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शुक्रवार, 22 दिसंबर 2017

धन्यवाद कपिल जी 
हमारे उजले केश और बढ़ती उम्र को देख आपने हमें ६०-७०-के दशक के गांव के लिए सही चुना 
पर एक बात बतादे की हम तब भी जवान थे अब भी जवान है बस सर्दी का मौसम आ गया है 
समय बदल रहा है -हर चीज का अंदाज बदल रहा है -दासछिद्रो वाला काला टेलीफोन पहले
 पुश बटन हुआ और अब मोबाईल पर उंगलिया फिसलने लगी है ,
हमें याद है जब हम बच्चे थे ,पिता से इतना डरते थे. 
कभी भी सामने उनके ,न अपना सर उठाया था 
और बच्चे आजकल के हो गए मॉडर्न इतने है,
पिता से पूछते है मम्मी को कैसे पटाया था 
तो समय से साथ हमारी सोच.हमारा नज़रिया भी बदल रहा है और यही दास्ताँ हमारी फिल्मो की 
भी है -गीतों की आत्मा वही है पर कहने का अंदाज बदल गया है ,गीतों की भाषा में बोलों तो तब का गाना जो
'हवा में उड़ता जाये,मेरा लाल दुपट्टा मलमल  का' से 'ओ  लाल डुपट्टेवाली अपना नाम तो बता 'होते हुए
 आज 'काली तेरी जुल्फे पंरांदा  तेरा लाल नी 'पर आ गया है 
इन्तजार इन्तजार इन्तजार ,जिदगी में ये ही लगा रहता है यार 
हम तेरा इन्तजार करेंगे कयामत तक खुदा करे की कयामत हो और तू आये 
या फि आ जा रे परदेशी या हमरे गाँव कोई आएगा 
कितने ही ऐसे फ़िल्मी नग्मे है जो किसी के इन्तजार में गाये गए है 
याद करिये ६०-७० के दशक की वो फिल्म जिसमे परमसुन्दरी मधुबाला किसी के इंतजार में एक मधुर
 गीत गुनगुनाती थी जो आज भी उतना ही मधुर है -सुनिए श्रीमती उषा सुशिल के शब्दों में -उषाजी हमारे
 ऑरेंजकाउन्टी की संगीत मर्मज्ञ है और बच्चों को संगीत सिखाती भी है 
तो गीत सुनिए 
आएगा आएगा आएगा आने वाला 
२ सुनी आपने इस गीत की अंतिम पंक्तियाँ ,नायिका कहती है 
कर बैठा भूल वो ,ले आया फूल वो, उससे कहो जाए चाँद लेकर आये '
कितनी डिमांडिंग हो गयी है आज की नायिकाएं 
हमारे जमाने में ये ही फूल खत में दाल कर प्रेम प्रदर्शन होता था 
फूल तुम्हे भेः है खत में। फूल नहीं मेरा दिल है   
या रह में फूल बिछा कर नायिका से निवेदन करता था पाँव छूलेनेडो फूलो को इनायत होगी 
खैर ,आजकल के व्यस्त जीवन में लोगो को मुस्कराने भर का समय ही नहीं मिलता बस 
कभी कभी कुछ पल आते है जब आदमी किसे की मुस्कराहटों पर कुर्बान हो जाता है 
इन्ही भावनाओ को व्यक्त करते हुए हमारे प्रिय श्री जुल्का जी गीत सुना रहे है 

किसी की मुस्कराहटों पे हो निसार 
३ चाँद  जे हाँ चाँद ये एक ऐसा कैरेक्टर एक्टर है जो कई फिल्मो में अलग अलग रोल निभाता रहा है 
कभी लोरी में वो बच्चों का मामा बन जाता है ,कभी मेहबूब बन कर  आता है जब नायिका गाती  है 'तू मेरा चाँद मै  तेरी 
चांदनी 'कभी जासूस बन जाता है 'ो चाँद जहाँ वो जाए तू इनके साथ जाना ,हर रात खबर लाना'
कभी ईद का चाँद,कभी करवा चौथ का चांद हमारे प्रिय सतीश शर्मा जी अपनी मेहबूबा में चाँद ढूँढा है और गए रहे है 

