न जाने कहाँ
खो गई
मिट्टी की वो
असली खुशबू
गुम हुए
आधुनिकता में
मीठे-सुरीले
वो लोकगीत |
कर्ण-फाड़ू
संगीत ही रहा
वो असली रंगत
नहीं रही
मूल भारत की
याद दिलाती
कहाँ गए
वो लोकगीत |
एफ. एम., पोड ने
निगल लिया
फिल्मी गानों ने
ग्रास लिया
अब तो कोई
सुनता भी नहीं
न गाता कोई
वो लोकगीत |
आपको बहुत बहुत बधाई --
जवाब देंहटाएंइस जबरदस्त प्रस्तुति पर ||
आधु-निकता धूनती, धिन-धिन धुन-धुन गीत,
जवाब देंहटाएंधूम-धडाका बज रहा, कान फोड़ संगीत |
कान फोड़ संगीत, मिटाता असली खुश्बू ,
चंडू पीकर मस्त, तोड़ता जाए बम्बू
कर भारत अफ़सोस, नहीं दो दिन भी टिकता,
लोकगीत को बेंच, खरीदते आधुनिकता
आपने सही लिखा...
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