पूंछ अब बाकी है
हाथी तो निकला यार , पूंछ अब बाकी है
हम हो गए अस्सी पार, पूंछ अब बाकी है
ऊपर नीचे ,नीचे ऊपर
पग पग हमने खाई ठोकर
किसी गैर ने प्यार लुटाया ,
ठगा किसी ने, अपना होकर
हम गिर,संभले हर बार, पूंछ अब बाकी है
हम हो गए अस्सी पार,
पूंछ अब बाकी है
चली सवारी ,सदा शान से
दम न किसी में था जो रोके
हमको कोई फर्क पड़ा ना ,
चाहे कितने कुत्ते भोंके
हम बढ़ते रहे चिंगाड़,
पूंछ अब बाकी है
हम हो गए अस्सी पार,
पूंछ अब बाकी है
बने इंद्र के कभी ऐरावत
पूजित हुए गजानन प्यारे
कभी सूंड में पानी भर कर,
लक्ष्मी जी के पांव पखारे
किया कितनों का उद्धार
पूंछ अब बाकी है
हम हो गए अस्सी पार, पूंछ अब बाकी है
बाकी बचा पूंछ सा जीवन
अब मस्ती से काटेंगे हम
मोह माया को छोड़ जियें हम
करते रहे प्रभु का सिमरन
करेंगे भवसागर को पार,
पूंछ अब बाकी है
हम हो गए अस्सी पार, पूंछ अब बाकी है
मदन मोहन बाहेती घोटू
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।