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सोमवार, 30 अक्टूबर 2023
गुरुवार, 26 अक्टूबर 2023
बच्चों का जीविका पथ
तुम थे पहले दाल चने की ,
हमने बना दिया है बेसन
मीठे या नमकीन बनोगे ,
इसका निर्णय अब लोगे तुम
गाठिया,सेव ,फाफड़े बनकर
चाहोगे तुम स्वाद लुटाना
या कि ढोकले और खांडवी
गरम पकोड़े से बन जाना
मीठा मोहन थाल बनो तो
गरम आंच में तपना होगा
मोतीचूर अगर बनना है ,
पहले बूंदी बनना होगा
बेसन के लड्डू बन कर के
प्रभु प्रसाद बनना चाहोगे
या फिर कढ़ी, बेसनी रोटी
या चीला बन सुख पाओगे
बन सकते हो छप्पन व्यंजन
सबका होगा स्वाद सुहाना
रूप कोई सा भी ले लेना ,
लेकिन सबके मन तुम भाना
मदन मोहन बाहेती घोटू
शनिवार, 21 अक्टूबर 2023
रविवार, 15 अक्टूबर 2023
बोलो राम राम श्याम
एक हैं मेरे प्यारे राम
एक हैं मुरलीधर घनश्याम
दोनों का में सुमरू नाम
बोलो राम राम श्याम
दोनों के दोनों अवतारी
दोनों की छवि सुंदर प्यारी
दोनों हरते कष्ट तमाम
बोलो राम राम श्याम
एक थे जन्मे बन रघुराई
एकआये बन किशन कन्हाई
भाई लक्ष्मण और बलराम
बोलो राम राम श्याम
एक में रावण को संहारा
एक ने मामा कंस को मारा
सबको पहुंचा उस धाम
बोलो राम राम श्याम
एक की लीला वृंदावन में
एक थे चौदह वर्षों वन में
लिया किसी ने नहीं विश्राम
बोलो राम राम श्याम
एक थी कृष्णा बांके बिहारी
एक राम जी अवध बिहारी
मुक्ति देता दोनों का नाम
बोलो राम राम श्याम
एक थे चक्र सुदर्शन धारे
एक थे तीरंदाज निराले
दोनों के दोनों बलवान
बोलो राम राम श्याम
एक में सागर सेतु बनाया
एक ने द्वारका नगर बसाया
दोनों की छवि है अभिराम
बोलो राम राम श्याम
एक थे मर्यादा पुरुषोत्तम
एक थे ज्ञानी और विद्वन
दिया एक ने गीता का ज्ञान
बोलो राम राम श्याम
मदन मोहन बाहेती घोटू
बुझते दीपक
जिनने सदा अंधेरी रातों ,में जल किये उजाले है
इनमें फिर से तेल भरो , ये दीपक बुझने वाले हैं
अंधियारे में सूरज बनकर, जिनने ज्योति फैलाई
सहे हवा के कई थपेड़े ,पर लौ ना बुझने पाई
है छोटे, संघर्षशील पर ,सदा लड़े तूफानों से
इनकी स्वर्णिम छटा ,हमेशा खेली है मुस्कानों से
इनके आगे घबराते हैं ,पंख तिमिर के काले हैं
इनमें फिर से तेल भरो, ये दीपक बुझने वाले हैं
हो पूजन या कोई आरती दीप हमेशा जलते हैं
दिवाली की तमस निशा को, जगमग जगमग करते हैं
शुभ कार्यों में दीप प्रज्वलन होता है मंगलकारी
स्वर्णिम दीप शिखा लहराती ,लगती है कितनी प्यारी
बाती में है भरा प्रेम रस, मुंह पर सदा उजाले हैं
इनमें फिर से तेल भरो ,ये दीपक बुझने वाले हैं
है बुजुर्ग मां-बाप तुम्हारे,ये भी बुझते दिये हैं
किये बहुत उपकार तुम्हारे ,सदा दिये ही दिये हैं
खत्म हो रहा तेल ,उपेक्षा की तो ये बुझ जाएंगे
इनमें भरो प्रेम रस थोड़ा, ये फिर से मुस्कुराएंगे
इनकी साज संभाल करो , ये तुमको बहुत संभाले हैं
इनमें फिर से तेल भरो , ये दीपक बुझने वाले हैं
मदन मोहन बाहेती घोटू
गुरुवार, 12 अक्टूबर 2023
लो जीवन का एक दिन और गुजर गया और उमर एक दिन से और घट गई
बस ऐसे ही धीरे-धीरे जिंदगी कट गई
जब हम व्यस्त ना होकर भी व्यस्त रहते हैं उम्र के इस दौर को बुढ़ापा कहते हैं
सुबह उठो
नित्य कर्म में जुटो
फिर सुबह की सैर पर निकल जाओ
फिर यारों की मंडली में बैठ कर गप्पे मारो और मन को बहलाओ
थोड़ा सा व्यायाम कर लो
अनुलोम विलोम कर धीमी और तेज सांस भर लो
फुर्ती से भर जाएगा आपका अंग अंग फिर घर जाकर चाय की चुस्कियां लो बिस्कुट के संग
और फिर आज का ताजा अखबार चाटो एक-एक छोटी-मोटी खबर पढ़ वक्त काटो फिर लो फलों का स्वाद
नाश्ते के पहले या नाश्ते के बाद
फिर जो हो तो छोटा-मोटा काम करो
