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रविवार, 7 अप्रैल 2013

ज्वार -भाटा

     लहत तट संवाद -2
       ज्वार -भाटा 
तुम निर्जीव समुन्दर तट हो ,
                 और लहर हूँ ,मै मदमाती
मै ही हरदम,आगे बढ़ कर ,
                मधुर मिलन को,तुमसे आती
 कुछ पल लेते ,बाहुपाश में,
               पी रस मेरा ,   मुझे  छोड़ते         
सचमुच तुम कितने निष्ठुर हो,
               मेरा दिल ,हर बार तोड़ते 
मै ही सदा ,पहल करती हूँ,
                 कभी न बढ़ तुम आगे आये
पहल न करते ,बैठे रहते ,
                  आस मिलन की ,सदा लगाये
तट मुस्काया,हंस कर बोला ,
                 ना  ना ऐसी   बात  नहीं  है
चाव मिलन का ,जितना तुम में,
                  मेरे मन में ,  चाव  वही है
उठता 'ज्वार' तुम्हारे दिल में,
                  तो तुममे उफान आ जाता
और जब आता है 'भाटा 'तो ,
                    मै  नजदीक  तुम्हारे आता   

मदन मोहन बाहेती'घोटू'   

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