चाँद सी हो मेहबूबा मेरी कब ऐसा मैंने सोचा था 
४ अभी पिछले पुराने गाने में शर्मा जी ने अपनी मेहबूबा को चाँद सी बतलाया था वैसे बीते दसको में 
एक प्रसिद्द गीत आया था चौदंवी का चाँद हो या महताब हो 
जो भी भी हो तुम खुदा की कसम ,लाजबाब हो 
ऐसे ही प्रेम अपनी चाँद से मुखड़े वाली प्रियतमा के साथ जब चांदनी में अभिसार करते है
 तो चाँद से ही सवाल कर बैठते है क्या  कैसे बतलायेंगे  तरह छानेवाले छाबड़ा जी 
 
मैंने   पूछा चाँद से 
५ चाँद ने क्या जबाब दिया ये तो पता नहीं पर नायिका ने आ एक प्रश्न जरूर पूछ लिया की 
हम दोनों एक दुसरे को अच्छी तरह से जानते भी नहीं और एक दुसरे पर इस तरह फ़िदा है की 
जैसे एक दुसरे के लिए ही बने हो और इसी भावना को वह गीत के माध्यम से पूछ रही है श्रीमती रीता जोशी 

न हम तुम्हे जाने 

६ प्यार में पागल नायिका अपने सब बंधनो को छोड़ उड़ना चाहती है ,उसके पंख लग जाते है और 
पिया के साथ जीवन जीने की तमन्ना इस तरह जागृत हो जाती है की वो नाचती हुई गाती है -श्रीमती सुनीत शर्मा जी के स्वरों में 

आज फिर जीने की तमन्ना है 


७ प्यार के इस खेल में वेड होते है ,कसमे खाई जाती है पर ये जमाना बड़ा जालिम होता है 
 दो प्रेमियों के बीच में गलतफहमियां पैदा कर देता है -कभी अमीरी गरीबी की दीवार खड़ी हो जाती है 
कभी जाती धरम की ,कभी माँ बाप का इमोशनल ब्लेकमैल -ये सारे खेल प्यार के दुश्मन बन जाते है  
सारे वादे भुला दिए जाते है और नायक जाता है हमारे प्रिय दिग्विजय जी के स्वरों में 

क्या हुआ तेरा वादा
 
८ सपने कब सबके पूरे हुए है -याद है वो गीत 'सपने सपने,कब हुए अपने ,
आँख खुली और टूट गए '
या फिर वो गाना -टूटे हुए ख्वाबों ने ,हमको ये सिखाया है 
दिल ने जिसे पाया था ,आँखों ने गमाया है
जब सपने टूटते है तो प्रेमी कपिल शर्मा की तरह विरक्त होकर गाता है 

ये दुनिया ये महफ़िल तेरे काम की नहीं 
९  याद है वो पुराना गाना 'जब दिल ही टूट गया तो जी कर क्या करेंगे '
या फिर वो गीत 'मिली खाक में मोहब्बत,जला दिल का आशियाना 
जो थी कल तलक हक़ीक़त ,वो ही बन गयी फ़साना 
बस ऐसे ही गम के दौर में हमारे प्यारे गजल गायक श्री ढल साहेब सुना रहे है 
एक प्यारी सी ग़ज़ल 
यूँ हसरतों के दाग निगाहो ने बोलिये 
१० शीत  ऋतू का अंत होता है -कोयल की कुहुक सुनाई देती है ,मौसम अंगड़ाई लेता है 
गलतफहमियां दूर होती है -नायक नायिका एक दुसरे की तलाश में निकल पड़ते है और
 हमारे मनीष यादव और उनकी जीवनसंगिनी  नुपूर त्रिपाठी जी एक दूजे को ढूंढते हुए गाते है 
 
जाने जा,ढूंढता फिर रहा 

८० से ९० के दशक के  गीत 

१ कोई कंवरी कन्या जब सपने बुनती है तो अपने लिए एक राजकुमार चुनती है 
जो सफ़ेद घोड़े पर होकर सवार ,मन में भरे प्यार -आएगा उसके द्वार और ले जाएगा 
अपने साथ --इन्तजार तो पिछले दशक की नायिका भी करती थी पर उसमे 
संजीदगी होती थी पर इस दशक की नाइका के इन्तजार में थोड़ा चुलबुलापन आ 
गया है और किसी के ख्वाबों  में डूबी वो जाती है एक गीत जो शमत निधि हांडा 
के स्वर में सुनिए 
मेरे ख्वाबों में जो आये 

