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मंगलवार, 21 मई 2013

बुढापे की थकान

    

आजकल हम इस कदर से थक रहे है 
ऐसा लगता ,धीरे धीरे   पक रहे  है 
बड़े मीठे और रसीले हो गये  है,
देखने में पिलपिले  से लग रहे है
दिखा कर के चेहरे पे नकली हंसी ,
अपनी सब कमजोरियों को ढक रहे है 
अपने दिल का गम छुपाने के लिए,
करते सारी कोशिशे  भरसक रहे  है 
नहीं सुनता है हमारी कोई भी , 
मारते बस डींग हम नाहक रहे है 
सर उठा कर आसमां को देखते,
अपना अगला आशियाना  तक रहे है 
'घोटू'करना गौर मेरी बात पर ,
मत समझना यूं ही नाहक बक रहे है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

 

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