पृष्ठ

शुक्रवार, 30 अप्रैल 2021

Re:

वाह वाह


On Fri, Apr 30, 2021, 7:06 PM madan mohan Baheti <baheti.mm@gmail.com> wrote:
बिटिया से

कल का सूरज ,अच्छी सेहत ,खबर ख़ुशी की लाएगा
मत घबरा बिटिया रानी सब ठीक ठाक हो जाएगा

परेशानियां तो जीवन के साथ लगी ही रहती है
कभी गर्म तो सर्द हवायें ,बासंती भी बहती  है
तिमिर हटेगा ,फिर प्राची से ,उजियारा मुस्काएगा
मत घबरा ,बिटिया रानी सब ठीकठाक हो जाएगा

ज्यादा दिन तक,कभी नहीं टिकते, ये दिन दुखयारे है
धीरज धर ,बैचैन न हो तू ,हम सब साथ तुम्हारे है
कठिन समय बीतेगा ,ईश्वर ,खुशियां भी बरसायेगा
मत घबरा ,बिटिया रानी ,सब ठीक ठाक हो जाएगा

पापा 
बिटिया से

कल का सूरज ,अच्छी सेहत ,खबर ख़ुशी की लाएगा
मत घबरा बिटिया रानी सब ठीक ठाक हो जाएगा

परेशानियां तो जीवन के साथ लगी ही रहती है
कभी गर्म तो सर्द हवायें ,बासंती भी बहती  है
तिमिर हटेगा ,फिर प्राची से ,उजियारा मुस्काएगा
मत घबरा ,बिटिया रानी सब ठीकठाक हो जाएगा

ज्यादा दिन तक,कभी नहीं टिकते, ये दिन दुखयारे है
धीरज धर ,बैचैन न हो तू ,हम सब साथ तुम्हारे है
कठिन समय बीतेगा ,ईश्वर ,खुशियां भी बरसायेगा
मत घबरा ,बिटिया रानी ,सब ठीक ठाक हो जाएगा

पापा 
वो दिन कहाँ गये

जब रोज गाँव के कूवे से ,आया करता ताज़ा पानी
मिटटी के मटके में भर कर ,रखती जिसको दादी,नानी
घर में एक जगह ,जहां रखते ,मटका, ताम्बे का हंडा थे
रहता पानी पीने का था ,हम कहते उसे परिंडा थे
धो हाथ इसे छुवा  करते ,यह जगह बहुत ही थी पावन
घर में जब दुल्हन आती थी ,तो करती थी इसका पूजन
अब आया ऐसा परिवर्तन ,बिगड़ी है सभी व्यवस्थायें
प्लास्टिक की बोतल में  कर ,अब बिकने को पानी आये  
था नहीं प्रदूषण उस युग में ,जब हम निर्मल जल पीते थे
आंगन में नीम और पीपल की ,हम शुद्ध हवा में जीते थे
तुलसी ,अदरक कालीमिर्ची ,का काढ़ा होता एक दवा
जिसको दो दिन पी लेने से ,हो जाता था बुखार  हवा
ना एक्सरे ,ना ही खून टेस्ट ,ना इंजेक्शन का कोई ज्ञान
कर नाड़ी परीक्षण वैद्यराज ,करते थे रोगों  का निदान
पर जैसे जैसे प्रगति पर हम हुए अग्रसर ,पिछड़ गये
करते इलाज सब मर्जों का ,वो देशी नुस्खे बिछड़ गये
आती है जब जब याद मुझे ,अपने गाँव की ,बचपन की
मुझको झिंझोड़ती चुभती है, जगती अंतरपीड़ा मन की
शंशोपज में डूबा ये मन ,ये निर्णय ना ले पाया  है
ये कैसी प्रगति है जिसमे ,कितना ,कुछ हमने गमाया है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '


हर दिन को त्योंहार किया है पत्नी ने

होली रंग में रंगा ,दिवाली दीप जला ,
हर दिन को त्यौहार किया है पत्नी ने
जीवन बगिया को महका ,मुस्कानो से ,
सपनो को साकार किया है पत्नी  ने

वादा हर सुखदुख में साथ निभाने का  ,
सिर्फ किया ही नहीं ,निभाया है उसने ,
प्रेम नीर से ,भरी हुई सी ,बदली बन ,
सदा प्रेम रस सब पर बरसाया उसने
मैं एकाकी था ,मुझको जीवन पथ पर ,
साथ दिया ,उपकार किया है पत्नी ने
होली रंग में रंगा, दिवाली दीप जला ,
हर दिन को त्यौहार किया है पत्नी ने

शिक्षक कभी सहायक ,परामर्शदात्री ,
बन कर मुझको सदा रखा अनुशासन में
कभी अन्नपूर्णा बन किया भरण पोषण ,
बनी सहचरी ,सुख सरसाये जीवन में
कभी हारने लगा ,मुझे ढाढ़स बाँधा ,
ममता दे ,उपचार किया है पत्नी ने
होली रंग में रंगा ,दिवाली दीप जला ,
हर दिन को त्योंहार किया है पत्नी ने

अब तो यही प्रार्थना मेरी ईश्वर से
ऐसा सब पर प्यार लुटाती रहे सदा
जैसा अब तक साथ निभाती आई है ,
अंतिम क्षण तक साथ निभाती रहे सदा
जैसी मुझको मिली ,मिले सबको वैसी ,
प्यार भरा संसार दिया है पत्नी ने
होली रंग में रंगा ,दिवाली दीप जला
हर दिन को त्यों हर किया है पत्नी ने

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
 दिन न रहे

मदमाती मनमोहक ,चंचल ,चितवन वाले दिन न रहे
इठलाते और इतराते वो ,यौवन वाले दिन न रहे
अब तो एक दूजे को सहला अपना मन बहला लेते ,
मस्ती और गर्मजोशी के चुंबन वाले दिन न  रहे
संस्कारों के बंधन में बंध ,दो तन एक जान है हम ,
बाहुपाश में बंधने वाले ,वो बंधन के दिन न रहे
नजदीकी का सबसे ज्यादा ,वक़्त बुढ़ापे में मिलता ,
इधर उधर की ताकझाँक और विचरण वाले दिन न रहे
सूर्य जा रहा अस्ताचल को ,आई सांझ की बेला है ,
प्रखर किरण की तपन जलाती तनमन वाले दिन न रहे
मैं अपना 'मैं 'भूल गया और तू अपना 'मैं 'भूल गयी ,
अब समझौता समाधान है ,अनबन वाले दिन न रहे
यह तो है त्योंहार उमर का ,जिसे बुढ़ापा कहते है ,
संग जीने मरने के वादे और प्रण वाले दिन न रहे
जैसा होगा, जो भी होगा ,लिखा भाग्य  का भोगेंगे ,
मौज मस्तियाँ ,अठखेली के जीवन वाले दिन न रहे

