे  
कुर्सी पर बैठ कर किये गए उनके घोटाले 
अगर उजागर हो गए ,
तो जनता उन्हें जूते ना मारे 

मदन मोहन बाहेती' घोटू'  

जनता का ख्याल

       

मंत्री बनते ही ,नेताजी ने कर दिया एलान 
वो जब भी पार्लियामेंट या, किसी आयोजन में जाते है,
तो सुरक्षा के कारणों से ,
सारे रास्ते कर दिए जाते है जाम 
इससे जनता होती है  परेशान  
इसलिए करवाया जाए कोई एसा  इंतजाम 
जिससे जनता न हो परेशान 
अब उनके बंगले में तैनात है एक हेलिकोफ्टर 
जिस पर चढ़ ,वो जाते है इधर उधर 
और आने जाने में ,
ज्यादा समय भी नहीं होता है बेकार 
देखा ,नेताजी को जनता की परेशानी का ,
है कितना ख्याल !

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

तलाक़

           
             तलाक़  
एक नेताजी,जो बड़े संस्कारी है 
और जिन्हें कुर्सी बड़ी प्यारी  है 
पूजा पाठ और कर्मकांड में विश्वास रखते है 
(और बड़े बड़े काण्ड करते है )
उन्होंने एक  आयोजन करवाया 
अपने  भरोसे वाले पंडितजी को बुलवाया 
विवाह संस्कार के सारे कर्मकांडो को करवाया 
खुद दूल्हा बने  और,
कुर्सी को दुल्हन बनवाया 
 कुर्सी के साथ विवाह वेदी के सात फेरे भी लिये 
और जनम जनम का साथ निभाने के 
सात वचन भी दिये 
पर बदकिस्मती से ,अगले चुनाव में ,
उनकी पार्टी का सूपड़ा साफ़ हो गया 
और बेचारे नेताजी का,
कुर्सी से तलाक़ हो गया 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

वाटर ऑफ़ गेंजेस

   

जादूगर,अक्सर एक जादू दिखाते रहते है
जिसे वाटर ऑफ़ गेंजेस कहते है
जिसमे जादूगर एक खाली बर्तन दिखाता है
थोड़ी देर में उसमे पानी भर आता है 
वो उसे फिर खाली कर देता है
और जादू से ,थोड़ी देर में फिर भर देता है
इस तरह बर्तन खाली होता और भरता  रहता है
पूरे खेल तक ये सिलसिला चलता रहता है   
माननीय मनमोहनसिंह जी के हाथ
नौ बरस पहले आया था खाली गिलास
उन्होंने जादूगर की तरह उसे पानी से भर दिया
पर कामनवेल्थ गेम के घोटाले ने उसे खाले कर दिया
उन्होंने जादू  से फिर भरा
अबकी बार टू जी के घोटाले ने खाली करा
अगली बार फिर भरा
तो कोल गेट ने खाली करा  
पिछले नौ साल से ये ही सिलसिला चल रहा है
गिलास खाली हो हो कर भर रहा है
गिलास अब भी खाली का खाली है ,
पर कोई बात ना चिंता की है
'वाटर ऑफ़ गेंजेस 'का खेल ख़तम होने में ,
एक बरस बाकी है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मंगलवार, 21 मई 2013

बदलती दुनिया

         

इलास्टिक ने नाडे  को गायब किया ,
और ज़िप आई,बटन को खा गयी 
परांठे ,पुरियों को पीज़ा का गया ,
सिवैयां ,चाइनीज नूडल खा गयी 
दादी नानी की कहानी खा गए,
टी वी पर ,दिनरात चलते सीरियल 
चिट्ठियां और लिफाफों को खा गए ,
एस एम् एस और ई मेल ,आजकल 
स्लेट पाटी ,गुम  हुई,निब भी गयी ,
होल्डर,श्याही की बोतल और पेन 
आजकल  ये सब नज़र आते नहीं ,
बस चला करते है केवल जेल  पेन 
फोन काले चोगे वाला खो गया ,
सब के हाथों में है मोबाईल हुआ 
नज़र टाईप राईटर आते नहीं,
कंप्यूटर है  ,इस तरह काबिज हुआ 
लाला की परचून की सब दुकाने,
बड़े शौपिंग माल सारे खा गए 
बंद सब एकल सिनेमा हो गए ,
आज मल्टीप्लेक्स इतने छा  गए 
ग्रामोफोन और रेडियो गायब हुए,
सारा म्यूजिक अब डिजिटल हो गया 
इस कदर है दाम सोने के बढे ,
चैन से सोना भी मुश्किल  हो गया 
एक पैसा,चवन्नी और अठन्नी ,
नोट दो या एक का अब ना मिले 
दौड़ता है मशीनों सा आदमी ,
जिन्दगी में चैन भी अब ना मिले 
चोटियाँ और परांदे गुम  हो गए ,
औरतों के कटे ,खुल्ले  बाल है 
नेताओं ने देशभक्ती छोड़ दी ,
लगे है सब लूटने में माल है 
अपनापन था,खुशी थी ,आनंद था 
होते थे संयुक्त सब परिवार जब 
छह डिजिट की सेलरी तो हो गयी ,
सिकुड़ कर एकल हुए परिवार अब 
सभी चीजें ,छोटी छोटी हो गयी ,
आदमी के दिल भी छोटे हो गए
समय के संग ,बदल हम तुमभी गए  
मै हूँ बूढा ,जवां तुम भी ना रहे 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

