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सोमवार, 20 अक्टूबर 2025

शादी 

जैसे ,पतझड़ के बाद हो बसंत ऋतु में फूलों का महकना 
जैसे ,प्रात की बेला में पक्षियों का मधुर करलव , चहकना 
 जैसे ,सर्दी की गुनगुनी धूप में छत पर बैठ मुंगफलियां खाना 
जैसे ,गर्मी में लोकल ट्रेन में आकर ठंडे पानी से नहाना 
जैसे ,तपती हुई धरती पर बारिश की पहली फुहार का गिरना 
जैसे ,उपवन के पेड़ पर चढ़कर पके फलों को चखना 
जैसे, पूनम के चांद का थाली भरे जल में उतरना 
जैसे , बौराई अमराई में कोकिल का पीयू पीयू चहकना 
जैसे ,सवेरे उठकर गरम-गरम गुलाबी चाय की चुस्कियां लेना 
जैसे ,दीपावली की रात में दीपक की लौ से बिखरता हुआ प्रकाश 
जैसे ,चटपटा खाने के बाद मुंह में घुल जाए गुलाब जामुन की मिठास 
जैसे ,होली के रंगों में जीवन के बिखरे हो अबीर गुलाल 
जैसे ,वीणा और तबले की आपस में मिल जाए ताल से ताल 
जैसे ,जीवन के कोरे कागज पर लिख दे प्रणय गीत 
जैसे , वीराने में बहार बनकर आ जाए कोई मनमीत 
जैसे ,सोलह संस्कारों में सबसे प्यारा मनभावन संस्कार 
जैसे ,ईश्वर द्वारा मानव को दी गई सबसे अच्छी सौगात

मदन मोहन बाहेती घोटू 

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