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गुरुवार, 26 अक्तूबर 2023

जाकी रही भावना जैसी 

एक मूरत पत्थर की 
मैंने भी देखी, तुमने भी देखी 
मैंने उसमें ईश्वर देखा 
तुमने उसमें पत्थर देखा 
मैंने उसमें दिखाई श्रद्धा और विश्वास तुमने उड़ाया उसका उपहास 
तुम्हारा मखौल
नहीं कर सका मुझे डांवाडोल 
मेरी आस्तिकता बनी रही 
तुम्हारी नास्तिकता से डरी नहीं 
मेरी आस्था और निष्ठा
ने की उसमें प्राण प्रतिष्ठा 
तुम्हारी आलोचना और अविश्वास 
दिखाता रहा नास्तिकता का अहसास 
मैंने पूरी आस्था के साथ
उसे चेतन समझा तो वह चैतन्य हो गया उसने मेरी मनोकामना पूर्ण की 
मैं धन्य हो गया 
तुम पत्थर को अपनी तार्किक बुद्धि के साथ जड़ ही समझते रहे
तुममें नम्रता नहीं आई
और तुम जड़ के जड़ ही रहे
उस पत्थर ने जिसे मैने इश्वर समझा था
उसने इश्वर बन मेरा उपकार किया
और उसने जिसे तुमने पत्थर समझा था
तुम्हारे संग पत्थर सा व्यवहार किया
जाकी रही भावना जैसी
प्रभु मूरत देखी तिन तैसी

मदन मोहन बाहेती घोटू 

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