२ पिछले दशक का नायक किसी की मुस्कराहटों पर निसार होकरऔर किसी के प्यार में डूबा 
रहने को ही असली जीने का नाम देता है तो दो दशक बाद का नायक भी आशिकी को 
अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझ कर आशिकी के लिए एक सनम की तलाश करता है 
एक नए अंदाज में  -हमारे प्रिय अनिल जाजू के स्वर में सुनिए 
बस एक सनम चाहिए आशिक़ी के लिए 

३ धीरे धीरे प्यार परवान चढ़ता है -बातें होती है -मुलाकातें होती है -दोनों एक रंग में रंग जाते है 
प्यार के रंग में और नायिका कभी उसे परी लगती है ,कभी सपनो की रानी और वो अपनी
 प्रेमिका से पूछ बैठता है  -सुनिए श्री अनुपम खरबंदा के स्वरों में -
मेरे रंग में रँगनेवाली 

४ प्यार की आग दोनों तरफ लगी हुई है -उधर नायक बेचैन इधर नायिका बेकरार  पल भर की 
जुदाई भी सहन नहीं होती -कहते है ना -
जुदाई में जर्द चेहरा हो गया है ,हिज्र की हर सांस भरी हो गयी है 
याद में तेरी वो हालत बन गयी ,लोग कहते है बिमारी हो गयी है 
और इसी बिमारी की- बिगड़ी बिगड़ी सी हालत में  नायिका  के कंठ से गीत निकल पड़ता है 
जो आप सुनिए श्रीमती मोना जी के स्वरों में 
दिल दीवाना बिन सजना के माने ना ----


५ समय बीतता है -मुलाकातें बढ़ती है -प्रेमी प्रेमिका का दिल एक दूजे बिन नहीं लगता 
उन्हें लगता है की उन दोनों ने मिल कर एक नया संसार पा लिया है -उनके सारे सपने 
पूरे हो गए है और वो मिल कर गाते है एक गीत जो आप सुनेगे श्री अनुपम खरबंदा और 
विनीता कुमार जी के स्वरों में 
मिल के -ऐसा लगा तुम से मिल के 


६ सामजिक बंधनो को काट कर जब प्रेमी एक दुसरे में खो जाते है -दीवाने हो जाते है 
तो मस्ती के वो पल खत्म होने का नाम ही नहीं लेते  -प्यार का नाश जो चढ़ता है ,उतदुनिया रता ही नहीं 
मन बस उसी मस्ती में जाता और झूमता है और गाता  है सुनिए
 श्रीमती नूपुर त्रिपाठी जीऔर मनीष यादव  के स्वरों में 

थोड़ा सा झूम लू मै 

७ कहते है की मिलन की राह आसान नहीं है -  ये दुनिया दो प्रेमियों को आसानी से मिलने नहीं देती 
कारण कुछ घरेलू-कुछ गलतफहमियां या और भी कुछ ऐसे हालत पैदा हो जाते है की न चाहते हुए भी 
दोनों के मिलन के बीच में एक दीवार कड़ी हो जाती है और दिल के टुकड़े टुकड़े होने लगते है 
ऐसे वक़्त में अपने मन की भावनाओं को व्यक्त करती हुई नायिका श्रीमती विनीता कुमार के स्वरों में जाती है 

शीशा हो या दिल हो ,एक दिन टूट जाता है 

८ उधर प्रेमी का दिल टूटा हुआ होता है इधर प्रेमिका का -उनके दिलों ने अरमानो की जो बस्ती बसाई थी 
वह ढहने लगती है -दुखी नायिका अपनी पीड़ा को ग़ज़ल के रूप में जाती है श्वेता बहती तेल के स्वरों में 

दिल के अरमान आंसुओ  में बह गए 

९ आपको याद होगा फिल्म मदर इण्डिया का वो गीत जो नरगिस ने गाय था बीते दशक में 
दुनिया में जो आये तो जीना ही पड़ेगा 
जीवन है अगर जहर तो पीना ही पड़ेगा 
उसी परिस्तिथि में उलझा आज का नायक अपने आप को कैसे समझाता है 
सुनिए श्री अनिल जाजू के शब्दों में 

अब तेरे बिन। जी लेंगे हम 

१० और अब गलत फहमिया दूर हो गयी -बीच की दीवार  ढह गयी 
तो ,किस्मत ने साथ  दिया और बिगड़ी बात बन गयी  तो नायक अपनी नायिका 
को सांत्वना देते हुए समझाता है -सुनिए अनिल जाजो के स्वर में 