 मदन मोहन  बाहेती 'घोटू '
  

रविवार, 25 अप्रैल 2021

बुरा वक़्त ये नहीं रहेगा

देश चल रहा रामभरोसे
एक दूसरे को सब कोसे
कोई दल का भी हो नेता
जिम्मेदारी कोई न लेता
सब पोलिटिकल गेम कर रहे
एक दूजे को ब्लेम कर रहे
उन्हें मिल गया एक स्टेज है
बना रहे अपनी इमेज है
अपनी रोटी सेक रहे है
दुनिया वाले देख रहे है
 रोते रहते है बस  रोना
किया केंद्र ने ,ये ना  वो ना
केवल देते रहना गाली
यही तुम्हारी ,जिम्मेदारी
राज्यों में सरकार तुम्हारी  
फैली जहाँ बहुत महामारी
तुमने क्या क्या जतन किये है
या फिर भाषण सिर्फ दिए है
बिमारी बन गयी सुनामी
तुम्हारी भी है नाकामी
देश जल रहा था तबाही में
लगे हुए थे तुम उगाही में
नहीं तुम्हे है शर्म भी जरा
फोड़ केंद्र पर रहे ठीकरा
अरे देश के तुम नेताओं
मन में राष्ट्रभाव भी लाओ
जनता दुखी ,बुरी हालत में
मिल कर काम करो आफत में
तुम जगाओ अपने जमीर को
दुखी जनो की हरो पीर को
बहुत कठिन ये दिन मुश्किल के
इनसे लड़ना ,सबको मिल के
आज देश में बनी वेक्सीन
ना बनती ,होता क्या इस बिन
  पर मुश्किल ने कब छोड़ा है
आज ऑक्सीजन का तोड़ा है
बुरा समय पर जब आता है
कई मुश्किलें संग लाता है
बचने का उपाय अपनाओ
रखो दूरियां ,मास्क लगाओ
वो अच्छे दिन भी आएंगे
सबको जो राहत लाएंगे
ईश्वर हमें सहारा देगा
बुरा वक़्त ये नहीं रहेगा
अगर प्यार है जो अपनों से
काम करें ,केवल ना कोसें

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

 

SEO Max to improve ranks in 30 days

Hello

Get a powerful SEO Boost with our all in one SEO MAX Package and beat your
competition within just 1 month

Whitehat SEO plan, check out more details here
https://www.mgdots.co/detail.php?id=117




thanks and regards
MG Advertising







http://www.mgdots.co/unsubscribe/

शनिवार, 24 अप्रैल 2021

संकल्प

ऐसा कोरोना वायरस है कहर ढा रहा ,
घुस कर के फेंफड़ों में वो हर एक बीमार में
घर घर में  फैला  ,सब ही परेशान दुखी है ,
 लोगों की भीड़ लग रही है अस्पताल में
जंगल से ,दरख्तों से खुले आम मिले थी ,
कुदरत मुफत में बांटती थी जिसको प्यार में
ऑक्सीजन प्राणदायिनी का  टोटा पड़ा है ,
वो बिक रही है आजकल कालाबाज़ार में
ये दोष नहीं मेरा ,तुम्हारा ,सभी का है
हमने प्रगति  के नाम पर प्रकृति बिगाड़ दी
जंगल हरे भरे थे ,हमने वृक्ष काट कर ,
कुदरत की नियामत थी जो उसको उजाड़ दी
और उस जगह कॉन्क्रीट के जंगल खड़े किये ,
बनवा के ऊंची ऊंची कितनी ही इमारतें
करनी का अपनी ही तो है हम फल भुगत रहे ,
बचना बड़ा मुश्किल है अब कुदरत की मार से
तो आओ पश्चाताप करें ,माफ़ी मांग कर ,
कुदरत की इस जमीन को कर दे हरा भरा
जितने भी काटे ,उससे दूने वृक्ष ऊगा दें ,
आओ संवार  फिर से दें ,हम अपनी ये धरा
फिर से लगे बहने वो हवा प्राणदायिनी ,
पर्यावरण सुधरे और बहे नदिया और नाले
पंछी की चहक हो जहाँ फूलों की महक हो
ऐसा निराला स्वर्ग हम धरती पर बसा लें

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

 

शुक्रवार, 23 अप्रैल 2021

बचे हुए का फिर क्या होगा ?

यह कैसी बिमारी आयी
दुनिया भर में आफत छाई
कितने लोग बिमार पड़े है
बेबस और लाचार पड़े है
अस्पताल में 'बेड 'नहीं है
ऑक्सीजन की गैस नहीं है
है चपेट में इसकी घर घर
हम तुम में यदि आई किसी पर
बिछड़ा कोई ,दे गया धोखा
बचे हुए का फिर क्या होगा ?

जब जब यह ख़याल आता है
तो मन सिहर सिहर जाता है
जिसके संग संग जीवन काटा
पीड़ा, सुख दुःख मिल कर बांटा
बंधन जग के सभी तोड़ कर
चला गया यदि साथ छोड़ कर
बस  तनहाई  बचेगी बाकी
सूना सा जीवन एकाकी
अगर आ गया ऐसा मौका
बचे हुए का फिर क्या होगा ?

चिंता यही सताती हर क्षण
फिर कैसे गुजरेगा जीवन
मन में सोच हमेशा इतना
कौन निभाएगा तब कितना
ख्याल रखेगा ,बढ़ी उमर में
अगर पड़ गए हम बिस्तर में
जब होंगे मुश्किल के मारे
तभी आएगा समझ हमारे
भेद पराये और अपनों का
बचे हुए का फिर क्या होगा?

सिर्फ कल्पना मात्र डराती
मन में व्याकुलता छा जाती
मैं  इतना ज्यादा डर जाता
नहीं ठीक से भी सो पाता
थोड़ा भावुक ,थोड़ा पागल
मैं तड़फा करता हूँ पल पल
जब कि पता कल किसने देखा
मिटता नहीं,नियति का लेखा
लिखा भाग्य का सबने भोगा
बचे हुए का फिर क्या होगा ?

