घोटू के पद
मन,तू ,क्यों कूतर सा भागे
मन तू,क्यों कूतर सा भागे
मै तेरे पीछे दौडत हूँ,और तू आगे आगे
भोर भये तू शोर मचावत ,घर की देहरी लांघे
तेरी डोर ,हाथ मेरे पर, सधे नहीं तू साधे
इत उत सूँघत ,पीर निवारे,इधर उधर भटकाके
रहत सदा चोकन्ना पर तू,रखे मोहे उलझाके
'घोटू'स्वामिभक्त कहाये,निस दिन नाच नचाके
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
गोपी पनघट-पनघट खोजे
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गोपी पनघट-पनघट खोजेसुंदरता की खान छिपी है प्रेम भरा कण-कण में जग के , छोटा
सा इक कीट चमकता रोशन होता सागर तल में !बलशाली का नर्तन अनुपम भीषण पर्वत,
गहरी खा...
15 घंटे पहले
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