पृष्ठ

रविवार, 14 नवंबर 2021

आज ठीक से नींद ना आई

आज ठीक से नींद ना आई, रहा यूं ही में सोता जगता रहे मुझे सपने आ ठगते,मैं सपनों के पीछे भगता 

नींद रही उचटी उचटी सी ,बिखरे बिखरे सपने आए खट्टी मीठी यादें लेकर, कुछ बेगाने अपने आए 
कभी प्रसन्न रहा मैं हंसता ,कभी क्रोध से रहा सुलगता रात ठीक से नींद ना आई, रहा रात भर सोता जगता

जाने कहां कहां से आई ,कितनी बातें नई पुरानी 
दाल माखनी सी यादें थी ,पकी खयालों की बिरयानी सपनों ने मिलकर दावत दी ,सब पकवान रहा मैं छकता राज ठीक से नींद ना आई,रहा रात भर सोता जगता

मदन मोहन बाहेती घोटू

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।