साथी अगर छूट जाता है
दुःख का पहाड़ टूट जाता है
क्योंकि उमर ज्यों ज्यों बढ़ती है
साथी की जरूरत पड़ती है  
रखते ख्याल एक दूजे का
तभी बुढ़ापा कटे मजे का
हम चाहे कितना भी चाहें
दोनों लोग साथ में जायें
ऐसा भाग्य मगर कब होगा
बचे हुए का फिर क्या होगा ?

मदन मोहन बाहेती'घोटू '

मंगलवार, 20 अप्रैल 2021

तुम्हे गोरैया, आना होगा

कभी सवेरे रोज चहक कर
हमें जगाती थी चीं चीं  कर
बच्चों सी  भरती  किलकारी
कहाँ गयी गौरैया  प्यारी
तुमसे बिछड़े ,बहुत दुखी हम
लुप्त कर रहा तुम्हे प्रदूषण
पर्यावरण बिगाड़ा हमने
तेरा नीड उजाड़ा हमने
हमने काटे जंगल सारे
हम सब है दोषी  तुम्हारे
किन्तु आज करते है वादा
पेड़ उगायेंगे हम ज्यादा
सभी तरफ होगी हरियाली
गूंजे चीं चीं ,चहक तुम्हारी
तरस रहे है कान हमारे
आओ ,फुदको,आंगन ,द्वारे
मौसम तभी सुहाना होगा
तुम्हे गौरैया ,आना होगा

घोटू 
लॉक डाउन में क्या करें

तुम फुर्सत में ,हम फुर्सत में
तंग हो गए इस हालत में
कब तक चाय पकोड़े खायें
टी वी देखें ,मन बहलायें
एकाकीपन ग्रस्त हो गए
लॉक डाउन से त्रस्त हो गए
सभी तरफ छाये सन्नाटे
अपना समय किस तरह काटें
यूं न करें ,कुछ पौधे पालें
आफत को अवसर में ढालें
किचन गार्डन  एक बनाकर
उसमे सब्जियां खूब उगाकर
कुछ गमलों में फूल खिला ले
कुछ में तुलसी पौध लगा ले
बेंगन ,तौरी ,खीरा ,घीया
हरी मिर्च ,पोदीना ,धनिया
बोयें तरह तरह की सब्जी
मीठा नीम और अदरक भी
सींचें इन्हे ,प्यार से पालें
अपना सच्चा मित्र बनालें
इनका साथ तुम्हे सुख देगा
जब देखोगे ,तुम्हे लगेगा
तुम्हे देख खुश हो जाता है
पत्ता पत्ता मुस्काता है
कलियाँ फूल बनी विकसेगी
तुमको कितनी खुशियां देंगी
फिर  पुष्पों से निकलेंगे फल
और बढ़ेंगे हर दिन ,पलपल
होता तुम विकास देखोगे
खुशियां आसपास देखोगे
खुशबू फूल बिखेरेंगे जब
और पौधे सब्जी देंगे जब
घर की सब्जी ताज़ी ताज़ी
 खायेंगे सब ,खुश हो राजी
उनका स्वाद निराला होगा
 तृप्ति दिलाने वाला होगा
जितना प्यार इन्हे हम देंगे
कई गुना वापस कर देंगे
इसीलिये तुम मेरी मानो
सच्चा मित्र इन्हे तुम जानो
सुख पाओ इनकी संगत में
 काम यही अच्छा फुर्सत  में

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
 

सोमवार, 19 अप्रैल 2021

पग ,पैर और चरण

मैंने पद को लात मार दी ,अपने पैरों खड़ा हो गया
मंजिल पाने ,कदम बढ़ाये ,ऊंचाई चढ़ ,बड़ा होगया
प्रगति पथ पर ,मुझे गिराने ,कुछ लोगों ने टांग अड़ाई
लेकिन मैंने मार दुलत्ती ,उन सबको थी  धूल  चटाई
चढ़ा चरणरज मातपिता की अपने सर ,आशीषें लेकर
पाँव बढ़ाये ,महाजनो के पदचिन्हों की पगडण्डी पर
न की किसी की चरण वंदना ,न ही किसी के पाँव दबाये
पग पग आगे बढ़ा लक्ष्य को ,बिना गिरे ,बिन ठोकर खाये
पथ में आये ,हर पत्थर का ,मैं आभारी ,सच्चे दिल  से
जिनके कारण ,मैंने सीखा ,पग पग लड़ना ,हर मुश्किल से

घोटू 
कोरोना लाया बरबादी

दुष्ट कोरोना ऐसा आया ,लेकर आया है बरबादी
कितनो के ही प्राण हर लिए ,कई दुकाने बंद करवादी

रात चाँद धुंधला दिखता है और तारों की चमक खो गयी
पर्यावरण बहुत बिगड़ा है ,शुद्ध हवा दुश्वार हो गयी
जिन वृक्षों से ऑक्सीजन था मिलता ,हमने कटवा डाले
आज ऑक्सीजन के खातिर ,फिरते है हम मारे मारे
आज  फेंफड़े तरस रहे है ,शुद्ध हवा भी ना मिल पाती
दुष्ट कोरोना ऐसा आया , लेकर आया है  बरबादी  

बाज़ारों में सन्नाटा है ,हर जन है दहशत का मारा
श्रमिक गाँव को लौट रहे है ,तालाबंदी लगी दुबारा
भीड़ लग रही अस्पताल में ,नहीं मिल रहा बिस्तर खाली
प्राण दायिनी ,कई दवा की ,जम होती काला बाज़ारी
एक दूजे पर लगा रहे है लांछन ,हम सब है अपराधी
दुष्ट कोरोना ऐसा आया ,लेकर आया है  बरबादी

ना त्यौहार मन रहा कोई ,ना उत्सव ना भीड़भाड़ है
स्कूल कॉलेज बंद पड़े है , मॉल, सिनेमा सब उजाड़ है
कैसी गाज गिरी पृथ्वी पर ,कैसा कठिन समय यह आया
दुनिया के सारे देशों पर ,मंडरा रहा मौत का साया
रद्द हुए कितने आयोजन ,कितनो की शादी टलवा दी
दुष्ट कोरोना ऐसा आया ,लेकर आया है बरबादी

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '   

