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शनिवार, 1 जुलाई 2023

बुढ़ापे का आलम 

आजकल अपने बुढ़ापे का यह आलम है 
नींद तो आती कम है 
तरह तरह के ख्याल आते है
 ख्याल क्या बवाल आते हैं 
 पुराने जमाने की हीरोइने सारी 
 याद आती है बारी बारी
 जैसे कल ही मैंने सपने में देखा 
 सजी-धजी सी *उमरावजान की रेखा *
 मुझको लुभा रही थी 
 वो गाना गा रही थी 
 *दिल चीज क्या है आप मेरी जान लीजिए *
 *बस एक बार मेरा कहा मान लीजिए*
  मेरी हो रही थी फजीहत 
  उसका कहा मानने की बची ही कहां है हिम्मत 
उसकी मांग जबरदस्त थी
  पर मेरी हिम्मत पस्त थी 
  मैंने झट चादर से अपना मुंह ढक डाला 
  तभी सामने आ गई *संगम की वैजयंतीमाला* 
उसका रूप था बड़ा सुहाना 
 और वह शिकायत भरे लहजे में गा रही थी गाना 
*मैं का करूं राम मुझे बुड्ढा मिल गया *
 सकपकाहट से मेरा मुंह सिल गया 
 मैं घबराया , शरमाया, सकुचाया
 कुछ भी नहीं बोल पाया 
 मैंने अपने ध्यान को इधर उधर भटकाया 
 पर सुई थी वही पर गई अटक 
 और मेरे सामने *पाकीजा की मीना कुमारी *हो गई प्रकट 
 और मुझे देख कर मुस्कुराने लगी 
 और मुझको चिढ़ाने लगी
  *ठाड़े रहियो ओ बांके यार *
  *मैं तो कर लूंगी थोड़ा इंतजार *
  मैंने कहा मैडम 
  इन हड्डियों में नहीं बचा है इतना दम 
 जवानी वाले हालात नहीं है 
ज्यादा देर तक खड़े रहना मेरे बस की बात नहीं है 
झेल कर इस तरह की मानसिक यातना 
मेरा मन हो जाता है अनमना 
मैं होने लगता हूं विचलित 
ऊपर से पूछती है *खलनायक की माधुरी दीक्षित* 
*चोली के पीछे क्या है *
*चुनरी के नीचे क्या है *
अब आप ही बताइए 
मुझे से खेले खाये खिलाड़ी से यह पूछना कहां तक है उचित 
यह सब है बुढ़ापे का त्रास 
मुझे लगता है सब उड़ाती है मेरा उपहास
इसलिए आजकल खाने लगा हूं 
बाबा रामदेव का च्यवनप्राश

मदन मोहन बाहेती घोटू 

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