आप आये



बहुत तडफा ,मन अभागा 
कई,कितनी रात जागा 
जब सपन  तुमने चुराये 
आप आये 
पावडे ,पलकें पसारे 
राह तुम्हारी  निहारे 
मिलन को मन छटपटाये 
आप आये 
नींद नैनों से रही जुड़ 
देख कर तुमको गयी उड़ 
प्रेम अश्रु ,डबडबाये
आप आये 
बांह में, मै  तुम्हे भरके 
तन ,बदन मन एक करके 
एक दूजे में समाये 
आप आये 

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

बरसों बीते

           
 बरसों बीते ,बरस बरस कर 
कभी दुखी हो ,कभी हुलस कर 
जीवन सारा ,यूं ही गुजारा ,
हमने मोह माया में फंस कर 
कभी किसी को बसा ह्रदय में ,
कभी किसी के दिल में बस कर 
कभी दर्द ने बहुत रुलाया ,
आंसू सूखे,बरस बरस कर 
और कभी खुशियों ने हमको ,
गले लगाया ,खुश हो,हंस कर 
हमने जिनको दूध पिलाया ,
वो ही गए हमें  डस डस  कर 
यूं तो बहुत हौंसला है पर,
उम्र गयी हमको बेबस  कर 
और बुढ़ापा ,लाया स्यापा ,
कब तक जीयें,तरस तरस कर 
ऊपर वाले ,तूने  हमको ,
बहुत नचाया,अब तो बस कर 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बुढापे की थकान

    

आजकल हम इस कदर से थक रहे है 
ऐसा लगता ,धीरे धीरे   पक रहे  है 
बड़े मीठे और रसीले हो गये  है,
देखने में पिलपिले  से लग रहे है
दिखा कर के चेहरे पे नकली हंसी ,
अपनी सब कमजोरियों को ढक रहे है 
अपने दिल का गम छुपाने के लिए,
करते सारी कोशिशे  भरसक रहे  है 
नहीं सुनता है हमारी कोई भी , 
मारते बस डींग हम नाहक रहे है 
सर उठा कर आसमां को देखते,
अपना अगला आशियाना  तक रहे है 
'घोटू'करना गौर मेरी बात पर ,
मत समझना यूं ही नाहक बक रहे है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

 

गलियों का मज़ा

           

प्रेम की सकड़ी गली में दो समा सकते नहीं ,
कृष्ण राधा मिलन साक्षी ,कुञ्ज की गलियाँ रही 
रसिक भंवरा ही ये अंतर बता सकता है तुम्हे 
फूलों में ज्यादा मज़ा या फिर मज़ा कलियों में है 
काजू,पिश्ता,बादामों का ,अपना अपना स्वाद पर 
सर्दियों में,धुप में ,फुर्सत में ,छत पर बैठ कर 
खाओगे,मुंह से लगेगी ,छोड़ पाओगे नहीं,
छील करके खाने का ,जो मज़ा मूंगफलियों में है 
कंधे से कंधा मिलाओ,भले टकरा भी गये 
कोई कुछ भी ना कहेगा ,गली का कल्चर है ये 
इसलिये लगती भली है 'घोटू'हमको ये गली,
वो मज़ा या थ्रिल कभी आता न रंगरलियों में है 
बनारस की सकड़ी गलियाँ ,प्यारी रौनक से भरी ,
दिल्ली की वो चाट पपड़ी ,परांठे वाली  गली 
जलेबी सी टेडी मेडी ,पर रसीली स्वाद  है ,
नहीं सड़कों पर मिलेगा, जो मज़ा  गलियों में है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मन सनातन

   

विषय भोगों से सना तन 
 मन सनातन 
मांस मज्जा से बना तन ,
 मन सनातन 
ज्ञान गीता भागवत का सुना करते 
और सपने स्वर्ग के हम बुना  करते 
मंदिरों में चढ़ाया करते   चढ़ावा 
कर्मकांडों को बहुत देते बढ़ावा 
तीर्थाटन ,धर्मस्थल ,देवदर्शन 
मगर माया मोह में उलझा रहे मन 
सोच है  लेकिन पुरातन 
मन सनातन 
कामनाये  ,काम की, हर दम मचलती
लालसाएं कभी भी है  नहीं घटती 
और जब कमजोरियों का बोध आता 
कभी हँसते ,या स्वयं पर क्रोध  आता 
इस तरह संसार के   बंध  गए बंधन
समस्यायें आ रही है नित्य  नूतन 
तोड़ बंधन ,करें चिंतन 
मन सनातन