शनिवार, 17 अप्रैल 2021

लालच या बहानेबाजी

कहने को तो डाइटिंग पर चल रहे ,पर मिला न्योता ,
मुफ्त में मिल रही दावत ,चलो ज्यादा ठूस ही ले
सूख नीरस हुआ गन्ना ,जानते हम रस नहीं है ,
मुफ्त में पर मिल रहा है ,चलो थोड़ा चूस ही लें
पेट थोड़ा लूज़ है पर ,सालियान इसरार करती ,
ये भी खा लो ,वो भी खा लो ,टाल दें कैसे अनुग्रह
यार दोस्तों ने पिला दी ,हमें मालूम ,चढ़ गयी है ,
पेग पर हम पेग पीते ,भावना में जा रहे बह
थोड़ा लालच ,थोड़ी नीयत ,और कुछ भावुक हृदय हम ,
बात सबकी मानते ना तोड़ सकते दिल किसीका
डाइबिटीज भी हो गयी है ,और ब्लडप्रेशर बढ़ा है ,
कई बिमारी ग्रसित है ,मिल रहा है फल  इसीका

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 
रहो बच कर कोरोना से

दिनबदिन हो रहा  मुश्किल,कोरोना का खेल प्रियतम
रहो बच कर कोरोना से ,कष्ट कुछ दिन झेल  प्रियतम

पूर्णिमा के चाँद जैसा ,तुम्हारा आनन चमकता
और उस पर ,अधर सुन्दर से मधुर अमृत टपकता
गुलाबी ,अनमोल है ये ,रतन  चेहरे पर तुम्हारे
इन्हे ढक लो 'मास्क 'से तुम ,कोई ना नीयत बिगाड़े
नाक छिद्रों में सुहाने ,नित्य डालो तेल प्रियतम
दिनबदिन हो रहा मुश्किल ,कोरोना का खेल प्रियतम

हाथ ये कोमल कमल से ,हाथ कोई ना लगाये
इन्हे धो,रखना छिपाए ,कोई इनको छू न पाये
सभी से कुछ दूरियां तुम ,हमेशा रखना बनाकर
इसलिए बाहर न निकलो ,रखो तुम खुद को छुपाकर
भले ही बंधन तुम्हे ये ,लगे कुछ दिन जेल प्रियतम
दिनबदिन हो रहा मुश्किल ,कोरोना का खेल प्रियतम

टोकता रहता तुम्हे मैं ,मुझे लगता बहुत डर  है
तुम भी उन्नीस ,वो भी उन्नीस ,भटकने वाली उमर है
इसलिए 'वेक्सीन 'लगवा ,बनाकर हथियार इनको
कोप से इस महामारी के बचा रखना स्वयं को
कोरोना से ना कभी भी ,हो तुम्हारा मेल प्रियतम
दिनबदिन हो रहा मुश्किल ,कोरोना का खेल प्रियतम

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

बुधवार, 14 अप्रैल 2021

चोर का चक्कर

कुछ और की ख्वाइश की मैंने ,लेकिन मुझको कुछ और मिला
जिस ओर न जाना चाहा था,मुझको जीवन उस ओर  मिला

वो मेरी ओर देख कर के ,बस थोड़ा सा मुस्काई थी
पर ये अंदाज ,अदा प्यारी ,कुछ ऐसी मन को भायी थी
उसकी उस पहली एक झलक ने चुरा लिया मेरे दिल को
संग चुरा ले गयी ,चैन ,नींद ,कुछ कह न सका उस कातिल को
उसके संग मिल ,चोरी चोरी ,मैंने सीखा चोरी का फ़न
उसके रस भीने ,होठों से ,कितने ही चुरा लिए चुंबन
पूरा जीवन ,उस संग काटा ,ऐसा मुझको ,चितचोर मिला
कुछ और की ख्वाइश की मैंने ,लेकिन मुझको कुछ और मिला

मैं रहा भटकता ,ठौर ठौर ,लेकिन जब कोई ठौर मिला
तो मुझे वहां भी ,वो नटखट ,कान्हा था माखन चोर मिला
भोली भाली ,गोपी सखियाँ और राधा का दिल लिया चुरा
एक रोज अचानक भाग गया ,कर गया पलायन वो मथुरा
कोई कामचोर ,कोई दामचोर ,चोरों से पाला पड़ा सदा
वो मुझसे नज़र चुराता है ,अहसानो से ,जो मेरे लदा
मुझसे जो भी आ टकराया ,वो चोरी में सिरमौर मिला
कुछ और की ख्वाइश की मैंने ,लेकिन मुझको कुछ और मिला

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
एक इलाज -ऐसा भी

अक्सर पतले लोगों की ,कम होती है ,प्रतिरोधक क्षमता
इस कारण ही ,बिमारी का ,रोगाणु है उन्हें  जकड़ता
पर मोटों के तन में होती ,परत एक चर्बी की मोटी
इसीलिए रोगाणु को तन में घुसने में ,दिक्कत होती
अगर रोग प्रतिरोधक बनना ,तो तन पर चर्बी रहने दो
बिमारी से ,बचके रहोगे ,मोटा लोग कहे ,कहने दो
इसीलिए तुम छोडो 'स्लिम बॉडी 'जीरो फिगर 'का चक्कर
अच्छा खाओ ,मौज उड़ाओ ,छोड़ डाइटिंग ,खाओ जी भर
 इसी तरह जब हम खाते है तेज मसाले ,भरी कचौड़ी
या तीखा पानी भर पुचके ,या फिर चाट चटपटी थोड़ी
आँख नाक से पानी बहता ,सी सी सी सी करते जाते
किन्तु स्वाद के मारे हम तुम ,बड़े चाव से ये सब खाते
हमें विटामिन सी मिलता है ,जब हम खाते ,सी सी करते
कोरोना के कीटाणु भी ,तेज  मसालों  से  है डरते
चाट चटपटी ,खाने से जब ,आँख नाक से ,बहता पानी
भगे वाइरस ,छिपे नाक में ,आती याद, उन्हें है नानी
इसीलिये यदि ,हम सबको है ,रोग कोरोना से जो  बचना
हो सकता है ,असर दिखा दे ,ये भी तरीका देखो अपना
छोड़ डाइटिंग ,जम कर खाओ ,तन पर चढ़े ,परत चर्बी की
खाओ चटपटा ,सी सी करते ,रहे कमी न विटामिन सी की
खाओ सेव ,झन्नाट कचौड़ी ,आँख नाक से पानी टपके
और कोरोना के कीटाणु ,भागे निकल ,रहे ना छिपके

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

मंगलवार, 13 अप्रैल 2021

मैं अस्सी का
 
अब मैं बूढ़ा बाईल हो गया ,नहीं काम का हूँ किसका
आज हुआ हूँ  मैं अस्सी का ,जन्मा सन बय्यालीस का

