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मेरा काव्य-पिटारा
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शनिवार, 30 नवंबर 2013
जीवन की चाल
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जीवन की चाल बचपन में घुटनो बल चले ,डगमग सी चाल थी, उँगली पकड़ बड़ों की,चलना सीखते थे हम आयी जवानी ,अपने प...
हम गुलाब है
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हम गुलाब है छेड़ोगे तो चुभ जायेंगे ,कांटे है बदन पर , सूँघोगे ,देंगे तुमको ख़ुशबू लाजबाब हम दिखते है पंखुड़ी पंखुड़...
बलात्कार
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बलात्कार कितने ही स्थानो पर ,कितनी ही बार डाक बंगलों में,सूनी जगहों में , इधर उधर या सरे बाज़ार हो जाता है बलात्कार कितनी ही महिला...
शुक्रवार, 29 नवंबर 2013
मैं सुई हूँ
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मैं सुई हूँ तीखी बातें दिल को चुभती ,मिर्च तीखी चरपरी मगर मै तीखी बहुत हूँ,आत्म गौरव से भरी बड़ी दुबली पतली सी हूँ,मगर मुझ में तेज ह...
मन उच्श्रृंखल
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मन उच्श्रृंखल इधर उधर भटका करता है ,हर क्षण,हरपल मन उच्श्रृंखल कभी चाँद पर पंहुच ,सोमरस पिया करता कभी चांदनी साथ किलोलें ,किया कर...
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