पृष्ठ

बुधवार, 9 सितंबर 2020

मैं क्यों देखूं  इधर उधर

मैं रहूँ देखता सिर्फ तुम्हे ,तुम रहो देखती सिर्फ मुझे ,
यूं देख रेख में आपस की ,जाता है अपना वक़्त गुजर
सुन्दर,मनमोहक,आकर्षक,अनमोल कृति तुम ईश्वर की ,
जब खड़ी सामने हो मेरे , तो मैं क्यों देखूं इधर उधर

दो नयन तुम्हारे ,दो मेरे ,जब मिले ,नयन हो गये  चार
कुछ हुआ इस तरह चमत्कार ,खुल गए ह्रदय के सभी द्वार
तुम धीरे धीरे ,चुपके से ,आई और मन में समा गयी ,
मैं भी दिल हार गया अपना ,आपस में हममें हुआ प्यार
अब पलक झपकते नैन नहीं ,बिन तुमको देखे चैन नहीं ,
जिस तरफ डालता हूँ  नज़रें ,तुम ही तुम आती मुझे नज़र
मैं रहूँ देखता सिर्फ तुम्हे ,तुम रहो देखती सिर्फ मुझे ,
यूं देख रेख में आपस की ,जाता है अपना वक़्त गुजर  

दिन रात तुम्हारे ख्वाबों में ,खोया रहता दीवाना मन
कुछ असर प्यार का है ऐसा ,छाया रहता है पागलपन
हल्की सी भी आहट  होती ,यूं लगता है तुम आयी हो ,
दिन भर बेचैन रहा करता ,पाने को तुम्हारे दरशन
तुन बिन सबकुछ सूना सूना ,दुःख विरह वेदना का दूना ,
बस हम मन ही मन प्यार करें ,कोई भी होता नहीं मुखर
मैं रहूँ देखता सिर्फ तुम्हे ,तुम रहो देखती सिर्फ मुझे ,
यूं देखरेख में आपस की ,जाता है अपना वक़्त गुजर

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।