धीरे धीरे  बदल गए सन ,और सदी भी बदल गयी
बीता बचपन,आयी जवानी ,वो भी हाथ से निकल गयी
गयी लुनाई ,झुर्री  छायी ,बदन मेरा बेहाल  हुआ
जोश गया और होश गया और मैं बेसुर ,बेताल हुआ
सब है मुझसे ,नज़र बचाते ,ना उसका मैं ना इसका
आज हुआ मैं हूँ अस्सी का ,जन्मा सन बय्यालीस का

 अनुभव में समृद्ध वृद्ध मैं ,लेकिन मेरी कदर नहीं
मैंने जिनको पाला पोसा ,वो भी  लेते खबर नहीं
नहीं किसी से कोई अपेक्षा ,किन्तु उपेक्षित सा बन के
काट रहा ,अपनी बुढ़िया संग ,बचेखुचे दिन जीवन के
उन सब का मैं आभारी हूँ ,प्यार मिला जब भी जिसका
आज हुआ हूँ मैं अस्सी का ,जन्म सन बय्यालीस का

बढ़ी उमरिया ,चुरा ले गयी ,चैन सभी मेरे मन का
अरमानो का बना घोंसला ,आज हुआ तिनका तिनका
यादों के सागर में मन की ,नैया डगमग करती है
राम भरोसे ,धीरे धीरे ,अब वो तट को बढ़ती है
मृत्यु दिवस तय है नियति का,कोई नहीं सकता खिसका
आज हुआ हूँ मैं अस्सी का ,जन्मा सन बय्यालीस का

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
खिचड़ी और हलवा

दाल लेते ,चावल लेते , पकाते  दोनों  अलग ,
मिला कर दोनों को खाने का निराला ढंग है  
मिलते पर जब दाल चावल ,तो है बनती खिचड़ी ,
स्वाद देती है अनोखा ,जब भी पकती संग है
चावल जैसी तुम अकेली ,दाल सा तनहा था मैं ,
जब मिले संयोग से  तो  बात फिर आगे  बढ़ी  
जिंदगी के ताप में जब  पके संग संग ,एक हो ,
स्वाद अच्छा ,पचती जल्दी,बने ऐसी खिचड़ी
वो ही गेंहूं ,वो ही आटा ,सान कर रोटी बनी ,
कभी सब्जी साथ खायी ,कभी खायी दाल संग
मगर उस आटे को भूना घी जो देशी डाल कर,
चीनी डाली ,बना हलवा ,छा गए स्वादों के रंग
अब ये हम पे है कि कैसे , जियें अपनी जिंदगी ,
दाल चावल सी अलग या खिचड़ी बन स्वाद ले    
आटे की बस  सिर्फ रोटी बना  खायें  उमर भर ,
या कि फिर हलवा बना कर ,नित नया आल्हाद लें

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
नव  वर्ष की शुभकामना

ऐसा  यह  नूतन वर्ष रहे  
खुशियां बरसे और हर्ष रहे

ना रहे कोरोना धरती पर
आ जाए जिंदगी पटरी पर
सबका दुःख और संताप घटे
हर चेहरे पर से मास्क हटे
फिर रौनक हो बाज़ारों में
फिर मस्ती हो त्योंहारों में
फिर से पनपे भाईचारा
खुशहाल रहे ये जग सारा
हर जीवन में ,उत्कर्ष रहे
ऐसा यह नूतन वर्ष रहे

मियां बीबी में प्यार बढे
पत्नीजी तुमसे नहीं लड़े
कोई ना बोले बड़े बोल
हो परिवार में मेलजोल
तन स्वस्थ रहे मन मस्त रहे
अच्छे दिन को आश्वस्त रहे
छोटे  बुजुर्ग का ध्यान रखे
उनके अनुभव का मान रखे
जीवन में कम संघर्ष रहे
ऐसा यह नूतन वर्ष रहे

घोटू 
नव  वर्ष की शुभकामना

ऐसा  यह  नूतन वर्ष रहे  
खुशियां बरसे और हर्ष रहे

ना रहे कोरोना धरती पर
आ जाए जिंदगी पटरी पर
सबका दुःख और संताप घटे
हर चेहरे पर से मास्क हटे
फिर रौनक हो बाज़ारों में
फिर मस्ती हो त्योंहारों में
फिर से पनपे भाईचारा
खुशहाल रहे ये जग सारा
हर जीवन में ,उत्कर्ष रहे
ऐसा यह नूतन वर्ष रहे

घोटू 
दबदबा पत्नी का

रखती तू मुझको दबाकर ,तुझसे दब कर रहता मैं ,
किन्तु जब सर दर्द करता ,तो दबाती है तू ही
थके पावों को दबा कर ,देती है राहत मुझे ,
मानसिक सब दबाबों में ,मुझको समझाती तू ही
अपनी बाहों में दबा कर , देती सुख की नींद है ,
बाँध कर निज बाजूवों  में  लगा लेती  जब गले  
प्यार का दबदबा  तेरा ,देता परमानन्द है ,
अच्छा लगता ,दब के रहना  तेरे अहसानो  तले
दबा कर के दर्द पीड़ा और आंसूं आँख में ,
मुस्करा कर ,मिलती जुलती ,काम में रहती फंसी
कभी ममतामयी माँ तू ,तो सुशीला बहू भी ,
कभी घर की व्यवस्थापक ,कभी पति की प्रेयसी
छोटी छोटी बात में ,कितना ही झगड़े रात में ,
प्यार से बस तू ही देती ,सुबह प्याला चाय का
तेरा मेरा रिश्ता सच्चा ,लबालब है प्यार से ,
जिसने चख्खा, वो ही जाने ,दबदबे का जायका
लोग कहते ,तुझसे डरता ,दब्बू और डरपोक मैं ,
मानता हूँ ,सच है ये ,पर मुझे इसका गम नहीं
झांकअपने गिरेबां में देखेगा तो पायेगा
बीबी से दबने में कोई भी किसी से कम नहीं  
पत्नी से दब कर के रहने  का मज़ा ही और है ,
जिसने पाया,सुख उठाया ,ना मिला ,वो बदनसीब
आपकी हर एक  हरकत पे नज़र बीबी की है ,
वो ही सुख दुःख बुढ़ापे में ,आपके रहती करीब

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
तुम मुझे मंजूर हो

चाँद का टुकड़ा नहीं ,जन्नत की ना तुम हूर हो
यार तुम ,जैसी भी हो,जो हो,मुझे मंजूर हो

