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रविवार, 14 नवंबर 2021

कितना बहुत होता है 

संतोष जब अपनी परिधि को तोड़ता है 
तो वह कुछ और पाने के लिए दौड़ता है 
जब भी चाह और अभिलाषाएं बलवती होती है 
तभी नए अन्वेषण और प्रगति होती है 
इस और की चाह ने हमें बहुत कुछ दिया है 
आदमी को चांद तक पहुंचा दिया है 
अभी जितना है अगर उतना ही होता 
तो विज्ञान इतना आगे नहीं बढ़ा होता 
और की चाह जीवन में गति भरती है 
और की कामना, कर्म को प्रेरित करती है 
इसलिए आदमी को चाहिए कुछ और 
यह मत पूछो कितना बहुत होता है ,
क्योंकि और का नहीं है कोई छोर 
कल मेरे पास बाइसिकल थी 
मुझे लगा इतना काफी नहीं है 
मैंने और की कामना की 
स्कूटर आइ, फिर मारुति फिर बीएमडब्ल्यू 
और फरारी की चाह है 
यही प्रगति की राह है

मदन मोहन बाहेती घोटू

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