धन्यवाद कपिल जी
हमारे उजले केश और बढ़ती उम्र को देख आपने हमें ६०-७०-के दशक के गांव के लिए सही चुना
पर एक बात बतादे की हम तब भी जवान थे अब भी जवान है बस सर्दी का मौसम आ गया है
समय बदल रहा है -हर चीज का अंदाज बदल रहा है -दासछिद्रो वाला काला टेलीफोन पहले
पुश बटन हुआ और अब मोबाईल पर उंगलिया फिसलने लगी है ,
हमें याद है जब हम बच्चे थे ,पिता से इतना डरते थे.
कभी भी सामने उनके ,न अपना सर उठाया था
और बच्चे आजकल के हो गए मॉडर्न इतने है,
पिता से पूछते है मम्मी को कैसे पटाया था
तो समय से साथ हमारी सोच.हमारा नज़रिया भी बदल रहा है और यही दास्ताँ हमारी फिल्मो की
भी है -गीतों की आत्मा वही है पर कहने का अंदाज बदल गया है ,गीतों की भाषा में बोलों तो तब का गाना जो
'हवा में उड़ता जाये,मेरा लाल दुपट्टा मलमल का' से 'ओ लाल डुपट्टेवाली अपना नाम तो बता 'होते हुए
आज 'काली तेरी जुल्फे पंरांदा तेरा लाल नी 'पर आ गया है
इन्तजार इन्तजार इन्तजार ,जिदगी में ये ही लगा रहता है यार
हम तेरा इन्तजार करेंगे कयामत तक खुदा करे की कयामत हो और तू आये
या फि आ जा रे परदेशी या हमरे गाँव कोई आएगा
कितने ही ऐसे फ़िल्मी नग्मे है जो किसी के इन्तजार में गाये गए है
याद करिये ६०-७० के दशक की वो फिल्म जिसमे परमसुन्दरी मधुबाला किसी के इंतजार में एक मधुर
गीत गुनगुनाती थी जो आज भी उतना ही मधुर है -सुनिए श्रीमती उषा सुशिल के शब्दों में -उषाजी हमारे
ऑरेंजकाउन्टी की संगीत मर्मज्ञ है और बच्चों को संगीत सिखाती भी है
तो गीत सुनिए
आएगा आएगा आएगा आने वाला
२ सुनी आपने इस गीत की अंतिम पंक्तियाँ ,नायिका कहती है
कर बैठा भूल वो ,ले आया फूल वो, उससे कहो जाए चाँद लेकर आये '
कितनी डिमांडिंग हो गयी है आज की नायिकाएं
हमारे जमाने में ये ही फूल खत में दाल कर प्रेम प्रदर्शन होता था
फूल तुम्हे भेः है खत में। फूल नहीं मेरा दिल है
या रह में फूल बिछा कर नायिका से निवेदन करता था पाँव छूलेनेडो फूलो को इनायत होगी
खैर ,आजकल के व्यस्त जीवन में लोगो को मुस्कराने भर का समय ही नहीं मिलता बस
कभी कभी कुछ पल आते है जब आदमी किसे की मुस्कराहटों पर कुर्बान हो जाता है
इन्ही भावनाओ को व्यक्त करते हुए हमारे प्रिय श्री जुल्का जी गीत सुना रहे है
किसी की मुस्कराहटों पे हो निसार
३ चाँद जे हाँ चाँद ये एक ऐसा कैरेक्टर एक्टर है जो कई फिल्मो में अलग अलग रोल निभाता रहा है
कभी लोरी में वो बच्चों का मामा बन जाता है ,कभी मेहबूब बन कर आता है जब नायिका गाती है 'तू मेरा चाँद मै तेरी
चांदनी 'कभी जासूस बन जाता है 'ो चाँद जहाँ वो जाए तू इनके साथ जाना ,हर रात खबर लाना'
कभी ईद का चाँद,कभी करवा चौथ का चांद हमारे प्रिय सतीश शर्मा जी अपनी मेहबूबा में चाँद ढूँढा है और गए रहे है
चाँद सी हो मेहबूबा मेरी कब ऐसा मैंने सोचा था
४ अभी पिछले पुराने गाने में शर्मा जी ने अपनी मेहबूबा को चाँद सी बतलाया था वैसे बीते दसको में
एक प्रसिद्द गीत आया था चौदंवी का चाँद हो या महताब हो
जो भी भी हो तुम खुदा की कसम ,लाजबाब हो
ऐसे ही प्रेम अपनी चाँद से मुखड़े वाली प्रियतमा के साथ जब चांदनी में अभिसार करते है
तो चाँद से ही सवाल कर बैठते है क्या कैसे बतलायेंगे तरह छानेवाले छाबड़ा जी
मैंने पूछा चाँद से
५ चाँद ने क्या जबाब दिया ये तो पता नहीं पर नायिका ने आ एक प्रश्न जरूर पूछ लिया की
हम दोनों एक दुसरे को अच्छी तरह से जानते भी नहीं और एक दुसरे पर इस तरह फ़िदा है की
जैसे एक दुसरे के लिए ही बने हो और इसी भावना को वह गीत के माध्यम से पूछ रही है श्रीमती रीता जोशी
न हम तुम्हे जाने
६ प्यार में पागल नायिका अपने सब बंधनो को छोड़ उड़ना चाहती है ,उसके पंख लग जाते है और
पिया के साथ जीवन जीने की तमन्ना इस तरह जागृत हो जाती है की वो नाचती हुई गाती है -श्रीमती सुनीत शर्मा जी के स्वरों में
आज फिर जीने की तमन्ना है
७ प्यार के इस खेल में वेड होते है ,कसमे खाई जाती है पर ये जमाना बड़ा जालिम होता है
दो प्रेमियों के बीच में गलतफहमियां पैदा कर देता है -कभी अमीरी गरीबी की दीवार खड़ी हो जाती है
कभी जाती धरम की ,कभी माँ बाप का इमोशनल ब्लेकमैल -ये सारे खेल प्यार के दुश्मन बन जाते है
सारे वादे भुला दिए जाते है और नायक जाता है हमारे प्रिय दिग्विजय जी के स्वरों में
क्या हुआ तेरा वादा
८ सपने कब सबके पूरे हुए है -याद है वो गीत 'सपने सपने,कब हुए अपने ,
आँख खुली और टूट गए '
या फिर वो गाना -टूटे हुए ख्वाबों ने ,हमको ये सिखाया है
दिल ने जिसे पाया था ,आँखों ने गमाया है
जब सपने टूटते है तो प्रेमी कपिल शर्मा की तरह विरक्त होकर गाता है
ये दुनिया ये महफ़िल तेरे काम की नहीं
९ याद है वो पुराना गाना 'जब दिल ही टूट गया तो जी कर क्या करेंगे '
या फिर वो गीत 'मिली खाक में मोहब्बत,जला दिल का आशियाना
जो थी कल तलक हक़ीक़त ,वो ही बन गयी फ़साना
बस ऐसे ही गम के दौर में हमारे प्यारे गजल गायक श्री ढल साहेब सुना रहे है
एक प्यारी सी ग़ज़ल
यूँ हसरतों के दाग निगाहो ने बोलिये
१० शीत ऋतू का अंत होता है -कोयल की कुहुक सुनाई देती है ,मौसम अंगड़ाई लेता है
गलतफहमियां दूर होती है -नायक नायिका एक दुसरे की तलाश में निकल पड़ते है और
हमारे मनीष यादव और उनकी जीवनसंगिनी नुपूर त्रिपाठी जी एक दूजे को ढूंढते हुए गाते है
जाने जा,ढूंढता फिर रहा
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