रूप परियों सा नहीं तो मेरे मन में गम नहीं
सच्चे दिल से चाहती हो ,तुम मुझे ये कम नहीं
तुममे अपनापन है ,मन में समर्पण का भाव है
गरिमा व्यक्तित्व में  है , सोच में ठहराव है
ना सुरा ना जाम तुम पर नशे से भरपूर हो
यार तुम जैसी भी हो ,जो हो ,मुझे मंजूर हो

 गुलाबों की नहीं रंगत बदन में ,पर महक तो है
लरजते इन लबों पर पंछियों  जैसी ,चहक तो है
तेरी आँखों में तारों सी ,चमक है ,जगमगाहट है
छुवन में प्यार, उल्फत की ,गर्मजोशी की आहट है
तुम बसी हो दिल में मेरे , मेरे मन का नूर हो
यार तुम ,जैसी भी  हो ,जो हो ,मुझे मंजूर हो
 
मदन मोहन बाहेती'घोटू '

गुरुवार, 8 अप्रैल 2021

वो दिन प्यारे नहीं  रहे

डियर,डार्लिंग,इलू इलू के ,वो दिन प्यारे नहीं रहे
दो तन एक जान वाले वो ,दावे सारे नहीं रहे

संगेमरमर सी सुन्दर तुम ,ताजमहल सी लगती थी
मुलाक़ात घंटों की तुमसे ,पल दो पल सी लगती थी
नींद नहीं आती थी और हम रात रात भर जगते थे
डूबे रहते ,सदा प्यार में ,हम दीवाने लगते थे
नाज़ और नखरे मनभाते ,अब वो तुम्हारे नहीं रहे
डियर डार्लिंग ,इलू इलू के ,वो दिन प्यारे नहीं रहे

चाचा ताऊ दादा दादी ,साथ साथ सब रहते थे
घर में कितनी रौनक रहती ,बच्चे सभी चहकते थे
मिल कर के त्योंहार मनाते ,होली और दिवाली सब
छायी रहती थी जीवन में ,मस्ती और खुश हाली तब
 वो  संयुक्त गृहस्थी का सुख  ,भाईचारे नहीं रहे
डियर डार्लिंग,इलू इलू के ,वो दिन प्यारे नहीं रहे

हाथों से पंखा डुलता ,मटकी का पानी पीते थे
मेहनत करते ,चलते फिरते ,लम्बी आयु जीते थे
ईर्ष्या द्वेष नहीं था मन में ,सीधासादा  जीवन था
काम आना सुखदुख में सबके ,आपस में अपनापन था
स्वागत करने ,अतिथियों का ,बांह पसारे नहीं रहे
डियर डार्लिंग ,इलू इलू के ,वो दिन प्यारे नहीं रहे

दौड़ आधुनिकता की अंधी में, हम मर्यादा भूल गए  
बहे हवा में पश्चिम की निज संस्कृति के प्रतिकूल गए
वृक्षों की पूजा करना और पंछी को देना दाना
चींटी को आटा  बिखराना ,नव पीढ़ी ने ,कब जाना
संस्कार पहलेवाले सब ,अब वो हमारे नहीं रहे
डियर डार्लिंग ,इलू इलू के ,वो दिन प्यारे नहीं रहे

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
वो दिन प्यारे ना रहे

डियर,डार्लिंग,इलू इलू के ,वो दिन प्यारे नहीं रहे
दो तन एक जान वाले वो ,दावे सारे नहीं रहे

संगेमरमर सी सुन्दर तुम ,ताजमहल सी लगती थी
मुलाक़ात घंटों की तुमसे ,पल दो पल सी लगती थी
नींद नहीं आती थी और हम रात रात भर जगते थे
डूबे रहते ,सदा प्यार में ,हम दीवाने लगते थे
नाज़ और नखरे मनभाते ,अब वो तुम्हारे नहीं रहे
डियर डार्लिंग ,इलू इलू के ,वो दिन प्यारे नहीं रहे

चाचा ताऊ दादा दादी ,साथ साथ सब रहते थे
घर में कितनी रौनक रहती ,बच्चे सभी चहकते थे
मिल कर के त्योंहार मनाते ,होली और दिवाली सब
छायी रहती थी जीवन में ,मस्ती और खुश हाली तब
 वो  संयुक्त गृहस्थी का सुख  ,भाईचारे नहीं रहे
डियर डार्लिंग,इलू इलू के ,वो दिन प्यारे नहीं रहे

हाथों से पंखा डुलता ,मटकी का पानी पीते थे
मेहनत करते ,चलते फिरते ,लम्बी आयु जीते थे
ईर्ष्या द्वेष नहीं था मन में ,सीधासादा  जीवन था
काम आना सुखदुख में सबके ,आपस में अपनापन था
स्वागत करने ,अतिथियों का ,बांह पसारे नहीं रहे
डियर डार्लिंग ,इलू इलू के ,वो दिन प्यारे नहीं रहे

दौड़ आधुनिकता की अंधी में, हम मर्यादा भूल गए  
बहे हवा में पश्चिम की निज संस्कृति के प्रतिकूल गए
वृक्षों की पूजा करना और पंछी को देना दाना
चींटी को आटा  बिखराना ,नव पीढ़ी ने ,कब जाना
संस्कार पहलेवाले सब ,अब वो हमारे नहीं रहे
डियर डार्लिंग ,इलू इलू के ,वो दिन प्यारे नहीं रहे

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
कोरोना और हम

एक बरस में कोरोना ,आ पहुँचा  दूजे दौर में
प्यार के पहले चरण में ,अब भी है ,तू और मैं

कोरोना से बचना तो रखनी बना कर दूरियां
और हमारी दिनोदिन बढ़ रही है नज़दीकियां
लॉक डाउन कोरोना ने कर रखा  शहरों शहर
लॉक डाउन में  बंधे  रहते है हम शामो सहर
जोश तुम्हारा है कायम ,ना पड़ा कमजोर मैं
प्यार के पहले चरण में ,अब भी है. तू और मैं

मुंह पे पट्टी बाँध  बचना  कोरोना से  हिदायत
होठ तेरे और मेरे ,बंध के करते शरारत
हाथ धोवो ,कोरोना से ,बचोगे तुम हर कदम
हाथ धोकर ,एक दूजे के ,पड़े पीछे है हम
बढ़ती जाती कामनाएं ,दिल ये मांगे मोर में
प्यार के पहले चरण में ,अब भी है,तू और मैं

