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शुक्रवार, 29 अप्रैल 2022

आज भी 

आज भी कातिल अदायें आपकी हैं ,
आज भी शातिर निगाहें आपकी हैं 
आज भी लावण्यमय सारा बदन है,
आज भी मरमरी बांहे आपकी है 
महकता है आज भी चंदन बदन है ,
आज भी है रूप कुंदन सा दमकता 
अधर अब भी है गुलाबी पखुड़ियों से,
और चेहरा चांद के जैसा चमकता 
बदन गदरा गया है मन को लुभाता,
कली थी तुम फूल बनकर अब खिली हो 
 भाग्यशाली मैं समझता हूं मै स्वयं को 
 बन के जीवनसंगिनी मुझको मिली हो 
 केश अब भी काले ,घुंघराले ,घनेरे 
 और अंग अंग प्यार से जैसे सना हो 
 हो गई होगी पिचत्तर की उमर पर ,
 मुझे अब भी लगती तुम नवयौवना हो

मदन मोहन बाहेती घोटू 

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