८० से ९० के दशक के गीत
१ कोई कंवरी कन्या जब सपने बुनती है तो अपने लिए एक राजकुमार चुनती है
जो सफ़ेद घोड़े पर होकर सवार ,मन में भरे प्यार -आएगा उसके द्वार और ले जाएगा
अपने साथ --इन्तजार तो पिछले दशक की नायिका भी करती थी पर उसमे
संजीदगी होती थी पर इस दशक की नाइका के इन्तजार में थोड़ा चुलबुलापन आ
गया है और किसी के ख्वाबों में डूबी वो जाती है एक गीत जो शमत निधि हांडा
के स्वर में सुनिए
मेरे ख्वाबों में जो आये
२ पिछले दशक का नायक किसी की मुस्कराहटों पर निसार होकरऔर किसी के प्यार में डूबा
रहने को ही असली जीने का नाम देता है तो दो दशक बाद का नायक भी आशिकी को
अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझ कर आशिकी के लिए एक सनम की तलाश करता है
एक नए अंदाज में -हमारे प्रिय अनिल जाजू के स्वर में सुनिए
बस एक सनम चाहिए आशिक़ी के लिए
३ धीरे धीरे प्यार परवान चढ़ता है -बातें होती है -मुलाकातें होती है -दोनों एक रंग में रंग जाते है
प्यार के रंग में और नायिका कभी उसे परी लगती है ,कभी सपनो की रानी और वो अपनी
प्रेमिका से पूछ बैठता है -सुनिए श्री अनुपम खरबंदा के स्वरों में -
मेरे रंग में रँगनेवाली
४ प्यार की आग दोनों तरफ लगी हुई है -उधर नायक बेचैन इधर नायिका बेकरार पल भर की
जुदाई भी सहन नहीं होती -कहते है ना -
जुदाई में जर्द चेहरा हो गया है ,हिज्र की हर सांस भरी हो गयी है
याद में तेरी वो हालत बन गयी ,लोग कहते है बिमारी हो गयी है
और इसी बिमारी की- बिगड़ी बिगड़ी सी हालत में नायिका के कंठ से गीत निकल पड़ता है
जो आप सुनिए श्रीमती मोना जी के स्वरों में
दिल दीवाना बिन सजना के माने ना ----
५ समय बीतता है -मुलाकातें बढ़ती है -प्रेमी प्रेमिका का दिल एक दूजे बिन नहीं लगता
उन्हें लगता है की उन दोनों ने मिल कर एक नया संसार पा लिया है -उनके सारे सपने
पूरे हो गए है और वो मिल कर गाते है एक गीत जो आप सुनेगे श्री अनुपम खरबंदा और
विनीता कुमार जी के स्वरों में
मिल के -ऐसा लगा तुम से मिल के
६ सामजिक बंधनो को काट कर जब प्रेमी एक दुसरे में खो जाते है -दीवाने हो जाते है
तो मस्ती के वो पल खत्म होने का नाम ही नहीं लेते -प्यार का नाश जो चढ़ता है ,उतदुनिया रता ही नहीं
मन बस उसी मस्ती में जाता और झूमता है और गाता है सुनिए
श्रीमती नूपुर त्रिपाठी जीऔर मनीष यादव के स्वरों में
थोड़ा सा झूम लू मै
७ कहते है की मिलन की राह आसान नहीं है - ये दुनिया दो प्रेमियों को आसानी से मिलने नहीं देती
कारण कुछ घरेलू-कुछ गलतफहमियां या और भी कुछ ऐसे हालत पैदा हो जाते है की न चाहते हुए भी
दोनों के मिलन के बीच में एक दीवार कड़ी हो जाती है और दिल के टुकड़े टुकड़े होने लगते है
ऐसे वक़्त में अपने मन की भावनाओं को व्यक्त करती हुई नायिका श्रीमती विनीता कुमार के स्वरों में जाती है
शीशा हो या दिल हो ,एक दिन टूट जाता है
८ उधर प्रेमी का दिल टूटा हुआ होता है इधर प्रेमिका का -उनके दिलों ने अरमानो की जो बस्ती बसाई थी
वह ढहने लगती है -दुखी नायिका अपनी पीड़ा को ग़ज़ल के रूप में जाती है श्वेता बहती तेल के स्वरों में
दिल के अरमान आंसुओ में बह गए
९ आपको याद होगा फिल्म मदर इण्डिया का वो गीत जो नरगिस ने गाय था बीते दशक में
दुनिया में जो आये तो जीना ही पड़ेगा
जीवन है अगर जहर तो पीना ही पड़ेगा
उसी परिस्तिथि में उलझा आज का नायक अपने आप को कैसे समझाता है
सुनिए श्री अनिल जाजू के शब्दों में
अब तेरे बिन। जी लेंगे हम
१० और अब गलत फहमिया दूर हो गयी -बीच की दीवार ढह गयी
तो ,किस्मत ने साथ दिया और बिगड़ी बात बन गयी तो नायक अपनी नायिका
को सांत्वना देते हुए समझाता है -सुनिए अनिल जाजो के स्वर में
जब कोई बात बिगड़ जाए जब कोई मुश्किल पद जाए
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