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मेरा काव्य-पिटारा
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गुरुवार, 10 सितंबर 2020
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डर कर रहना अच्छा है जहाँ कुटिल हो ,शासक ,शासन ,कुछ ना कहना अच्छा है डर कर रहना अच्छा है जब सत्ता डूबी हो मद में ,लूटमार में लगी हुई जब जनता ...
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बुधवार, 9 सितंबर 2020
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समझौता -बुढ़ापे में अब तुझको छोड़ बुढ़ापे में ,जाऊं किस पास ,बता तू ही इस बढ़ी उमर में कौन मुझे ,डालेगा घास ,बता तू ही क्या हुआ रही ना घास हरी ,...
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मैं क्यों देखूं इधर उधर मैं रहूँ देखता सिर्फ तुम्हे ,तुम रहो देखती सिर्फ मुझे , यूं देख रेख में आपस की ,जाता है अपना वक़्त गुजर सुन्दर,मनमोह...
मंगलवार, 8 सितंबर 2020
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बदलाव थे रोज के जो मिलनेवाले ,मुश्किल से मिलते कभी कभी करते दूरी से हाथ हिला कर 'हाय 'और फिर 'बाय 'तभी जहाँ हरदम रहती हलचल थ...
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