और फिर थोड़ी देर लेट कर आराम करो
इस बीच हमेशा मोबाइल रहेगा साथ
देखते रहना फेसबुक व्हाट्सएप और करते रहना दोस्तों से जरूरी गैर जरूरी बात
तब तक लंच का टाइम हो जाना है
खाना खाकर थोड़ा सा सो जाना है
और शाम को उठकर पियो चाय
और थोड़ा सा नाश्ता
स्विगी से मंगा सकते हो पिज़्ज़ा या पास्ता नहीं तो खाओ घर का डिनर
और टीवी पर देखते रहो सीरियल
याद रखो कोई भी प्रोग्राम जिसके बाद मिलता हो भंडारा या प्रसाद
उसे अटेंड करना नहीं भूलना
क्योंकि इसे बदल जाता है मुंह का स्वाद बीच में टाइम के हिसाब से दवाइयां लेना भी है जरूरी
स्वस्थ रहने की है मजबूरी
यूं ही जीवन चलता रहेगा बे रोकटोक
बीच में अच्छी लगती है बीवी से नोंकझोंक
फिर जब लगे झपकी , सो जाओ
सपनों की दुनिया में खो जाओ
यूं ही चलता रहता है जीवन का क्रम
अभी मैं जवान हूं यह गलतफहमी पालने का भ्रम
आदमी में भर देता है उत्साह और नवजीवन
बिना काम के भी व्यस्त रहकर दिनचर्या सिमट गई
लो एक दिन उम्र और घट गई
ऐसे ही धीरे धीरे जिन्दगी कट गई
मदन मोहन बाहेती घोटू
सोमवार, 9 अक्टूबर 2023
मुझे स्वर्ग से भी बढ़कर लगता है प्यारा
मेरी जन्म भूमि आगर ने मुझे संवारा
मैंने जो भी पाई सफलता है जीवन में
बोया उसका बीज गया था इस आंगन में
याद आता है मिट्टी से वह पुता हुआ घर
सीखा चलना मां की उंगली पकड़ पकड़ कर
सीखा था अ से अनार और क से ककड़ी
पूरी बारह खड़ी, याद थी मैंने कर ली
रटे एक से चालीस तक के सभी पहाड़े
और छड़ी से मिली मास्टर जी की मारे
शैतानी का दंड , हमें मुर्गा बनवाना
वो गिल्ली,वो डंडा और वो पतंग उड़ाना
वो स्लेटें,वो झोला और टाट की पट्टी
वह पल-पल में हुई दोस्ती, पल में कट्टी
वह तालाब में कपड़े धोना और नहाना
रामआसरे की सेव,चौधरी रबड़ी खाना
वह प्यारे स्वादिष्ट सिंघाड़े ,काले काले
वो खिरनी, जामुन ,आम मीठे रस वाले
वो शहर का हाई स्कूल दरबार की कोठी
दादी हाथों पकी जुवारी की वह रोटी
भाई बहन के संग हुई जो पल-पल मस्ती
होती थी परिवार ,गांव की पूरी बस्ती
सोमवार को बैजनाथ , दर्शन को जाना
रास्ते में झाड़ी से तोड़ करौंदे खाना
दशहरे को आते जब रावण का वध कर
पैर बुजुर्गों के छूते थे, घर-घर जाकर
मां का लाड़ दुलार और वह पालन पोषण
मिली पिताजी की शिक्षाएं और अनुशासन
रोज शाम को छत पर जाकर गिरना तारे
क्या क्या करें याद हम ,क्या क्या और बिसारे
जब भी आती याद,बहुत विव्हल होता मन
आंखों आगे , नाचा करता ,मेरा बचपन
यहां की माटी लाल, मेरा तो है यह चंदन
मातृभूमि तुझको मेरा शत शत अभिनंदन
मदन मोहन बाहेती घोटू
रविवार, 8 अक्टूबर 2023
राधा तू बड़भागिनी, कौन तपस्या कीन
तीन लोक तारण तरण
है तेरे आधीन
राधे राधे तेरे नाम ने, सबके कारज साधे
बोलो राधे राधे राधे ,बोलो राधे राधे राधे
राधे तू बरसाने वाली
सब पर सुख सरसाने वाली
तेरी सूरत प्यारी प्यारी
कान्हा के मन भाने वाली
अपनी प्यारी युगलछवि के
तू दर्शन करवा दे
बोलो राधे राधे राधे ,बोलो राधे राधे राधे
मेरे प्यारे कृष्ण मुरारी
मेरे गोवर्धन गिरधारी
ऐसी प्रीत लगाई तुझ पर
वो तो जाएं वारी वारी
मुग्ध हो गए,तेरे रूप ने
रक्खा उनका बांधे
बोलो राधे राधे राधे बोलो राधे राधे राधे
कान्हा बंसी मधुर बजाते
कान्हा तुझ पर प्यार लुटाते
जमुना तट पर, बंसी वट पर
तुझ संग रास रचाते
एक झलक उस महारास की
हमको भी दिखला दे
बोलो राधे राधे राधे ,बोलो राधे राधे राधे
कान्हा ऐसे भये दीवाने
प्रीत तेरे संग जोड़ी
राधे कृष्णा , राधे कृष्णा
अमर हो गई जोड़ी
हम भक्तों पर भी थोड़ी सी
किरपा तू बरसा दे
बोलो राधे राधे राधे
बोलो राधे राधे राधे
मदन मोहन बाहेती घोटू