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शनिवार, 1 जुलाई 2023

साठ के पार 

साठ बरस की उम्र एक ऐसा पड़ाव है 
जब बुढ़ापा आता दबे पांव है 
पर आदमी जब होता है पिचोहत्तर के पार 
तब खुल्लम-खुल्ला बनता है उम्र का त्यौहार अनुभव की गठरी साथ होती है 
तब बूढ़ा होना गर्व की बात होती है 
भले ही बालों में सफेदी हो या झुर्रियां हो तन में 
मैंने एक अच्छा जीवन जिया है ,संतोष होता है मन में 
लेकिन जब धीरे-धीरे उम्र और बढ़ती जाती है 
उम्र जन्य कई बीमारियां हमें सताती है 
तन में शिथिलता व्याप्त होती है 
थोड़ी थोड़ी याददाश्त खोती है 
फिर भी लंबा जीने की तमन्ना बढ़ती जाती है 
जैसे बुझने के पहले दीपक की लौ फड़फड़ाती है
नहीं छूटती है माया मोह और आसक्ति 
जब की उम्र होती है करने की ईश्वर की भक्ति सचमुच को होता है बड़ा अचंभा 
आदमी बुढ़ापे से तौबा करता है,
 फिर भी चाहता है जीना लंबा

मदन मोहन बाहेती घोटू 

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