पृष्ठ

बुधवार, 15 अगस्त 2012

फिर भी हम कहते,हम इंडीपेंडेंट है

फिर भी हम कहते,हम इंडीपेंडेंट है

आम आदमी की तरह,जमीन से जुड़े है

हाथ हमारे हमेशा,आपस में  जुड़े है
सब अपने अपने काम धाम से जुड़े है
कई दलों ने आपस में जुड़ कर,
बनायी भारत की गवेर्नमेंट  है
फिर भी हम कहते ,हम इंडीपेंडेंट है
फसल के लिये हम मानसून पर निर्भर है
पेट्रोलियम के लिये,हम खाड़ी देशों पर निर्भर है
विकास के लिये ,विदेशी सहायता पर निर्भर है
 हर जरूरत की चीज के लिये,
हम किसी ना किसी पर डिपेंडेंट है  
फिर भी हम कहते ,हम इंडीपेंडेंट है
हम सब आस्था और संस्कार से बंधे है
हम परंपरा और  व्यवहार से बंधे है
हम शादी और  परिवार से  बंधे  है
कितने ही देशों से हमने कर रखे ,
संधि,ट्रीटी और कई एग्रीमेंट  है
फिर भी हम कहते,हम इंडीपेंडेंट है
 बॉस  के इशारों पर,नाचते है हम
बच्चों की जिदों पर,नाचते है हम
बीबी के इशारों पर ,नाचतें है हम
पत्नी के आज्ञा मानने वाले ,
सबसे ओबीडियन्ट सर्वेन्ट है
फिर भी हम कहते,हम इंडीपेंडेंट  है

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।