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शनिवार, 10 सितंबर 2011

वो लोकगीत

न जाने कहाँ खो गई मिट्टी की वो असली खुशबू गुम हुए आधुनिकता में मीठे-सुरीले वो लोकगीत | कर्ण-फाड़ू संगीत ही रहा वो असली रंगत नहीं रही मूल भारत की याद दिलाती कहाँ गए वो लोकगीत | एफ. एम., पोड ने निगल लिया फिल्मी गानों ने ग्रास लिया अब तो कोई सुनता भी नहीं न गाता कोई वो लोकगीत |

3 टिप्‍पणियां:

  1. आपको बहुत बहुत बधाई --
    इस जबरदस्त प्रस्तुति पर ||

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  2. आधु-निकता धूनती, धिन-धिन धुन-धुन गीत,
    धूम-धडाका बज रहा, कान फोड़ संगीत |
    कान फोड़ संगीत, मिटाता असली खुश्बू ,
    चंडू पीकर मस्त, तोड़ता जाए बम्बू
    कर भारत अफ़सोस, नहीं दो दिन भी टिकता,
    लोकगीत को बेंच, खरीदते आधुनिकता

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