एक सन्देश-

यह ब्लॉग समर्पित है साहित्य की अनुपम विधा "पद्य" को |
पद्य रस की रचनाओ का इस ब्लॉग में स्वागत है | साथ ही इस ब्लॉग में दुसरे रचनाकारों के ब्लॉग से भी रचनाएँ उनकी अनुमति से लेकर यहाँ प्रकाशित की जाएँगी |

सदस्यता को इच्छुक मित्र यहाँ संपर्क करें या फिर इस ब्लॉग में प्रकाशित करवाने हेतु मेल करें:-
kavyasansaar@gmail.com
pradip_kumar110@yahoo.com

इस ब्लॉग से जुड़े

शनिवार, 6 सितंबर 2025

पत्नी का मैके जाना 

मेरी पत्नी गई है मैके 
है हाल मेरे कुछ ऐसे 
सुख बोलूं या दुख बोलूं 
जो मुझे गई वो मुझको देके 

सुख उसे इसलिए कहता
मैं आजादी से रहता 
मैं अपने मन का मौजी
मन चाहे वैसा रहता

ना रोक ना टोका टाकी 
और ना अनुशासन बाकी 
स्वछंद गगन में उड़ता 
मै बंद पिंजरे का पांखी 

 बस एक-दो दिन या राती 
 आजादी मन को भाती 
फिर हर पल हर क्षण रह रह,
 पत्नी की याद सताती 

हो जाती शुरू मुसीबत 
खाने पीने की दिक्कत 
खुद खाओ खुद ही पकाओ 
बर्तन मांजो की आफत 

एकाकी मान ना लगता 
मैं रात रात भर जगता 
करवट बदलो तो बिस्तर 
खाली-खाली सा लगता 

बेगम जो नहीं तो गम है 
तन्हाई का आलम है 
बीवी को कहीं ना भेजो 
अब खा ली मैंने कसम है

मदन मोहन बाहेती घोटू 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।

हलचल अन्य ब्लोगों से 1-