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 

सोमवार, 5 अप्रैल 2021

ओ भूमण्डल  की सुंदरियों

ओ इस धरती की ललनाओं ,ओ भूमण्डल की सुंदरियों
तुम रूप का अमृत बरसाओ ,जुगजुग जियो जुगजुग जियो

सब देवलोक की अप्सरा , देवों के खातिर आरक्षित
करती मनरंजन बस उनका ,यह बात सर्वथा है अनुचित
देवताओं ने कर रख्खा है ,उन पर अपना एकाधिकार
उनको चिर यौवन देकर वो ,सुख उठा रहे ,पा रहे प्यार
पृथ्वी पर उनसे भी सुन्दर ,है रमणी कई रूपवाली
पर कुछ वर्षों में खो देती,निज यौवन ,चेहरे की लाली
इसलिए ख्याल रख्खो अपना ,मेकअप का टॉनिक रोज पियो
तुम रूप का अमृत बरसाओ ,जुगजुग जियो ,जुगजुग जियो  

अपने तन की शोभा ,कसाव ,अक्षुण  रखना आवश्यक है
जब तक हो सके जवां रहना ,यह तुम्हारा भी तो हक़ है
लाली लगाओ तुम होठों पर ,और रखो गुलाबी गालों को
अच्छे शेम्पू ,कंडीशनर से ,तुम रखो मुलायम बालों को
आँखों को करके कजरारी ,नैनों के बाण चलाओ तुम
बन जाओ उर्वशी धरती की ,सबके उर में बस जाओ तुम
नखरे और अदा दिखा कर के ,सबका दिल लूटो सुंदरियों
तुम रूप का अमृत बरसा कर ,जुगजुग जियो ,जुगजुग जियो

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
सुबह सुबह होती है

सुबह सुबह होती है
ओस की बूँदें भी ,
बन जाती मोती है

बचपन जैसी निश्छल
धुली धुली  कोमल सी
मंद समीरण जैसी ,
कुछ चंचल चंचल सी
तरु के नव किसलय सी ,
खिलती हुई कली सी
खुशबू से महक रही ,
लगती है भली सी
अम्बर में तैर रही ,
एक पगली बदली सी
कुछ उजली उजली सी ,
कुछ धुंधली धुंधली सी
फुदक रहे पंछी सी ,
चहक रही चिड़िया सी
टुकुर टुकुर देख रही ,
नन्ही सी गुड़िया सी
थकी हुई रजनी ज्यों ,
लेती अंगड़ाई सी
आलस को भगा रही ,
आती जम्हाई सी
बालों को सुलझा कर ,
चमक रहे आनन की
हाथ में झाड़ू ले
बुहारते आँगन सी
पनिहारिन के सर पर ,
छलक रही गगरी सी
चाय की चुस्की सी
कुरमुरी मठरी सी
बछड़े की रम्भाहट
गाय के दूहन सी
मंदिर की घंटी सी ,
और घिसते चन्दन सी
सूरज की आभा जब ,
ज्योतिर्मय होती है
शुरुवात शुभ दिन की ,
सभी जगह होती है
सुबह, सुबह होती है  

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

इम्युनिटी

रूपसी (C ),रूपसी (C )
कोई ना तुमसी (C )हसीं  (C )
बहुत मादक छवि तुम्हारी ,
तुम मेरे मन बसी (C )
तुम्हारी हर अदा प्यारी ,
और प्यारी है हंसी (C )
मुझपे तुम अहसान कर दो ,
बन के मेरी प्रेयसी (C )
क्योंकि मेरी जिंदगी में ,
आ गयी है  बेबसी (C )
कोरोना के जाल में है ,
जिंदगी मेरी फंसी (C )
और तुममे प्रचुर मात्रा ,
में भरा विटामिन (C )
तुम मिलोगी तो मेरी ,
बढ़ जायेगी फिर इम्युनिटी

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

शनिवार, 3 अप्रैल 2021

बुढ़ापे की उमर

दौड़ने की ना रही ,अब टहलने की उमर है
जरा सा बाजा बजा कर बहलने की उमर है

अच्छे अच्छे सूरमा को मात करते थे कभी
चाँद तारे ,तोड़ने की बात करते थे कभी
थे कभी वो हौंसले पर हो गए अब पस्त है
नहीं खुद पे खुद का अब ,औरों का बंदोबस्त है
अब तो पग पग ,संभल आगे चलने की ये उमर है  
दौड़ने की ना रही ,अब टहलने की उमर है

अपने बल और बाजुओं पर नाज़ था हमको बड़ा
अब तो थोड़ी दूर चल कर ,कदम जाते लड़खड़ा
उम्र के जिस दौर में हम ,आ गए है आजकल
कल खिले से फूल थे ,मुरझा गए है आजकल
याद कर बातें पुरानी ,मचलने की उमर है
दौड़ने की ना रही अब टहलने की उमर है

बुढ़ापे का स्वाद चखने लग गए है इन दिनों
प्यार से परहेज रखने लग गए है इन दिनों
दे रहे ढाढ़स है अपने मन को हम समझा रहे
नौ सौ चूहे मार बिल्ली की तरह हज़  जा रहे
कुछ न मिलता ,हाथ केवल मलने की ये उमर है
दौड़ने की ना रही अब टहलने की उमर है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
जिंदगी

हमने  जैसे तैसे कर के ,बस गुजारी जिंदगी
दूसरों खातिर  लुटा दी अपनीसारी  जिंदगी
भाव में  बहते रहे और पीड़ाएँ  सहते रहे ,,
उलझनों में रही उलझी सीधीसादी जिंदगी
सबको खुश करने के चक्कर में न कोई खुश रहा ,
और हमने व्यर्थ ही अपनी गमा दी जिंदगी
भूल कर भी आजकल वो ,पूछते ना हाल है ,,
जिनके खातिर दाव  पर ,हमने लगा दी जिंदगी
किसीकी भी जिंदगी में ,दखल देना है गलत ,
हमने जी ली अपनी ,तुम जी लो तुम्हारी जिंदगी  

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

गुंजाइश


मुफ्त की दावत में उनने देखे इतने आइटम ,
भर लिया उनने लबालब  खाना इतना प्लेट में
और जब खाने लगे तो इतना ज्यादा खा लिया
पानी पीने की भी गुंजाइश बची  ना पेट  में  

इतनी पतली मोहरी की जीन्स टाइट का चलन ,
बैठे ,उठते जोर लगता ,घुटनो से जाती है फट
इसलिए ही फटी जीने आ गयी फैशन में है ,
पहनने और चलने उठने में है मिलती सहूलियत

सिलवाती जब कुशल गृहणी ब्लाउज या कुर्तियां ,
नाप में वो रखवाती है ,थोड़ी गुंजाइश सदा
जिससे यदि जो बदन फूले ,थोड़े टाँके हटा कर ,
काम में आ सके कपडा ,हो के फिट ,बाकायदा

जहाँ नाडा या इलास्टिक लाया जाता काम में ,
रहती उन कपड़ों में गुंजाईश की गुंजाईश सदा
कभी भी जिद ठान  करके ,अकड़ना अच्छा नहीं ,
समझौते की मन में रखना चाहिए ख्वाइश सदा  
५  
रेल का डिब्बा खचाखच ,है मुसाफिर से भरा ,
भीड़ इतनी कि नहीं है ,तिल भी रखने की जगह
स्टेशन पर चार चढ़ते ,हो जाते  एडजस्ट  है ,
थोड़ी गुंजाईश हमेशा रखो दिल में इस तरह

किसी से भी दुश्मनी यदि हो गयी कोई वजह ,
नहीं सख्ती ,लचीलापन हो सदा व्यवहार में
दोस्ती की फिर से गुंजाईश भी रखना चाहिए ,
क्या पता कब दुश्मनी जाए बदल फिर प्यार में

मारती थी डींग कॉलेज की वो लड़की गर्व से ,
सात उसके फ्रेंड है और सारा कॉलेज है फ़िदा
हमने बोला  द्रोपदी से आगे हो तुम दो कदम ,,
और भी क्या एक की ,गुंजाईश है हमको बता

मदन मोहन बहती 'घोटू '
 
गुंजाइश


गए लेने सौदा जब हम तो ,हमने लाला से कहा ,
और कुछ हो अगर गुंजाईश बतादो रेट में
मुफ्त की दावत में उनने इतना जम कर खा लिया ,
पानी पीने की भी गुंजाइश बची  ना पेट   में

इतनी पतली मोहरी की जीन्स टाइट का चलन ,
बैठे ,उठते जोर लगता ,घुटनो से जाती है फट
इसलिए ही फटी जीने आ गयी फैशन में है ,
पहनने और चलने उठने में है मिलती सहूलियत

सिलवाती जब कुशल गृहणी ब्लाउज या कुर्तियां ,
नाप में वो रखवाती है ,थोड़ी गुंजाइश सदा
जिससे यदि जो बदन फूले ,थोड़े टाँके हटा कर ,
काम में आ सके कपडा ,हो के फिट ,बाकायदा

जहाँ नाडा या इलास्टिक लाया जाता काम में ,
रहती उन कपड़ों में गुंजाईश की गुंजाईश सदा
कभी भी जिद ठान  करके ,अकड़ना अच्छा नहीं ,
समझौते की मन में रखना चाहिए ख्वाइश सदा  
५  
रेल का डिब्बा खचाखच ,है मुसाफिर से भरा ,
भीड़ इतनी कि नहीं है ,तिल भी रखने की जगह
स्टेशन पर चार चढ़ते ,हो जाते  एडजस्ट  है ,
थोड़ी गुंजाईश हमेशा रखो दिल में इस तरह

किसी से भी दुश्मनी यदि हो गयी कोई वजह ,
नहीं सख्ती ,लचीलापन हो सदा व्यवहार में
दोस्ती की फिर से गुंजाईश भी रखना चाहिए ,
क्या पता कब दुश्मनी जाए बदल फिर प्यार में

मारती थी डींग कॉलेज की वो लड़की गर्व से ,
सात उसके फ्रेंड है और सारा कॉलेज है फ़िदा
हमने बोला  द्रोपदी से आगे हो तुम दो कदम ,,
और भी क्या एक की ,गुंजाईश है हमको बता

मदन मोहन बहती 'घोटू '
 
हुस्न और इश्क

मूड का इन हुस्न वालों का भरोसा कुछ नहीं ,
मेहरबां हो जाए कब और कब खफा हो जाए ये
आप करते ही रहो ,इनसे गुजारिश प्यार की ,
और तुमको भाव ना दें ,बेवफ़ा हो जाएँ ये
आप उनको पटाने की लाख कोशिश कीजिये ,
फेर लेंगे मुंह कभी और कभी झट पट जायेंगे
तीखे तेवर दिखाएंगे ,कभी होकर के ख़फ़ा ,
और कभी मासूम बन के ,भोलापन दिखलायेंगे
पेशकश तुम ये करो ,आ जाओ उनके काम में ,
वो कहें घर पड़ा गंदा ,झाड़ू पोंछा मार दो
सिंक में कुछ जूठे बर्तन ,पड़े उनको मांज कर ,
कमरा गंदा पड़ा उसकी हुलिया  सुधार दो
सोचा था दिल लगाएंगे ,लग गए पर काम में ,
नालायक और  लालची ये मन नहीं पर मानता
बाँध कर के कितनी ही उम्मीद तुम उनसे रखो ,
ऊँट किस करवट पे बैठेगा न कोई  जानता
घास डालो गाय को तुम दूहने की चाह में ,
क्या पता जाए बिगड़ और सींग तुमको मार दे
दूल्हा बन कर चाव से ,घोड़ी पे तुम चढ़ने लगो ,,
बिदके घोड़ी ,गिरा तुमको ,हुलिया बिगाड़ दे
इसलिए बेहतर है सर से भूत उतरे इश्क़ का ,
आरजू पूरी न होती ,दुखता है ये जी बहुत
ना भरोसा मिले मंजिल ,डूबे या मंझधार में ,
हसीनो की सोहबत ,पड़ सकती है मंहंगी बहुत
प्यार जो करते है उनको झेलना पड़ता है सब ,
शादी के पहले भी या फिर शादी के पश्चात भी
ये है ऐसा चक्र जिसमे फंस कर खुशियां भी मिले ,
और दुखी हो ,पड़े करना ,तुमको पश्चाताप भी

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
चाय हो तुम

काला तन ,रस रंग गुलाबी ,
घूँट घूँट तुम स्वाद  भरी
प्रातः मिलो ,लगता अम्बर से ,
आयी नाचती कोई परी
जब भी मिलती अच्छी लगती ,
थकन दूर और मिले तरी
चाय नहीं तुम ,चाह हृदय की ,
मेरे मन मंदिर उतरी
तुम्हारा चुंबन रसभीना ,
आग लगा देता मन में
स्वाद निराला ,रूप तुम्हारा ,
फुर्ती भर देता तन में

घोटू