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शनिवार, 30 नवंबर 2013

जीवन की चाल

              जीवन की चाल
बचपन में घुटनो बल चले ,डगमग सी चाल थी,
                     उँगली पकड़ बड़ों की,चलना सीखते थे हम
 आयी जवानी ,अपने पैरों जब खड़े हुए ,
                      मस्ती थी छायी और बहकने लगे कदम
चालें ही रहे चलते उल्टी ,सीधी ,ढाई घर ,
                       उनको हराने ,खुद को जिताने के वास्ते ,
सारी उमर का चाल चलन ,चाल पर चला ,
                     आया बुढ़ापा ,लाठी ले के चल रहे है हम
घोटू

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