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बुधवार, 29 दिसंबर 2021
सोमवार, 20 दिसंबर 2021
मैं लड़की हूं लड़ सकती हूं
मैं लड़की हूं, लड़ सकती हूं
फिर से कुर्सी चढ़ सकती हूं
जब सत्ता ने दामन त्यागा
तब मेरा लड़कीपन जागा
प्रोढ़ा हुई पचास बरस की ,
तब लड़की वाला हक मांगा
सूखी नदी, मगर वर्षा में ,
फिर से कभी उमड़ सकती हूं
मैं लड़की हूं,लड़की सकती हूं
जब शासन था, लूटा जी भर
अब निर्बल, तो याद आया बल
नौ सौ चूहे मार बिलैया
ने थामा धर्मों का आंचल
जनता में भ्रम फैलाने को ,
कितने किस्से गढ़ सकती हूं
मैं लड़की हूं, लड़ सकती हूं
मेरा भाई युवा नेता है
अल्प बुद्धि , इक्कावन का है
बूढ़ी मां है सपन संजोये,
फिर से पाने को सत्ता है
जल गई रस्सी, पर न गया बल,
अब भी बहुत जकड़ रखती हूं
मैं लड़की हूं ,लड़ सकती हूं
हुई खोखली, वंशवाद जड़
पर जनता भोली है,पागल
सेवक असंतुष्ट पुराने
चमचे नाव खे रहे केवल
बोल बोलती बड़े-बड़े में ,
अभी बहुत पकड़ रखती हूं
मैं लड़की हूं ,लड़ सकती हूं
फिर से कुर्सी चढ़ सकती हूं
मदन मोहन बाहेती घोटू
मैं लड़की हूं लड़ सकती हूं
मैं लड़की हूं, लड़ सकती हूं
सबसे आगे बढ़ सकती हूं
मेरा अगर ध्येय निश्चय है
तो फिर मेरी सदा विजय है
मैं उन्नति के उच्च लक्ष्य पर ,
अपने बल पर चढ़ सकती हूं
मैं लड़की हूं ,लड़ सकती हूं
सही राह है ,सोच सही है
और लगन की कमी नहीं है
मैं नारी हूं ,शक्ति स्वरूपा ,
निज भविष्य खुद गढ़ सकती हूं
मैं लड़की हूं, लड़ सकती हूं
शिक्षा ही मेरा जेवर है
मेरे लिए खुल अवसर है
राहों की सारी बाधाएं ,
तोड़ में आगे बढ़ सकती हूं
मैं लड़की हूं लड़ सकती हूं
है संघर्ष भरा यह जीवन
तप कर अधिक निखरता कुंदन
मुझ में बल है, बहुत प्रबल मैं,
शीर्ष पदों पर चढ़ सकती हूं
मैं लड़की हूं लड़ सकती हूं
सबसे आगे बढ़ सकती हूं
मदन मोहन बाहेती घोटू
रविवार, 12 दिसंबर 2021
गुरुवार, 2 दिसंबर 2021
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हमारी जिंदगी
हमारी जिंदगी भी इस तरह के मोड़ लेती है
किसी अनजान के संग दिल के रिश्ते जोड़ लेती है
कभी राहों की बाधाएं और रोड़ों पर अटक जाती
कभी अनजान रस्तों पर, रुक जाती, भटक जाती
कभी दुर्गम कठिन पथ पर ,सहज से दौड़ लेती है हमारी जिंदगी भी किस तरह के मोड़ लेती है
कभी सुख में, खुशियों की, फुहारों से भिगो देती
परेशां होती ,आंखों में ,भरे आंसू ,वो रो देती
कभी मुश्किल दुखों की बाढ़ से झिंझोड़ देती है
हमारी जिंदगी भी किस तरह के मोड़ लेती है
मोह माया के फेरे में उम्र यूं ही गुजर जाती
कभी थोड़ी संवर जाती ,कभी थोड़ी बिखर जाती
बहुत सी खट्टी मीठी यादें पर वह छोड़ देती है
