पृष्ठ

सोमवार, 25 सितंबर 2023

मज़ा बुढ़ापे का 

जब भी जी चाहे सो जाओ 
जब भी जी चाहे जग जाओ 
जो जी चाहे खाओ पियो 
अपनी मन मरजी से जियो 
मन कहे, करो तो वैसे ही 
है मज़ा बुढ़ापे का ये ही 

ना दफ्तर जाना सुबह दौड़ 
ना ही बिजनेस की तोड़फोड़ 
ना तो ऊधो को कुछ देना 
ना ही माधो से कुछ लेना 
ना कोई की जवाब देही 
है मज़ा बुढ़ापे का ये ही 

तुम सुबह उठो पेपर चाटो 
या टीवी देखो ,दिन काटो 
या घूमो माल ,बाजारों में 
या गपशप मारो यारों में 
बन रहो सभी के तुम स्नेही 
है मज़ा बुढ़ापे का ये ही 

जीवन भर खट ,जो धन जोड़ा 
खुद पर भी खर्च करो थोड़ा 
अब त्यागो सब मोह माया को 
जी भर सुख दो निज काया को 
पैसा काम आए अपने ही 
है मज़ा बुढ़ापे का ये ही

जब मृत्यु वाला दिन तय है 
तो तुमको काहे का भय है 
जो होना है ,हो जाने दो 
जीवन में मस्ती आने दो 
तुम मौज उड़ाओ ऐसे ही 
है मज़ा बुढ़ापे का ये ही 

मदन मोहन बाहेती घोटू 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।