जब कोई बात बिगड़ जाए जब कोई मुश्किल पद जाए 

गुरुवार, 14 दिसंबर 2017

उत्तेजना 

उत्तेजना ,
शरीर की वो अवस्था है 
जिसमे शरीर के ज्वालामुखी का ठंडा पड़ा खून ,
लावे सा पिघलता है 
तन मन में होने लगता है कम्पन 
कितनी ही बार और कितने तरीकों से ,
जीवन में आते है ऐसे क्षण 
जैसे जब गरीब की सहनशीलता ,
जब अपनी सीमाएं पार कर जाती है 
तो उसके मन में ,
विद्रोह की उत्तेजना भर जाती है 
इसका कारण होता है उसकी मजबूरी और बेबसी 
समाज की उपेक्षा,व्यंग और हँसी 
आदमी खुद को और अपनी किस्मत को कोसता है 
फिर कैसे भी बदला लेने की सोचता है 
ऐसेलोगों की उत्तेजित भीड़ के स्वर 
देते है सत्ताएं बदल  
या फिर कोई ऊंचा पद पाकर 
और अपनी प्रतिष्ठा पर इतराकर 
जब आदमी में भर जाता है अहंकार 
तो थोड़ी सी अवहेलना होने पर ,
उत्तेजना पूर्ण हो जाता है उसका व्यवहार 
अपने अहम की संतुष्टी न होने पर ,
वह क्रोध से भर जाता है 
उसका विवेक मर जाता है 
वह अपमानित महसूस कर अंटशंट बकता है 
और उसमे भर जाता है आक्रोश 
और इसका बदला लेकर ही उसे मिलता है संतोष 
इतिहास गवाह है 
ऐसी उत्तेजना करते अफसर,नेता और शहंशाह है 
तीसरा छोटी छोटी बातों पर बिना मतलब 
कोई बिगड़ जाता है जब तब 
गुस्से में नाराज हो वार्तालाप करने लगता है 
अनर्गल प्रलाप करने लगता है 
लड़ने को आतुर हो जाता है 
अपनी औकात  से बाहर निकल जाता है 
ऐसी तुनकमिजाजी भी होती है एक बीमारी 
कम कूवत ,गुस्सा भारी 
और उत्तेजना का चौथा रूप 
होता है बड़ा प्यारा और अनूप 
जब यौवन की चपलता और रूप की सुगढ़ता,
देती है प्यार का आव्हान 
तो आदमी की शिराओं में ,
उमड़ता है भावनाओं का तूफ़ान 
जो तोड़ देता है सारे बंधन 
और उत्तेजित कर देता है तन मन 
उत्तेजना के ये क्षण 
होते है विलक्षण 
आदमी भाव विभोर हो जाता है 
एक दूसरे में खो जाता है 
ये उत्तेजना बड़ी मतवाली होती है 
बड़ी सुखकर और प्यारी होती है 

मदन मोहन बहती]घोटू]

मंगलवार, 12 दिसंबर 2017

हुस्न की मार से बचना 

नजाकत से,नफासत से ,अदाओं से करे घायल 
और उनकी मुस्कराहट भी ,बड़ी ही कातिलाना है 
बड़ी मासूम सी सूरत ,बड़ी चंचल  निगाहें है 
काम इन हुस्न वालों का,कयामत सब पे ढाना है 
जरूरी ये नहीं होता ,कि हर एक फूल कोमल हो,
टहनियों पर गुलाबों की ,लगा करते है कांटे भी 
हथेली फूल सी नाजुक,सम्भल कर इनको सहलाना ,
ख़फ़ा जो हो गए ,इनसे,लगा करते है चांटे  भी 
बड़ी ही खूबसूरत सी ,उँगलियाँ उनकी कोमल है ,
नजाकत देख कर इनकी ,आप क्या सोच सकते है 
सिरे पर उँगलियों के जो, दिए नाख़ून कुदरत ने,
कभी हथियार बन ये आपका मुंह नोच सकते है 
गुलाबी होठ उनके देख कर मत चूमने बढ़ना,
ये गुस्से में फड़क कर के ,तुम्हे है डाट भी सकते 
छिपे है दांत तीखे  इन गुलाबी पखुड़ियों पीछे ,
हिफ़ाजत अपनी करने को ,तुम्हे है काट भी सकते 
रंगे हो नेल पोलिश से  ,निखारे रूप नारी का ,
प्रेम में बावले होकर ,ये नख है  क्षत किया करते 
पराकाष्ठा हो गुस्से की ,तो ये हथियार बन जाते ,
बड़ी आसानी से दुश्मन ,को ये आहत किया करते 
ये कटते ,खून ना आता ,तभी  नाखून कहलाते,
बड़ी राहत ये देते है ,बदन को जब खुजाते  है 
हमारे जिस्म पर एक बाल है और एक नाखून है ,
कोई चाहे या ना चाहे,दिन ब दिन बढ़ते जाते है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू '
विराट 

मेरा विराट है ये 
क्रिकेट सम्राट है ये 
खिलाडी  है   धुरंधर 
जोश है जिसके अंदर 
नहीं कोई से डरता 
रनो की बारिश करता 
खेलता है जब जमकर 
देखते है सब थमकर
मेरा विराट है ये 
क्रिकेट सम्राट है ये  
सभी का प्यारा है ये,खिलाड़ी सबसे सुन्दर 
दनादन मस्त कलंदर ,दनादन मस्त कलंदर 
इरादे इसके पक्के 
मारता चौके,छक्के 
कापने लगता दुश्मन 
हांफने लगता दुश्मन 
 खेलता है जब जमकर 
देखते है सब थम कर 
मेरा विराट है ये 
क्रिकेट सम्राट है ये 
खड़ा जब ये करता है ,रनो का एक समन्दर 
दनादन मस्त कलंदर,दनादन मस्त कलंदर 
शेर बन जाते बिल्ली 
उड़े जब उनकी गिल्ली 
क्रिकेट का ये दीवाना 
खिलाड़ी बड़ा सयाना
खेलता है जब जमकर 
देखते है सब थमकर 
मेरा विराट है ये 
क्रिकेट सम्राट है ये  
सेन्चुरी मारा करता,मिले जब कोई अवसर 
दनादन मस्त कलंदर,दनादन मस्त कलंदर 
क्रिकेट की जान है ये 
देश की शान है ये 
जहाँ भी जाकर खेले 
रनो की बारिश पेले
मेरा विराट है ये 
क्रिकेट सम्राट है ये 
खेलता है जब जमकर 
देखते है सब थमकर  
सभी से रखे बनाकर ,खिलाडी सबसे सुन्दर 
दनादन  मस्त कलंदर,दनादन  मस्त कलंदर
टेस्ट हो या फिर वनडे 
इसके आगे सब ठन्डे  
कोई ना आगे ठहरे 
जीत का झंडा फहरे 
मेरा विराट है ये 
क्रिकेट सम्राट है ये 
खेलता है जब जमकर 
देखते है सब थमकर 
ट्वेंटी ट्वेंटी में भी ,कोई ना इससे बेहतर 
दनादन मस्त कलंदर ,दनादन मस्त कलंदर 
ले गयी दिल है उसका 
मिल गयी उसे अनुष्का
सेन्चुरी मारी लव  ने  
बना दी जोड़ी रब ने 
रनो सी खुशियां बरसे 
जिंदगी उनकी हरषे 
दुआ है ये हम सबकी 
मेहर हो उन पर रब की
 प्यार में डूबे रह कर 
रहे ये खुश  जीवन भर 
दनादन मस्त कलंदर ,दनादन मस्त कलंदर 