हमारी जिंदगी भी इस तरह के मोड़ लेती है
बड़ी मुश्किल पहेली यह कठिन है बूझना इसका
मगर उलझा ही रहता है ,दीवाना हर जना इसका
जिएं लंबा यही चाहत मौत से होड़ लेती है
हमारी जिंदगी में किस तरह के मोड़ लेती है
मदन मोहन बाहेती घोटू
बुधवार, 1 दिसंबर 2021
Fwd:
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---------- Forwarded message -
मैं अस्सी का
अब मैं बूढ़ा बैल हो गया ,नहीं काम का हूँ किसका
आज हुआ हूँ मैं अस्सी का ,जन्मा सन बय्यालीस का
धीरे धीरे बदल गए सन ,और सदी भी बदल गयी
बीता बचपन,आयी जवानी ,वो भी हाथ से निकल गयी
गयी लुनाई ,झुर्री छायी ,बदन मेरा बेहाल हुआ
जोश गया और होश गया और मैं बेसुर ,बेताल हुआ
सब है मुझसे ,नज़र बचाते ,ना उसका मैं ना इसका
आज हुआ मैं हूँ अस्सी का ,जन्मा सन बय्यालीस का
अनुभव में समृद्ध वृद्ध मैं ,लेकिन मेरी कदर नहीं
मैंने जिनको पाला पोसा ,वो भी लेते खबर नहीं
नहीं किसी से कोई अपेक्षा ,किन्तु उपेक्षित सा बन के
काट रहा ,अपनी बुढ़िया संग ,बचेखुचे दिन जीवन के
उन सब का मैं आभारी हूँ ,प्यार मिला जब भी जिसका
आज हुआ हूँ मैं अस्सी का ,जन्म सन बय्यालीस का
बढ़ी उमरिया ,चुरा ले गयी ,चैन सभी मेरे मन का
अरमानो का बना घोंसला ,आज हुआ तिनका तिनका
यादों के सागर में मन की ,नैया डगमग करती है
राम भरोसे ,धीरे धीरे ,अब वो तट को बढ़ती है
मृत्यु दिवस तय है नियति का,कोई नहीं सकता खिसका
आज हुआ हूँ मैं अस्सी का ,जन्मा सन बय्यालीस का
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
अब मैं बूढ़ा बैल हो गया ,नहीं काम का हूँ किसका
आज हुआ हूँ मैं अस्सी का ,जन्मा सन बय्यालीस का
धीरे धीरे बदल गए सन ,और सदी भी बदल गयी
बीता बचपन,आयी जवानी ,वो भी हाथ से निकल गयी
गयी लुनाई ,झुर्री छायी ,बदन मेरा बेहाल हुआ
जोश गया और होश गया और मैं बेसुर ,बेताल हुआ
सब है मुझसे ,नज़र बचाते ,ना उसका मैं ना इसका
आज हुआ मैं हूँ अस्सी का ,जन्मा सन बय्यालीस का
अनुभव में समृद्ध वृद्ध मैं ,लेकिन मेरी कदर नहीं
मैंने जिनको पाला पोसा ,वो भी लेते खबर नहीं
नहीं किसी से कोई अपेक्षा ,किन्तु उपेक्षित सा बन के
काट रहा ,अपनी बुढ़िया संग ,बचेखुचे दिन जीवन के
उन सब का मैं आभारी हूँ ,प्यार मिला जब भी जिसका
आज हुआ हूँ मैं अस्सी का ,जन्म सन बय्यालीस का
बढ़ी उमरिया ,चुरा ले गयी ,चैन सभी मेरे मन का
अरमानो का बना घोंसला ,आज हुआ तिनका तिनका
यादों के सागर में मन की ,नैया डगमग करती है
राम भरोसे ,धीरे धीरे ,अब वो तट को बढ़ती है
मृत्यु दिवस तय है नियति का,कोई नहीं सकता खिसका
आज हुआ हूँ मैं अस्सी का ,जन्मा सन बय्यालीस का
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '