मेरी पत्नी बहुत मधुर है
मेरी उमर हो गई अस्सी
मैं अब भी हूं मीठी लस्सी
पिचहत्तर होने आई है
पत्नी मेरी रसमलाई है
हम दोनों का साथ अनूठा
यह भी मीठी ,मैं भी मीठा
सीधी सादी, सुंदर भोली
बहुत मधुर मीठी है बोली
सब के संग व्यवहार मधुर है
दिल से करती प्यार मधुर है
कभी सुहाना गाजर हलवा
कभी जलेबी जैसा जलवा
कभी गुलाब जामुनो जैसी
या कातिल काजू कतली सी
रबड़ी है ये कलाकंद है
हर एक रुप में यह पसंद है
अधरम मधुरम वदनम मधुरम
नयनम मधुरम चितवन मधुरम
मनमोहक मुस्कान खान है
मिठाई की ये दुकान है
यह तो था सौभाग्य हमारा
जो पाया है साथ तुम्हारा
सहगामिनी पति की सच्ची
मेरी तारा सबसे अच्छी
जीवन में बहार बन आई
जन्मदिवस की तुम्हे बधाई
मदन मोहन बाहेती घोटू
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।