मदन मोहन बाहेती'घोटू 
मैं गधे का गधा ही रहा 

प्रियतमे तुम बनी ,जब से अर्धांगिनी ,
      मैं हुआ आधा ,तुम चौगुनी बन  गयी 
मैं गधा था,गधे का गधा ही रहा ,
         गाय थी तुम प्रिये ,शेरनी बन गयी 
मै तो दीपक सा बस टिमटिमाता रहा ,
        तुम शीतल,चटक चांदनी बन गयी 
मैं तो कड़वा,हठीला रहा नीम ही,
     जिसकी पत्ती ,निबोली में कड़वास है 
पेड़ चन्दन का तुम बन गयी हो प्रिये ,
  जिसके कण कण में खुशबू है उच्छवास है 
मैं तो पायल सा खाता रहा ठोकरें ,
    तुम कमर से लिपट ,करघनी बन गयी 
मैं गधा था ,गधे का गधा ही रहा ,
       गाय थी तुम प्रिये ,शेरनी बन गयी 
मैं था गहरा कुवा,प्यास जिसको लगी ,
     खींच कर मुश्किलों से था पानी पिया 
तुम नदी सी बही ,नित निखरती गयी ,
     पाट चौड़ा हुआ ,सुख सभी को दिया 
मैं तो कांव कांव, कौवे सा करता रहा ,
            तुमने मोती चुगे ,हंसिनी बन  गयी    
मैं गधा था,गधे का गधा ही रहा ,
        गाय थी तुम प्रिये, शेरनी बन गयी 
मैं तो रोता रहा,बोझा ढोता रहा ,
         बाल सर के उड़े, मैंने उफ़ ना करी 
तुम उड़ाती रही,सारी 'इनकम' मेरी,
        और उड़ती रही,सज संवर,बन परी   
मैं फटे बांस सा ,बेसुरा  ही रहा,
          बांसुरी तुम मधुर रागिनी बन गयी
मैं गधा था ,गधे का गधा ही रहा,
          गाय थी तुम प्रिये ,शेरनी बन गयी  
फ्यूज ऐसा अकल का उड़ाया मेरी ,
           सदा मुझको कन्फ्यूज करती रही 
मैं कठपुतली बन  नाचता ही रहा ,
          मनमुताबिक मुझे यूज करती रही
मैं तो कुढ़ता रहा और सिकुड़ता रहा ,
          तुम फूली,फली,हस्थिनी  बन गयी 
मैं गधा था गधे का गधा ही रहा ,
          गाय थी तुम प्रिये ,शेरनी बन गयी   
ऐसा टॉफी का चस्का लगाया मुझे,
        चाह में जिसकी ,मैं हो गया बावला 
अपना जादू चला ,तुमने ऐसा छला ,
           उम्र भर नाचता मैं रहा मनचला 
मैं दिये  की तरह टिमटिमाता रहा,
     तुम शीतल ,चटक चांदनी बन गयी 
मैं गधा था,गधे का गधा ही रहा ,
          गाय थी तुम प्रिये ,शेरनी बन  गयी 
         
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
किशोर अवस्था का अधकचरा कस्बाई इश्क़ 

बीत जाती है जब बचपन की उम्र सुहानी 
और थोड़ी दूर होती है जवानी 
ये उमर का वो दौर होता है 
जब आदमी किशोर होता है 
जवानी की आहट ,आपकी  मसें भिगोने लगती है
और  आपकी  बातें प्रायवेट होने लगती है  
जब आप फ़िल्मी हीरो की तरह ,
खुद को संवारने लगते है 
और आईने के सामने खड़े होकर ,
खुद को निहारने लगते है 
जब आप अपनी लुक्स के प्रति ,
थोड़े जागरूक  होकर बोलने लगते है 
और  अपनी बाहुओं को दबा,
अपनी मसल्स टटोलने लगते है 
जब आप अपने होठों को गोल करके ,
बजाने लगते व्हिसिल है 
हर सुंदरी पर ,आ जाता आपका दिल है 
जी हाँ ,हम सबकी जिंदगी 
उमर के इस दौर से गुजरी है 
आज भी जब कभी कभी ,
वो बीती यादें होती हरी है 
तो याद आ जाते है वो दिन ,
जब हम नौसिखिये आशिक़ हुआ करते थे 
गाँव की हर सुन्दर लड़की पर मरते थे 
उन दिनों हमारा इश्क़ कस्बाई होता था 
अलग अलग तरीकों से ट्राई होता था 
क्योंकि तब  न  व्हाट्सएप था ,
न वाई फाई होता था 
न फेसबुक न ई  मेल होता था 
बस आँखों ही आँखों में सारा खेल होता था 
जिसमे कोई पास और कोई फ़ैल होता था 
कोई लड़का ,किसी लड़की को ,
टकटकी लगा कर देखता तो उसे ताड़ना कहते थे 
और दोनों आंख्यों में से एक आँख को,
किसी को देख कर ,क्षणिक रूप से बंद कर खोलने को 
आँख मारना कहते थे 
कोई चीज ,प्रत्यक्ष रूप से किसी पर फेंकी नहीं जाती ,
फिर भी लोग फेंकते हुए नज़र आते है 
ऐसे लोग ,दिलफेंक लोग कहलाते है 
तो  लड़की को पटाने के लिए ,
पहले हम लड़की को ताड़ते थे 
फिर आँख मारते थे 
फिर सामने वाली का रिएक्शन देखते थे 
फिर उस पर दिल फेंकते थे 
ये सब क्रियाये मौन रूप से होती थी 
प्रत्यक्ष दिखाई नहीं पड़ती थी 
पर उन दिनों दोस्ती ऐसे ही बढ़ती थी 
 हमारा पार्ट टाइम शगल होता था ,
येन केन प्रकारेण लड़की को पटाना 
और बात नहीं बने तो छटपटाना 
जब किसी की किसी से आँख लड़ती थी 
तो थोड़ी बात आगे बढ़ती थी 
और हम यार दोस्तों में डींगे मारते थे 
'आज वो हमको देख कर मुस्कराई थी'
शेखी बघारते थे 
अपने छोटे छोटे अचीवमेंट,
 दोस्तों से शेयर करते थे 
और माशूका का नाम लेकर आहें भरते थे 
हमारा एक मित्र जिसका बाप मंदिर का था पुजारी
और आरती के बाद ,
जब आती थी प्रसाद बांटने की बारी  
तो वो अपनी मनपसंद लड़की को ,
प्रसाद देने के बहाने उसका हाथ दबा देता था ,
थोड़ा ज्यादा प्रसाद पकड़ा देता था 
और इस तरह बात आगे बढ़ा देता था 
एक दोस्त लाला का लड़का था ,
जो सौदा लेने आई लड़की को ,
एक दो टॉफी मुफ्त में पकड़ा ,
उसके हाथ सहला लेता था 
और इस तरह अपना मन बहला लेता था 
कितने ही क्षणभंगुर अफेयर ,
कितनो के ही साथ हुए और टूटे 
इस चक्कर में कितने ही यार दोस्त रूठे 
और कई बार तो ऐसी नौबत भी आई 
कि अपनी ही प्रेमिका की हमने बिदाई करवाई 
आज की जनरेशन को ,
पुराने जमाने के ये तरीके,
 बड़े ओल्ड फैशन के लगते होंगे ,
पर उन दिनों ये ही चलते थे 
क्योंकि हम माँ बाप और जमाने से बहुत डरते थे 
पर हम सब ने कभी न कभी इन्हे ट्राय किया  है
और सच ,बहुत एन्जॉय किया है 
कच्ची उमर के उस अधकचरे कस्बाई इश्क़ की,
वो बाते आज भी जब याद आती है 
हमें अपनी उन बचकानी हरकतों पर ,
बहुत हंसी आती है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'  