मदन मोहन बाहेती'घोटू'  
 

सीटियाँ

    
जवानी में खूब हमने बजाई थी सीटियाँ,
                     लड़कियों को छेड़ने या फिर  पटाने  वास्ते 
और चौकीदार भी सीटी बजाता रात भर,
                     चौकसी रखने को  और सबको जगाने वास्ते 
स्कूलों के दिनों में ,करने किसी को हूट हम,
                      जीभ उंगली से दबाते ,निकलती थी सीटियाँ 
और पिक्चर हॉल में,हेलन का आता डांस जब ,
                      याद है हमको बहुत थी बजा करती  सीटियाँ 
सनसनाती जब  हवाएं,बजाती है सीटियाँ,
                        करके विसलिंग ,कई आशिक ,बात दिल की सुनाते 
डरते है सुनसान रस्ते पर अकेले लोग जब,
                          पढ़ते है हनुमान चालीसा या सीटी   बजाते 
होठ करके गोल हम सीटी बजा कर बोलते ,
                          यारों 'आल इज वेल'है ,ये सीटियों का खेल है 
चलने से पहले या रस्ता साफ़ करने के लिए,
                            हमने देखा,हमेशा सीटी बजाती रेल है 
बस में कंडक्टर बजाता ,सड़क पर ट्राफिक पुलिस ,
                              ड्रिल कराता 'पी .टी .'टीचर और बजाता सीटियाँ 
और प्रेशर कुकर में जब ,जाते सब्जी ,दाल पक,
                               ध्यान तुम्हारा दिलाने  ,वो बजाता सीटियाँ  
जब किसी को देख कर के,मन में सीटी सी बजे ,
                                तो समझ लो इश्क का है पहला सिग्नल मिल गया 
उस हसीना स्वीटी से ,शादी करी,सीटी बजी ,
                                तो गए तुम काम से और तुम्हारा दिल भी गया 
फाउल हो तो छोटी बजती ,गोल तो लम्बी बजे,
                                 बजाता रहता है सीटी ,रेफरी फूटबाल  में 
इश्क की या चौकसी की,मस्ती की या खुशी की ,
                                  सीटियाँ तो बजती ही रहती ,सदा ,हर हाल में 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'   
 

रविवार, 19 मई 2013

श्री और संत का खेल

    

फंसा बुकी जाल में हूँ,खिलाड़ी कमाल मै हूँ,
        पिच पे की घिचपिच ,घोटाला  विराट है 
हरे हरे फील्ड पर ,कमाने को हरे नोट ,
       हारने को किये फिक्स ,थोड़े स्पॉट   है 
फेंक कर के नो बाल ,रन दो तो मिले माल,
       एक ही पारी में ऐसे , रन दिए  आठ है 
धन का अनंत खेल ,श्री और संत मेल,
          अंत में मिले है जेल, खोये ठाठबाट  है 

घोटू 

मिर्च मसाले

      

मसाला ,
ये शब्द होता है बड़ा प्यारा 
क्योंकि इसमें आता है साला 
हर एक की अलग अलग खुशबू ,
अलग अलग स्वाद 
जीवन और खाने को बनाते है लाजबाब 
सबका अपना अपना रूप रंग होता है 
जैसे हल्दी पीली और धनिया गोल होता है 
जीरा ,जीर्ण शीर्ण ,राइ गोल नन्ही सी ,
और लोंग  माथे पर ,मुकुट सा पहने सी 
सिर्फ एक मिर्ची है जो कई रंगों वाली है 
हरी,लाल,पीली है और कभी काली है 
मोटी  है ,पतली है, लम्बी है, छोटी है
और गोलमोल कालीमिर्च होती है 
तुंदियल सी शिमलामिर्च  
लाल,हरी और पीली होती है 
और छोटी सी लोंगा मिर्च ,
ज़रा सी खा लो तो मुंह में आग लगा दे,
इतनी चरपरी होती है 
भोजन में चटकारे,सारे के सारे,
मिर्ची से ही आते है 
लोग सी सी कर ,सिसकारियां  भरते है  ,
पर चाव से खाते है 
बिना मिर्ची के,चाट का ठाठ,
एकदम फीका पड़ जाता है 
जितनी झन्नाट  होती है,उतना मज़ा आता है 
आज खालो,तो दुसरे दिन सुबह तक,
अपना असर दिखाती है 
पर खाने की रंगत ,मिर्ची से ही आती  है 
इस जीवन में रंगत और स्वाद ,
साले और बीबी से ही आता है 
लोग भले ही सी सी करते है,पर सुहाता है 
इसीलिये साले ,मसाले की तरह होते है ,
और औरत को मिर्ची भी कहा जाता है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'