शुक्रवार, 8 दिसंबर 2017

MY DEAR BELOVED

Dear beloved,

How are you today and your family, I am a citizen of Sudan but currently staying in Burkina Faso. My name is Miss Mariam Dim Deng,25years old originated from Sudan. I got your E-mail address/profile through my internet search from your country when I was searching for a good and trust worthy person who will be my friend and I believe that it is better we get to know each other better and trust each other because I believe any good relationship will only last if it is built on truth and real love.My father Dr. Dominic Dim Deng was the former Minister for SPLA Affair sand Special Adviser to President Salva Kiir of South Sudan for Decentralization.

My father Dr. Dominic Dim Deng and my mother including other top Military officers and top government officials had been on board when the plane crashed on Friday May 02, 2008. You can read more about the crash through the below site:http://news.bbc.co.uk/2/hi/africa/7380412.stm) After the burial of my father, my uncles conspired and sold my father's properties to a Chinese Expatriate and live nothing for me. On a faithful morning, I opened my fathers briefcase and found out the documents which he have deposited huge amount of money in one bank in Burkina Faso with my name as the next of kin. I traveled to Burkina Faso to withdraw the money so that I can start a better life and take care of myself.

On my arrival, the Branch manager of the Bank whom I met in person told me that my fathers instruction to the bank was the money is release to me only when I am married or present a trustee who will help me and invest the money overseas. I have chosen to contact you after my prayers and I believe that you will not betray my trust. But rather take me as your own sister. Though you may wonder why I am so soon revealing myself to you without knowing you, well, I will say that my mind convinced me that you are the true person to help me.

More so, I will like to disclose much to you if you can help me to relocate to your country because my uncle has threatened to assassinate me. The amount is $10.4 Million with some kilo of gold and I have confirmed from the finance security bank in Burkina Faso. You will also help me to place the money in a more profitable business venture in your Country. However, you will help by recommending a nice University in your country so that I can complete my studies.


It is my intention to compensate you with 30% of the total money for your services and the balance shall be my capital in your establishment. As soon as I receive your interest in helping me, I will put things into action immediately. In the light of the above,shall appreciate an urgent message indicating your ability and willingness to handle this transaction sincerely.
PLEASE REPLY ME TO {missmariamdimdeng_71@yahoo.com}  

Sincerely yours,
Miss Mariam Dim Deng

गुरुवार, 7 दिसंबर 2017

श्रीमती उषा जी,और उपस्तिथ सभी संगीत प्रेमियों और नन्हे कलाकारों ,
सर्व प्रथम मैं उषाजी को धन्यवाद देना चाहता हूँ कि इस सुरीले कार्यक्रम में 
हमें बुला कर यह सन्मान दिया 
संगीत सुरों का संगम है -सुर याने कि देवता -देवताओं का आशीर्वाद पाने के लिए 
आपको साधना करनी होती है वैसे ही संगीत का  ज्ञान पाने के लिए आपको साधना 
करनी पड़ती है और यही साधना  स्वर्गिक आनंद की अनुभूति कराती है 
गीतकार गीत लिखता है संगीतकार उस गीत में जीवन भर देता है -संगीत के स्वर गीतों को 
साँसे प्रदान करते है ,अमृत भरते है और वो गीत अमर हो जाता है  -लाखो होठों पर 
चढ़ जाता है -यह होता है संगीत का जादू 
संगीत सीखना एक तपस्या है -हम ताड़ी सोचे की महीने दो महीने में या साल दो साल में 
हम संगीत के मर्मज्ञ हो जाएंगे तो ये हमारी गलत फहमी है -बच्चों को यदि शुरू से ही सुरों का ज्ञान आ जाए 
तो जिंदगी लय मय हो जाती है ,
हम ऑरेंज काउंटी वाले खुशनसीब है कि उषाजी जैसी कुशल ज्ञानी संगीत शिक्षिका 
यहाँ मौजूद है और हमारे बच्चे इनसे ये ज्ञान प्राप्त कर सकते है क्योंकि 
अगर सुरों का ज्ञान आ गया ,मानव की पहचान आगयी 
इस जीवन की खींचतान में ,सुर आये तो तान आगयी 
किन्तु लग्न और सच्चे मन से ,करो साधना है आवश्यक 
समय लगेगा ,पर रियाज ही तुम्हे बनाती अच्छा गायक 
हर बेटी कोयल सी कूके ,हर बेटा मुकेश सा गाये 
सरस्वती की अगर कृपा हो ,अच्छा शिक्षक तुम्हे सिखाये 
तो आप सब ,खास कर मेरे नन्हे संगीत सीखने वाले कलाकार ,बधाई के पात्र है 
इतना सुन्दर कार्यक्रम प्रस्तुत करने के लिए -आपका बहुत बहुत धन्यवाद 
जब उषाजी का निमंत्रण मिला तो समझ में नहीं आ रहा था की क्या बोलूं 
तभी एक कल्पना आयी जिसने एक कविता का रूप ले लिया है ,मैं 
आपको सुनाना चाहूंगा -आशा है अच्छी लगेगी 
गृहस्थी का संगीत 

जीवन के पल पल में साँसों की हलचल में ,
संगीत का होता वास है 
संगीत की सरगम ,सारेगम भुला देती है ,
और जीवन में  भरती मिठास है 
शादी के बाद जब ,
आपको मिल जाता है अपना मनमीत 
तो आपके जीवन में ,
गूंजने लगता है ,गृहस्थी का संगीत 
मेरी ये मान्यता है 
कि सुरो के संगीत और गृहस्थी के संगीत में ,
काफी समानता है 
ससुराल में ,पति के अलावा ,
होते दो प्राणी खास है 
और वो ,एक आपके ससुर ,
और दूसरी आपकी सास है 
देखिये ,गृहस्थी के संगीत में भी सुर आ गया 
ससुराल का मुख्य सुर,ससुर आ गया 
यदि आपके सुर मिल जाते है ,
ससुर के सुर के संग 
तो समझलो,आपने जीत ली आधी जंग 
और जहाँ तक है सास की बात 
तो यहाँ भी संगीत जैसे होते है हालात 
संगीत के स्वर 'सा रे ग  प ध नी स '
'सा 'से शुरू होकर 'स'पर होते है समाप्त 
याने' सा स 'के बीच ही सारे सुर है व्याप्त 
इसमें जेठ,जिठानी भुवा देवर और ननद 
जैसे सभी स्वर समाहित है 
और इन सबको साधने में ही आपका हित है 
 आपको इन सबके साथ सामंजस्य बिठाना होता है 
उनकी ताल पर गाना होता है 
इन सभी के साथ यदि मिलाली अपनी तान 
तो ससुराली जीवन में ,कभी नहीं होगी खींचतान 
सुर मय हो जाएगा आपका जीवन ,
 सुहाने दिन होंगे,सुरमयी शाम 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'